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तृतीयं परिशिष्टम्- टिप्पनानि अथ समभिरूढमाह- जं जं सण्णं भासइ तं तं चिय समभिरोहए जम्हा। सण्णंतरत्थविमुहो तओ तओ समभिरूढो त्ति ॥२२३६॥ यां यां संज्ञां घटादिलक्षणां भाषते वदति तां तामेव यस्मात् संज्ञान्तरार्थविमुखः कुट-कुम्भादिशब्दवाच्यार्थनिरपेक्षः समभिरोहति समध्यास्ते तत्तद्वाच्यार्थविषयत्वेन प्रमाणीकरोति, ततस्तस्माद् नानार्थसमभिरोहणात् समभिरूढो नयः । यो घटशब्दवाच्योऽर्थस्तं कुट-कुम्भादिपर्यायशब्दवाच्यं नेच्छत्यसावित्यर्थ इति ॥२२३६॥
अथैवंभूतमाह- एवं जह सद्दत्थो संतो भूओ तदन्नहाऽभूओ । तेणेवंभूयनओ सद्दत्थपरो विसेसेणं ॥२२५१॥ एवं यथा ‘घट चेष्टायाम्' [पा०धा० ७६३] इत्यादिरूपेण शब्दार्थो व्यवस्थितः, तह ति तथैव यो वर्तते घटादिकोऽर्थः, स एव सन् भूतो विद्यमानः । तदनहाऽभूउ त्ति यस्तु तदन्यथा शब्दार्थोल्लङ्घनेन वर्तते स तत्त्वतो घटाद्यर्थोऽपि न भवति किन्त्वभूतोऽविद्यमानः । येनैवं मन्यते, तेन कारणेन शब्द-समभिरूढनयाभ्यां सकाशादेवंभूतनयो विशेषेण शब्दार्थतत्परः । अयं हि योषिन्मस्तकारूढं जलाहरणादिक्रियानिमित्तं घटमानमेव चेष्टमानमेव घटं मन्यते, न तु गृहकोणादिव्यवस्थितम्, अचेष्टनात्, इत्येवं विशेषतः शब्दार्थतत्परोऽयमिति ॥२२५१॥" - विशेषाव० मलधारि०।
[पृ०६७१ पं०१९] ['जैन विश्वभारती, लाडनूं' (राजस्थान) इत्यतः प्रकाशितात् ठाणं ग्रन्थात् मुनिनथमलजीलिखितात् हिन्दीभाषात्मकात् टिप्पनादुद्धृत्य अत्र टिप्पनमुपन्यस्यते ।]
__ “स्वर का सामान्य अर्थ है-ध्वनि, नाद । संगीत में प्रयुक्त स्वर का कुछ विशेष अर्थ होता है। संगीतरत्नाकर में स्वर की व्याख्या करते हुए लिखा है-जो ध्वनि अपनी-अपनी श्रुतियों के अनुसार मर्यादित अन्तरों पर स्थित हो, जो स्निग्ध हो, जिसमें मर्यादित कम्पन हो और अनायास ही श्रोताओं को आकृष्ट कर लेती हो, उसे स्वर कहते हैं । इसकी चार अवस्थाएं हैं- (१) स्थानभेद (Pitch) (२) रूप भेद या परिणाम भेद (Intensity) (३) जातिभेद (Quality) (४) स्थिति (Duration)
स्वर सात हैं-षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पञ्चम, धैवत और निषाद । इन्हें संक्षेप मेंस, रि, ग, म, प, ध, नी कहा जाता है । अंग्रेजी में क्रमशः Do, Re, Mi, Fa, So, Ka, Si, कहते हैं और इनके सांकेतिक चिन्ह क्रमशः C,D,E,F,G,A,B हैं । सात स्वरों की २२ श्रुतियां [स्वरों के अतिरिक्त छोटी-छोटी सुरीली ध्वनियां) है-षड्ज, मध्यम और पञ्चम की चार-चार, निषाद और गान्धार की दो-दो और ऋषभ और धैवत की तीन-तीन श्रुतियां हैं। ___ अनुयोगद्वार सूत्र [२६८-३०७] में भी पूरा स्वर-मंडल मिलता है। अनुयोगद्वार तथा स्थानांगदोनों में प्रकरण की समानता है । कहीं-कहीं शब्द-भेद है ।
सात स्वरों की व्याख्या इस प्रकार है
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