Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
View full book text
________________
425. मुक्ति - दूती: शास्त्र - भक्ति
शास्त्रे भक्ति जगदवन्द्यैः मुक्ते दूती परोदिता । अत्रैवेयं मतो न्याय्या, तत्प्राप्त्यासन्नभावतः ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 4 पृ. 2720] योगबिन्दु 230
शास्त्र - भक्ति मानो मुक्ति की दूती है, अर्थात् आत्मा रूपी प्रेमीआशिक तथा मुक्ति रूपी प्रेमिका - माशूका का मिलन कराने में, आत्मा को मुक्ति का संयोग कराने में वह सन्देशवाहिनी का कार्य करती है । मुक्ति का सन्देश आत्मा तक पहुँचाती है; जिससे आत्मा में मुक्ति को प्राप्त करने की उत्कण्ठा बढ़ती है।
426. धर्म - देशना
-
नोपकारो जगत्यस्मिंस्तादृशो विद्यते क्वचित् । यादृशी दुःखविच्छेदा- देहिनो धर्मदेशना ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2720] धर्मबिन्दु 2/80 एवं धर्मसंग्रह 1/27
इस संसार में धर्मदेशना प्राणियों के दुःख का उन्मूलन करने में
1
जो उपकार करती है, वैसा जगत् में अन्य कोई उपकार नहीं करता ।
निबन्धन
427. पुण्य
-
शास्त्रं पुण्यनिबन्धनम् ।
-
शास्त्र पुण्य-बन्ध का हेतु है- पुण्य कार्यों में प्रेरक है।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2720] एवं [भाग 7 पृ. 334] योगबिन्दु 225
428. शास्त्रः आँख
चक्षुः सर्वत्रगं शास्त्रम् ।
-
J
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2720] योगबिन्दु 225
शास्त्र सत्र जगह पहुँचनेवाली तीसरी आँख है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4164