Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- ज्ञानसार 198 बाह्यदृष्टि मनुष्य सौन्दर्य-तरंग के माध्यम से शरीर को पवित्र देखता है, जबकि तत्त्वदृष्टि मनुष्य उसी शरीर को कौओं और कुत्तों के खाने योग्य अनेक कृमियों से भरा हुआ खाद्य देखता है। 185. तत्त्वद्रष्टा सदा सजग
भ्रमवाटी बहिर्दृष्टि भ्रमच्छाया तदीक्षणम् । अभ्रान्तस्तत्त्वदृष्टिस्तु नास्यां शेते सुखाशया ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 2182]
- ज्ञानसार - 192 बाह्यदृष्टि भ्रान्ति की वाटिका है और बाह्यदृष्टि का प्रकाश भ्रान्ति. की छाया है, लेकिन भ्रान्तिविहीन तत्त्वदृष्टिवाला जीव भूलकर भी भ्रम की छाया में नहीं सोता। 186. विश्वोपकारक
न विकाराय विश्वस्योपकारायैव निर्मिताः । . स्फुरत्कारुण्यपीयूष-वृष्टयस्तत्त्वदृष्टयः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2182 ]
- ज्ञानसार - 190 करुणा की अमृतवृष्टि करनेवाले तत्त्वदृष्टि पुरुषों का विकार के लिए नहीं, अपितु विश्वोपकार के लिए निर्माण हुआ है । 187. जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि
ग्रामाऽऽरामादि मोहाय, यदृष्टं बाह्ययादृशा । तत्त्वदृष्ट्या तदेवान्त तं वैराग्यसम्पदे ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2182]
ज्ञानसार 198 गाँव-उपवन आदि को बाह्य दृष्टि से देखना मोह को बढ़ाना है और तत्त्वदृष्टि से उसी वस्तु को देखने से वैराग्यगुण की वृद्धि होती है।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सृक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 104