________________ पढम सतगं प्रथम शतक प्राथमिक * भगवतीसूत्र का यह प्रथम शतक है / इस शतक में दस उद्देशक हैं। * दस उद्देशकों की विषयानुक्रमणिका इस प्रकार है -(1) चलन, (2) दुःख, (3) कांक्षाप्रदोष, (4) प्रकृति, (5) पृथ्वियाँ, (6) यावन्त, (जितने) (7) नरयिक (8) बाल (6) गुरुक, (10) चलनादि / * प्रथम उद्देशक प्रारम्भ करने से पूर्व शास्त्रकार ने उपर्युक्त विषयसूची देकर श्रुतदेवता को नमस्कार के रूप में मंगलाचरण किया है / * प्रथम उद्देशक में उपोदधात देकर 'चलमाणे चलिए' इत्यादि पदों की एकार्थ-नानार्थ-प्रल्पणा, चौबीस दण्डकों की स्थिति आदि का विचार, जीवों की प्रारम्भ प्ररूपणा, चौबीस दण्डकों की प्रारम्भ प्रपणा, लश्यायुक्त जीवो में प्रारम्भ को प्ररूपणा, भव की अपेक्षा ज्ञानाद प्ररूपणा, प्रसंवृत-संवृतसिद्धिविचार, असंयत जोव देवगतिविचार आदि विषयों का निरूपण किया गया है। * द्वितीय उद्दशक में जीव की अपेक्षा से एकत्व-पृथक्त्व रूप से दु:खवेदन-पायुष्यवेदन-प्ररूपण, चौबीस दण्डकों में समाहारादि सप्त द्वार प्ररूपण, जीवादि की संसारस्थितिकाल के भेदाभेद, अल्पबहत्व-अन्तक्रिया कारकादि निरूपण. दर्शनव्यापन्न पर्याप्तक असंयत-भव्य-देवादि की विप्रति पत्ति विचार, असंज्ञी जीवों के आयु, प्रायुबंध, अल्प-बहुत्व का विचार प्रतिपादित है / * तृतीय उद्देशक में संसारी जीवों के कांक्षामोहनीय कर्म के विषय में विविध पहलुओं से विचार प्रस्तुत किया गया है / .* चतुर्थ उद्देशक में कर्मप्रकृतियों के बन्ध तथा मोक्ष प्रादि का निरूपण किया गया है। * पंचम उद्देशक में नारकी प्रादि 24 दण्डकों की स्थिति, अवगाहना, शरीर, संहनन, संस्थान, लेश्या, दृष्टि, जान, योग, उपयोग आदि द्वारों को दृष्टि से निरूपण किया गया है। * छरे उद्दशक में सूर्य के उदयास्त के अवकाश, प्रकाश, लोकान्तादि स्पर्शना, क्रिया, रोहप्रश्न, लोकस्थिति, स्नेहकाय आदि का निरूपण किया गया है / * सातवें उद्देशक में नारक आदि 24 दण्डकों के जीवों की उत्पत्ति, स्थिति, विग्रहगति, गर्भस्थ जीव के आहारादि का विचार प्रस्तुत किया गया है। * पाठवें उद्देशक में बाल, पण्डित और बालपण्डित मनुष्यों के आयुष्यबंध, कायिका दि क्रिया, जय पराजय, हेतु, सवीर्यत्व-अवीर्यत्व की प्ररूपणा है। * नौवें उद्देशक में विविध पहलुओं से जीवों के गुरुत्व-लघुत्व आदि का निरूपण किया गया है। * दसवें उद्दशक में 'चलमान चलित' आदि सिद्धान्तों के विषय में अन्यतैथिक प्ररूपणा प्रस्तुत करके उसका निराकरण किया गया है। * कुल मिला कर समस्त जीवों को सब प्रकार की परिस्थितियों के विषय में इस शतक में विचार किया गया है, इस दृष्टि से यह शतक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org