Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 03
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 546
________________ पञ्चमं परिशिष्टम् । २०५ ३३८ उद्धृतः पाठः पृष्ठाङ्कः । उद्धृतः पाठः पृष्ठाकः निषीदन्ति स्वरा ......[ ] ६७५ | पंचाईयारोवण नेयव्वा जाव..... नेरइए णं भंते ! नेरइएसु ..... __ [व्यवहारभा० १४१] [प्रज्ञापना० १७।३।११९९, पंचादिगारसंते ठविउं .....[ ] ५०४ भगवती० ४।९।१] ३७३, ६४५ | पंचास चत्त छच्चेव...बृहत्सं० ११८] २९१ नेरइया १ असुरादी....[ ] ४६ | पंचेव जोयणसए उड्डं....[बृहत्क्षेत्र० ३२७] ३८२ नेरइयाइभवस्स व.... [विशेषाव० ३४४९] २०९ | पंचेव धणुसयाइं ......[बृहत्क्षेत्र० २९५] ७४८ नेसप्पे १ पंडुए २ पिंगले......[ ] ७७३ | पंडगवणम्मि चउरो.... [बृहत्क्षेत्र० १।३५५] १४२ नैवास्ति राजराजस्य....प्रशम० गा० १२८] ८४० | पइसमयमसंखेज्जइ....[विशेषाव० ७३०] ६३३ नो पलिउंचे अमायी ....[ ] ८३७ | पउमाभ वासुपुज्जा....[आव०नि० ३७६] १६८ नोआगमओ भावो.... (विशेषाव० ४९] |पउमुप्पलनलिणाणं,....प्रज्ञापना० १९०] २०६ नोइंदियपच्चक्खो ववहारो. | पउमे य १ महापउमे...[बृहत्क्षेत्र० ५६८] १२२ व्यव० भा० ४०३१] ४६ | पक्ख-चउमास-.....विशेषाव० २९९२] ३७२ पंकपणएसु नियमा ओगसणं..... | पक्खेवए दुगुंछा.... [व्यव० ९।३८२६] २५१ [बृहत्कल्प० ६१८९] ५६३ | पच्चक्खागमसरिसो होइ..... पंको खलु चिक्खल्लो....[बृहत्कल्प० ६१८८] ५६२] [व्यव० भा० ४०३५] ५४६ पंचण्हं गहणेणं सेसा वि..... पच्चक्खाणं जाणइ... [आव० भा० २४७] ५९८ [बृहत्कल्प० ५६२०] ५३२ | पच्चक्खाणं सवण्णु-..... [आव०भा० २४६] ५९७ पंचत्थिकायमइयं .....[ध्यानश० ५३] ५७० पच्चक्खो वि य दुविहो..... पंचत्थिकायमइयं...... [ध्यानश० ५३] १६३ / व्यव० भा० ४०३०] ५४६ पंचमए विदिसीए... [ ] २९९ | पच्छा गच्छमतीती....[पञ्चाशक० १८।१३] २५३ पंचमगम्मि य भावे जीव .....[ ] ६४८ | पज्जत्तमेत्तबेंदियजहन्नवइ-..... पंचमिं च दसं पत्तो......[तन्दुल०प्रकी० ४९] ८९३ विशेषाव० ३०६१] ३२३ पंचविहं आयारं... [आव०नि० ९९८] २३६ | पज्जत्तमेत्तसन्निस्स जत्तियाइं ..... पंचविहे ववहारे,...बृहत्कल्प० ६४५५] २८५ विशेषाव० ३०५९] ३२३ पंचसए उविद्धा.... [बृहत्क्षेत्र० २६१] ११९ पज्जवणं पज्जयणं.....[विशेषाव० ८३] पंच सए छब्बीसे.... [बृहत्क्षेत्र० २९] ११४ पज्जोसवणाए तवं.... पंच सए छब्बीसे.... [बृहत्क्षेत्र० २९] ११७ ११७] [आव० नि० १५८२] ८५६ पंचसए बाणउए सोलस... बहत्क्षेत्र० ३६४] ३८२ | पञ्चस रक्ताः पञ्च विनष्टा ..... ५०२ पंचसयजोयणुच्चा....[बृहत्क्षेत्र० ३।४] १३८ | पञ्चाश्रवाद्विरमणं ......[प्रशम० १७२] पंचसयायामाओ मज्झे ..[बृहत्क्षेत्र० १।३५६] १४२ पञ्चाश्रवाद्विरमणं .....[प्रशम० १७२] ५११ पंचाई य नवंते ठविउं .....[ ] ५०४ | पञ्चेन्द्रियाणि त्रिविधं....[ ] ४२ २६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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