Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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150. ज्ञान पूजनीय नाणाहियस्स नाणं पुइज्जइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1996]
- जीवानुशासनसटीक 16 वस्तुत: ज्ञानियों का ज्ञान ही पुजा जाता है । 151. शुभकर्मानुगामिनी सम्पत्ति
निपानमिव मण्डूकाः सर: पूर्णमिवाण्डजाः । शुभकर्माणमायान्ति, विवशाः सर्वसम्पदः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2003] - हितोपदेश 1476
एवं धर्मसंग्रह। __ जैसे भरे जलाशय में मेंढक आते हैं और भरे सरोवर पर पक्षी आते हैं, वैसे ही जहाँ शुभकर्मों का संचय है; वहाँ सर्व सम्पत्तियाँ विवश होकर चली आती हैं। 152. पश्चात्ताप से क्षपक श्रेणी पच्छाणुतावेणं विरज्जमाणे करणगुण सेटिं पडिवज्जइ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2018]
- उत्तराध्ययन - 29/8 कृतपाप के पश्चात्ताप से जीव वैराग्यवन्त होकर क्षपक श्रेणी प्राप्त करता है। 153. आत्म-निंदा से पश्चात्ताप निन्दणयाएणं पच्छाणुतावं जणयइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2018]
- उत्तराध्ययन 294 अपनी निंदा करने से जीव पश्चात्ताप अर्थात्-"मैंने यह पाप क्यों किया ?" ऐसा अपने प्रति खेद व्यक्त करता है।
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 95
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