Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
View full book text
________________
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2489]
- सूत्रकृतांग सटीक 112 . दान देने से मनुष्य को उत्तमोत्तम भोग की प्राप्ति होती है । शील की रक्षा करने से उत्तम गति प्राप्त होती है। बारह प्रकार की भावनाओं का चिन्तन करने से जीव मोक्षगामी होता है और तपश्चर्या करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। 266. दया, धर्म का मूल दयाइ धम्मो पसिद्धमिणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2489]
- धर्मरत्नप्रकरण सटीक 90 "दया धर्म का मूल है", यह प्रसिद्ध है। 267. अभय अभउ त्ति धम्ममूलं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2489]
- धर्मरत्नप्रकरण सटीक - 90 अभय धर्म का मूल है। 268. दान, एक वशीकरण मंत्र
दानेन सत्त्वानि वशीभवन्ति, दानेन वैराण्यपि यान्ति नाशम् । परोऽपि बन्धुत्वमुपैति दानाद्, तस्माद्धि दानं सततं प्रदेयम् ।।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2490] . - धर्मरत्नप्रकरण 18
दान एक वशीकरण मंत्र है जो सभी प्राणियों को मोह लेता है। दान से शत्रुता भी नष्ट हो जाती है और दान देने से पराए भी अपने हो जाते हैं । इसलिए हमेशा दान देते रहना चाहिए।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 125
%3