Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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अधार्मिक आत्माओं का सोते रहना अच्छा है और धर्मनिष्ठ आत्माओं का जागते रहना। 51. सर्वत्र प्रतिष्ठित
कत्थ व न जलइ अग्गी, कत्थ व चंदो न पायडो होइ। कत्थ वर लक्खणधरा, न पायडा होंति सप्पुरिसा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1464]
- बृहदावश्यकभाष्य 1245 ___ अग्नि कहाँ नहीं जलती है ? चन्द्रमा कहाँ प्रकाश नहीं करता है ? और श्रेष्ठ लक्षणों (गुणों) से युक्त सत्पुरुष कहाँ पर प्रतिष्ठा नहीं पाते हैं ? अर्थात् सर्वत्र प्रतिष्ठा पाते हैं। 52. विद्वान् सर्वत्र शोभते
सुक्किं धणम्मि दिप्पइ, अग्गी मेहरहिओ ससि भाइ । तव्विह जाण य निउणे, विज्जा पुरिसा विभायंति ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1464]
- बृहदावश्यकभाष्य 1247 सूखे ईंधन में अग्नि प्रज्ज्वलित होती है, बादलों से रहित स्वच्छ आकाश में चन्द्र प्रकाशित होता है, इसीप्रकार चतुर लोगों में विद्वान् शोभा (यश) पाते हैं। 53. निपुण घुड़सवार
को नाम सारहीणं, स होई जो भद्दवाइणोदमए । दुढे वि उ जो आसे, दमेइ तं आसियं बिंति ॥ . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1468]
- बृहदावश्यकभाष्य 1275 उस आश्विक (घुड़सवार) का क्या महत्त्व है ? जो सीधे-सादे घोड़ों को काबू में रखता है । वास्तव में घुड़सवार तो उसे कहा जाता है, जो दुष्ट (अड़ियल) घोड़ों को भी काबू में किए चलता है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4.69