Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- भगक्ती - TAM [3] कर्म से युक्त पुरुष ही कर्म को ग्रहण करता है । 278. दुःखी मोहग्रस्त दुक्खी मोहे पुणो पुणो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2551]
- सूत्रकृतांग IMAMT दु:खी प्राणी बार-बार मोहग्रस्त होता है। 279. स्वपूजा-प्रशंसा-परहेज निविदेज्जा सिलोग पूयणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2551]
- सूत्रकृतांग - 1MBA2 अपनी श्लाघा-प्रशंसा और पुजा-प्रतिष्ठा से दूर ही रहे । 280. आत्मवत् सब में आयतुलं पाणेहिं संजते ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 2551]
- सूत्रकृतांग INAR संयः साधु लमस्न प्राणियों को आत्मतुल्य देखें। 281. पग्दःखकातर परदुक्खेण दुक्खिआ विरला ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2552]
- प्राकृत व्याकरण, पाद - 2 दूसरों के दु:ख को देखकर कोई विरले पुरुष ही दु:खी होते हैं । 282. किससे, कितनी दूर ?
शकटं पञ्चहस्तेन, दशहस्तेन शृङ्गिणम् । हस्तिनं शतं हस्तेन, देशत्यागेन दुर्जनम् ॥ . ... - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2555]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सृक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 128