Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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विभिन्न मिथ्यादर्शनों का समूह, अमृत के समान क्लेश का नाशक और मुमुक्षु आत्माओं के लिए सहज सुबोधक भगवान् जिनप्रवचन का मंगल हो । 58. चैतन्य
जीवे ताव नियमा जीवे, जीवे वि नियमा जीवे । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग - पृ. 1519-1520] भगवती 6/10/2
जो जीव है, वह निश्चित रूपसे चैतन्य है और जो चैतन्य है वह निश्चित रूप से जीव है ।
59. क्षमा
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अम्मापणो सरिसा, सव्वेवि खमंतु मे जीवा ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1536] संस्तारक प्रकीर्णक - 91
माता-पिता के समान सभी जीव मुझे क्षमाप्रदान करें । 60. जीवाजीवज्ञ, संयमज्ञ
जो जीवे विवियाणइ, अजीवे वि वियाण | जीवाजीवे वियाणतो, सोहु नाहीइ संजमं ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1561] एवं भाग 5 पृ. 1190 दशवैकालिक 413
जो जीवों को भी जानता है, और अजीवों को भी जानता है, वह जीव और अजीव दोनों को जाननेवाला संयम को भी सम्यक् प्रकार से जान लेता है !
61. लोकालोक स्वरूप
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जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए । अजीव देसमागा से, अलोए से वियाहि ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1561] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 71
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