Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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76. अनुपम ध्यानी
जितेन्द्रियस्य धीरस्य, प्रशान्तस्य स्थिरात्मनः । सुखासनस्य नासाग्रन्थस्त नेत्रस्य योगिनः ॥ रुद्रबाह्यमनोवृत्तै र्धारणा धारया रयात् । प्रसन्नस्याऽप्रमत्तस्य चिदानन्द सुधालिहः ॥ साम्राज्यमप्रतिद्वन्द्वमन्तरेव वितन्वतः । ध्यानिनो नोपमा लोके सदेव मनुजेऽपि हि ॥ .
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1673]
- ज्ञानसार 30/6-7-8 जो जितेन्द्रिय हैं, धैर्ययुक्त हैं, और अत्यन्त शान्त हैं, जिसकी आत्मा अस्थिरता रहित हैं, जो सुखासन पर विराजमान हैं, जिसने नासिका के अग्रभाग पर लोचन स्थापित किए हैं और जो योगसहित हैं।
ध्येय में जिसने चित्त की स्थिरतारूप धारा से वेगपूर्वक बाह्य इन्द्रियों का अनुसरण करनेवाली मानसिक-वृत्ति को रोक लिया हैं, जो प्रसन्नचित्त हैं, प्रमादरहित और ज्ञानानन्द रूपी अमृतास्वादन करनेवाला हैं, जो अन्त:करण में ही विपक्षरहित चक्रवर्तित्व का विस्तार करता है, ऐसे ध्यानी की, देव-मनुष्यलोक में भी सचमुच अन्य कोई-उपमा नहीं है । • 77. यथा राजा तथा प्रजा
गतानुगतिकाः प्रायो, दृष्यन्ते बहवो नराः । स्वभूपमनुवर्त्तन्ते, यथा राजा तथा प्रजा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1798 ]
- उत्तराध्ययनसूत्र सटीक 9 अध्ययन अधिकांश मनुष्य गड़रिया प्रवाहवाले होते हैं और अपने स्वामी का ही अनुसरण करते हैं। सच है, जैसा राजा होता है वैसी ही जनता होती
78. प्रबुद्ध सक्षम
बुद्धो भोए परिच्चइ ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 76