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________________ पञ्चमं परिशिष्टम् । २०७ २४२ उद्धृतः पाठः पृष्ठाङ्कः । उद्धृतः पाठः पृष्ठाकः पलिओवमट्टिईया ..... बृहत्क्षेत्र० १९] ३८४|पावाणं पावयरो... [बृहत्कल्प० ५००९] २७७ पलिओवमट्ठिईया एएसिं ...... पावुक्करिसेऽधमया.... [विशेषाव० १९१०] २८ [बृहत्क्षेत्र० २।११] ३८७ पासायाण चउण्हं ......[बृहत्क्षेत्र० २९८] ७४८ पलियं १ अहियं २...बृहत्सं० १४] १७० | पासो मल्ली य... [आव०नि०२२४] ६८७ पल्लवि हत्थुत्थरणं तु .....[ ] ३९७ | पियधम्मे दढधम्मे... निशीथभा० २४४९, पल्हवि कोयव पावार .....[ ] ३९७| बृहत्कल्प० २०५०] पवनघनवृष्टियुक्ताश्चैत्रे...[बृहत्संहिता २१।२२] ४९३ | पिसुणा-ऽसब्भा-ऽसब्भूय-..... [ध्यानश० २०] ३१९ पवनाभ्रवृष्टिविद्युद्गर्जित-.....[ ] ४९३ | पुक्खरवरदीवड्ढं...[द्वीपसागर० १] २८१ पव्वज्जा सिक्खावय-..[बृहत्कल्प० ११३२, पुच्छाए कोणिए.....[दशवै० नि० ७८] ४४१ १४४२, विशेषाव० ७] २८५ | पुढें रेणुं व तणुम्मि.....[विशेषाव० ३३७) १०७ पब्बयणं पबज्जा.... [पञ्चव० ५] २१८ | पुढं सुणेइ सदं .....[आव० नि० ५] ४३२ पब्वाविओ सिय त्ति,..[बृहत्कल्प० ५१९०] २७९ | पुठं सुणेइ सई..... [विशेषाव० ३३६] १०७ पशुसंज्ञासु च ३......[ ] ८०८ | पुट्ठापुट्ठो पढमो जत्ताइ..... पसंसइ..... [ध्यानश० १६] ३१९ व्यवहारभा० ४५६८] ४१० पाउंछणयं दुविहं .....(निशीथभा० ८१९] ५७९ | पुढवि १ जल २.... [विशेषाव० २७०३] २२५ पाएण देइ लोगो.....(निशीथभा० ४४२५] ५८५ | पुढवि-दग-अगणि-.....[दशवै० नि० ४६] ५११ पागारपरिक्खित्ता...[विमान० २४९] २४६ | पुढवी आउ वणस्सइ....[बृहत्सं० ३४२] ५२ पाणं सोवीरजवोदगाइ..पञ्चाशक० ५।२८] १८४ | पुढवी-आउ-वणस्सइ-....[बृहत्सं० १८०] ६२५ पाणवह-मुसावाए..... [आव० नि० १५५२] ६५० | पुणब्बसु-रोहिणि-चित्ता......[ ] ७६२ पाणिदयरिद्धिसंदरिसण-.....[ ] ५०८ | पुर्फ कलंबुयाए ..... [विशेषाव० २९९५] ५७३ पापजुगुप्सा तु तथा....[षोडशक० ४५] १९० | पुरिमा उज्जुजड्डा उ,....[उत्तरा०२३।२६] ३४१ पामिच्चं साहूणं अट्ठा......पञ्चा०१३।१२] ८०४ पुरिमाणं दुविसोज्झो उ,..[उत्तरा०२३।२७] ३४१ पायच्छित्तं विणओ ..... [दशवै० नि० ४८] ५११ | पुरिसपरंपरपत्तेण भरियविस्संभरेण .....[ ] ३५८ पाययसुत्तनिबद्धं को वा.... [ ] २८७ | पुरुष एवेदं निं.. [शुक्लयजु० ३१२] ४५८ पायालाण तिभागा..... [बृहत्क्षेत्र० २।१४] ३८७ | पुरुष एवेदं ग्निं ......[शुक्लयजु० ३१।२] ७२९ पारणगे आयाम पंचसु...[ ] | पुवं अपासिऊणं पाए......[निशीथभा० ९७] ८३५ पारुष्यसङ्कोचनतोदशूल-.....[ ] ४५३ | पुव्वं कुग्गाहिया...[बृहत्कल्प० ५२२४] २८१ पारोक्खं ववहारं आगमओ..... | पुवं पच्चक्खाणं ९ विज्जणुवायं ...[ ] ३३७ [व्यव० भा० ४०३७] ५४६ | पुव्वं सुयपरिकम्मिय- [विशेषाव० १६९] ८३ पावं छिंदइ जम्हा... [व्यवहारभा० ३५] ९५ | पुवकयकम्मसडणं तु...... [मूलाचारे ४४५] ७०३ पावफलस्स पगिट्ठस्स...[विशेषाव० १८९९] ४६ | पुबगहिएण छंदण......[पञ्चा० १२।३४] ८६० ० WWG Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001029
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri, Jambuvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages588
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size11 MB
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