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-: विषय सूची :
534
524
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सन्निपात ज्वर
532 औषध क्रिया की परिभाषा 519 जीर्ण-ज्वर
532 बूटियों के पर्यायवाची नाम 520 मलेरिया बुखार
533 चिकित्सा प्रकरण टाईफाइड (मियादी) ज्वर
533 निमोनिया-ज्वर
533 रोग तथा दोष विज्ञान 522 1. यदि कफ में रक्त आता हो तो
534 वात 523 2. भूत ज्वर
534 वायु कुपित होने के कारण 523 3. ज्वर में प्यास ज्यादा होने पर पित्त
4. ज्वर में खांस होय
534 पित्त प्रकोप के कारण 524 5. ज्वर में वमन होने पर
534 कफ 524 6. ज्वर में श्वास होने पर
535 कफ प्रकोप के कारण
525 ___7. ज्वर में मूर्छा होने पर वात प्रकोप के लक्षण
525
___8. ज्वर में कब्ज तथा अफारा 535 पित्त प्रकोप के लक्षण 525
10. गर्मी के ज्वर में वमन होना 535 कफ प्रकोप के लक्षण
525 526
11. ज्वरातिसार वायु कोप का समय
535 पित्त कोप का समय
526 ___ 12. ज्वर की निर्बलता
535 कफ कोप का समय 526 13. लू लगकर ज्वर होना
535 वात प्रकृति का लक्षण 526 14. मौसम का ज्वर
535 पित्त प्रकृति का लक्षण 526 15. गर्दन तोड़ व कमर तोड़ बुखार 535 कफ प्रकृति वाले के लक्षण 526
16, साधारण ज्वर
535 द्विदोषज त्रिदोषज प्रकृति लक्षण
जुकाम रोग
536 526
सिर-रोग
536 वात शामक उपाय
526 पित्त शामक उपाय
527 आधासिर दर्द
536 कफ शामक उपाय 527 1. वायु से सिर दर्द
537 रोगी की मृत्यु की पहिचान 527 2. पित्त से सिर दर्द
537 ज्वर रोग के कारण 528 3. कफ की मस्तक पीड़ा
537 वात ज्वर
529 4. मस्तक की स्नायु सम्बन्धी पीड़ा पित्त ज्वर 529 5. जुकाम से सिर दर्द
537 कफ ज्वर
530 6. मस्तक पीड़ा, भंवल व चक्कर आना 537 वात कफ ज्वर 531 7. मस्तक वेग
537 कफ पित्त ज्वर 531 8. मस्तक में रुधिर का जमाव
537 वात पित्त ज्वर 531 9. मस्तक का दर्द दूर के लिए
537 स्मरण-शक्ति
537
538
515
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मंन्त्र, यन्त्र और तन्त्र
अति बुद्धि बढ़े गंजापन दूर करने हेतु बाल बढ़ जाते
भीघ्र के पतन
बाल दूर करना
बाल काले बनाना
बालों को काला करना
बालों की सफेदी नश्ट
पित्त रोग तृषा रोग
खाँसी रोग
सूखी खाँसी श्वास-खाँसी
दमा (श्वास) रोग
क्षय (तपेदिक) रोग
बालकों के ज्वर तथा अन्य रोग
बिस्तर ( शय्या) मूत्र निवारण दन्त रोग
स्वास्थ्य अधिकार
पाइरिया
दाँतों के मसूड़ों तथा मुँह का रोग मुख के छाले
मुख से खून आने के रोग
मुख की दुर्गन्ध दूर करने का उपाय मुहांसे दूर (मुँह पर धब्बे का रोग ) मुख सुन्दर के लिए गले के रोग
स्वर-भंग
हकलाना दूर होता हिचकी रोग खट्टी डकारे नेत्र रोग
कान - रोग
नाक रोग
वमन - रोग
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539
540
540
540
540
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542
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552
552
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555
वमन कराने के उपाय
हैजा - रोग
पत्थरी रोग
लीवर (यकृत) रोग
तिल्ली (लिप) रोग
हृदय रोग
रक्त चाप (ब्लड प्रेशर)
जलोदर रोग
मुनि प्रार्थना सागर
उदर (पेट) रोग
पेट की धारियां मिटें
फोदर-रोग
पेट की गैस (वायु)
अम्ल पित्त
धरण (पेचुटी) नाभि रोग
कब्ज रोग
मंदाग्नि रोग
अरुचि रोग
पेट का कृमि रोग
पित्त का अतिसार
आम अतिसार
भस्मक रोग
शरीर का मोटापा दूर करना
सदा जवान रहें
सर्व वात रोग
जोड़ों का दर्द
घुटनों का दर्द
गठिया रोग
कम्पवाय (हाथ-पैर काँपना)
शून्यवात अर्द्धागं-वाय
आम -वात
लकवा रोग
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556
556
556
557
557
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559
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शून्य-वात- लकवा रोग
565
पुस्तवाय (हाथ पैरों में अधिक पसीना आना)
566
560
560
560
561
561
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562
562
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मुनि प्रार्थना सागर
567 त्वचा
569
69
584
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हाथ-पैरों की ऐंठन (बाईन्टे) तथा चोट पर 566 अधो वायु बंध का उपाय
582 चोट लगकर सूजन आने पर
567 हाथ पाँवों की ब्याऊ फटने पर 582 कमर और पसली पीड़ा
583 सूजन-रोग (शोध रोग) 568 पाँव की एड़ी का दर्द
583 मृगी रोग 568 नख टूटने पर
583 उन्माद (पागलपन) रोग
हाथी पांव
583
583 डिप्रेशन (अवसाद) दूर करने हेतु
घावों पर लगाने गाँठ के लिए लेप
583 मूर्छा रोग
569 नहरुआ (बाला) रोग चक्कर आना रोग
570 सर्प के काटने पर पाण्डु रोग 570 बिच्छुके काटने पर
584 पिलिया रोग
570 कुत्ते द्वारा काटा निष्प्रभावी होय 585 पोलियो रोग 571 बर्र-ततैया के जहर पर
585 कुष्ठ (कोढ़) रोग 571 सिर की या लीक
586 वभूति रोग
572 जानवरों के काटने पर जहर चढ़ने पर उपाय 586 श्वेत कुष्ठ रोग
572 स्त्री गुप्त रोग चिकित्सा सफेद दाग 572 प्रदर-रोग
586 चर्म रोग 572 श्वेत प्रदर रोग
587 बवासीर (मस्सा) रोग 573 रक्तार्श (रक्त प्रदर)
588 मूत्र(पेशाब)रोग
र रुका हुआ मासिक धर्म खुलने के लिए 588 मासिक धर्म पुन: होय
588 निद्रा-रोग पित्ति-रोग
रजोधर्म तुरन्त ही होने लगता 588 पित्ति (पिस्ती) रोग
ऋतु धर्म नष्ट के लिए
589 प्रमेह और मधुमेह रोग 578 गर्भ धारण करना
589 मधुमेह रोग 578 पुत्री प्राप्ति हेतु
591 डायरिया 578 पुत्र(कन्या )प्राप्ति
593 मेद रोग 579 गिरता गर्भ रोकना
593 शरीर में पसीने की दुर्गन्ध 579 गर्भ गिराने के लिए
593 काँख की दुर्गन्ध के लिए
579 गर्भधारण नहीं होगा कैंसर ,अल्सर रोग 579 सुख से प्रसव होय
594 खुजली दूर 580 दूध बढ़ाने के लिए
594 व्रण (फोड़ा-फुन्सी) रोग
580 स्तन पीड़ा व अन्य रोगों का उपाय 595 दाद और पाँव तथा खुजली रोग ____581 स्तनों की शिथिलता दूर
595 घाव ठीक के बाद सफेद दाग का उपाय 581 योनि दोष दूर हो जाता अग्नि से जले हुए तथा अन्य उपाय 581 पुरुष गुप्त रोग अधिकार हड्डी टूटने पर 582 गुप्तेन्द्रिय रोग
597 काँच निकलना 582 अण्डकोष वृद्धि रोग
597 517
594
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598 598 599 600 601 601 602
शुक्राणुओं की वृद्धिहेतु स्वप्न दोष निवारण वीर्य स्तम्भन बल पुरुषार्थ (शक्ति वर्धक) दुर्बलता निवारण नपुंसकता,वीर्य धातु रोग कामेन्द्रिय (लिंग) में दृढता
180.विशेष नुस्खे दाँत मन्जन हींग्वष्टक चूर्ण लवण भास्कर चूर्ण संजीवनी बूटी अमर सुन्दर बटी चन्द्र-प्रभा बटी
603 603 603 604 604 604
बाम
604
605
605
पंचसम चूर्ण
604 कस्तूरी भैरव रस नवजीवन आरोग्यवर्द्धनी
605 वज्र लेप तैयार करने की विधि-अर्थ 605 विशेष नुक्से
605 गुणकारी लौंग
606 तेजी मन्दी निकालने की विधि ६०९ मकर संक्रान्ति फल संक्रान्ति से गणित द्वारा तेजी-मंदी का परिज्ञान
