Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
View full book text
________________
54. धैर्यवान्
तं तु न विज्जइ सज्झं जं धिइमंतो . न साहेइ । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1471] बृहत्कल्पभाष्य 1357
वह कौन-सा कठिन कार्य है, जिसे धैर्यवान् व्यक्ति सम्पन्न नहीं कर
सकता ?
55.
SPOR
अल्पाहारी
अप्पाहारस्स ण इंदिआई विसएस संपयट्टंति । न अ किलम्मइ तवसा रसिएसु न सज्जई आवि ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1478 ] बृहदावश्यकभाष्य 1331
जो अल्पाहारी होता है, उसकी इन्द्रियाँ विषयभोग की ओर नहीं दौड़ती, तप का प्रसंग आने पर भी वह क्लांत नहीं होता और न ही सरस भोजन में आसक्त होता है ।
56. परिमित संसारी
जिणवयणे अणुरत्ता, जिणवयणं जे करेंति भावेणं । अमला असंकिलेट्ठा, ते होंति परित्तसंसारी ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1502]
sede
उत्तराध्ययन 36/260
जो जिनवचन में अनुरक्त है और जो श्रद्धापूर्वक (भावसे) जिनवचन को स्वीकार करता है, जो मल ( राग-द्वेषरहित ) और संक्लेश रहित है, वह परिमित संसारी होता है ।
57. जिन-प्रवचन
भद्दं मिच्छादंसण-समूह मइयस्स अमयसारस्स । जिणवयणस्स भगवओ, संविग्ग सुहाहिगम्मस्स ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1503] सन्मतितर्क 3/69
-
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 70