Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 03
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 533
________________ १९२ स्थानाङ्गसूत्रटीकाया: ग्रन्थान्तरेभ्य: साक्षितयोद्धृतानां पाठानामकारादिक्रमेण सूचिः ५८ उद्धृतः पाठः पृष्ठाङ्कः । उद्धृतः पाठः पृष्ठाङ्कः एगो असंखभागो...बृहत्सं० ३३५ प्रक्षेप०] १७८ | एवं च कओ कम्माण......[ ] ७०७ एगो इत्थीगम्मो .....निशीथ० ५४५६] ६५३ एवं जहसहत्थो संतो....विशेषाव० २२५१] ६७० एगो एगित्थिए सद्धिं .....[उत्तरा० १।२६] ३६८ | एवं पि एगे आसासे [ ] ८५१ एगो भगवं वीरो पासो...[आव०नि०२२४, | एवमेक्केक्कियं भिक्खं......[ ] ६६२ विशेषाव० १६४२] ३०१ | एवोग्गहप्पवेसे निसीहिया....[पञ्चा०१२।२२] ८५९ एगो भगवं वीरो... [आव० नि० ३०८] ५९ | एषणासमिति म गोचरगतेन.....[ ] ५८७ एगो व दो व....(बृहत्सं० १५६] १७८ | एस अणाई जीवो संसारो .....[ ] ३२४ एतच्छौचं गृहस्थानां ....[ ] ५८२ | एसणगवेसणन्नेसणा य.... [पञ्चा०१३।२५, एतदिह भावयज्ञः....[षोडशक० ६।१४] १८६ | पञ्चव० ७६१] २७० एतानि नक्षत्राण्युभययोगीनि...[लोकश्रीटीका ] ७६२ | एसा य असइदोसा.....[उप० पद० १८] एतासु भृगुर्विचरति......[ ] ८०८ | ऐन्द्रो निर्ऋतिस्तोयं.... वाराही एतेषामुत्तरगा ग्रहाः सुभिक्षाय.....[ ] ७६२ बृहत्संहिता ९७१५] १३३ एतेसामन्नयरं रन्नो अंतेउरं..... | ऐश्वर्यस्य समग्रस्य,..... [ ] [निशीथभा० २५१४] ५३७ | ओगाहिऊण लवणं ..... बृहत्क्षेत्र० २५९] ३८५ एत्तो च्चिय पडिवक्खं... [विशेषाव० ३१०] ६२२ | ओदइय उवसमिए...[आव०भा० २००] २१४ एत्थ कुलं विनेयं.... [ ] २८७ | ओदइय खओवसमिए ...[ ] एत्थ णं बादरपुढविकाइयाणं .....[ ] ४३१ ओमो चोइज्जंतो दुपहियाईसु..... एत्थ पसिद्धी मोहणीय-.....[ ] ५५२ [बृहत्कल्प० ६१३५] ६३५ एत्थ य अणभिग्गहियं..[बृहत्कल्प० ४२८२] ५३३ | ओयण वंजण पाणग.....[ओघनि० ३५९] ५८० एत्थं वेयावडियं....[पञ्चव० १५९९] १६२ ओयाहारा जीवा ...बृहत्सं० १९८-१९९] १५९ एमेव अहोराई ....पञ्चाशक० १८।१८] २५३ ओराल १ विउवा २..[ ] २६८ एमेव एगराई....[पञ्चाशक० १८।१९] २५४ ओरालियपोग्गलपरियट्टे णं भंते !... एमेव कसायम्मी ..... उत्तरा०भा० ११] ५७८ [भगवती० १२।४।५०] २६८ एमेव चउविगप्पो .....[दशवै० नि० ६१] ४३८ ओसन्नो वि विहारे ....(निशीथ० ५४३६] ४५७ एमेव दंसणतवे ..... उत्तरा०भा० २-१२] ५७८ ओहार-मगराईया घोरा..... एमेव य मज्झिमगा...[व्यव० १०।४६०६] २१९/ [बृहत्कल्प० ५६३३] ५३२ एयं पच्चक्खाणं नियंटियं... ओही खओवसमिए.... [विशेषाव० ५७३] [आव०नि० १५८६] ८५७ | ओहो १, भव्बाईहिं..... [ ] ५२ एयं पुण एवं खलु .....[उप० पद० १६] ६०८ | ओहो जं सामन्नं..... [विशेषाव० ९५८] ९ एयम्मि पूइयम्मी नत्थि ....[ ] ५५२ औदारिकप्रयोक्ता......प्रशम० २७६] एयस्स पभावेणं....पञ्चव० १५९७] १६२ | कंचणगजमगसुरकुरुनगा... बृहत्क्षेत्र ०३।४१] १३९ ६४७ ७६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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