________________ 10] [भगवतीसूत्र किसी भी क्षेत्र में विद्यमान हों, सावुत्व की साधना करने वालों को नमस्कार करने की दृष्टि से 'सव्व' विशेषण का प्रयोग किया गया है। सर्व शब्द-प्रयोग अन्य परमेष्ठियों के साथ भी किया जा सकता है। सव्व' शब्द के वत्तिकार ने 1 सार्व, 2 श्रव्य और 3 सव्य, ये तीन रूप बताकर पृथक्-पृथक अर्थ भी बताए हैं। सार्व का एक अर्थ है-समानभाव से सब का हित करने वाले साधु, दूसरा अर्थ है-सब प्रकार के शुभ योगों या प्रशस्त कार्यों की साधना करने वाले साधु, तीसरा अर्थ है-- सार्व अर्थात्-अरिहन्त भगवान् के साधु अथवा अरिहन्त भगवान् की साधना-आराधना करने वाले साधू या एकान्तबादी मिथ्यामतों का निराकरण करके सार्व यानी अनेकान्तवादो आईतमत की प्रतिष्ठा करने वाले साधु सार्वसाधु हैं। णमो लोए सव्वसाहूर्ण पाठ का विशेष तात्पर्य इस पाठ के अनुसार प्रसंगवशात् सर्व शब्द यहाँ एकदेशीय सम्पूर्णता के अर्थ में मान कर इसका अर्थ किया जाता है.-ढाई द्वीप प्रमाण मनुष्य लोक में विद्यमान सर्वसाधुओं को नमस्कार हो। लोकशब्द का प्रयोग करने से किसी गच्छ, सम्प्रदाय, या प्रान्तविशेष की संकुचितता को अवकाश नहीं रहा। कुछ प्रतियों में 'लोए' पाठ नहीं है। श्रव्यसाधु का अर्थ होता है-श्रवण करने योग्य शास्त्रवाक्यों में कुशलसाधु (न सुनने योग्य को नहीं सुनता)। सव्यसाधु का अर्थ होता है-मोक्ष या संयम के अनुकूल (सव्य) कार्य करने में दक्ष / पाँचों नमस्करणीय और मांगलिक कैले ?–अर्हन्त भगवान् इसलिए नमस्करणीय हैं कि उन्होंने आत्मा की ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य रूप शक्तियों को रोकने वाले घातीकर्मों को सर्वथा निमल कर दिया है, वे सर्वज्ञतालाभ' करके संसार के सभी जीवों को कर्मों के बन्धन से मुक्ति पाने का मार्ग बताने एवं कर्मों से मुक्ति दिलाने वाले, परम उपकारी होने से नमस्करणीय हैं एवं उनको किया हया नमस्कार जीवन के लिए मंगलकारक होता है। सिद्ध भगवान् के ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सुख और वीर्य आदि गुण सदा शाश्वत और अनन्त हैं। उन्हें नमस्कार करने से व्यक्ति को अपनी आत्मा के निजी गुणों एवं शुद्ध स्वरूप का भान एवं स्मरण होता है, गुणों को पूर्ण रूप से प्रकट करने की एवं प्रात्मशोधन की, आत्मबल प्रकट करने की प्रेरणा मिलती है, अतः सिद्ध भगवान् संसारी आत्माओं के लिए नमस्करणीय एवं सदैव मंगलकारक हैं। आचार्य को नमस्कार इसलिए किया जाता है कि वे स्वयं प्राचारपालन में दक्ष होने के साथ-साथ दूसरों के आचारपालन का ध्यान 1. (क) साधयन्ति ज्ञानादिशक्तिभिर्मोक्षमिति साधवः / समतां वा सर्वभूतेष ध्यायन्तीति साधवः / / (ख) निब्वाणसाहए जोए, जम्हा साहेति साहुणो / समया सवभएसु, तम्हा ते भावसाहुणो / (ग) असहाए सहायत्त करेंति में संयम करेंतस्स / एएण कारणेणं णमामिऽहं सव्वसाहणं / / (घ) सर्वेभ्यो जीवेभ्यो हिताः सार्वा: सार्वस्य वाहत: साधवः सार्वसाधवः / सर्वान् शुभयोगान साधयन्ति". "" / भगवती बत्ति पत्रांक 3 (च) लोके मनुष्यलोके, न तु गच्छन्ति, ये सर्वसाधवस्तेभ्यो नमः / -भगवती बृत्ति पत्रांक 4 (छ) भगवती वृत्ति पत्रांक 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org