Book Title: Acharang Sutram Shrutskandh 02
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Porwad Jain Aradhana Bhavan Sangh

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Page 26
________________ श्रृगालं बिडालं शुनकं महासूकरं कोकंतिकं श्रृगालाकृतिं लोमटकं चित्ताचिल्लडकं द्विपिपोतं व्यालं प्रतिपथे प्रेक्ष्य सति प्रक्रमे अन्यस्मिन् मार्गे सति संयत एव पराक्रमेत, नैव ऋजुकं गच्छेत्। स भिक्षुर्वा यावत् सन् अन्तरा तस्य अवपातः गर्तो वा स्थाणुर्वा कण्टको वा घसी स्थलादधस्तादवतरणं वा भिलुगा स्फुटितकृष्णभूराजि विषमं वा विज्जलं-कर्दमो वा पर्यापद्यते भवति, सति प्रक्रमे संयत एव पराक्रमेत नैव ऋजुकं गच्छेत् ।।२७।। तथा से भिक्खू वा २ गाहावइकुलस्स दुवारवाहं कंटगबुंदियाए परिपिहायं पेहाए तेसिं पुब्बामेव उग्गहं अणुनविय अपग्लेिहिय अप्पमज्जिय नो अवंगुणिज्ज वा पविसिज्ज वा निक्खमिज्जवा, तेसिंपुब्बामेव उग्गहं अणुनविय पग्लेिहिय पग्लेिहिय पमज्जियपमज्जिय तओ संजयामेव अवंगुणिज्ज वा पविसेज्ज वा निक्खमेज्ज वा ।। सूत्र-२८।। सभिक्षुर्वा २ गृहपतिकुलस्य द्वारभाग कण्टकशाखया परिपिहितं स्थगितं प्रेक्ष्य तेषां पूर्वमेव अवग्रहम् अननुज्ञाप्य अयाचित्वा तथा अप्रत्युपेक्ष्य अप्रमृज्य च नैव उद्घाटयेद् वा प्रविशेद वा निष्क्रामे वा, तेषां पूर्वमेव अवग्रहम् अनुज्ञाप्य प्रत्युपेक्ष्य प्रत्युपेक्ष्य प्रमृज्य प्रमृज्य ततः संयत एव उद्घाटयेद् वा प्रविशेद वा निष्क्रामेद् वा ।।२८।। तत्र प्रविष्टस्य विधिं दर्शयितुमाह - से भिक्खूवार से जंपुण जाणिज्जा समणं वा माहणं वा गामपिंगेलगंवा अतिहिं बापुबपविट्ठ पेहाएनोतेसिं संलोए सपनिबुवारे चिट्ठिज्जा, सेतमायाय एगंतमवक्कमिज्जा २ अणावायमसंलोएचिट्टिज्जा १ । सेसेपरो अणावायमसंलोए चिट्ठमाणस्स असणं वा ४ आहट्ट बलइज्जा, से य एवं वइज्जा-आउसंतो समणा! इमे भे असणे वा ४ सबजणाए निसट्टे तं भुंजह वाणं परिभाएह वा णं, तं गइओ पडिगाहित्ता तुसिणीओ उवेहिज्जा, अवियाई एयं मममेव सिया माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करिज्जा २ । से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा २ से पुब्बामेवालोइज्जा - आउसंतो समणा! इमे भे असणे वा ४ सबजणाए निसिढे तं भुजह वा णं जाव परिभाएह वा णं, सेणमेवं वयंतं परो वइज्जा - आउसंतो समणा! तुमं चेवणं परिभाएहि, से तत्थ परिभाएमाणे नो अप्पणो खलु २ डायं २ ऊसलं २ रसियं २ मणुनं २ निद्धं २ लुक्खं २, से तत्थ अमुच्छिए अगिद्धे अग(ना)लिए अणझोवबन्ने बहुसममेव परिभाइज्जा ३ । सेणं परिभाएमाणं परो वइज्जा-आउसंतो समणा! मा णं तुमं परिभाएहि, सब्बे वेगइआ ठिया उ भुक्खामो वा पाहामो वा ४ । से तत्थ भुंजमाणे नो अप्पणा खद्धं खलु जाव लुक्खं, से तत्थ अमुच्छिए ४ वहसममेव अॅजिज्जा वा पाइज्जा वा ५ ।। सू.२९।। भाचारागसूत्रम् १७

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