Book Title: Adhyatmasara
Author(s): Yashovijay, Veervijay
Publisher: Adhyatmagyan Prasarak Mandal
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२१७
जो वस्त्र राखतां मोक्षनी बाधकता छे तो इच्छा विना जे करादिक एटले हाथ प्रमुख अंग धर्या छे ते पण मोक्षना बाधक थाशे, एटले दिगंबर लोक कहे छे के वस्त्र राखवाथी मोक्षनी बाधकता छ तेहने निरुत्तर कर्या ॥ १८४ ॥ स्वरूपेण च वस्त्रं चे केवलज्ञानबाधकं ॥
तदा दिक्पटनीत्यैव तत्तदावरणं भवेत् ॥१८॥ इत्थं केवलिनस्तेन मूर्ध्नि क्षिप्तेन केनचित् ॥
केवलित्वं पलायंते त्यहो किमसमंजसं ॥१८६॥
अर्थ:-जो परमार्थथी जे वस्त्र छ तेहिज केवलज्ञानने बाधकपणे होय तो दिगंबरनी रीते केवलज्ञानावरणीयने ठेकाणे वस्त्रावरणीय एम थq जोइये, ते वस्त्रावरणीय कर्म दिगंबरीयो कहेता नथी एटली एनी चुक छे ॥ १८५ ॥ ए रीते तो केवलीने माथे कोइक वस्त्र ओढाडे तेवारे केवलज्ञाने नासी जदूं जोइये, पण केवलीने वस्त्र ओढाडतां केवलज्ञान नासी जाय छे एम तो थतुं नथी; माटे अहो इति आश्चर्ये शुं जुटुं असमंजस बोलो छो ? ॥ १८६॥ भावलिंगात्ततो मोक्षो भिन्नलिंगेष्वपि ध्रुवः ॥
कदाग्रहं विमुच्यैतद्भावनीयं मनस्विना ॥ १८७ ॥ अशुद्धनयतो ह्यात्मा बंधो मुक्त इति स्थितिः॥
न शुद्धनयतस्त्वेष बध्यते नापि मुच्यते ॥ १८८ ॥ ___ अर्थ:-ते माटे भावलिंगथी मोक्ष छे, वेषनो काइ नियम नथी, कदापि द्रव्यथी अन्यलिंगीनो वेष होय, तो पण निश्चये मोक्ष छे. माटे कदाग्रह छांडीने बुद्धिवंत पुरुषे ए रीते

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