Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 03
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 425
________________ ८४ गाथार्धम् अंजणे अंजणपुलते अंबट्ठा य कलंदा अज्झवसाण-निमित्ते द्वितीयं परिशिष्टम् स्थानाङ्गसूत्रान्तर्गतानां गाथार्थानामकारादिक्रमः सूत्राङ्कः | गाथार्धम् सूत्राङ्कः | गाथार्धम् ७३२ उवसग्ग गब्भहरणं ६४३ आकंपइत्ता अणुमाणइत्ता ४९७ आडंबरो रेवततं ५६१ आणंदे कामदेवे त ५०३ आतंक उवसग्गे | एगनासा णवमिता ७५५ एगा से गब्भवसही ५०० | एते खलु पडिसत्तू १९५ आदिच्चतेयतविता ४६० एते ते नव निहओ ७४९ एतेसिं पल्लाणं ६०९ एतेसिं हत्थिणं थोवं थोवं ५०३ एरंडमज्झयारे एरंडे ७३७ एरंडमज्झयारे जह ६७२ एरवते वेसमणे ९ ७४८ पुच्छणा पडिपुच्छा ७४५ आमंतणी भवे अट्ठमी उ ७४४ आरभडा, संमद्दा ७३७ आरोग्ग दीहमाउं ३७७ आसाण य हत्थीण य ३७७ आसा सव्वगा चेव ४६० इंदा अग्गेयी जम्मा त ९५ इच्छा मिच्छा तहक्कारो ७५१ इत्थीओयसमाओगे ६९४ | इय मंगल आयरिए ६०९ इय मंगल आयरिए ६४३ | इय सुंदर आयरिए ६८९ इय सुंदर आयरिए ६८९ इलादेवी सुरादेवी ३०७ इसिदासे य धण्णे त ६४३ | कंठुग्गतेण गंधारं ७२० कंसे संखे जीवे ७४९ कक्कसेणे भीमसेणे ३७७ कच्छे वेसमणे या ९ ३४९ कडुतो बहूदतो वा ३४९ कणते कंचणे पउमे ३४९ कस्स अवरकंका ३४९ कतिसमता उस्सासा ? ६४३ कत्तिय रोहिणि मगसिर ७५५ कलंबो उ पिसायाणं ५९० कला आवरणे अन्नाणे ५५३ काकस्सरमणुनासंच ५५३ कारणे त पडुपण्णे ६७२ काले कालण्णाणं ५५३ उत्तरकुरु फलिहे ६५४ उत्तरगंधारा वित ७७७ उत्तरमंदा रयणी ७३६ उप्पज्जंति एगेंदियाई ५५३ उप्पाते निमित्ते मंते ५५३ उर-कंठ - सिरपसत्थं च ५५३ उवणीतं सोवयारं च ५५३ उवसंपता य काले ६७८ काले य महाकाले अणच्चावितं, अवलितं अण्हते तवे व अणागतमतिक्कंतं अणुकंपा संग चे अत्तणा उवणीत अत्थि सुभोग निक्खम्म अप्पं अयं बहु सुक्कं अप्पं सुक्कं बहु ओयं अप्पेण वि वासेणं अभिई, सवण, धणिट्ठा अभिगम - वित्थाररुती अभिती समणो धणिट्ठा अणे हि तत्तो अलंबुसा मिस्सकेसी अ अवरविदेहे रम्मगकूडे अवरविदेहे रुतगे ९ अवरेण चंपगवणं अवसाणे य खवेंता असोगो किन्नराणं च अस्संजतेसु पूआ अस्सत्थ सत्तिवन्ने अस्सोकंता य सोवीरा अह उत्तरायता कोडीमा असंभवे का आइमिउ आरभंता Jain Education International ५५३ कुंजर वस सी ५५३ कुंथुस्स कत्तियाओ ७४९ | कुमुदे य पलासे य For Private & Personal Use Only सूत्राङ्कः ७७७ ६४३ ६७२ ६७२ ६७३ ११० २८१ ३४९ ३४९ ६८९ ५५३ ६९३ ७३७ ६८९ ४६० ६४३ ७७७ ५५३ ९५ ६५४ ६७८ ५५३ ७४४ ६७३ ६७३ ६९३ ४११ ६४१ www.jainelibrary.org

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