612 तेजी मंदी के उपयगी पांच वारों का फल 612 संक्रांति के वारों का फल 613 रवि नक्षत्र फल
613
611
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मंगलाचरण जिनेन्द्रमानंदित सर्वसत्वं, जरारुजामृत्युविनाशहेतुं ।
प्रणम्य वक्ष्यामि यथानुपूर्व, चिकित्सतं औषधमहाप्रयोगैः॥ अर्थ- सर्वलोक को आनन्दित करने वाले तथा जन्म-जरा-मृत्यु को नाश करने के लिए कारणीभूत श्री जिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार करके अब मैं औषध महाप्रयोगों के द्वारा यथाक्रम चिकित्सा निरूपण करूँगा।
चिकित्सा प्रकरण
(१) औषध क्रिया की परिभाषा १. स्वरस क्रिया- जो वनस्पति ताजी हो, कीड़ों से खाई हुई न हो, जिसकी मिट्टी आदि
साफ कर दी हो ऐसी वनस्पति को तत्काल कूटकर, मसलकर वस्त्र आदि से निचोड़कर उसका रस निकालने को स्वरस कहते हैं। यदि ताजी वनस्पति न मिले तो सुखी औषधि को दुगने पानी में चूर्ण कर मिट्टी के बर्तन में दिन-रात भीगने दें, फिर उसे वस्त्र से निचोड़कर छान लें। अथवा सूखी औषधि को आठ गुना पानी में ओटाकर चौथाई रह जाय तो छानें। यह स्वरस बनाने की विधि हैं। कल्क क्रिया की विधि- गीली वनस्पति को चटनी की तरह पीस लें तथा सूखी
औषधि को पानी के साथ पीसकर तैयार कर लें इसे कल्क विधि कहते हैं। ३. क्वाथ (काढ़ा) क्रिया- औषध से १६ गुना पानी डालकर मिट्टी के बर्तन को आग
पर चढ़ा दें, आँच मंद रखें तथा पात्र का मुँह खुला रखें, जब पानी का अष्टाँश रह जाय
तो उतार कर छान लें और कुछ गर्म रहे तो पीलें। इसे क्वाथ (काढ़ा) कहते हैं। ४. हिम-क्रिया- औषध को कूटकर छह गुना पानी में रात को भिगोकर, प्रातः काल
छानकर पीवें इसे हिम (ठन्डा क्वाथ) कहते है। ५. फाँट-क्रिया- वनस्पति का महीन चूर्ण बनाकर रखलें, फिर मिट्टी के पात्र में एक
पाव पानी डालकर आग पर औटावें और फिर उस चूर्ण को डाल कर फिर ठण्डा कर
लें, इसे फाँट कहते हैं। ६. चूर्ण क्रिया- अत्यन्त सूखी वनस्पति दवा को कपड़े से छान ले उसे चूर्ण कहते हैं।
यदि नीम्बू के रसादि का पुट देना हो तो उस रस में चूर्ण पूर्ण रूप से भीग जाय उतना मिलना चाहिये।
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७. अवलेह क्रिया- औषधियों के क्वाथादि को पुनः पात्र में डालकर औटाते - औटाते गाढ़ा हो जाय अर्थात् वह चाटने योग्य हो जाय उसे अवलेह (लेह) कहते हैं। ८. गोलियाँ बनाने की क्रिया- चासनी या पानी या गुड़ व शक्कर तथा दूध आदि में औषधि का चूर्ण मिलाकर गोली बना लेना चाहिये ।
९. चूने का पानी बनाने की विधि - एक बोतल पानी में १२.५ ग्राम ( १ तोला) कली का चूना ताजा डालकर कार्क लगा दें और उसे हिलाकर रख दें । १२ घन्टे बाद जब चूना बोतल के पैंदे में जम जाय तब नितरा हुआ पानी छानकर दूसरी बोतल में भर लें, फिर जरूरत माफिक काम में लेवें ।
१०. दूध का तोड़ बनाने की विधि - उबलते हुए दूध में नीम्बू का रस या फिटकरी डालने से दूध फट जाता है, फिर उस फटे हुए दूध को छानने के बाद जो पानी रहता हैं उसे तोड़ कहते हैं, यह तोड़ कई प्रकार की बीमारियों में उपयोगी होता है ।
११. यूष क्रिया - जिसका यूष बनाना हो उसके ५१ या कम ज्यादा दाने लें, जैसे मूँग का बनाना हो तो ५१ मूँग लें, पीपल नग ३, काली मिर्च नग ३, सोंठ १.६ ग्राम (२ माशा). सेंधा नमक २ ग्राम (२ ॥ माशा), पानी १ किलो । ऊपर लिखी सभी चीजों को साबुत लेकर नये मिट्टी के बर्तन में डालकर थोड़ी देर आँच से पकावें, जब चौथांश रहे तब रोगी को पिलावें । २ घन्टे बाद यह यूष खराब हो जाता है अतः जरूरत होने पर दूसरा बनाना चाहिये ।
१२. घृत और तेल सिद्ध होने की विधि- जिस वनस्पति का घृत या तेल बनाना हो तो उसका कल्क बनालें, फिर उसमें चार गुना घृत या तेल (जो बनाना हो ) के साथ एक मिट्टी के चिकने बर्तन में या लोहे की कढ़ाई में डाल दें फिर उसमें दूध या गोमूत्रादि जो पदार्थ डालना हो तो डालकर आग पर चढ़ा दें, फिर आँच देते-देते जब घृत या तेल मात्र शेष रह जावे तब उतारकर छान लें। यही घृत या तेल प्रस्तुत हो जाता है।
१३. पाताल यन्त्र से तेल निकालने की विधि- जमीन में एक गढ्ढा खोदकर अन्दर चीनी मिट्टी का प्याला रखें, उसके ऊपर एक मिट्टी के पात्र में छेद करके रख दें और दवा जिसका निकालना हो उस पात्र में भर दें और कपड़े से उसका मुँह बन्द कर दें, फिर मिट्टी के गड्ढे को आधा भर दें। ऊपर कन्डे (उपलें ) जलाकर आँच लगावें, जब उपले जलकर ठंडे हो जाये तों, गड्ढे से राख और मिट्टी दूर करके पात्र को हटालें और उस प्याले में टपका हुआ तेल शीशी में भरलें इसी को पाताल यन्त्र से तेल निकालना कहते हैं ।
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१४. चावल के धोवन की विधि- २५ ग्राम (२ तोला) चावल को मोटा-मोटा कूटलें, फिर पानी में धोकर आठ गुने पानी में भिगो दें, १ घन्टा पश्चात् मसल कर छान लें। १५. लेप- हरी तथा सूखी औषधियों को पीसकर उसका चूर्ण पानी, छाछ या गुलाबजल
आदि में पीसकर दर्द वाली जगह पर अथवा शोथ-व्रण आदि पर लेप करना चाहिए,
लेप को मोटा लगावें, फिर सूखने के बाद उतार दें। १६. भावना- दवा के चूर्ण या भस्म को खरल में डालकर दवा का रस या क्वाथ मिलाकर
रबड़ी जैसा कर लें उसे भावना देना कहते हैं। १७. हिंगोड़ा- हींग को घी में भूनकर उपयोग में लेवें। याद रहे हींग जो गन्दी वस्तुओं में
सड़ाकर तैयार की जाती है, वह हानिकारक हैं। और धर्म के भी विरुद्ध है, अतः जिसे हिंगोड़ा (हींगड़ा) कहते हैं, वह वृक्षों का एक प्रकार का दूध सा होता है, अर्थात्
हिंगोड़ा को ही काम में लेना चाहिये। १८. यदि गोली बनाने के किसी द्रव का नाम न लिखा हो तो पानी लेना चाहिये। यदि
तेल का नाम स्पष्ट न हो तो तिल का तेल काम में लेना चाहिये। यदि नमक का नाम
स्पष्ट न हो तो सेंधा नमक काम में लेना चाहिये। १९. जहाँ औषधियों का तौल न लिखा हो वहाँ सब औषधियाँ समभाग में लेना चाहिये। २०. जहरीली दवाइयाँ- संखिया, मेनसिल, हरताल, वच्छनाग, गंधक, कुचिला, पारद, हिंगुल, रसकपूर, भिलाव, कनेर, आक, नीला-थोथा, टंकण तथा धातु-उपधातु सभी को शुद्ध करके काम में लेना चाहिये, यदि दवा के आगे शुद्ध न लिखा गया हो तो
भी खाने की औषधियाँ को शुद्ध करके ही प्रयोग में लेना चाहिये। २१. यदि औषधि के ग्रहण करने के लिये जड़, पत्र, छाल आदि न लिखा हो तो जड़ को
ग्रहण करना चाहिये। २२. यदि औषधि सेवन करने का काल न कहा गया हो तो प्रात:काल समझना चाहिये। 23. बूटियों के पर्यायवाची नाम- मुनि (अगस्ता), घोषा (देवदाली), बंध्या
(बांजककोड़ा), मंदार (आक), वासा (आडूसा), अनल (चित्रक), कारवेल्वे (करेला), कारंज (करंज), बाजीभूत (घोड़े का मूत्र), पुनर्नवा (साठी), शशि (कपूर), शावर (लौंग), उशीर (खस), कुनिंब (बकोयण), पलाश (ढाक), आयली (इमली), लजालु (छुइमुई),शिखंडिका (गुंजा, चिरमी), । रील (करीर, तीक्ष्ण कंटक, निष्पत्रक, करीला, कैर, टेंटी, करु पेंचू आदि नामों से जानते हैं), अंकोल (ढेरा, अकोसर, अकोड़ा, अकोरा, आदि नाम भी हैं), ऊँटकटारा (ल्हैया, घोढ़ा, चोढ़ा, उत्कंटो, काटेचुम्बक भी कहते हैं) ,छोंकर (छोटे-छोटे कांटों वाली
