Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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238. कौन हिंसक? जे पमत्ते गुणद्विर से हु दंडेत्ति पवुच्चछ ।
- श्री अभियान राजेन्द्र को [भाग 4 पृ. 2346]
- आचासंग IMA/33 जो प्रमत्त है, विषयासक्त है; वह निश्चय ही जीवों को पीड़ा पहुँचानेवाला होता है। 239. साधक आत्मनिरीक्षक
तं परिणाम्य मेहावी, इदाणिं णो जमहं पुब्बमकासी पमादेणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाम 4 पृ. 2346 ]
- आचारांग 1A/33 मोधाची साधक को आत्म-परिज्ञान के द्वारा यह निश्चय करना चाहिए कि “मैंने पिछले जीवन में प्रमादवश जो कुछ भूलें की हैं, वे अब कभी नहीं करूँगा। 240. स्तुति-फल
भय-थुझ्मंगलेणं नाणदेसाण-चरित्त बोहिलाभं जणयइ ।
- श्री अभियान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2385 ]
- उत्तराध्ययन 2946 प्रमु-प्रार्थना-स्तुति रूप मंगल से ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप बोधि की प्राप्ति होती है। 241. विनय धर्म विण्यमूले धो पाते।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2401]
- ज्ञाताधर्मकया 1/ जिसके मूल में विनय है, वही धर्म है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में. सूक्ति-सुधारस • स्खण्ड-4.118