Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 03
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 543
________________ २०२ स्थानाङ्गसूत्रटीकाया: ग्रन्थान्तरेभ्य: साक्षितयोद्धृतानां पाठानामकारादिक्रमेण सूचिः उद्धृतः पाठः पृष्ठाङ्कः । उद्धृतः पाठः पृष्ठाकः दस नवगं गणाण......[आव० नि० २६८] ७३९ | दुक्खेण उ गाहिज्जइ बीओ..... दस बावीसाइं अहे... [द्वीपसागर० ३] २८१ [व्यवहारभा० ४५८८] ४१२ दस भवण-वणयराणं.... बृहत्सं० ४] १७० | दुन्नि तिहत्थायामा.....[बृहत्कल्प० ४०९०] ३१६ दसरायहाणिगहणा सेसाणं...... दुपएसादि दुरुत्तर...[आचाराङ्गनि० ४४] २२५ (निशीथभा० २५८८] ८२५ दुभिक्खदुब्बलाई इहलोए......[ ] ७२७ दसवासस्स विवाहो ..... [पञ्चव० ५८४] ५१८ | दुर्गतिप्रसृतान् जन्तून्,.....[ ] ३४ दसविहवेयावच्चे अन्नतरे..... दुवालसमासपरियाए.... भगवती०१४।९।१७] ८४० [व्यवहारभा० ४५८७] दुविहो उ परिच्चाआ...बृहत्कल्प० ५२०८] २८० दसविहवेयावच्चे सग्गाम..... |दुविहो उ भावधम्मो....[दशवै० नि० ४३] २६१ व्यवहारभा० २५३९] ५६५ | दुविहो पमाणकालो .....[आव०नि० ७३०, दहनाद्यमृक्षसप्तकमैन्द्रयां तु......[ ] ७११ _ विशेषाव०२०६९] ३३९ दानपुण्यफला कीर्तिः,....[ ] २३२| दुविहो य होइ... [बृहत्कल्प० ४९८६] २७७ दाप लवने [पा०धा० १०५९] २६५ | दुविहो होइ अचेलो..[बृहत्कल्प० ६३६५] २८४ दारक्कमोऽयमेव उ... विशेषाव० ९१५] ७|दुष्प्रतिकारी मातापितरौ...[प्रशम० ७१] १९९ दासे दुढे....(निशीथ० ३५०७] २७९दूमिय धूमिय वासिय... निशीथभा०२०४८] ५५० दाहिसि मे एत्तो ....[ ] ३०९ | दृष्टेष्टाव्याहताद् वाक्यात् ..... न्याया० ८] ४४८ दाहोवसमादिसु वा.... [विशेषाव० १०३५] ५३ | देव त्ति सत्थयमिदं...विशेषाव० १८८०] ४७ दिट्ठा व जे परेणं ......[ ] ८३५ | देवकुरुपच्छिमद्धे ......[बृहत्क्षेत्र० ३००] ७४८ दिवसभयओ उ घेप्पइ...(निशीथभा० ३७१९] ३४३ | देवस्स व किं वयणं......[विशेषाव० २३६२] ७०७ दिव्वम्मि वंतरी १ संगमे २.....[ ] ४८३ | देवा नेरइया वि...श्रावकप्र० ७४] ११३ दिशि १ दृशि २ वाचि......[ ] ८४९ | देवा वि देवलोए....[उपदेशमाला० २८५] २४५ दिसिदाहो छिन्नमूलो....[आव०नि० १३४९] ८२० | देवाण अहो सीलं ....[ ] ५५२ दीण-कलुणेहिं....[बृहत्कल्प० ६१४३] ६३५ | देविंद-चक्कवट्टित्तणाइ-.....ध्यानश० ९] ३१८ दीवदिसाअग्गीणं ......[द्वीपसागर० २२१] ८३२ | देवे णं भंते !...[भगवती० ६।९।२-३] दीवसिहा-जोइसनामया......[ ] ८८९ | देवेसु न संदेहो जुत्तो...(विशेषाव० १८७०] ४७ दीसइ य पाडिरूवं ठिय-..... देसम्मि उ पासत्थो......[ ] ८८४ [बृहत्कल्प० ६१५४] ६३६ | देसूणकोसमुच्चं जंबू......बृहत्क्षेत्र० २९०] ७४८ दीहकालठियाओ हस्सकालठियाओ देसूणमद्धजोयण ..... [बृहत्क्षेत्र० २।१८] ३८७ [भगवती० ११११] ५२३ | देहम्मि असंलिहिए...[पञ्चव० १५७७] १६१ दीहो वा हस्सो वा जो .....[ ] ३९७ | देहविवित्तं पेच्छइ अप्पाणं.....[ध्यानश० ९२] ३२३ दुक्खं न देइ आउं....[प्रथमकर्म० ६३] १६५ | देहेण वी विरूवो.....बृहत्कल्प० ६१५८] ६३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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