Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 03
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 530
________________ पञ्चमं परिशिष्टम् । १८९ ६०८ ४१० उद्धृतः पाठः पृष्ठाकः । उद्धृतः पाठः पृष्ठाङ्कः आयंको जरमाई राया....[पिण्डनि० ६६७] ६१६ आसायण पडिसेवी....बृहत्कल्प० ४९७२] २७६ आयंसग मेंढमुहा अओमुहा..... | आसी दाढा .....[विशेषाव० ७९१] ४५२ [बृहत्क्षेत्र०२।६०] ३८५ आसीदिदं तमोभूत-.......मनुस्मृ० ११५] ७३० आयपइट्ठिय १ खेत्तं पडुच्च २. आस्तिकमतमात्माद्या ९ .....[ ] ४६० [प्रज्ञापना० ४१८] ३२९ | आह पहाणं नाणं.... विशेषाव० ११३३] ७३ आयरवमायारं पंचविह......[ ] ७२६ आहच्च सवणं ल« .....[उत्तरा०३।९] आयरिए सुत्तम्मि य....[विशेषाव० १४५७] १२ | आहरणं तद्देसे .....[दशवै० नि० ७३] ४४० आयरिय उवज्झाए ....[ ] ६२४ | आहाकम्मामंतण पडिसुणमाणे... आयरिय-उवज्झाए थेर-.....[ ] व्यवहारपीठिका ४३] २७१ आयरियगिलाणाणं मइला....[ओघनि०३५१] ६९३ आहाकम्मु १ देसिय... [पिण्डनि०९२] २६९ आयरियाईण भया.....(निशीथ० ५४५५] ६५३ आहार १ सरीरिंदिय-... [जीवसमास० २५] ८९ आयावणा य तिविहा..... आहारउवहिसयणाइएहिं..... [बृहत्कल्प० ५९४५] ५१४ व्यवहारभा० ४५७०] आरंभो उद्दवओ ......[ ] ६९४ | आहारपज्जत्तीए.... [प्रज्ञापना० १९०५] ८९ आरुहणे ओरुहणे...निशीथभा० ३४३५] ९० | आहारमंतरेण वि .....निशीथभा० १२४] ३५७ आरे मारे नारे तत्थे ....[विमान ० १०] ६२८ | आहारे उवही सेज्जा,..[व्यव०१०।४५९९] २२० आरोगसारियं माणुसत्तणं.......[ ] ८४० | आहारोवहिदेहेसु इच्छालोभो .....[ ] ६३९ आर्तममनोज्ञानां सम्प्रयोगे. | इंगालए १ वियालए २,....[सूर्यप्र० २०] १३४ तत्त्वार्थ० ९।३१] ३१७ | इंगियदेसम्मि सयं...... [ ] १६३ आर्यक्षेत्रोत्पत्तौ सत्यामपि .....[ ] ६०७ | इंतस्सऽणुगच्छणया ८......[ ] ७०० आलंबणहीणो पुण..... [आव०नि० ११८७] ५३३ | इंद १ ग्गेयी २...[आचाराङ्गनि० ४३] २२५ आलयमेत्तं व मई....(विशेषाव० १८७१] ४७ | इंदिय ५ कसाय ४.....[ ] आलोइयम्मि सोहिं जो......[ ] ७२७ | इंदो जीवो सव्वोवलद्धि-..... आलोयंतो वच्चइ...[बृहत्कल्प० ६३३०] ६३८| विशेषाव० २९९३] ५७२ आलोयण १ पडिकमणे.... इअ सत्तरी जहन्ना असिई.. _[व्यवहारनि०१६ भा०५३] ३३८ बृहत्कल्प० ४२८५] ५३४ आवलियासु विमाणा...[विमान० २५१] २४६ इच्छालोभो उ .....[बृहत्कल्प० ६३३२] ६३९ आसय-पोसयसेवी के..बृहत्कल्प० ५०२६] २७७ | इच्छियठाणेण गुणं... [ ] १४९ आसवदारावाए तह...[सम्बोधप्र० १४०५] ३२४ | इट्ठाणं विसयाईण..... [ध्यानश० ८] ३१८ आसाढबहुलपक्खे भद्दवए..... [ ] ६३२ इति एस असम्माणा खित्तो..... आसाढी इंदमहो.....[आव० नि० १३५२] ३६२/ बृहत्कल्प० ६२४२] ५६३ २९ ک Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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