Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भणे 4 पृ. 2688]
- दशवैकालिक - 1/5 आत्मद्रष्टा साधक मधुकर के समान होते हैं । वे कहीं किसी एक व्यक्ति या वस्तु पर प्रतिबद्ध नहीं होते। जहाँ रस (गुण) मिलता है, वहीं से ग्रहण कर लेते हैं। 355. जीओ और जीने दो वयं च वित्तिं लब्धामो न य कोई उवहम्मइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2688] . - दशवकालिक - 1/4 हम जीवनोपयोगी आवश्यकताओं की पूर्ति इसप्रकार करें कि किसी को कुछ कष्ट न हो। 356. उत्कृष्ट मंगल उक्किटुं मंगलं धम्मो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2689]
- दशवकालिकसूत्रसटीक - । धर्म ही उत्कृष्ट मंगल है। 357. धर्महीन को धिक्कार धिग्धर्मरहितं नरम् ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2690]
- स्थानांग 33 धर्म से हीन मनुष्य को धिक्कार है। 358. उपेक्षा किसकी नहीं ? ।
णो अत्ताणं आसादेज्जा, णो परं आसादेज्जा । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2693 ]
- आचारांग - 1/6/3097 न अपनी अवहेलना करो और न दूसरों की ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में. सृक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 146