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झाड़ी, शमी, तुगा, शक्तफला शमीर, शिवाफली, लक्ष्मी, छेंकुर, छिकुरा, खीजड़ी आदि कहते है), अपराजिता ( कोमल, कालीजर, धन्वन्तरि, बिष्णुकान्ता), अपामार्ग (चिरचिटा, लटजीरा, ओंगा, शिखरी, अघेड़ों, पुठकंडा, चिचड़ा ), छोटी कटेरी (भटकटैया, कंटकारी), बज्रदन्ती (कटसरैया, पियाबांसा, पीत सैरेयक भी कहते हैं ।), पिटारी (कांकश्री), जपा पृनून (कुड़हल के फूल), मातुलिंग (बिजोरा ) करील (करीर, तीक्ष्ण कंटक, निष्पत्रक, करीला, कैर, टेंटी, करु पेंचू आदि नामों से जानते हैं ।) संस्कृत का हिन्दी अनुवाद - अर्क-आक, पलाश - ढाक, मयूर वनस्पति - चिरचिरा, अश्वत्थ - पीपल, दर्भ-डांभ, विभीतिक - बहेडा, नागवल्ली - नागरवेल, मुद्ग-मूंग, माष-उडद, सिद्धार्थ- सफेद सरसों, तीक्ष्णफला - काली राई, आसुरी - राई, मदनफल–मैनफल, गोधूम - गेहूं, त्वच वनस्पति-तज, तमालपत्र - तेजपात, ग्रहकन्या, कुमारी - ग्वारपाठा, कुवरपाठा, गुडुचि - गिलोय, गुर्चे, पुष्करमूल - पोहकरमूल, बकुल - मौलसरी, बनहुला, नागचंपक - नागचंपा, केतकी - केवराडा, गगनधूल, जाई - चमेली, मुद्गर - मोहिया, पुन्नाग - पुलाक, वार्षिकी - वेल, जपा - ओडहुल, गुडहर, पद्माक्ष–कमलगट्टा, करवीर - कनेर, घत्तुर - धत्तूरा, भद्रमुस्ता - नागरमोथा, मधुवल्लि - मुलहटी भेद, पुष्करमूल - पोहकरमूल, सुरपुन्नाग - कामल, उदुंबर - गूलर, बीजपुर - बिजोरा, मधुकर्कटी - पपीता, आमलकी - आँवला, काष्टघात्री - छोटा आँवला, बिल्व-बेलवृक्ष, अर्जुन -कौहा, कोह, पिप्पलि - पीपर, पीपल, मरिच - मेणस, कालीमिरच, यवानि - अजवाइन, कुंकुम - केसरा, प्रियंगु फूलप्रियंगू, गुग्गुल - गुगल, सरिवा - गोरीसर, सहदेवी - महाबला, सहदेई, गुडुचि - गिलोय, गूर्च, वासक (सिंहि), अडूसा, घातकी - जंभीरी, शालि - शालि धान, यावनाल - ज्वार, व्याघ्री वनस्पति - कटरी, लघुकटाई, लक्ष्मणा - सफेत कटरी, उशीर - खस, प्रवाल- मूंगा, गारुत्मत् ( मरकत ) - पन्ना, वज्र - हीरा (डायमंड ) पनस - कटहल ।
नोट-(पंचांग-फल, फूल, जड़, पत्ते और छाल को कहते हैं)
24. औषधि की मात्रा - नवजात शिशु को प्रथम मास में औषधि चूर्ण की . १ ग्राम (१ रत्ती) की मात्रा दूध, घी या मिश्री की चासनी में मिलाकर चटाना चाहिये, इस तरह दूसरे मास में . २ ग्राम ( २ रत्ती), तीसरे मास में . ३ ग्राम ( ३ रत्ती) इसी प्रकार १२ मास .१२ ग्राम (१२ रत्ती) तक दे सकते है, १ वर्ष की आयु से १६ वर्ष की आयु तक. ८.८ ग्राम बढ़ाकर १२.८ ग्राम ( १६ माशा) तक दी जाती है, १६ वर्ष से ७० वर्ष तक यही मात्रा है फिर ७० वर्ष के ऊपर से धीरे-धीरे घटा देनी चाहिये, क्योंकि बालक और वृद्ध की चिकित्सा समान ही करनी चाहिये ।
( 2 ) - रोग तथा दोष विज्ञान
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रोगस्तु दोष वैषम्यं, दोष साम्यमरोगता वात, पित्त और कफ दोषों में धर्म-कर्म में विषमता का आ जाना रोगों की परिस्थिति है। जब यह शारीरिक शक्तियाँ शरीर का पोषण और वर्धन का काम न कर विकृत हो जाती हैं, तब रोग होता है। जब यह वात, पित्त और कफ आवश्यक अंश में उपस्थित रहकर समभाव में रहते हैं और शरीर का परिचालन एवं वर्धन करते हैं तब अरोग्यता की स्थिति रहती है।
(3)- वात इन तीनों दोषों में वायु सबसे बलवान होती है,क्योंकि यह शरीर के सारे धातु-मलादि का विभाग कहती हैं, यह रजो गुण वाली सूक्ष्म,शीतवीर्य,रुखी,हल्की, व चंचल है,इसके 5 भेद होते हैं। 1- उदान, 2-प्राण, 3-समान, 4-अपान, 5-व्यान। 1. उदान वायु- यह गले में घूमती है, इसी की शक्ति से यह प्राणी बोलता और गीत आदि गाता है, जब यह वायु कुपित होती है तब कण्ठगत रोग उत्पन्न होते हैं। 2 प्राण वायु - इस वायु का स्थान हृदय होता है, यह वायु प्राणों को धारण करती है और सदैव मुँह में चलती है, यह भोजन किये हुए अन्न आदि को भीतर प्रवेश कराती है और प्राणों की रक्षक होती है। इसके कुपित होने से हिचकी व श्वास आदि
रोग पैदा होते हैं। 3. समान वायु – यह वायु आमाशय और पक्वाशय में विचरती हैं और जठराग्रि आदि के सम्बन्ध में अन्नादि को पचाती हैं, फिर अन्नादि से उत्पत्र हुए मल-मूत्रादि को अलग-अलग करती है। यह कुपित होकर मन्दाग्नि, अतिसार और वायुगोला आदि रोगों को पैदा करती है। 4. अपान वायु – यह वायु पक्वाशय में रहती है, मल-मूत्र, शुक्र, गर्भ और आर्तव इनको निकालकर बाहर करती हैं, इस वायु के कुपित होने से मूत्राशय और गुर्दा के रोग
पैदा होते हैं एवं शुक्र दोष, प्रमेह आदि रोगों की उत्पत्ति करती है। 5. व्यान वायु - यह वायु सारे शरीर में विचरती है जब यह कुपित होती है तब समस्त
शरीर के रोगों को प्रकट करती है। इसके अलावा जब यह पाँच वायु एक साथ कुपित होती हैं तब सारे शरीर में रोगों का तहलका मचा देती हैं।
(4) वायु कुपित होने के कारण मल-मूत्रादि के वेगों को रोकने से, स्त्री संग ज्यादा करने से, चटपटा, कडुवा, कषैले रसों को अधिक खाने से, रूक्ष-लघु और शीत वीर्य वाले पदार्थों के ज्यादा भक्षण करने से, ठण्डे पानी से स्नान करने से तथा अपने से, बलवान के साथ लड़ने,
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आदि कारणों से कुपित होती है।
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( 5 ) पित्त
यह एक द्रव्य पदार्थ है, गर्म चिकना, लघु, हल्का, तीक्ष्ण और दुर्गन्ध-युक्त, विष्ठा को नीचे बहाने वाला होता है। इसका रंग पीला व नीला होता है। सतोगुण प्रधान और अम्ल विपाक वाला होता है। इसके पाँच भेद होते हैं 1- पाचक, 2-रंजक, 3 – साधक, 4– आलोचक, 5-.. भ्राजक ।
1. पाचक पित्त यह आमाशय और पक्वाशय में रहकर आहार को पचाता है,
रस- दोष- मल-मूत्र को अलग-अलग करता है तथा शेष चार प्रकार के पित्तों के बल को बढ़ाता है।
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3. साधक पित्त
2. रंजक पित्त - यह यकृत और प्लीहा में रहकर रस का रूधिर बनाता है। इसका स्थान हृदय है, यह बुद्धि धारण और शक्ति को बढ़ाता है। इसका स्थान दोनों नेत्र होते हैं, इसका काम रूपादि ग्रहण करना
4. अलोचक पित्त
है ।
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5. भ्राजक पित्त
यह सारे शरीर में और चमड़े में रहता है, इसका काम कान्तिरक, लेप, मालिश, स्नानादि कार्यों के द्रव्यों को सुखाना है। इनकी विकृति से जिस पित्त में विकार हो उसी के कार्य में बाधा पड़ती है, जैसे- पाचक पित्त बिगड़ने से अविपाक, रंजक बिगड़ने से रूधिर का कम बनना या ठीक न बनना इत्यादि ।
( 6 ) पित्त प्रकोप के कारण
क्रोध, शोक, भय, परिश्रम, उपवास, जले हुए अन्न खाना, मैथुन, चटपटा, खट्टा, लवण रसों का अति सेवन, तीक्ष्ण, उष्ण, दाहकारक पदार्थों का विशेष खाना, धूप में चलना, अति चलना और मद्य आदि मादक पदार्थों का सेवन करना पित्त प्रकोप कारक है।
