Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- धर्मबिन्दु सटीक 1/25 [19] अपनी आय के चार भाग करके, उसमें से एक भाग घर में अमानत या संग्रह करके रखे; ताकि वह आपत्ति के समय काम आवे । एक भाग व्यापार आदि में लगावे जिससे पैसों में वृद्धि हो । एक भाग धर्म के लिए तथा अपने उपभोग के लिए रखे और एक भाग (चतुर्थ) अपने आश्रित व कुटुम्बीजनों के भरणपोषण में खर्च करें । 351. आय-विभाग
आयादढे नियुञ्जीत, धर्मे समधिकं ततः । शेषेण शेषं कुर्वीत, यत्नतस्तुच्छमैहिकम् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2683 ]
- धर्मबिन्दु सटीक 125 [20] धन के दो भाग करे, यदि हो सके तो एक भाग से कुछ अधिक धर्म में खर्च करे और शेष-धन में से तुच्छ ऐसा इस लोक सम्बन्धी अपना शेष कार्य करे। 352. धर्म-गुण धम्मो गुणा अहिंसा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2685]
- दशवकालिकसूत्रसटीक - 1 अहिंसा ही धर्म का गुण है। 353. भ्रमरवत् भिक्षा विहंगमा व पुफ्फेसु दाणभत्ते सणे रया ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2688]
- दशवकालिक13 श्रमण गृहस्थ से उसीप्रकार दानस्वरूप भिक्षा आदि ले, जिसप्रकार भ्रमर पुष्पों से रस लेता है। 354. ज्ञानी, मधुकरवत्
महुकार समाबुद्धा । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 145