Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 4 पृ. 1420]
- उत्तराध्ययन 25/22 जो तपस्वी कृशकाय और इन्द्रियों का दमन करनेवाला है, जिसका माँस और रुधिर कम हो चुका है, जो व्रतशील व शान्त है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। 13. बाह्याचार नवि मुंडिएण समणो।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 4 पृ. 1421]
- उत्तराध्ययन 25/01 सिर मुंडा लेने से कोई श्रमण नहीं होता। 14. श्रमण कौन ? समियाए समणो होइ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1421]
- उत्तराध्ययन 25/32 समभाव की साधना करने से श्रमण होता है । 15. कर्म से वर्ण
कम्मुणा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ । वइसो कम्मुणा होइ, सुद्दो होइ उ कम्मुणा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1421]
- उत्तराध्ययन 25/33 मनुष्य कर्म से ही ब्राह्मण होता है, कर्म से ही क्षत्रिय । कर्म से ही वैश्य होता है और कर्म से ही शुद्र ! 16. ब्राह्मण कौन ?
दिव्वमाणुसत्तेरिच्छं, जो न सेवइ मेहुणं । मणसाकायवक्केणं, तं वयं बूम माहणं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1421] - उत्तराध्ययन 25/26
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4.60