Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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246. चारित्र चारित्रं स्थिरतारूपमतः ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2410]
- ज्ञानसार - 30 योग की स्थिरता ही चारित्र है। 247. क्रियौषधि का क्या दोष ?
अन्तर्गतं महाशल्य-मस्थैर्य यदि नोद्धृतम् । . क्रियौषधस्य को दोष-स्तदा गुणमयच्छतः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2410]
- ज्ञानसार - 34 यदि मन में रही महाशल्य रूपी अस्थिरता दूर नहीं की है, (उत्ते जड़मूल से उखाड़ नहीं फैंका है) तो फिर गुण करनेवाली क्रियारूप औषधि का क्या दोष ? 248. चञ्चल, खिन्न वत्स ! किं चंचलस्वान्तो भ्रान्त्वा - भ्रान्त्वा विषीदसि ?
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2410]
- ज्ञानसार - 34 हे वत्स ! तू चंचल प्रवृत्ति का बनकर भटक-भटककर क्यों विषाद करता है ? 249. देव प्रणम्य कौन ?
थोवाहारो थोवभणिओ, अ जो होइ थोवनिदो अ। थोवोवहि उवकरणो, तस्स हु देवा वि पणमंति ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2419]
- आवश्यक नियुक्ति 41282 जो साधक थोड़ा खाता है, थोड़ा बोलता है, थोड़ी नींद लेता है और थोड़ी ही धर्मोपकरण की सामग्री रखता है; उसे देवता भी नमस्कार करते
अभिधान राजेन्द्र कोष में, मुक्ति-मुधारस • खण्ड-4 . 120