(7) कफ
चिकना, शीतल, भारी, गाढ़ा श्वेत रंगवाला, मधुर गुणवाला लवण विपाकवाला है, इसमें तमोगुण अधिक रहता है। यह पाँच प्रकार का है, 1- क्लेदन, 2 - अवलम्बन, 3 – रसन, 4- स्नेहल, 5 - श्लेस्मक |
1. क्लेदन कफ यह आमाशय में रहता है। अन्न को गीला करता है और अपनी शक्ति से कफ के दूसरे स्थानों को भी जल कर्म द्वारा सहायता देता है ।
2. अवलम्बन कफ-— इसका स्थान हृदय है। यह रस युक्त वीर्य से हृदय के भाग का अवलम्बन व भिकहड़ी को धारण करता है।
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3. रसन कफ - इसका स्थान कण्ठ है, मधुरादि षट् रसों का ज्ञान कराता है। 4. स्नेहल कफ- इसका स्थान सिर है, यह चिकनाई देकर समस्त इन्द्रियों को तृप्त ___ करता है। 5. श्लेस्मक कफ - यह सब सन्धियों में रहता है, इसका काम सब सन्धियों को जोड़ना
(8) कफ प्रकोप के कारण दिन में ज्यादा सोना, शारीरिक श्रम न करने से,मीठा-खट्टा नमकीन रसों के अधिक खाने से तथा शीतल, चिकने, भारी गाढ़े और गरिष्ट पदार्थों के अति सेवन से और दूध, दही, तिल, खीर, खिचड़ी खाने से कफ कुपित होता है।
(9) वात प्रकोप के लक्षण सन्धि स्थान की शिथिलता, कम्प, शूल, गात्र शून्यता, हाथ-पैर भड़कना, नाड़ियों में खिंचाव, तीक्ष्ण दर्द, तोड़ने के समान दर्द, झटका रोमांस, रूक्षता, रक्त का श्याम वर्ण, शोष, जड़ना ,गात्र में गठोरत, अंगों में वायु का भरा रहना, प्रलाप, भ्रम, चक्कर, मूर्छा, मल संग्रह, मूत्रावरोध, शुक्रपतन, शरीर टेढ़ा हो जाना और मुँह का कषेय रहना तथा मुंह सूखना, पेट पर अफारा रहना, भूख प्यास कम ज्यादा लगना, थोड़ा भी सर्दी-जुकान होने पर सारा बदन जकड़ जाना व दर्द होना। यह सब वात प्रकृति के लक्षण जानना चाहिये।
(10) पित्त प्रकोप के लक्षण दाह, शरीर लाल-पीला हो जाना, शरीर में गर्मी बढ़ना, पसीना, शोष, अतृप्ति, खट्टी डकार, दुर्गन्ध, वमन, पतला दस्त, बैचेनी, बाहर के पदार्थ पीले दिखना, चमड़ी फटना, फोड़े-फुन्सियाँ होकर पकना, रक्तस्राव, पीली आँख, पीले दाँत, मल-मूल पीला, प्रलाप, भ्रम, मूर्छा, निद्रानाश, वीर्य पतला होना, स्वप्न में अग्रि दिखना और शीतल पदार्थों की इच्छा बनी रहना यह लक्षण होते हैं।
(11) कफ प्रकोप के लक्षण __ शरीर चिकना, सफेद शीतल और भारी होना, ठण्डी लगना, बुद्धि मन्दता, शक्ति की कमी होना, मुँह में मीठापन और चिकनापन, स्रोतो रोध, मुँह में लार गिरना, अरूचि, मन्दाग्नि, मल में चिकनापन, सफेद मल-मूत्र, सब वस्तुएँ सफेद दिखना, नाड़ी की मन्दगति-सूजन, खुजली, स्वप्न में जल की प्रतीति, निद्रावृद्धि, तंद्रा,मधुर और नमकीन पदार्थ खाने की इच्छा आलस्य और थकावट आदि लक्षण होते हैं।
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(12) वायु कोप का समय दिन का अन्त और रात का अन्त तथा भोजन पचने के बाद व वर्षा ऋतु, हेमन्त ऋतु व शिशिर ऋतु वायु कोप का समय है, वृद्धावस्था में प्रायः वायु का कोप रहता है।
(13) पित्त कोप का समय गर्मी का समय, शरद ऋतु, मध्याह्न काल, आधी रात और भोजन पचते समय तथा जवानी में पित्त कुपित होता है।
(14) कफ कोप का समय बसन्त में, दिन के पहले भाग और रात के पहले भाग, भोजन करते समय तथा बालकपन में कफ कुपित होता है।
(15).वात प्रकृति का लक्षण जो व्यक्ति थोड़ा सोता है और अधिक जागता है, जिसके बाल छोटे तथा कम होते है, जिसका शरीर दुबला-पतला होता हैं, जो जल्दी-जल्दी चलता है, जो ज्यादा बोलता है। जिसका शरीर रूखा होता है, जिसका चित्त एक जगह नहीं ठहरता स्वप्न में आकाश मार्ग में चलता है। यह सब बातें वात प्रकृति वाले का लक्षण है।
(16) पित्त प्रकृति का लक्षण जिस व्यक्ति के बाल थोड़ी उम्र में सफेद हो जाते हैं, जिसको बहुत पसीना आता है, जो क्रोधी, विद्वान्, बहुत खाने वाला, लाल आँखों वाला तथा स्वप्न में अग्नि तारा सूर्य चन्द्रमा व बिजली आदि चमकीले पदार्थों को देखता हो, ये सब पित्त प्रकृति वाले के लक्षण हैं।
(17) .कफ प्रकृति वाले के लक्षण जो व्यक्ति क्षमावान्, वीर्यवान्, महाबली, मोटा, बन्धे हुए शरीरवाला, समडौल और स्थिरचित्त होता है। स्वप्न में नदी, तालाब, जलाशयों को देखा करता है वह कफ प्रकृति वाला होता है।
(18) द्विदोषज त्रिदोषज प्रकृति का लक्षण यदि 2-2 दोषों के लक्षण दिखते हों तो द्विदोषज और यदि तीनों के लक्षण दृष्टिगत हों तो त्रिदोषज प्रकृति जान लें इसी प्रकार मिश्रित प्रकृति भी समझें, यही सातों प्रकृतियाँ है।
(19) वात शामक उपाय
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संतर्पण चिकित्सा, स्नेहपान, स्वेदन, आदि सौम्यशोधन, स्निग्ध और उष्ण वस्ति, अनुवासन वस्ति, मात्रा वस्ति, सेक, नस्य, मधुर, अम्ल, नमकीन और चटपटे रसयुक्त भोजन, पौष्टिक भोजन, घृत या तेल का मर्दन, हाथ पाँव को दबाना, वस्त्र बान्धना, भय दिखाना, निद्रा,सूर्य का ताप, स्निग्ध उष्ण और नमकीन औषधियों के मृदुविरेचन, दीपन, पाचनादि औषधियों से सिद्ध घृतादि स्नेह या क्वाथादि सिंचन और गर्म वस्त्र का आच्छादन, गुनगुना पानी, गेहूँ, मूंग, घी, नवीन उरद, लहसुन, मुनक्का, मीठा अनार, दूध और सेंधानमक आदि वायु को शान्त करते हैं।
(20).पित्त शामक उपाय - घृत पान, कषेला, मधुर और शीत वीर्य औषधियों का विरेचन, रक्तस्राव,दूध , शीतल, मधुर, कड़वे और कसेले रस युक्त भोजन, शीतल जल में बैठना, सुन्दर गायन सुनना, रत्न या सुगन्धित मनोहर शीतल पुष्पों की माला धारण करना, कपूर-चन्दन
और खस आदि का लेप, शीतल वायु का सेवन, पंखे की वायु, छाया, बागान या जलाशय के किनारे रहना, रात्रि की चाँदनी में बैठना-सोना, विनोद से मधुर भाषा में वार्तालाप करना, द्वार पर या कमरे में जल सिंचन और पित्त शामक औषधियों का सेवन, मुनक्का, केला, आँवला, अनार, परवल, खीरा ककड़ी, करेला, पुराने चावल, गेहूँ,, मिश्री, चीनी, घी, अरहर, जौ, मूंग, चना, धान की खीर, मसूर, कुटकी, निसोर, पित्त-पापड़ा, त्रिफला, आदि पित्त कोप को शान्त करने वाले हैं।
(21) कफ शामक उपाय विधि पूर्वक तीक्ष्ण वमन, चरपरी औषधियों से विरेचन, शिरोविरेचन, चटपटे, कड़वे और कषैले रसयुक्त रूक्ष भोजन, क्षार उष्ण भोजन, अल्पाहार, उपवास, तृषानिग्रह, कवल और गंडूष धारण, जागरण, मार्गगमन, जल में तैरना, सुख का अभाव, चिन्ता, रूक्ष औषधियों से मर्दन, धूमपान, मेदोहर और कफन औषधियों के सेवन, गर्म पानी पीना, गर्म घर में रहना,. त्रिफला का सेवन करना, साँठी, चावल, चना, मूंग, लहसुन, प्याज, नीम, निसोत और कुटकी से कफ प्रकोप शान्त होता है।
(22) रोगी की मृत्यु की पहिचान 1. जिस रोगी को रात में दाह और दिन में ठण्ड लगे और कण्ठ में कफ का
घर्राटा हो तो उसकी मृत्यु जानो। 2. जिस रोगी के नेत्र, देह और मुख का वर्ण बदल गया हो तो समझो की
रोगी मृत्यु के मुँह में हैं।
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3. जिस रोगी के नाक की नोक ठण्डी हो तथा टेढ़ी हो गई हो और शरीर में
