Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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188. बाह्यान्तर दृष्टि की समझ
भस्मना केशलोचेन, वपुधृतमलेन वा । महान्तं बाह्यदृग् वेत्ति, चित्साम्राज्येन तत्त्ववित् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2182]
- ज्ञानसार - 19 बाह्यदृष्टि मनुष्य शरीर पर राख मलनेवाले को अथवा शरीर पर मलधारण करनेवाले को महात्मा समझता है, जबकि तत्त्वदृष्टि मनुष्य ज्ञान की गरिमा वाले को महान् मानता है । 189. मोहदृष्टि व तत्त्वदृष्टि
रूपे रूपवती दृष्टि दृष्टवा रूपं विमुह्यति । मज्जत्यात्मनि नीरूपे, तत्त्वदृष्टिस्त्वरूपिणी ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2182]
- ज्ञानसार - 194 . . बाह्य रूपवाली मोह-दृष्टि जड़वस्तु में रूप देखकर मोहित होती है, जबकि रूपरहित तत्त्वदृष्टि रूपातीत आत्मा के स्वरूप (सुख) में ही लीन हो जाती है। 190. तात्त्विक सर्वोत्कृष्ट तात्त्विकस्य समं पात्रं न भूतो न भविष्यति । .
- श्री अभियान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2183 ]
- धर्मसंग्रह - 2 तत्त्वविद् के समान पात्र न तो अतीत में हुआ और न होगा। 191. तात्त्विक श्रेष्ठ महाव्रती सहस्त्रेषु वरमेको तात्त्विकः ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2183]
- धर्मसंग्रह ?, पृ. 205 हजारों महाव्रतियों में एक तात्त्विक श्रेष्ठ है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 105