Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 03
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 535
________________ १९४ स्थानाङ्गसूत्रटीकायाः ग्रन्थान्तरेभ्य: साक्षितयोद्धृतानां पाठानामकारादिक्रमेण सूचिः ५० १६५ उद्धृतः पाठः पृष्ठाकः | उद्धृतः पाठः पृष्ठाङ्कः कार्मणशरीरयोगी चतुर्थके.....[प्रशम० २७७] ७६१ कृष्णादिद्रव्यसाचिव्यात्.... [ ] काल-विवज्जय-सामित्त...विशेषाव० ८७] ५९६ | केइ सुरूव विरूवा खुज्जा ..... कालक्कमेण पत्तं .....[पञ्चव० ५८१] ५१८ बृहत्कल्प० ६१५९] कालयदृच्छानियतीश्वर-.....[ ] ४६० | केलासभवणा एए....(निशीथभा० ४४२७] ५८५ काले विणए.... [दशवै०नि० १८४, केवइकालेणं भंते ! चमरचंचा ...[ ] ६४२ निशीथभा० ८] १०८ | केवलं गह्वरीभूते ......[ ] ७३० कालो त्ति मयं मरणं....विशेषाव० २०६६] ३३९ | केवलणाणावरणं १...[बन्धश० ७९] कालो वि नालियाईहिं.....[दशवै०नि० ६२] ४३८ | केवलमेगं सुद्धं ....(विशेषाव० ८४] ५९५ किं एत्तो पावयरं ?.....[ ] १२| केवलियनाणलंभो ... [आव०नि० १०४] ३२७ किं एस उग्गदंडो ......[ ] ८३५ को जाणइ किं साहू.....विशेषाव० २३५९] ७०६ किं कय किं वा .....[ओघनि० २६२] ६१८ को जाणइ व... विशेषाव० १८७२] ४७ किं कय किं वा....[ओघनि० २६२] ३६१ को दुक्खं पावेज्जा...उपदेशमाला०१२९] १५२ किं थ तयं पम्हुठं......[ज्ञाताधर्म० ११८] ६९० को मम कालो ? किमेयस्स .....[ ] ३६१ किंचिदकाले वि फलं.....[विशेषाव० २०५८] ६८६ | कोउय भूईकम्मे पसिणा..... किंपत्तियण्णं भंते !..[भगवती०३।२।१३] २७४/ बृहत्कल्प० १३०८] ४७१ किइकम्मस्स विसोहिं..... [आव० भा० २४८]५९७ कोच्छं सिवभूई......[कल्पसू०] ६६७ किण्हा नीला काऊ....बृहत्सं० १९३] ५२ | कोधाइ संपराओ......[विशेषाव० १२७७] ५५५ किण्हा नीला काऊ...(बृहत्सं० १९३] १७० | कोसपमाणा भवणा ...... बृहत्क्षेत्र० २९४] ७४८ किरियावाई भब्वे.... [ ] १०१ | कोहग्गिदाहसमणादओ...(विशेषाव० १०३६] ५३ किविणेसु दुम्मणेसु..... (निशीथभा० ४४२४] ५८५ कोहाइ संपराओ तेण.... [विशेषाव० १२७७] ८७ किह पडिकुक्कुडहीणो....(विशेषाव० ३०४] ८४ कोहाईओ पओसो [ ] .८३५ कुंडलवरस्स मझे... [द्वीपसागर० ७२] २८२ कोहाईणमणुदिणं चाओ.....[ ] २५१ कुंभो भावाणन्नो जइ....विशेषाव० २२०८] ६६९ कोहो य माणो य अणिग्गहीया,..... कुच अवस्यन्दन [ ] ६३७ दशवै०८।४०] कुट कौटिल्ये..[पा० धा० १३६७] ६७० | क्रियैव फलदा......[ ] कुड्यादिनिःसृतानां....तत्त्वसं० ३२४३] १४|क्षायोपशमिकात्.....[ ] ५९८ कुतस्तस्यास्तु राज्यश्रीः.....[ ] ५८१ | क्षिति-जल-पवन-......[ ] ८३८ कृतमुष्टिकस्तु रत्निः स एव.....[ ] ४९२ क्षुद्रलोकाकुले लोके.....[ ] ५८० कृत्यल्युटो बहुलम् [पा० ३।३।११३] ७३४ | खंती य मद्दवऽज्जव मुत्ती...... कृत्स्नकर्मक्षयान्मोक्षः [तत्त्वार्थ० १०।३] २५ (पञ्चाशक० ११।१९ आव० सं०] ५१२ कृपणेऽनाथ-दरिद्रे ......[ ] ८५३ | खंतो आयरिएहिं फरुसं......[ ] ७२८ ३२४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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