Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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107. जैनदर्शन में नय नत्थि नएहिं विहुणं सुत्तं अत्थो य जिणमए किंचि ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1887-1899]
- विशेषावश्यक सभाष्य 2277 जैनदर्शन में एक भी सूत्र और अर्थ ऐसा नहीं है, जो नयशून्य हो । 108. द्रव्य-लक्षण
दव्वं पज्जव विजुयं, दव्वविउत्ता य पज्ज वा णस्थि । उप्पायटिइभंगा, हंदि दविय लक्खणं एयं ॥ .
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1889]
- सन्मति तर्क 102 द्रव्य कभी पर्याय के बिना नहीं होता है और पर्याय कभी द्रव्य के . बिना नहीं होती है । अत: द्रव्य का लक्षण उत्पाद, नाश और ध्रुव (स्थिति) रूप है। 109. पदार्थ-प्रकृति
उप्पज्जंति वयंति अ, भावा निअमेण पज्जवणयस्स। दव्वट्ठियस्स सव्वं, ससया अणुप्पणम विणटुं॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1889] '
- सन्मतितर्कता पर्याय दृष्टि से सभी पदार्थ नियम से उत्पन्न भी होते हैं, और नष्ट भी, परन्तु द्रव्यदृष्टि से सभी पदार्थ उत्पत्ति और विनाश से रहित सदाकाल ध्रुव हैं। 110. नय
तम्हा सव्वेवि णया, मिच्छादिट्ठी सपक्खपडिबद्धा । अणोणणिस्सिआउण, हवंति सम्मत्त सब्भावा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 1891] - सन्मति तर्क 11
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 84