शूल चले तो उसकी मृत्यु समीप हैं। 4. जिस रोगी की कांति, बल, लज्जा आदि नष्ट हो जायें व स्वभाव क्रोधी जैसा
हो जावें, वह रोगी ज्यादा से ज्यादा छह मास तक जीवित रहता है। 5.जिस रोगी को पसीना किन्चित भी न आवे और कामदेव से हीन हो जावे तो
वह तीन मास में मरेगा। 6. जिस रोगी को पानी में सूर्य का प्रतिबिम्ब कटा हुआ चारों ही दिशा में दिखने
लग जावें तो वह क्रम से 6-3-2-1 मास में मरेगा। 7. जिस रोगी को सूर्य-चन्द्रमा का धुंए का सा रंग दिखे तो दस दिन में और प्रतिबिम्ब में दक्षिण की ज्वाला दिखे तो तत्काल मृत्यु होवे। 8. जिस पुरूष की नेत्र ज्योति न रहे और नेत्रों में पीड़ा होवे तो वह चार मास में मरे। 9. जिस रोगी के दाँत और अण्डकोश दबाने से कुछ भी पीड़ा न हो तो वो तीन महीने में मरेगा। 10. जिस रोगी के निरन्तर सूर्य स्वर चले और चन्द्र स्वर न चले तो उसकी मृत्यु 15 दिन में होय। 11. जिस रोगी का मल-मूत्र और अधोवायु एक साथ ही निकले वह 10 दिन तक जियेगा। 12. जिस रोगी को अपनी भृकुटि न दिखे उसकी 9 दिन में और कानों से शब्द न सुने तो 7 दिन में तथा तारा न दिखे तो 1 दिन में मृत्यु जानो। 8. यदि किसी रोगी के ललाट पर चन्दनादि का तिलक न सूखे तो तुरन्त मृत्यु जानो।
(23) ज्वर रोग के कारण जैसे जंगल में जानवरों का राजा सिंह होता हैं वैसे शरीर में समस्त रोगों का राजा ज्वर (बुखार) होता है। ज्वर मुख्य रूप से आठ प्रकार का होता है। 1. वात ज्वर, 2. पित्त ज्वर, 3. कफ ज्वर, 4. वात-पित्त जवर, 5. वात-कफ ज्वर, 6. कफ-पित्त ज्वर, 7. सान्निपात ज्वर, 8. आगन्तुक ज्वर। इन आठ प्रकार के ज्वरों से अनेक तरह के ज्वर उत्पत्र होते हैं। साधारणत: समस्त प्रकार के ज्वर अहितकर होते हैं, आहार जैसे प्रकृति के विरूद्ध, असमय तथा अधिक मात्रा में, अहितकारी विकार से उत्पत्र होते हैं। आमाशय में रहने वाली वायु, पित्त और कफ दोष, अनुचित आहार-विहार से कुपित होकर पेट की अग्रि को बाहर निकालते हुए रस आदि धातुओं को दूषित करके बुखार पैदा कर देते हैं।
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ज्वर के सामान्य लक्षण शरीर गर्म होना, पसीना न निकलना, भूख मन्द होना, अंग जकड़ना, मस्तक में पीड़ा होना, थकावट मालूम होना, हाथ पैर टूटना, शरीर मलीन होना, काम में मन न लगना, मुँह का स्वाद बिगड़ जाना, आँखों से पानी आना, जम्हाई आदि आना ये सब लक्षण ज्वर के होते हैं। ज्वर आते ही व्यक्ति के शरीर में ये दस उपद्रव खड़े हो जाते हैं- श्वास, मूर्च्छा, अरूचि, वमन, तृषा, अतिसार, कब्ज, हिचकी, खांसी और शरीर में दाह । ज्वर में गर्म पानी पीना चाहिये, हल्का लंघन करना, वायु रहित स्थान में रहना, हल्का पथ्य करना, ज्वर आने से तीन दिन तक खटाई तथा जुलाब न लेना ।
ज्वर में पथ्य
मूंग, मसूर, कुलथी और सोंठ को उबालकर उसका पानी पीना चाहिये,
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साग में घीया, तोरई, परमल व दूध आदि पथ्य हैं।
ज्वर में अपथ्य
भारी पदार्थ, पत्तों का साग (शाक), बेसन तथा मैदे का पदार्थ आदि का विशेष परहेज रखना चाहिये ।
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ज्वर में सावधानी नवीन ज्वर में पहले 2-3 दिन लंघन करने से आम पचकर जल्दी नष्ट हो जाते हैं, परन्तु ध्यान रहे कि क्षय, वात, काम, क्रोध तथा भय से उत्पत्र होने वाले ज्वर में, प्रलाप तथा जीर्ण ज्वर व गर्भवती स्त्री को लंघन नहीं कराना चाहिये ।
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( 24 ) बात ज्वर
1. सेर भर पानी को उबालकर अष्टमांश रहने पर उस पानी को लेने से वात - ज्वर मिटता है।
2. 2 कालीमिर्च, 10 तुलसी के पत्तों का काढ़ा दोनों समय पीकर गर्म कपड़ा ओढ़कर सोने से थोडी देर में पसीना आकर वात- जवर उतर जाता है ।
3. काढ़ो पीवे सोंठ का, जो कोई मिश्री मिलाय । तीन दिना सेवन करे, वात- ज्वर मिट
जाय ।
4. गिलोय, सोंठ, नागर मोथा और जवासा इन सबाक क्वाथ बनाकर देने से वात-ज्वर नष्ट होता है।
5. गिलोय, सोंठ और पीपलामूल इन सबका काढ़ा पीने से वात - ज्वर मिटता है । 6. चिरायता, कुटकी, नागर मोथा, पित्तपापड़ा और धमासा इन सबका क्वाथ वात-पित्त ज्वर को नष्ट करता है।
7. पीपलामूल, पित्त पापड़ा, अडूसा का पत्ता भाड़ंगी, गिलोय का क्वाथ पीने से बात- ज्वर नष्ट होता है ।
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8. नागर मोथा, दोनों कटेली, गिलोय, सोंठ का क्वाथ पीने से वात-ज्वर नष्ट होता
(25) पित्त ज्वर 1. चावल की खीर के पानी में मिश्री मिलाकर देने से पित्त ज्वर मिटता है। 2. गेहूँ के आटे को पकाकर मिश्री मिलाकर पतला (हरीरा) करके खिलाने से पित्त ज्वर मिटता है। 3. मुनक्का के शरबत में मिश्री मिलाकर पीने से पित्त ज्वर मिटता है। 4. नागरमोथा, पित्तपापड़ा, चिरायता इनका 12.5 ग्राम (1 तोला) का काढ़ा देने से पित्त ज्वर मिटता है। 5. एक हजार बार धोये घृत को शरीर पर मालिश करने से पित्त-ज्वर शान्त होता
6. पित्त पापड़ा का क्वाथ देने से पित्त ज्वर मिटता है। 7. 1 किलो पानी को ओटाकर तीन पाव पानी रहने तक देने से भी पित्त-ज्वर मिटता
है।
8. इद्रायण की जड़ की छाल का चूर्ण 0.1 ग्राम (1 रत्ती) शक्कर मिलाकर खाने से दाह ज्वर मिटता है। 9. बेर के कोमल पत्तों को नीम्बू के रस में पीसकर लेप करने से पित्त-ज्वर मिटता है। 10 सूखे बेर व उसकी जड़ को औटाकर पिलाने से पित्त ज्वर मिटता है। 11. पित्त पापड़ा, लालचन्दन, नेत्रवाला और सोंठ इन सबका क्वाथ देने से पित्त ज्वर मिटता हैं 12. मुनक्का, नागरमोथा, मुलेठी, नीम, कमल, सारिवा का क्वाथ पीने से पित्त ज्वर मिटता है। 13. धनिया, नीलकमल, नागरमोथा, कमल इन सबका क्वाथ देने से पित्त रोग का ज्वर मिटता है। 14. आक की जड़ का चूर्ण 0.25 ग्राम (2.5 रत्ती) फक्की लेने से पसीना होकर के सब
तरह का ज्वर उतर जाता है जिस ज्वर में अत्तयन्त दाह होती है वह भी मिट जाता
15. तुलसी के पत्तों का शर्बत पिलाने से ज्वर सम्बन्धी घबराहट मिटती है।
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16. कुटकी, नागरमोथा, इन्द्रजौ, पाठ कायफल का क्वाय पीने से पित्त ज्वर मिटता
(26) कफ ज्वर 1. कफ ज्वर वाले रोगी को पानी औटाकर आधा रहने पर पिलाना चाहिये अथवा अडूसा का काढ़ा 10 दिन देने से फायदा होगा। 2. नीम की छाल, सोंठ, गिलोय, कटा पोकर मूल, कुटकी, अडूसा, कायफल, पीपली,
सतावरी इन सबको 2.4 ग्राम (3-3माशा) कूटकर देने से कफ ज्वर मिटे। 3. सोंठ, चिरायता, नागरमोथा, गिलोय का क्वाथ लेने से कफ ज्वर मिटता है। 4. करंजवा की मींगी जल में पीसकर नाभि में टपकाने से कफ ज्वर मिटता है। 5. ओटी बहेड़ा लीजिए, ता पानी से खाय। छोटी पीपल पीस के, ज्वर कफ का मिट
जाय। 6. इलायची, अजवाइन, मिर्च, आँवला, हड़, इनका क्वाथ लेने से कफ ज्वर मिट जाता
