Book Title: Adhyatmasara
Author(s): Yashovijay, Veervijay
Publisher: Adhyatmagyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 220
________________ २९५ होती थी; केम बंधने प्रकाश करनार तो आत्मा पोतेज छे ते अनुभव थया पछी अज्ञानरूपबंधनो आश्रय केम करे ? ज्यां सुधी आत्मा अनुभव अथवा ज्ञानवडे प्रकाशने पाम्यो न हतो त्यां सुधी तमरूप अज्ञान अने बंधवान् थयो हतो; पण अनुभव था पछी आत्मा विषे बंध नथी ॥ १७६ ॥ द्रव्यमोक्षः क्षयः कर्मद्रव्याणां नात्मलक्षणं ॥ भावमोक्षस्तु तद्धेतुरात्मा रत्नत्रयान्वय ।। १७७ ।। ज्ञानदर्शनचारित्रैरात्मैक्यं लभते यदा ॥ कर्माणि कुपितानीव भवत्याशु तदा पृथक् ॥ १७८ ॥ अर्थ :- जे द्रव्यकर्मनो क्षय ते द्रव्यमोक्ष छे, पण ते कांह आत्मानुं लक्षण नथी, मात्र ते द्रव्य कर्मनो क्षय ते मोक्षनो हेतु थाय छे, पण आत्मा तो रत्नत्रय परिणतिरूप छे, तेने द्रव्यकर्मनो क्षय तो उपचारथी मोक्षहेतु कहिये, पण वस्तुथी तत्वबुद्धिये कहेवाय नहीं ॥ १७७ ॥ ज्ञान - दर्शन - चारित्र ए रत्नत्रयीवडे करीने जेवारे आत्मा एकभावपणाने पामे, तेवारे जे कर्म हतां, ते कोइक संसारी जीव जेम रीसाइने घरमाथी जुदो निकळे तेम जीवथी जुदां नीकली जाय ।। १७८ ।। अतो रत्नत्रयं मोक्ष स्तदभावे कृतार्थता ॥ पाखंडिगणलिंगैश्च गृहलिंगैश्व कापि न ॥ १७९ ॥ पाखंडिगणलिंगेषु गृहलिंगेषु ये रताः ॥ न ते समयसारस्य ज्ञातारो बालबुद्धयः ॥ १८० ॥ अर्थ :- ए माटे जे रत्नत्रयी तेथीज मोक्ष छे, पण ते रत्नत्रयीने अभावे पाखंडी साधुना समूहने तथा पाखंडी ग्रही

Loading...

Page Navigation
1 ... 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254