Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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411. मेधावी कौन ?
से मेधावी जे अणुग्घातणस्स खेतण्णे जे य बंधप्पमोक्खमण्णेसी ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2712)
- आचारांग - 12/04 जो कर्मों के बंधन से मुक्त होने की खोज करता है तथा जो अहिंसा के समग्र मार्ग को जान लेता है, वह मेधावी है। 412. निःस्पृह उपदेशक
जहा पुण्णस्स कत्थति, तहा तुच्छस्स कत्थति । जहा तुच्छस्स कत्थति, तहा पुण्णस्स कत्थति ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2712]
- आचारांग - TAKn02 नि:स्पृह धर्मोपदेशक जैसे पुण्यवान् (सम्पन्न व्यक्ति) को उपदेश देता है, वैसे ही विपन्न (दीन-दरिद्र व्यक्ति) को भी उपदेश देता है । जैसे विपन्न को उपदेश देता है, वैसे ही सम्पन्न को भी देता है। 413. किसको, किससे भय ? ।
जहा कुक्कुडपोयस्स, निच्चं कुललओ भयं । एवं खु बंभयारिस्स, इत्थी विग्गहओ भयं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2713 |
- दशवकालिक 8/53 जैसे मुर्गी के बच्चे को बिल्ली द्वारा प्राणहरण का सदा भय बना रहता है, वैसे ही ब्रह्मचारी को स्त्री के शरीर से भय बना रहता है। 414. प्रणीताहार, तालपुटविष
विभूसा इत्थि संसग्गी, पणीयरसभोयणं । नरस्सऽत्तगवेसिस्स, विसं तालउडं जहा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2713]
- दशवैकालिक - 8/56 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4. 160