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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक स्थान-२
उद्देशक-१ सूत्र-५७
लोक में जो कुछ है वह सब दो प्रकार का है, यथाजीव और अजीव ।
जीव का द्वैविध्य इस प्रकार है - त्रस और स्थावर, सयोनिक और अयोनिक, सायुष्य और निरायुष्य, सेन्द्रिय और अनेन्द्रिय, सवेदक और अवेदक, सरूपी और अरूपी, सपुद्गल और अपुद्गल, संसार-समापन्नक और असंसार-समापन्नक, शाश्वत और अशाश्वत । सूत्र-५८
अजीव का द्वैविध्य इस प्रकार है - आकाशास्तिकाय और नो आकाशास्तिकाय, धर्मास्तिकाय और अधमर्मास्तिकाय। सूत्र- ५९
(अन्य तत्त्वों का स्वपक्ष और प्रतिपक्ष इस प्रकार है) बंध और मोक्ष, पुण्य और पाप, आस्रव और संवर, वेदना और निर्जरा। सूत्र - ६०
क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा जीव क्रिया और अजीव क्रिया । जीव क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-सम्यक्त्व क्रिया और मिथ्यात्व क्रिया । अजीव क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-ऐर्यापथिकी और साम्परायिकी।
क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-कायिकी और आधिकरणिकी। कायिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-अनुपरतकाय क्रिया और दुष्प्रयुक्तकाय क्रिया । आधिकरणिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा - संयोजनाधिकरणिकी और निर्वर्तनाधिकरणिकी।
क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-प्राद्वेषिकी और पारितापनिकी। प्राद्वेषिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-जीव-प्राद्वेषिकी और अजीव-प्राद्वेषिकी । पारितापनिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-स्वहस्तपारितापनिकी और परहस्तपारितापनिकी।
क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-प्राणातिपात क्रिया, परहस्त प्राणातिपात क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-स्वहस्त प्राणातिपात क्रिया, परहस्त प्राणातिपात क्रिया । अप्रत्याख्यान क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-जीव अप्रत्याख्यान क्रिया, अजीव अप्रत्याख्यान क्रिया।
क्रिया दो प्रकार की है, आरम्भिकी और पारिग्रहिकी । आरम्भिकी क्रिया दो प्रकार की है, यथा-जीव आरम्भिकी और अजीव आरम्भिकी। पारिग्रहिकी क्रिया भी दो प्रकार की है, यथा-जीव-पारिग्रहिकी और अजीवपारिग्रहिकी।
__क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-माया-प्रत्ययिकी और मिथ्यादर्शन-प्रत्ययिकी । माया-प्रत्ययिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-आत्म-भाव-वंकनता और पर-भाव-वंकनता । मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-ऊनातिरिक्त मिथ्यादर्शन, प्रत्ययिकी तद्व्यतिरिक्त मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी।
क्रिया दो प्रकार की है, दृष्टिजा और स्पृष्टिजा । दृष्टिजा क्रिया दो प्रकार की है, यथा-जीव-दृष्टिजा और अजीव-दृष्टिजा । इसी प्रकार पृष्टिजा भी जानना।
दो क्रियाएं कही गई हैं, यथा-प्रातीत्यिकी और सामन्तोपनिपातिकी। प्रातीत्यिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-जीव-प्रातीत्यिकी और अजीव-प्रातीत्यिकी । इसी प्रकार सामन्तोपनिपातिकी भी जाननी चाहिए।
दो क्रियाएं हैं, स्वहस्तिकी और नैसृष्टिकी । स्वहस्तिकी क्रिया दो प्रकार की है, जीव-स्वहस्तिकी और अजीवस्वहस्तिकी । नैसृष्टिकी क्रिया भी इसी प्रकार जानना।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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