Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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330. स्वाध्याय-ध्यान का काल पूव्वावररायं जतमाणे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 2674]
- आचारांग - 1/33058 पंडित पुरुष रात्रि के प्रथम और अन्तिम प्रहर में स्वाध्याय और ध्यान में प्रयत्नशील रहे। 331. अहिंसा
उवेहमाणे पत्तेयं सातं वण्णादेसी णारभे कंचणं सव्वलोए।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2674]
- आचारांग - 153160 प्रत्येक प्राणी की शाता को देखते हुए यश के इच्छुक साधक समस्त लोक में किंचित् भी हिंसा न करे। 332. अज्ञानी जीव चुते हु बाले गब्भातिसु रज्जति ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2674]
- आचारांग - 1/33459 पथभ्रष्ट होनेवाला अज्ञानीजीव गर्भ आदि के दु:ख चक्र में फँस जाता है। 333. मुक्त भवे अकामे अझंझे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2674]
- आचारांग - 1/33158 काम और लोभेच्छा से मुक्त बन जाएँ । 334. इन्द्रिय-संयम
संजमति नो पगब्भति ।
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अभिधान गजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 140