Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 03
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 556
________________ पञ्चमं परिशिष्टम् । २१५ उद्धृतः पाठः पृष्ठाङ्कः । उद्धृतः पाठः पृष्ठाङ्कः सव्वत्थेहावाया.....[विशेषाव० २८५] ६२१ | साध्येनानुगमो हेतोः....[प्रमाणसमु० ४।२] ४३३ सब्वत्थोवाइं अणंतगुणवड्ढिट्ठाणाणि,....[ ]३७६ | सापेक्षाणि च निरपेक्षाणि च .....[ ] ३२६ सव्वत्थोवो संजयस्स जहन्नओ ....[ ] ३७६ | सामन्नाओ विसेसो......विशेपाव० ३४] ६१ सवभिचारं हेतुं .....[दशवै० नि० ६८] ४३९ सामन्नत्थावग्गहणमोग्गहो. पाव० १८०] ४८६ सव्वमिणं सामाइयं ....[विशेषाव० १२६२] ५५४ | सामन्नमेत्तगहणं.....[विशेषाव० २८२] ६२१ सवरयणस्स अवरेण तिन्नि. सामन्नाउ विसेसो ..... [विशेषाव० ३४] ६४२ द्वीपसागर० १८] सामर्थ्य वर्णनायां च... [ ] सव्ववइजोगरोहं संखातीएहिं सामाइयादिचरणस्स ......[ ] विशेषाव० ३०६२] ३२३ | सामादि-धातुवादादि-....[ ] २६३ सबस्स उम्हसिद्धं .....[ ] ५०८ | सायं १ उच्चागोयं....[ ] २६ सव्वस्स छड्डण विगिंचणा.. | सारस्वता १-ऽऽदित्य...[तत्त्वार्थ० ४।२६] १०४ [बृहत्कल्प० ५८१३] ५६६ | सालंबणो पडतो वि ....[आव०नि०११८६] ५३३ सव्वाओ वि णईओ.....बृहत्क्षेत्र० ३।४०] १३९ | सावज्जजोगविरइ त्ति....[विशेषाव०१२६३] ५५४ सब्वे आसायंते.....बृहत्कल्प० ४९८३] २७६ | साहटु दो वि....पञ्चाशक० १८।२०] २५४ सवे चरित्तवंतो उ,...बृहत्कल्प० ६४५४] २८५ | साहुक्कारपुरोगं जह .....[दशवै० नि० ७४] ४४० सब्बे पाणा....[आचाराङ्ग० सू०७८ ] १२ | साहूणं वंदणेणं नासति......[ ] ८५२ सब्वे वटटविमाणा... विमान० २४८] २४६ सिंचति खरइ जमत्थं...विशेषाव. १३६८] ८५ सब्वे वि उसभकूडा ......[बृहत्क्षेत्र० १९३] ७५२ | सिज्जायरपिंडे या....बृहत्कल्प० ६३६१] ६३९ सब्वे वीससहस्सा बाहल्लेणं...... सिज्जायरपिंडे या १... बृहत्कल्प० ६३६१] २८३ बृहत्सं० २४२] ६६४ | सिद्धार्थं सिद्धसम्बन्धं...[मी० श्लो०वा० १७] १३ सब्बेसु पत्थडेसुं... [विमान० २४५] २४६ | सिय आहारए सिय... [प्रज्ञा० १९०५] । सब्बेसु सव्वघाइसु... (विशेषाव० २८९६] १६५ सियसिंधुरखंधगओ .....[ ] ३५७ सव्वो पमत्तजोगो समणस्स.......[ ] ८०३ | सीउण्हसहा भिक्खू ण य..... सब्बो वि नाण-... व्यवहारभा० २५४०] सा नवहा दुह कीरइ.....[दशवै०नि० २४१] ७७९ | सीओसिणजोणीया.... सा सगडतित्तिरी वंसगम्मि.... जीवस० ४७, बृहत्सं० ३६०] २०५ दशवै० नि० ८९] ४४६ | सीमंतकप्पभो खलु ....[विमान० २०] ६२७ सागघयादावावो .... निशीथभा० १२३] ३५७ | सीमंतावत्तो पुण निरओ.... [विमान० २१] ६२७ सागरमेगं तिय सत्त.... [बृहत्सं० २३३] २१० | सीया य ४....[बृहक्षेत्र० १७२] १२८ साजीणे भुज्यते यत्तु......[ ] ७६९ | सीसाण कुणइ कह सो .....[ ] ६०३ साध्याविनाभुवो लिङ्गात्,.....[न्याया० ५] ४४७ | सीसावेढियपोत्तं ....[बृहत्कल्प० ६३६६] २८४ ८९ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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