7. चिरायता, नीम, दोनों कंटेली, सोंठ, इनका क्वाथ लेने से कफ ज्वर मिट जाता है। 8. गिलोय, पीपल, जटामांसी और सोंठ, का क्वाथ पिलाने से कफ ज्वर मिटता है। 9. खूबकला, मूलेठी, कालीमिर्च और मिश्री की उकाली बनाकर लेने से कफ साफ होकर ज्वर भी मिटता है।
(27) वात कफ ज्वर 1. नागरमोथा, पित्तपापड़ा, गिलोय और धमासा इन सबको बराबर लेकर, कूट करके 2.4 ग्राम (3 माशा) मात्रा में क्वाथ बनाकर 10 दिन तक देने से वात कफ ज्वर, दाह
तथा प्यास को मिटाता है। २. कंटाली, सोंठ, गिलोय, पीपल इन सबको बराबर लेकर २.४ ग्राम (३ माशा) का
काढ़ा देने से वात कफ ज्वर मिटता है। ३. कायफल, सोंठ, बच, नागरमोथा, पित्तपापड़ा, धनिया, हरड़, काकड़सिंगी, देवदारू
और भारंगी का काढ़ा देने से वात कफ ज्वर मिटता है। ४. १-२ दफा उबाला हुआ पानी रात्रि में बार-बार पीने से वात कफ ज्वर मिटता हैं व अजीर्ण भी मिटता है।
(28) कफ पित्त ज्वर १. जल को उबालकर आठवाँ हिस्सा रहने पर पिलाना चाहिये, तथा लंघन कराना चाहिये
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जिससे फायदा होता है। २. नीम की छाल, गिलोय, लालचन्दन, पदमाख, धनिया इन सबका काढ़ा १० दिन-तक
देने से कफ पित्त ज्वर तथा दाह प्यास मिटे। ३. नीम की छाल, गिलोय, इन्द्रजौ, पटोल, कुटकी, सोंठ, सफेद चन्दन, नागरमोथा, पीपल इन सबको समान भाग लेकर महीन कूट छानकर ३.२ ग्राम (४ माशा)
अष्टावशेष जल के साथ लेने से ज्वर, श्वास, अरुचि, खांसी मिटती है। ४. दाख, किरमाल की गिरी, धनिया, कुटकी, नागरमोथा, पीपला-मूल, सोंठ, पीपल, इन
सबको लेकर कूट करके ३.२ ग्राम (४ माशा) का काढ़ा दोनों समय ११ दिन लेने
से शूल, मूर्छा, अरुचि, वमन, ज्वर आदि मिटता है। ५. लालचन्दन, पदमाख की छाल, धनिया, नीम की छाल, गिलोय इन सबका काढ़ा पीने से पित्त कफ ज्वर दूर हो जाता है।
(29) वात पित्त ज्वर १. चावल की खीर के पानी में मिश्री मिलाकर १० दिन लेने से वात पित्त ज्वर नष्ट होता है। २. गिलोय, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, चिरायता, सोंठ इन सबका काढ़ा पंचभद्र कहलाता है,
इससे वात पित्त ज्वर मिटता है। ३. पंचमूल, गिलोय, नागरमोथा, चिरायता, सोंठ का काढ़ा देने से वात पित्त ज्वर नष्ट होता है।
(30) सन्निपात ज्वर १. यदि सन्निपात में ज्ञान न रहे तो-बच, महूवो, सेंधा-नमक, मिर्च, पीपल इन सबको
बराबर लेकर महीन खरल करके गर्म पानी से नश्य देवें तो ज्ञान हो जाता है। २. यदि सन्निपात में शीत हो जाय तो सोंठ, पीपल, मिर्च, हरड़ की छाल, लोद,
पोहकरमूल, चिरायता, कुटकी, कूट, कचूर, इन्द्रजौ इन सबको महीन पीसकर शरीर
को मर्दन करें तो पसीना व शीतांग मिटे। ३. लहसुन, पीपल, मिर्च, बच, लुंकाबीज, सेंधानमक, इन सबको बराबर लेकर जौकूट
करके गोमूत्र में घोंटकर नेत्रों में अंजन करने से सर्व प्रकार का सन्निपात मिटता है। ४. इलायची, दालचीनी, पत्रज के साथ २ रत्ती जस्त-भस्म देने से सन्निपात मिटता है।
(31) जीर्ण-ज्वर १. धनिया और पित्तपापड़ा का क्वाथ पीने से पुराना ज्वर मिटता है। २. गिलोय के स्वरस में पीपल का चूर्ण तथा मिश्री की चासनी में चाटने से जीर्ण ज्वर,
खाँसी, दमा, कफ, प्लीहा, अरुचि आदि रोग मिट जाते हैं।
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३. वृद्धावस्था में जीर्ण-ज्वर व खाँसी हो तो आँवला का क्वाथ दोनों समय लेने से मिटता है।
(32) मलेरिया बुखार १. सोंठ, पीपल, मिर्च, तज, लौंग, वायविडिंग, ये सब २-२ ग्राम (२॥२॥) तथा
तुलसी और बेर के पत्ते २५-२५ ग्राम, एक मिट्टी के पात्र में एक सेर पानी चढ़ा दें। उपरोक्त सब वस्तुएँ डालकर जब आधा पाव पानी रह जावे तो छानकर रोगी को दिन
में तीन बार पिलाना चाहिये जिससे मलेरिया तथा भयंकर कफ-ज्वर तत्काल मिटे। २. काली तुलसी के ११ पत्ते व कालीमिर्च ११, बुखार चढ़कर उतरने पर देने से
मलेरिया-ज्वर छोड़ देता है। ३. नीम की कौंपल तथा काली मिर्च को घोट कर पीने से बारी से आने वाला ज्वार मिटता
4. लालचन्दन, खस, धनिया, सोंठ, पीपल और मोथा इन सबके क्वाथ में मिश्री ____ मिलाकर पीने से तीन दिन में आने वाला बुखार नष्ट हो जाता है। 5. १ वर्ष से ज्यादा पुराने घृत में हींग मिलाकर सूंघने से चोथिया ज्वर भागता है।
(33) टाईफाइड (मियादी) ज्वर १. लौंग डालकर ताजा उबाला हुआ पानी पिलाना चाहिए। २. सफेद चन्दन, लाल चन्दन, नेत्रवाला, पित्तपापड़ा, नागरमोथ, सोंठ, चिरायता और खस
का क्वाथ पिलाने से दाह, ग्लानि, प्रलाप, विकलता, तिमिर और पित्त आदि सब उपद्रवों को निकाले (मोतीझरा, पानीझरा, टाईफाइड, मियादि) को शान्त करता है। ३. लाल चन्दन, नेत्रवाला, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, सोंठ और धनिया का क्वाथ देने से
निकाले में फायदा होता है। ४. जावित्रि, जायफल, पीपल, कालीमिर्च सोंठ इनका घासा देने से खांसी तप करके दिन
में २ दफा देने से निकाला आदि रोगों में फायदा होता है। ५. तुलसी का रस, गोबर का रस, जीरा, सोनामुखी की भस्म घिसकर देने से निकाला में फायदा होता है।
(34) निमोनिया-ज्वर १. सरसों के तेल में थोड़ा अफीम डालकर मालिश करने से निमोनिया वाले को फायदा
होता है। २. गूलर के दूध में मिश्री मिलाकर दिन में २-३ बार चटाने से कफ निकल जाता है। ३. बसन्तमालती पान के रस में देने से इस रोग में हृदय की दुर्बलता मिटती है।
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४. फिटकरी, सोनमुखी और शक्कर औटाकर पीने से निमोनिया में फायदा होता है। ५. सौंफ, मुनक्का और लिसोड़ा का क्वाथ बनाकर देने से कफ पतला होकर निकलता है। ६. बारहसिंगा के सींग को गौमूत्र में घिसकर लेप करने से पसली का दर्द मिटता है। ७. पसली के दर्दपर सेकः- गुड़ के सिरके में बालू रेत को भिगाकर कपड़े में बाँध पोटली
बनाकर गर्म करके सेक करने से फायदा होता है। ८. रोहिष, तृण, धमासा, पित्तपापड़ा, प्रियंगु, कुटकी का क्वाथ पीने से निमोनिया ज्वर
मिटता है। ९. पित्तपापड़ा, कायफल, कूट, खस, रक्तचन्दन, नेत्रवाला, सोंठ, नागरमोथा, काकड़ासिंगी और पीपल का क्वाथ देने से निमोनिया ज्वर मिटता है।
____ 1. यदि कफ में रक्त आता हो तो 1. श्रृंगभस्म व अभ्रक .२-.२ ग्राम (२-२ रत्ती) की मात्रा अडूसा के स्वरस में दें। 2. अफीम और कपूर में मिले हुए तारपीन तेल की मालिश करने से ज्वर में कफ से रक्त ___आने में फायदा होता है। 3. ज्वर में मलावरोध हो तो- कुटकी, हरड़, अमलतास, निसोत और आँवला का क्वाथ पिलावें।
2. भूत ज्वर १. तीव्र ज्वर हो तो- सोंठ, कायफल का चूर्ण, समस्त शरीर में मर्दन किया जाय तो बुखार पसीना आकर उतर जाता है।
___3. ज्वर में प्यास ज्यादा होने पर - 1. धनिया, नागरमोथा, पित्तपापड़ा इनको जौ कूट करके ६.४ ग्राम (८ मासा) का काढ़ा __ ३ दिन लेने से प्यास, दाह दूर होय। 2. ज्वर में ज्यादा प्यास हो तो- बड़ी इलायची को भूनकर थोड़े-थोड़े दाने खिलावें।
4. ज्वर में खांस होय1. पीपल, पीपलामूल, सोंठ, भारंगी, खेरसार, कटाली, अडूसा, कुलिंजन, बहेड़ा इन
