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एवा विपर्यासपणाथी विशेष प्रसिद्ध दुःखज छे, माटे जे प्राणी वारंवार सुखने मदे भर्या थका सुख माने छे, ते फोकट छे. ए संसार तो केवल कपट रचनाथी भर्यो छे, तेने विषे विवेकी प्राणीए प्रीति करवी नहीं ॥ ७ ॥ प्रियास्नेहो यस्मिन्निगडसदृशो यामिकभटो
पमः स्वीयो वर्गो धनमभिनवं बंधनमिव ॥ महामेध्यापूर्ण व्यसनबिलसंसर्गविषमं
भवः कारागेहं तदिह न रतिः कापि विदुषां ॥ ८॥
अर्थ-स्त्रीनो स्नेह ते बेडी समान छे, बीजा सगासंबंधी लोक ते पोरियात समान छे, धनसंपत्ति ते नवा बंधन सरखी छे अने महा अमेध्येकरी सहित छे, सात प्रकारना व्यसनरूप बिल्ले सहित छे दंकामां कहिये तो आ संसार ते बंदिखाना जेवो छे माटे पंडित लोकने ए वस्तुमाहेनी एके वस्तु उपर रति के० मरजी थती नथी ।। ८॥ महाक्रोधोगृध्रोऽनुपरतिशृगाली च चपला
स्मरोलको यत्र प्रकटकटुशब्दः प्रचरति ॥ प्रदीप्तः शोकाग्निस्ततमपयशोभस्म परितः स्मशानं संसारस्तदतिरमणीयत्वमिह किं ? ९॥
अर्थ-जे पंडित लोक ते आ संसारने स्मशान सरखो कहे छे, केमके स्मशानमा रहेनारी चीजो सर्व संसारमा छे, ते कही बतावे छे. जेम स्मशानमां गिध पक्षी छे तेम संसारमा महाक्रोध ते गीध पक्षी छे, अरतिरूप घणी चपल शियाळणी छे घुवड पक्षीरूप काम छे, ते प्रगटपणे कडवा शब्दथी रुदन करे छे,