Book Title: Adhyatmasara
Author(s): Yashovijay, Veervijay
Publisher: Adhyatmagyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
जैनमतस्तुत्याधिकारः उत्सर्पदव्यवहारनिश्चयकथाकल्लोलकोलाहल त्रस्यदुर्नयवादिकच्छपकुलं भ्रश्यत्कुपक्षाचलं ॥ उद्ययुक्तिनदीप्रवेशसुभगं स्याद्वादमर्यादया युक्तं श्रीजिनशासनं जलनिधि मुक्त्वा परं नाश्रये ॥१॥ ____ अर्थ:-हवे जिनशासनरूप रत्नाकरनी स्तुति करे छे तेमां प्रथम जिनशासनने समुद्रनी उपमा आपे छे, ते जिनशासनरूप समुद्र केवो छे ? ते कहे छे. प्रसरती एहवी व्यवहार तथा निश्चयनयनी जे कथा, तेरूप जे कल्लोल तेनो जे कोलाहल, तेणे करीने दुष्टजन नयवादिरूपी काचबानो कुल जेने विषे त्रास पामे छे. वली जेमांथी कुमतिरूपी पर्वत तूटी गया छे, भांग्या छे; वली जेमां मोटी उक्तियुक्तिरूपिणी नदीओनो प्रवेश छे तेणे करी जे सुभग एटले मनोहर छे; वली स्याद्वादशैलीरूप मर्यादाये जे युक्त छे एवो श्रीजिनशासनरूप रत्नाकर जे समुद्र तेने तजीने परदर्शनने कोण सेवे ? ॥ १॥ पूर्णपुण्यनयप्रमाणरचनापुष्पैः सदास्थारसै स्तत्त्वज्ञानफलैः सदा विजयते स्याद्वादकल्पद्रुमः ॥ एतस्मात् पतितैः प्रवादकुसुमैः षड्दर्शनारामभूयः सौरभमुद्रमत्यभिमतैरध्यात्मवार्तालवैः ॥२॥

Page Navigation
1 ... 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254