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स्थानाङ्गसूत्रटीकाया: ग्रन्थान्तरेभ्य: साक्षितयोद्धृतानां पाठानामकारादिक्रमेण सूचिः
उद्धृतः पाठः पृष्ठाङ्कः । उद्धृतः पाठः
पृष्ठाङ्कः पट्ट सुवन्ने मलये अंसुय.....
| पढमिल्लुयसंघयणे....[पञ्चव० १६१८] १६२ [बृहत्कल्प० ३६६२]
५७८ | पढमिल्लुयाण उदए.....[आव०नि० १०८] ३२७ पट्ठवणओ उ दिवसो...
पणन उइ सहस्साइं .....[बृहत्क्षेत्र० २।४] ३८६ [आव० नि० १५८४] ८५७ पणयालीस सहस्सा.... [ ]
११७ पठकः पाठकश्चैव ये चान्ये .....[ ] ४६८ | पणिहाणजोगजुत्तो पंचहिं.... [दशवै०नि० १८५, पडिपुच्छणा उ कज्जे ......[पञ्चा० १२।३०] ८५९) निशीथभा० ३५]
१०८ पडिबंधनिराकरणं केई अन्ने.....
पणुवीसं उब्बिद्धो.....[बृहत्क्षेत्र० १७८] १२० [पञ्चा० १७।१९]
५३६ पत्तं १ पत्ताबंधो.... ओघनि० ६६८] ५४ पडिमासु सत्तगा सत्त......[ ] ६६२ पद्म सङ्कोचमायाति, ..... [] ५३९ पडिलोमे जह अभओ पज्जोयं.....
पन्नट्ठि सहस्साई चत्तारि..[बृहत्क्षेत्र०५।२६] १४२ दशवै० नि० ८२]
४४३ पन्नवओ जयभिमुहो.... [ ] २२५ पडिवज्जइ एयाओ... [पञ्चाशक० १८१४] २५३ | पमाओ य मुणिंदेहि....[ ] २२८ पडिसिद्धेसु वि दोसे .....[ ] ६३९ | पयईए तणुकसाओ...[बन्धशतक० २२] १८७ पडिसेवणपारंची.. बृहत्कल्प० ४९८५] २७७ | परमाणू तसरेणू रहरेणू....... पडिसेवणा उ भावो.....[व्यवहारभा० ३९] ३३८| [अनुयोगद्वार० सू० ३३९]
७४७ पडुप्पन्नसमयनेरइया... [ ]
परसमओ उभयं......विशेषाव० ९५३] पढमं अहम्मजुत्तं पडिलोमं .....
परस्परोपकाराणां ......[ ]
२५६ [दशवै० नि० ८१]
| परिणामो ह्यर्थान्तरगमनं .....[ ] ६४७ पढमं चिय गिहि-संजयमीस......
परिणामो ह्यर्थान्तरगमनं न.....[ ] ३४० पञ्चा० १३।९]
परिणामो ह्यर्थान्तरगमनं......[ ] ८१७ पढम लहइ नगारं... [विशेषाव० २८९७] १६५ | परिभासणा उ पढमा ....[आव० भा० ३] ६८४ पढमबीयदुओ वाहिओ......[ ] ८३५ परियट्टिए १० अभिहडे.. पढम-बीयाण पढमा ......
| पञ्चा०१३।६,पिण्डनि०९३]
२६९ [आव० नि० १६८]
६८४ | परियायस्स उ छेओ.....[विशेषाव० १२६८] ५५५ पढमम्मि सव्वजीवा बीए..... [आव०नि० ५७४, परिसंठियम्मि पवणे .....[बृहत्क्षेत्र०२।१६] ३८७ विशेषाव० २६३७]
४९९ परिसुद्धजुन्नकुच्छिय-.....(विशेषाव० २५९९] ८०५ पढमसत्तराइंदियं.... [दशाश्रुत० ७५१] २५३ | परिसेय-पियण-.....[ओघनि० ३४७] ५८० पढमा १ पढमे २ चरम ३.....
परिस्रवस्वेदविदाहरागा.....[ ]
४५३ [उत्तरा०भा० १४] |
५७८ परिहारिय छम्मासे.... [बृहत्कल्प० ६४७४] ६४० पढमा असीइसहस्सा १.....[बृहत्सं० २४१] ६६४ | परिहारेण विसुद्धं सुद्धो य..... पढमाऽसीइसहस्सा बत्तीसा..[बृहत्सं० २४१] २११/ विशेषाव० १२७०]
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