Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 03
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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स्थानाङ्गसूत्रटीकायाः ग्रन्थान्तरेभ्य: साक्षितयोद्धृतानां पाठानामकारादिक्रमेण सूचिः
उद्धृतः पाठः पृष्ठाङ्कः। उद्धृतः पाठः
पृष्ठाङ्कः जह एसो मत्तुल्लो न.....[ ] ८३६ | जिनप्रणीतादागमात् सदैवा-..... जह कुंभारो भंडाई.... [ ] १६६ तत्त्वार्थभा० सिद्ध० ९।४८] ५७५ जह गोमडस्स गंधो... उत्तरा० ३४।१६] २९५ जियरागदोसमोहा सब्वन्नू .....[ ] ५५२ जह चित्तयरो निउणो....प्रथमकर्म० ६७] १६६ जीवमजीवे रूवमरूवी...[आव०भा० १९५] २१४ जह जलमवगाहंतो ...... विशेषाव० २६००] ८०५ जीवाणण्णत्तणओ.....(विशेषाव०९४७] ८ जह जह बहुस्सुओ .....[सम्मति०३।६६] ४२६ जीवे णं भंते !.... [भगवती०१७।१९] ११२ जह जह बहुस्सुओ....[सम्मति० ३।६६] ६१२ | झुंजणकरणं तिविहं....[आव०नि० १०३८] १८२ जह तुब्भे तह..... उत्तरा० नि० ३०७] ४३३ | जुन्नेहिं खंडिएहिं... [बृहत्कल्प० ६३६७] २८४ जह दुव्वयणमवयणं...[विशेषाव० ५२०] १५८ जे के वि....[प्रज्ञापना० १८७] २०६ जह मज्जपाणमूढो....[प्रथमकर्म० ३४] १६५ | जे णं गोसाला !...[भगवती०१५।५४] २५२ जह राया दाणाइ ण..... [ ] १६६ | जे भिक्ख ऊ सचेले,..... (निशीथभा० ३७७७] जह वा दीहा रज्जू......विशेषाव० २०६१] ६८६ । ५४२ जह विक्खंभो.... बृहत्क्षेत्र० ३।३१] १३९ / जे यावि मंदि.....[दशवै० ९।१।२] २३७ जह वेह कंचणो-... विशेषाव० १८१९] २५ जेट्ठज्जेण अकज्जं.... बृहत्कल्प० ६१५०] ६३६ जह सा नाणस्स.... विशेषाव० ११३४] ७३ जेट्ठो वच्चइ मूलेण .....[ ] ५९० जह सुरभिकुसुमगंधो... उत्तरा० ३४।१७] २९५ जेण कुलं आयत्तं तं ....[ ] ५६७ जहाऽऽहिअग्गी.....[दशवै० ९।१११] १५ जेण सुहज्झप्पयणं....विशेषाव० ९६०] ९ जहि नत्थि सारणा...(बृहत्कल्प० ४४६४] ६५९ | जेणामेव समणे ...... [ ] ८५१ जा पढमाए जेट्ठा सा.... [बृहत्सं० २३४] २१० | जेणऽन्नइया दिळं .....[व्यव०भा० ४५१५] ५४७ जाई-कुल-गण-कम्मे सिप्पे....
जेसिं जत्तो सूरो....(विशेषाव० २७०१] २२५ निशीथभा० ४४११]
| जेसिमवड्ढो पोग्गलपरियट्टो....श्रावकप्र० ७२]५० जाई-कुलसंपन्नो पायमकिच्चं......[ ] ७२७ | जो अत्थिकायधम्मं ....[उत्तरा० २८२७] ८६७ जात्यादिमदोन्मत्तः ......प्रशम० ९८] ७२८ जो अन्नस्स उ दोसे न......[ ] ७२७ जायमेत्तस्स जंतुस्स.....[तन्दुल०प्रकी०४५] ८९२ | जो उत्तमेहिं मग्गो पहओ .....[ ] ५२६ जावं ताव त्ति वा ......[ ] ८५५ जो कत्तादि स...(विशेषाव० १५७०] १८ जावइया जस्स गणा.....[आव० नि० २६९] ७३९ |जो किर जहन्नजोगो ....[विशेषाव०३०६३] ३२३ जावइया वयणपहा ...... [सम्मति०३।४७] ६६८ जो जिणदिठे भावे.... उत्तरा० २८।१८] ८६६ जावुक्कोसियाए विसेसहीणं णिसिंचइ [ ] १७१ | जो जेण जम्मि.... (निशीथभा० ५५९३] २०२ जाहे णं भंते !.... [भगवती०१४।६।६] २४७ जो तमतमविदिसाए.... [विशेषणवती २४] २९९ जिणवयणं सिद्धं चेव....[दशवै० नि० ४९] ८५० | जो तुल्लसाहणाणं...(विशेषाव० १६१३] २७ जिणवयणे पडिकुटुं...[निशीथ० ३७४५] २७९ जो देइ उवस्सयं जइवराण ..... [ ] ५८१
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