________________ 30] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा! बेइन्दियाणं दुविहे आहारे पणत्ते / तं जहा-लोमाहारे पक्खेवाहारे य / जे पोग्गले लोमाहारत्ताए गिण्हंति ते सव्वे अपरिसेसिए प्राहारेति / जे पोग्गले पक्खेवाहारत्ताए गिण्हति तेसि णं पोग्गलाणं असंखिज्जभागं प्राहारेंति, अणेगाइच णं भागसहस्साई अणासाइज्जमाणाई अफासाइज्जमाणाई विद्ध समागच्छति / १७.३.प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव जिन पुद्गलों को आहाररूप से ग्रहण करते हैं, क्या वे उन सबका पाहार कर लेते हैं ? अथवा उन सबका आहार नहीं करते ? [17.3 उ.] गौतम ! द्वीन्द्रिय जीवों का प्राहार दो प्रकार का कहा गया है, जैसे किरोमाहार (रोमों द्वारा खींचा जाने वाला आहार) और प्रक्षेपाहार (कौर, बूद आदि रूप में मुह आदि में डाल कर किया जाने वाला आहार)। जिन पुद्गलों को वे रोमाहार द्वारा ग्रहण करते हैं, उन सबका सम्पूर्ण रूप से आहार करते हैं; जिन पुद्गलों को वे प्रक्षेपाहाररूप से ग्रहण करते हैं, उन पुद्गलों में से असंख्यातवाँ भाग आहार ग्रहण किया जाता है, और (शेष) अनेक-सहस्रभाग विना प्रास्वाद किये और बिना स्पर्श किये ही नष्ट हो जाते हैं। . (17.4) एतेसि णं भंते ! पोग्गलाणं प्रणासाइज्जमाणाणं अफासाइज्जमाणाणं य कयरे कयरेहितो अध्या वा 41 ? गोयमा ! सम्वत्थो वा पुग्गला प्रणासाइज्जमाणा, अफासाइज्जमाणा अणंतगुणा / [17.4 प्र.] हे भगवन् ! इन बिना प्रास्वादन किये हुए और बिना स्पर्श किये हुए पुद्गलों में से कौन-से पुद्गल, किन पुद्गलों से अल्प हैं, बहुत हैं, अथवा तुल्य हैं, या विशेषाधिक हैं ? [17.4 उ.] हे गौतम ! प्रास्वाद में नहीं पाए हुए पुद्गल सबसे थोड़े हैं, (जबकि) स्पर्श में नहीं आए हुए पुद्गल उनसे अनन्तगुरगा हैं। (17.5) बेइंदिया णं भंते ! जे पोग्गले प्राहारनाए गिण्हंति ते णं सि पुग्गला कीसताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति? ___ गोयमा ! जिभिंदिय-फासिदिय-वेमायत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति / [17.5 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव जिन पुद्गलों को आहाररूप में ग्रहण करते हैं, वे पुद्गल उनके किस रूप में बार-बार परिणत होते हैं ? 17.5 उ.] गौतम ! वे पुद्गल उनके विविधतापूर्वक जिह्वेन्द्रिय रूप में और स्पर्शेन्द्रियरूप में बार-बार परिणत होते हैं। (17.6) बेइंदियाणं भंते ! पुवाहारिया पुग्गला परिणया तहेव जाव' चलियं कम्म निजजरंति। [17.6 प्र.] हे भगवन् ! द्रोन्द्रिय जीवों को क्या पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत 1. यहाँ 'अप्पा वा' के आगे 4 का अंक 'बहया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा' इन शेष तीन पदों का सचक है। 2. यहाँ 'जाव' पद से छठे सूत्र के 1-4 से 1-10 पर्यन्त सूत्रपाठ देखें / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org