________________ 16] [ भगवतीसूत्र (5) परिषद् के निर्गमन का विस्तृत वर्णन / ' (6) भगवान् महावीर द्वारा दिये गये धर्मोपदेश का वर्णन / ' (7) सभाविसर्जन के बाद श्रोतागण द्वारा कृतज्ञताप्रकाश, यथाशक्ति धर्माचरण का संकल्प, एवं स्वस्थान प्रतिगमन का वर्णन / (8) श्री गौतम स्वामी के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक व्यक्तित्व का वर्णन / (9) श्री गोतमस्वामी के मन में उठे हुए प्रश्न और भगवान् महावीर से सविनय पूछने की तैयारी / प्रस्तुत शास्त्र किसने, किससे कहा ? प्रस्तुत भगवतीमत्र का वर्णन पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वामी ने अपने शिष्य जम्बूस्वामी के समक्ष किया था। इसका कारण अावश्यकसूत्र-नियुक्ति में बताया गया है कि सुधर्मास्वामी का ही तीर्थ चला है। अन्य गणधरों की शिष्य परम्परा नहीं चली, सिर्फ सुधर्मास्वामी के शिष्य-प्रशिष्य हुए हैं।" 'चलमाणे चलिए' आदि पदों का एकार्थ-नानार्थ 5. (1) से नणं भंते ! चलमाणे चलिते 11 उदोरिज्जमाणे उदीरिते 2? वेइज्जमाणे वेइए 3 ? पहिज्जमाणे पहीणे 4 ? छिज्जमाणे छिन्ने 5 ? भिज्जपागे भिन्ने 6 ? उज्झमाणे डड्ढे 7 ? मिज्जमाणे मडे 8 ? निज्जारज्जमाणे निज्जिपणे ? हंता गोयमा ! चलमाणे चलिए जाव निजरिज्जमाणे निजिजणे / 5-[1 प्र. हे भदन्त (भगवन्) ! क्या यह निश्चित कहा जा सकता है कि 1. जो चल रहा हो, वह चला ?, 2. जो (कर्म) उदोरा जा रहा है, वह उदीर्ण हुआ?, 3. जो (कर्म) वेदा (भोगा) जा रहा है, वह वेदा गया ?, 4, जो गिर (पतित या नष्ट हो) रहा है, वह गिरा (पतित हुया या हटा)?, 5. जो (कर्म) छेदा जा रहा है, वह छिन्न हुया?, 6. जो (कर्म) भेदा जा रहा है, वह भिन्न हुआ (भेदा गया) ?, 7. जो (कर्म) दग्ध हो रहा है, वह दग्ध हुआ ?, 8. जो मर रहा है, वह मरा?, 9. जो (कर्म) निर्जरित हो रहा है, वह निर्जीर्ण हुग्रा ? 1. परिषद निर्गमन वर्णन---ौपपातिक सत्र 27 से 33 तक 2. धर्मकथा वर्णन-ग्रौपपातिक सूत्र 36 3. परिषद् प्रतिगमन वर्णन-प्रौपपातिक सूत्र 35-36-37 चतानी गौतमस्वामी द्वारा प्रश्न पूछने के पांच कारण---(१) अतिशययुक्त होते हए भी छदमस्थ होने के कारण, (2) स्वयं जानते हुए भी ज्ञान की अविसंवादिता के लिए, (3) अन्य अज्ञजनों के बोध के लिए, (4) शिष्यों को अपने बचन में विश्वास बिठाने के लिए, (5) शास्त्ररचना की यही पद्धति होने से / - भगवतीसूत्र वृत्ति, पत्रांक 16 / 5. (क) भगवती सूत्र अ. वृत्ति पत्रांक 7 से 14 तक का सारांश (ख) वही–पत्रांक ६-"तित्थं च सुहम्मानो, निरवच्चा गणहरा सेसा / " (ग) जम्बूस्वामी द्वारा पृच्छा-'जइ णं भंते ! पंचमस्स अंगस्म विवाहपन्नत्तीए के अटठे पणते ?" -~-ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org