Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 8
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-५१ नारकीय के जीवों की वर्गणा एक है। असुरकुमारों की वर्गणा एक है, यावत्-वैमानिक देवों की वर्गणा एक है भव्य जीवों की वर्गणा एक है। अभव्य जीवों की वर्गणा एक है। भव्य नरक जीवों की वर्गणा एक है। अभव्य नरक जीवों की वर्गणा एक है। इस प्रकार-यावत्-भव्य वैमानिक देवों की वर्गणा एक है। अभव्य वैमानिक देवों की वर्गणा एक है । सम्यग्दृष्टियों की वर्गणा एक है । मिथ्यादृष्टियों की वर्गणा एक है। मिश्रदृष्टि वालों की वर्गणा एक है । सम्यग्दृष्टि वाले नरक जीवों की वर्गणा एक है । मिथ्यादृष्टि वाले नरक जीवों की वर्गणा एक है । मिश्रदृष्टि वाले नरक जीवों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार-यावत्-स्तनित कुमारों की वर्गणा एक है। मिथ्यादृष्टि पृथ्वीकाय के जीवों की वर्गणा एक है । यावत्-वनस्पतिकाय के जीवों की वर्गणा एक है । सम्यग्दृष्टि द्वीन्द्रिय जीवों की वर्गणा एक है । मिथ्यादृष्टि द्वीन्दियि जीवों की वर्गणा एक है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों की वर्गणा एक है। शेष नरक जीवों के समान-यावत्-मिश्रदृष्टि वाले वैमानिकों की वर्गणा एक है। कृष्णपाक्षिक जीवों की वर्गणा एक है। शुक्लपाक्षिक जीवों की वर्गणा एक है । कृष्णपाक्षिक नरकजीवों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार चौबीस दण्डक में समझ लेना। कृष्णलेश्या वाले जीवों की वर्गणा एक है । नीललेश्या वाले जीवों की वर्गणा एक है । इसी प्रकार-यावत्शुक्ललेश्या वाले जीवों की वर्गणा एक है । कृष्णलेश्या वाले नैरयिकों की वर्गणा-यावत्-कापोतलेश्या वाले नैरयिकों की वर्गणा एक है। इस प्रकार जिसकी जितनी लेश्याएं हैं उसकी उतनी वर्गणा समझ लेनी चाहिए। भवनपति, वाणव्यन्तर, पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय में चार लेश्याएं हैं । तेजस्काय, वायुकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय में तीन लेश्याएं हैं । तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यों में छ: लेश्याएं हैं । ज्योतिष्क देवों में एक तेजोलेश्या है। वैमानिक देवों में ऊपर की तीन लेश्याएं हैं। इनकी इतनी ही वर्गणा जाननी चाहिए। कृष्णलेश्या वाले भव्य जीवों की वर्गणा एक है । कृष्णलेश्या वाले अभव्य जीवों की वर्गणा एक है । इसी प्रकार छहों लेश्याओं में दो दो पद कहने चाहिए । कृष्णलेश्या वाले भव्य नैरयिकों की वर्गणा एक है । कृष्णलेश्या वाले अभव्य नैरयिकों की वर्गणा एक है। इस प्रकार विमानवासी देव पर्यंत जिसकी जितनी लेश्याएं हैं उसके उतने ही पद समझना। कृष्णलेश्या वाले सम्यग्दृष्टि जीवों की वर्गणा एक है । कृष्णलेश्या वाले मिथ्यादृष्टि जीवों की वर्गणा एक है। कृष्णलेश्या वाले मिश्रदृष्टि जीवों की वर्गणा एक है । इस प्रकार छः लेश्याओं में जिसकी जितनी दृष्टियाँ हैं उसके उतने पद जानने चाहिए। कृष्णलेश्या वाले कृष्णपाक्षिक जीवों की वर्गणा एक है । कृष्णलेश्या वाले शुक्लपाक्षिक जीवों की वर्गणा एक है । इस प्रकार विमानवासी देव पर्यंत जिसकी जितनी लेश्याएं हों उतने पद समझ लेने चाहिए । ये आठ चौबीस दण्डक जानने चाहिए। तीर्थसिद्ध जीवों की वर्गणा एक है। अतीर्थसिद्ध जीवों की वर्गणा एक है - यावत्-एकसिद्ध जीवों की वर्गणा एक है। अनेकसिद्ध जीवों की वर्गणा एक है। प्रथम समय सिद्ध जीवों की वर्गणा एक है-यावत्-अनन्त समय सिद्ध जीवों की वर्गणा एक है। परमाणु पुद् गलों की वर्गणा एक है । इस प्रकार अनन्त प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा-यावत् एक है । एक प्रदेशावगाढ़ पुद्गलों की वर्गणा एक है-यावत् असंख्य प्रदेशावगाढ़ पुद्गलों की वर्गणा एक है । एक समय की स्थिति वाले पुद्गलों की वर्गणा एक है-यावत् असंख्य समय की स्थिति वाले पुद्गलों की वर्गणा एक है। एक गुण वाले पुद्गलों की वर्गणा एक है-यावत् असंख्य गुण काले पुद्गलों की वर्गणा एक है । अनन्त गुण काले पुद्गलों की वर्गणा एक है। इस प्रकार वर्ण, गंध, रस और स्पर्श का कथन करना चाहिए-यावत् अनन्त गुण रूक्ष पुद्गलों की वर्गणा एक है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 8Page Navigation
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