Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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131. निर्भय योगी का आनन्द निर्भयः शक्रवद् योगी, नन्दत्यानन्दनन्दने ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1980]
- ज्ञानसार 50 इन्द्र की तरह निर्भय योगीराज आत्मानन्द रूप नन्दनवन में मौज करता है। 132. कोल्हू का बैल
वादाँश्च प्रतिवादाँश्च, वदन्तो निश्चितत्तथा । तत्त्वान्तं नैव गच्छन्ति, तिलकपीलकवद्गतौ ॥ ___ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1980]
- योगबिन्दु - 67 एवं ज्ञानसार 514 जो निश्चित रूप से-नैयायिक या तार्किक शैली से पक्ष-विपक्ष में अपनी-अपनी दलीलें उपस्थित करते हुए वाद-प्रतिवाद-खण्डन-मण्डन में लगे रहते हैं; वे तत्त्व निर्णय तक नहीं पहुंच पाते हैं । उनकी स्थिति कोल्हू के बैल जैसी होती है; जो कोल्हू के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है पर कभी किसी निश्चित छोर पर नहीं पहुंच पाता । 133. ज्ञानालोक
इह भविए वि नाणे, परभविए विनाणे, तदुभय भविए विणाणे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1982]
- भगवती - 100 [1] ज्ञान का प्रकाश इस जन्म में रहता है, दूसरे जन्म में रहता है और कभी दोनों जन्मों में भी रहता है। 134. स्वकर्म-सिद्धि स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धि लभते नरः ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1985]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4. 90
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