Book Title: Adhyatmasara
Author(s): Yashovijay, Veervijay
Publisher: Adhyatmagyan Prasarak Mandal

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Page 204
________________ करवू ते अकृतागम प्रसंग कहेवाय. एवा दोष आत्माने विषे प्राप्त थशे ॥ १०५॥ केमके भोजन तथा धनादिक जे पुद्गल ते तो आत्माथी भिन्न छे, तो तेमां क्याथी पोतापणुं आव्यु ? माटे दान अने हरण ते पोताथी ज नाश छे ॥ १०६ ॥ कर्मोदयाच तद्दानं हरणं वा शरीरिणां ॥ पुरुषाणां प्रयासः कस्ततोपनमति स्वतः ॥ १०७ ॥ स्वागताभ्यां तु भावाभ्यां केवलं दानचौर्ययोः ॥ अनुग्रहोपघातौ स्तः परापेक्षा परस्य न ॥ १०८॥ अर्थःवली ते दान अने हरण प्राणीने कर्मना उदयथकी छे, त्यां पुरुषने शो प्रयास छे ? ते तो पोतानी मेलेज उदय पामे छे ॥ १०७ ॥ पोतामां रह्या एवा जे दान अने हरणना भाव तेणे करीने एकथी उपकार थाय; बीजाथी उपघात थाय; त्यां परनी अपेक्षा परने नहीं ॥ १०८ ॥ पराश्रितानां भावानां कर्तृत्वाद्यभिमानतः । कर्मणा बध्यतेऽज्ञानी ज्ञानवांस्तु न लिप्यते ॥१०९।। कर्तवमात्मनो पुण्यपापयोरपि कर्मणोः ।। रागद्वेषाशयानां तु कर्तेष्टानिष्टवस्तुषु ॥ ११० ॥ अर्थ:-पर आश्रित जे भाव तेनो हुं कर्ता छु, एम अभिमानथी कहेवू, एवां कर्मे अज्ञानी बंधाय छे; पण ज्ञानी तेवां कर्मे लेपाता नथी ॥ १०९ ।। माटे आत्मा ते पुण्य-पापरूप कर्मनो कर्ता छे, राग-द्वेष आशयनो कर्त्ता छे अने इष्ट अनिष्ट वस्तुने विषे पण आत्मा कर्ता छ । ११० ॥

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