Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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347. आर्य धर्म
पीईकरो वण्णकरो, भासकरो, जसकरो रईकरो य । अभयकर निव्वुइकरो, पारत्त विइज्जओ धम्मो । .. - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2680]
- तंदुलवैयालिय पयन्ना - 172 यह आर्य धर्म इह-परलोक में प्रीति, कीर्ति, रूप, तेजस्विता, मिष्टवाणी, यश, रति, अभय एवं आत्मिक-सुख का करनेवाला है । 348. श्रेष्ठ मंगल
धम्मो मंगल मुक्किटुं, अहिंसा संजमो तवो । देवावि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2683 ] .
- दशवैकालिक -11 अहिंसा, संयम और तप रूप धर्म श्रेष्ठ मंगल है। जिसका मन ऐसे धर्म में स्थिर है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। 349. अन्यायोपार्जित द्रव्य-फल
पापेनैवार्थरागान्धः, फलमाप्नोति यत् क्वचित् । बिडिशामिषवत् तत् तमविनाश्य न जीर्यति ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2683 ]
- धर्मबिन्दु सटीक1 [4] । यदि द्रव्य के प्रेम में अंधा बना व्यक्ति कदाचित् अन्यायल्प पाप से द्रव्य-फल की प्राप्ति करता है किंतु, अंतत: जैसे काँटे में लगी माँस की गोली मछली का नाश करती है, वैसे ही वह द्रव्य उसका नाश किए बिना नहीं पचता। 350. आय-सन्तुलन
पादमायान्निधिं कुर्यात्, पादं वित्ताय घट्टयेत् । धर्मोपभोगयोः पादं, पादं भर्तव्यपोषणे ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2683 ] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 144