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तृतीयं परिशिष्टम्- टिप्पनानि
१४१ से इसे सेढी-व्यवहार या श्रेणी-व्यवहार कहते हैं । जैसे-एक व्यक्ति किसी दूसरे को चार रुपये देता है, दूसरे दिन पांच रुपये अधिक, तीसरे दिन उससे पांच रुपये अधिक । इस प्रकार पन्द्रह दिन तक वह हेता है । तो कुल कितने रुपये दिये ?
प्रथम दिन देता है उसे ‘आदि धन' कहते है । प्रतिदिन जितने रुपये बढ़ाता है उसे 'चय' कहते हैं । जितने दिनों तक देता है उसे 'गच्छ' कहते हैं । कुल धन को श्रेणी-व्यवहार या संवर्धन कहते है । अन्तिम दिन जितना देता है उसे 'अन्त्यधन' कहते है । मध्य में जितना देता है उसे 'मध्यधन' कहते हैं ।
विधि- जैसे गच्छ १५ हैं । इनमें एक घटाया १५-१ = १४ रहे । इसको चय से १४ x ५ गुणा किया = ७० आये । इसमें आदि धन मिलाया ७० + ४ = ७४ । यह अन्त्यधन हुआ । ७४ + ४ आदि धन = ७८ का आधा ३९ मध्यधन हुआ ।
३९ x १५ गच्छ = ५८५ संवर्धन हुआ।
इसी प्रकार विजातीय अंक एक से नौ या उससे अधिक संख्या की जोड़, उस जोड़ की जोड़ वर्गफल और घनफल की जोड़, इसी गणित के विषय हैं ।
३. रज्जु- इसे क्षेत्र-गणित कहते हैं । इससे तालाब की गहराई, वृक्ष की ऊंचाई आदि नापी जाती है।
भुज, कोटि, कर्ण, जात्यतिम्र, व्यास, वृत्तक्षेत्र और परिधि आदि इसके अंग हैं।
४. राशि- इसे राशि- व्यवहार कहते हैं । पाटीगणित में आए हुए आठ व्यवहारों में यह एक है । इससे अन्त की ढेरी की परिधि से उसका ‘घनहस्तफल' निकाला जाता है ।
अन्न के ढेर में बीच की ऊंचाई को वेध कहते हैं । मोटे अन्न चना आदि में परिधि का १/१० भाग वेध होता है । छोटे अन्न में परिधि का १/११ भाग वेध होता है । शूर धान्य में परिधि का १/९ भाग वेध होता है । परिधि का १/६ करके उसका वर्ग करने के बाद परिधि से गुणन करने से घनहस्तफल निकलता है । जैसे-एक स्थान पर मोटे अन्न की परिधि ६० हाथ की है । उसका घनहस्तफल क्या होगा ?
६० : १० = ६ वेध हुआ ।
परिधि ६० : ६ = १० इसका वर्ग १० x १० = १०० हुआ । १०० x ६ वेध = ६०० घनहस्तफल होगा ।
५. कलासवर्ण- जो संख्या पूर्ण न हो, अंशों में हो - उसे समान करना ‘कलासवर्ण' कहलाता है । इसे समच्छेदीकरण, सवर्णन और समच्छेदविधि भी कहते हैं (हिन्दू गणितशास्त्र का इतिहास, पृष्ठ १७९) । संख्या के ऊपर के भाग को 'अंश' और नीचे के भाग को ‘हर' कहते हैं।
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