Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
View full book text
________________
24. पशुकर्म
चर्हिवणेहिं जीवा तिस्विखजोणियत्ताए कम्म पगरेति तं ब्रह्म-माइल्लताते णियडिल्लताते अलियवयणेणं कूडनुलकुमाणेणं।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भामा 4 पृ. 2318]
- स्थानंग - 4/4/A/373 कपट, धूर्तता, असत्यक्चना और कूट तूलामान (खोटे तोलमान माप करना) ये चार प्रकार के व्यवहार पाकर्म हैं । इसे आत्मा पशुयोनि में जाती है। 235. परदुःखदायी सायं गवेसमामा, फ्स्स्स दुक्खं उदीरति ।
- श्री अभिधान सजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2344]
- आचासंग नियुक्ति 94 कुछ लोग अपने सुख की खोज में दूसरों को दु:ख पहुंचा देते हैं । 236. असंयम, शस्त्र भावे व असंजमो सत्यं ।
- श्री अभिधाना साजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2344]
- आचासंम निथुक्ति - 96. भाव-दृष्टि से संसार में असंयम ही सबसे बड़ा शस्त्र-हथियार है । 237. सत्य-प्राप्ति ... वीरेहि एवं अभिभूयदिटुं ।
- श्री अभिधाना साजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2345]
- आचारांग I/AA TI वीर पुरुषों ने मन के समूचे द्वन्द्रों को अभिभूत कर सत्य का साक्षात्कार किया है।
अभिधान सजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4. 117