सबको बराबर लेकर जौ कूट करके ४ ग्राम (५ माशा) का काढ़ा ७ दिन तक लेने से ज्वर की खाँस मिटे।
___5. ज्वर में वमन होने पर1. गिलोय ४ ग्राम (५ माशा) का काढ़ा बनाकर मिश्री मिलाकर देने से वमन दूर होय
अथवा चावलों की खीर और पीपल को मिश्री की चाशनी में चटाने से वमन मिटे।
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6. ज्वर में श्वास होने पर १. सोठ, मिर्च, पीपल, नागरमोथा, काकड़ासिंगी, भारंगी, पोहकरमूल इन सबको बराबर
लेकर जौ कूट करके ४ ग्राम (५ माशा) का काढ़ा ७ दिन लेने से ज्वर का श्वास मिटे।
____7. ज्वर में मूर्छा होने पर १. किरमाला की गिरी, दाख, पित्तपापड़ा, हरड़ की छाल इन सबको बराबर लेकर काढ़ा ६.४ (८ माशा) का देने से ज्वर की मूर्छा मिटे।
8. ज्वर में कब्ज तथा अफारा १. दाख तथा दाड़म (अनार) के बीजों को उबाल कर कुल्ला करने से मुख शोष तथा जीभ का विरस पन मिटे।
10. गर्मी के ज्वर में वमन होना १. ढाक के कोमल पत्तों को नींबू के रस में पीसकर शरीर पर लेप करने से दाह ज्वर मिटता
11. ज्वरातिसार १. नीम की छाल का क्वाथ पीने से पुराना ज्वरातिसार मिट जाता है। २. ढाक के रस का सेवन करने से पुराना ज्वरातिसार मिटता है। ३. बबूल के गोंद में कुनैन मिलाकर देने से ज्वरातिसार मिटता है।
12. ज्वर की निर्बलता १. काली मिर्च का चूर्ण मिश्री की चासनी में सेवन करने से ज्वर के पीछे की निर्बलता, मूर्छा, भ्रम और आमाशय की पीड़ा,मंदाग्नि और अफारा मिटता है।
13. लू लगकर ज्वर होना १. धूप में पानी रख कर गर्म होने पर स्नान करने से लू उतर जाती है। २. इमली का पानी शक्कर या गुड़ मिलाकर लेने से लू उतर जाती है।
____ 14. मौसम का ज्वर १. अडूसे के जड़ के चूर्ण की फक्की देने से मौसम का बुखार उतरता है।
15. गर्दन तोड़ व कमर तोड़ बुखार २. गर्दन तोड़ व कमर तोड़ बुखार में काले वमन रोकने के लिए चूने के पानी में दूध मिलाकर देना चाहिए।
16, साधारण ज्वर
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१. तुलसी के पत्तों का क्वाथ पीने से पसीना आकर ज्वर उतर जाता है ।
२. अनार के शर्बत से ज्वर के रोगी की प्यास, बेचैनी, वमन, दस्त मिट जाते हैं। ३. अमलतास को दूध में या मुनक्का के रस में पीने से ज्वर उतरता है। ( 35 ) जुकाम रोग
१.
गर्म दूध में पिण्ड खजूर नमक डालकर पीने से जुकाम मिटता है ।
२. सोंठ को पानी में उबालकर शक्कर मिलाकर पीने से जुकाम मिटता है ।
३. राई के तेल को पैरों पर व पैरों के तलवों पर व नाक पर लगाने से जुकाम मिटता है ।
४. कायफल को पीसकर सूँघने से जुकाम मिटता है ।
५. सोंठ में औटाये हुए पानी को पीने से जुकाम मिटता है ।
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६. ७ काली मिर्च साबुत कुछ दिन थोड़े पानी के साथ निगलने से जुकाम मिटता है । ( 36 ) सिर- रोग
१. नौसादर और हल्दी मिलाकर सूँघने से सिर पीड़ा मिटती है ।
२. अकरकरा को पीस कर ललाट पर लेप करने से मस्तक पीड़ा मिटती है ।
३. मेंहदी को तेल में पीसकर लेप करने से मस्तक पीड़ा मिटती है।
४. लालचंदन का ललाट पर लेप करने से अथवा जायफल का लेप करने से मस्तक की तीव्र वेदना मिटती है।
५. दूध, शक्कर और पानी मिलाकर मस्तक पर छींटे देने से सिर दर्द मिटता है।
६. १ बादाम की गिरी को सरसों के तेल में घिसकर मलने से सिर दर्द मिट जाता है।
७. कान के पीछे की नाड़ियाँ व गर्दन के पीछे की नाड़ियाँ और सिर के पिछले भाग पर तेल की मालिश करने से सिर दर्द मिट जाता है।
८. नींबू का रस गुनगुनाकर कान में टपकाने से सर्दी का सिर दर्द मिट जाता है। ९. आँवला या हरड़ का मुरब्बा खाने से सर्दी का सिर दर्द मिट जाता है। असली चन्दन के तेल को लगाने से गर्मी का सिर दर्द मिटता है । ( 37 ) आधासिर दर्द
१०.
१. गाय के घृत की नास देने से या सूँघने से आधाशीशी मिटती है।
२. हिंगोड़ा का ललाट पर लेप करने से आधाशीशी की पीड़ा मिटती है ।
३. नारियल के पानी को नाक में टपकाने से आधाशीशी की पीड़ा मिटती है ।
४. कच्चे नारियल के पानी में दूध और मिश्री मिलाकर पीने से आधाशीशी मिटती है ।
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1. वायु से सिर दर्द १. गुड़ और सोंठ का नस्य लेने से सिर दर्द में फायदा होता है।
____ 2. पित्त से सिर दर्द १. इमली को भिगोकर मल छानकर शक्कर मिलाकर पीने से गर्मी की सिर पीड़ा मिटती
है।
२. बकरी के मक्खन की मालिश करने से गर्मी की सिर पीड़ा मिटती है। ३. सागवान की लकड़ी को पानी में घिसकर सिर पर लेप करने से गर्मी की सिर पीड़ा
मिटती है। ४. धनिया और कालीमिर्च भिगोकर घोट छानकर मिश्री मिलाकर पीने से फायदा होता है।
3. कफ की मस्तक पीड़ा १. तुलसी व अडूसा के रस की नस्य देने से मस्तक पीड़ा मिटती है।
4. मस्तक की स्नायु सम्बन्धी पीड़ा १. धनिया का लेप करने से आराम मिलता है।
5. जुकाम से सिर दर्द १. पीपल के चूर्ण की नास लेने से सिर दर्द मिटता है। 2. सिरदर्द, जुकाम- लौंग, तेल या पानी में घिसकर कनपटी व सिर पर लेप करें, सिरदर्द समाप्त होगा। मिश्री में चन्द बूंद लौंग तेल मिलाकर लेवें तो जुकाम समाप्त होगा।
6. मस्तक पीड़ा, भंवल व चक्कर आना १. चम्पा के फूलों को तिल के तेल में पीसकर लेप करने से भंवल मिटती है। २. हल्दी को पीसकर ललाट पर लेप करने से भंवल, चक्कर और सिर दर्द मिटता है। ३. त्रिफला को घृत और मिश्री में खाने से सिर के समस्त रोग मिटते हैं।
___7. मस्तक वेग १. गुलाब जल पिलाने से मस्तक की भड़कन मिटती है।
____8. मस्तक में रुधिर का जमाव १. नागरबेल पान का रस सूंघने से मस्तक में रुधिर का जमाव नहीं रहता है।
9. मस्तक का दर्द दूर के लिए १. बादाम गिरी नग ७, छुहारा नग १, इलायची नग ४, मिश्री ६२.५ ग्राम की चटनी
सेवन करने से सब प्रकार का शिर-शूल मिटता है।
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सागर
( 38 ) स्मरण-शक्ति १. घी और दूध के साथ .८ ग्राम (१ माशा) बच का चूर्ण लेने से स्मरण शक्ति तीव्र हो
जाती है। २. ब्राह्मी का बनाया हुआ घृत खाने से स्मरण शक्ति तीव्र हो जाती है। ३. गिलोय-सत्व, अपामार्ग की जड़, बायबिडिंग, शंखावली का पंचांग, कूट, वच,
शतावरी और हरड़ इन सब का चूर्ण बनाकर दोनों समय २.४ - २.४ ग्राम (३-३
माशा) दूध के साथ लेने से स्मरण शक्ति तीव्र हो जाती है। ४. मालकांगनी का तेल खाने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। ५. हल्दी, बच, कूट, पीपल, सोंठ, जीरा, अजमोद, मुलेठी, महुवा, सेंधा नमक इन
सबको बराबर लेकर महीन पीसकर ४.८-६.४ ग्राम (६-८ माशा) मक्खन के साथ २१ दिन तक खाने से श्रुतधर हो जाय, स्मरण शक्ति तीव्र हो जाय।
(39) अति बद्धि बढे 1. ताम्र कांडी (लाल चंदन) तथा ब्राह्मी के चूर्ण को घी के साथ चाटकर या केवल
ब्रह्मी को ही खाने से बालक की बुद्धि बृहस्पति सी बढ़ जाती है। 2. सफेद वच, लालचन्दन, ब्रह्मी, कुट, सफेद मूसली और मालकांगनी के बीज
