Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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जो मारदर्शी (मृत्युदर्शक) होता है, वहीं नर्कदर्शी होता है और जो नर्कदर्शी होता है, वहीं तिर्यञ्चदर्शी होता है। 165. निरोध-हानि
मुत्तनिरोहे चक्खू वच्चनिरोहेण जीवियं चयइ । - - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 2116)
- ओघनियुक्ति 197 अत्यधिक मूत्र के वेग को रोकने से नेत्र-ज्योति नष्ट हो जाती है और तीव्र मलवेग को रोकने से जीवन नष्ट हो जाता है। 166. अभ्यास-वैराग्य अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2116]
- योगदर्शन 112 अभ्यास (निरन्तर की साधना) और वैराग्य (विषयों के प्रति विरक्ति) के द्वारा चित्तवृत्तियों का निरोध होता है। 167. निरोध से नुकसान
उड्ढं निरोहे कोढं, सुक्कनिरोह भवई अपुमं । [गेलन्नं वा भवे तिसुवि] . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2116 ]
एवं [भाग 7 पृ. 178]
- ओघनियुक्ति 197 अलवायु को रोकने से कुष्ठरोग एवं वीर्य के वेग को रोकने से । पुरुषत्व नष्ट होता है। 168. आत्मा की निर्लिप्तावस्था
लिप्यते पुद्गलस्कन्धो, न लिप्ये पुद्गलैरहम् । चित्रव्योमांजनेनेव ध्यायन्निति न लिप्यते ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2117]
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4.99