Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 03
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 547
________________ २०६ स्थानाङ्गसूत्रटीकाया: ग्रन्थान्तरेभ्य: साक्षितयोद्धृतानां पाठानामकारादिक्रमेण सूचिः उद्धृतः पाठः पृष्ठाङ्कः । उद्धृतः पाठः पृष्ठाङ्कः पट्ट सुवन्ने मलये अंसुय..... | पढमिल्लुयसंघयणे....[पञ्चव० १६१८] १६२ [बृहत्कल्प० ३६६२] ५७८ | पढमिल्लुयाण उदए.....[आव०नि० १०८] ३२७ पट्ठवणओ उ दिवसो... पणन उइ सहस्साइं .....[बृहत्क्षेत्र० २।४] ३८६ [आव० नि० १५८४] ८५७ पणयालीस सहस्सा.... [ ] ११७ पठकः पाठकश्चैव ये चान्ये .....[ ] ४६८ | पणिहाणजोगजुत्तो पंचहिं.... [दशवै०नि० १८५, पडिपुच्छणा उ कज्जे ......[पञ्चा० १२।३०] ८५९) निशीथभा० ३५] १०८ पडिबंधनिराकरणं केई अन्ने..... पणुवीसं उब्बिद्धो.....[बृहत्क्षेत्र० १७८] १२० [पञ्चा० १७।१९] ५३६ पत्तं १ पत्ताबंधो.... ओघनि० ६६८] ५४ पडिमासु सत्तगा सत्त......[ ] ६६२ पद्म सङ्कोचमायाति, ..... [] ५३९ पडिलोमे जह अभओ पज्जोयं..... पन्नट्ठि सहस्साई चत्तारि..[बृहत्क्षेत्र०५।२६] १४२ दशवै० नि० ८२] ४४३ पन्नवओ जयभिमुहो.... [ ] २२५ पडिवज्जइ एयाओ... [पञ्चाशक० १८१४] २५३ | पमाओ य मुणिंदेहि....[ ] २२८ पडिसिद्धेसु वि दोसे .....[ ] ६३९ | पयईए तणुकसाओ...[बन्धशतक० २२] १८७ पडिसेवणपारंची.. बृहत्कल्प० ४९८५] २७७ | परमाणू तसरेणू रहरेणू....... पडिसेवणा उ भावो.....[व्यवहारभा० ३९] ३३८| [अनुयोगद्वार० सू० ३३९] ७४७ पडुप्पन्नसमयनेरइया... [ ] परसमओ उभयं......विशेषाव० ९५३] पढमं अहम्मजुत्तं पडिलोमं ..... परस्परोपकाराणां ......[ ] २५६ [दशवै० नि० ८१] | परिणामो ह्यर्थान्तरगमनं .....[ ] ६४७ पढमं चिय गिहि-संजयमीस...... परिणामो ह्यर्थान्तरगमनं न.....[ ] ३४० पञ्चा० १३।९] परिणामो ह्यर्थान्तरगमनं......[ ] ८१७ पढम लहइ नगारं... [विशेषाव० २८९७] १६५ | परिभासणा उ पढमा ....[आव० भा० ३] ६८४ पढमबीयदुओ वाहिओ......[ ] ८३५ परियट्टिए १० अभिहडे.. पढम-बीयाण पढमा ...... | पञ्चा०१३।६,पिण्डनि०९३] २६९ [आव० नि० १६८] ६८४ | परियायस्स उ छेओ.....[विशेषाव० १२६८] ५५५ पढमम्मि सव्वजीवा बीए..... [आव०नि० ५७४, परिसंठियम्मि पवणे .....[बृहत्क्षेत्र०२।१६] ३८७ विशेषाव० २६३७] ४९९ परिसुद्धजुन्नकुच्छिय-.....(विशेषाव० २५९९] ८०५ पढमसत्तराइंदियं.... [दशाश्रुत० ७५१] २५३ | परिसेय-पियण-.....[ओघनि० ३४७] ५८० पढमा १ पढमे २ चरम ३..... परिस्रवस्वेदविदाहरागा.....[ ] ४५३ [उत्तरा०भा० १४] | ५७८ परिहारिय छम्मासे.... [बृहत्कल्प० ६४७४] ६४० पढमा असीइसहस्सा १.....[बृहत्सं० २४१] ६६४ | परिहारेण विसुद्धं सुद्धो य..... पढमाऽसीइसहस्सा बत्तीसा..[बृहत्सं० २४१] २११/ विशेषाव० १२७०] ५५५ ७०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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