Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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208. तामस तप
मूढग्रहेण यच्चाऽऽत्म, पीडया क्रियते तपः । परस्योच्छेदनार्थं वा, तत्तामसमुदाहृतम् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2205]
- भगवद्गीता 1106 जो तप मूढतापूर्वक हठ से तथा मन, वचन और शरीर की पीड़ा के सहित अथवा दूसरे का अनिष्ट करने के लिए किया जाता है, वह तामस' तप कहा जाता है। 209. सात्त्विक तप
तपश्च त्रिविधं ज्ञेयं मफलाऽऽकांक्षिभिनरैः । श्रद्धया परया तप्तं, सात्त्विकं तप उच्यते ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 2205]
- गीता 1707 तप तीन प्रकार का जानना चाहिए । जो तप फलाकांक्षारहित व श्रद्धापूर्वक किया जाता है उसे 'सात्त्विक तप' कहते है। 210. कर्म-निर्जराकानी भवइ निरासए निज्जरहिए।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2206]
- दशवकालिक - 9/ANO कर्मों की निर्जरा चाहनेवाला साधक ऐहिक-पारलौकिक सुखों की कामना नहीं करता। 211. तपरत मुनि विविहगुण तवो रए य निच्चं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2206]
- दशवकालिक 9810 तप समाधिवन्त मुनि सदा विविधगुणवाले तप में रत रहता है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ट-4 . 110