Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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250. तत्त्व-जागृति
जह जह सुज्झइ सलिलं, तह तह रूवाइ पासइ दिट्ठी । इय जह जह तत्तरुई, तह तह तत्तागमो होइ ।।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2429] . - आवश्यकनियुक्ति 34169
जल ज्यों-ज्यों स्वच्छ होता है, त्यों-त्यों द्रष्टा उसमें प्रतिबिम्बित रूपों को स्पष्टतया देखने लगता है, इसीप्रकार अन्तर में ज्यों-ज्यों तत्त्वरुचि जागृत होती है, त्यों-त्यों आत्मा तत्त्वज्ञान प्राप्त करती है। 251. मोक्ष-मार्ग सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2429]
- तत्त्वार्थसूत्र। सम्यग्दर्शन, सम्यगज्ञान और सम्यकचारित्र मोक्षमार्ग हैं। 252. दर्शनभ्रष्ट की मुक्ति नहीं ।
सिझंति चरणरहिया, दंसणरहिया न सिझंति । _
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2430]
- भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक 66 चारित्रविहीन (आचरणहीन) व्यक्ति की मुक्ति हो सकती है, किन्तु सम्यग्दर्शन-विहीन की मुक्ति नहीं होती। 253. सुख-निद्रा सुहिओ हु जणो ण बुज्झइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2432]
- उत्तराध्ययन नियुक्ति 135 सुखी मनुष्य प्राय: जल्दी नहीं जग पाता । 254. दुर्जन-प्रकृति
राई सरिसव मित्ताणि, पर छिद्दाणि पाससि । अप्पणो बिल्लमेत्ताणि, पासंतो वि न पाससि ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 121