को समान मात्रा में मिलाकर जो दूध के साथ एक-दो ग्राम मात्रा में सेवन
करता है उस की बुद्धि बृहस्पति के समान हो जाती है। 3. बुद्धिवर्द्धक दवाएं- दिन के समय दूध, तेल या घी के साथ चूर्ण की हुई
षड्गधा (सफेद वच) को सेवन करने से सम्पूर्ण ग्रंथों का स्मरण कर सकता
है और कभी नही भूल सकता। 4. जो बालक आंवले के फल और सुवर्ण (धतूरा) अथवा सुवर्ण भस्म के चूर्ण
को घी के साथ मिलाकर चाटता है उसकी बुद्धि बृहस्पति के समान बढ़
जाती है। 5. दूध में कल्क की हुई मूलहठी या भांखपुश्पी पीने से बालकों की बुद्धि खूब
बढ़ती है और वाणी भाद्ध होती है। 6. ब्राह्मी, वच, कूट, सोंठी, मुन्डी, जीरा, इन ६ चीजों को बराबर लेवें चूर्ण कर रखें।
रोज सुबह २.४ ग्राम चूर्ण ठंडा पानी के साथ लेवें। ५० दिन लेने से (खाने से)
स्मरण शक्ति बढ़ती है। 6. अभ्रक भस्म को वायविडिंग तथा त्रिकुटा चूर्ण के साथ देने से मस्तिष्क शक्ति
बढ़ती है।
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7. तेल के साथ वच का चूर्ण एक महीना तक लगातार खाने से बुद्धि तथा स्मरण शक्ति बढ़ती है।
10. सेब का मुरब्बा खाने से मगज पुष्ट होता है।
स्वास्थ्य अधिकार
१
१ वर्ष पुराने आम के
२
प्याज का रस सिर पर लगाने से सिर गंज मिटती है।
३
कनेर की छाल का लेप करने से गंज मिटती है।
४. सीताफल के बीजों का लेप लगाने से गंज मिटती है ।
५. तम्बाकू के बीज सरसों के तेल में पीसकर लगाने से गंज मिटती है।
६. अनार के पत्ते पानी में पीसकर दिन में २ बार लगाने से गंज मिटती है ।
७. कुसुम के बीजों का तेल लगाने से गंज मिटती है।
८. हाथी दाँत की भस्म और रसोत को बकरी के दूध में मिलाकर कई दिन लेप करने से गंज मिटती है। तथा बाल झड़ने रुक जाते हैं।
9. तिली के फूल, घी और शहद ( चासनी) मिलाकर लगाने से केश घने होते हैं।
१०. हालम २५ ग्राम को जलावें जब जलकर कोयला हो जाय तब पीसकर कड़वे तेल में मिला ले, इसको खूब घोटें तथा धूप में रखें इसको लगाने से सिर गंज रोग निश्चित मिट जाता है।
14.
( 40 ) गंजापन दूर करने हेतु
अचार का तेल लगाने से गंज मिटती है ।
11. गंजापन दूर करना - काली गाय का मूत्र जपापुष्प को मिलाकर लेप करने से केशों की जड़े सुदृढ होती हैं तथा गंजापन दूर होता है ।
12. गूंजा फल को शहद में पीसकर सिर पर लगाने से गंजापन दूर होता है। 13. सोते समय सूरक नमक पीसा हुआ सिर में मलने से झड़ते बाल बंद हो जाते
हैं ।
15.
17.
गंजापन दूर करने हेतु - उड़द को पानी में उबाल कर पीसकर सिर पर लेप करने से गंजापन दूर होता है।
हाथी की लीद को जलाकर उसकी राख को उसी के मूत्र में मिलाकर बालों में लगाने से गंजापन दूर होता है ।
16. घोड़े की लीद को छाया में सुखा कर जला लें, फिर उस राख को उसी के मूत्र में घोलकर सिर में लगाने से गंजापन दूर होता है ।
अनार के पत्तों को पीसकर दिन में दो बार लेप करें।
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मुनि प्रार्थना सागर
18. रूसी (डेन्ड्रफ ) - एक नींबू के रस में तीन चम्मच चीनी दो चम्मच पानी मिलाकर, घोलकर बालों की जड़ों में लगाकर एक घंटे बाद अच्छे से सिर धोने से रूसी दूर हो जाती है, बाल गिरना बन्द हो जाता है। सिर से बाल गायब हो रहे हों तो उस स्थान पर नींबू रगड़ने से बाल गायब होना बन्द हो जायेंगे तथा फिर से बाल आने लगेंगे।
1.
स्वास्थ्य अधिकार
2.
( 41 ) बाल बढ़ जाते
मुलेठी, नील कमल की जड़, मुनक्का इनको तेल में, घृत में, दूध में महीन पीसकर लेप करने से बाल बढ़ जाते हैं।
शतावर की जड़ को दूध के साथ धोकर उस दूध से बालों को धोने पर वे अतिशीघ्र गज-गज भर लम्बे बाल हो जाते हैं ।
( 42 ) शीघ्र केश पतन
1. मैनसिल को सरसों के तेल में मिलाकर लेप करने से भी केश पतन होता है । 2. खारा पानी लेकर उसमें हरताल व शंखभस्म के चूर्ण को पीसकर ललाट या केशयुक्त अंग पर लगाने से शीघ्र केश पतन होता है ।
3. ढाक, इमली, तिल, उड़द, भांख, अपामार्ग ( केटरी), पीपल, मैनसिल व हरताल के चूरे को चूने में मिलाकर लेप करने से क्षण मात्र में बाल गिर जाते हैं। और फिर कभी नहीं उगते ।
(43) बाल दूर करना
१. शंख भस्म, हरताल और मेनसिल को जल में पीसकर लेप करने से बाल दूर होते है ।
2. बाल साफ करने की औषधि - ढाक की राख और हरताल केला के रस में खूब घोंटे फिर जिस जगह लेप करें उस जगह रोंये न रहेगे ।
3. पोस्ता की भस्म दस मासे और जवाखार 5 मासे तथा गोदन्ती, हरताल 5 मासे इन को एकत्रित करके महीन पीसकर केला के रस में मिलाकर लेप करें, सूख जाने के बाद बाल उखाड़ लें।
4. हरताल 6 टंच, जवाखार 1 टंच, पोस्ता की राख 1 टंच और चूना 1 टंच इन सब को पानी में पीसकर जहां लगावे वहाँ बाल नही रहें।
5. चूना और हरताल सिरका में पीस कर जहां लगावे वहां बाल न होंगे।
6.
ढाक (पलास) की भस्म और हरताल की भस्म दोनों को जल में पीसकर सदा लेप करें तो स्त्री के भग में कभी रोयें न जमें।
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मुनि प्रार्थना सागर
हरताल, शंख का चूर्ण, मजीठा, टेसू की भस्म इन सबको बराबर लेकर जल के साथ लेपन करने से रोयें नहीं जमते ।
7.
8.
स्वास्थ्य अधिकार
9.
सुपारी वृक्ष के पत्तों के रस में गन्धक पीसकर भग में लेप कर धूप में खड़े होने से रोयें तुरन्त उखड़ जाते हैं।
10. बाल हटाना - घोड़े का पसीना शरीर में जहां लगे या रगड़ खाये वहां बाल नहीं होते । 11. बाल दूर करने का उपाय - गुंजा (चोटली) मेनसिल शंख के चूर्ण के कल्क का अंगों में लेप करने से सब स्थानों के बाल साफ हो जाते हैं ।
हरताल और शंख का चूर्ण पीसकर खारे जल के साथ लेपकर धूप में खड़े होने से रोयें उड़ जाते हैं। कहा भी है- ताजक शंख कूर्णन्तु पिश्वा च क्षार तोकयः तेन पित्वा कचाधर्म स्थिगछन्ति तत्क्षाणम्।
12. लहसून हरताल अपामार्ग (चिरचिटे) के फल और नमक के लेप से बाल दूर हो जाते हैं।
३.
(44) बाल काले बनाना
१. भांगरे के पत्तों को काले तिल के साथ खाने से बाल काले होते हैं ।
२. मेनफल, त्रिफला, गिलोय, कमल, क्षीर वृक्षों की छाल, महा नीलकमल, रक्त कमल की जड़ इन सबको सिद्ध तेल में लौह चूर्ण को मिलाकर खरल करें व खूब घोटें फिर उसे बालों पर लगाने से बाल अत्यंत काले हो जाते हैं ।
सफेद बालों पर पहले त्रिफला के कल्प का लेप करें, फिर त्रिफला के काढ़े में धोवें पश्चात् लौह चूर्ण तथा चंपा, वायविडिंग, कूट इनके रस व चावलों के धोवन से अच्छी तरह पीसकर बालों पर लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।
४. आम की गुठली की मिंजी का चूर्ण व लोहे के चूर्ण को बराबर लेकर फिर इन दोनों के बराबर त्रिफला का चूर्ण नीलांजन ( तूतिया सुरमा) का चूर्ण लेवें। इन चारों चूर्णों को एकत्र करके इसमें छः गुणा त्रिफला का काढ़ा और दुगुना तिल का तेल मिलाकर अच्छी तरह घोटकर लोहे के पात्र में भर दें । उसे धान्य की राशि में चार माह तक गाड़ दें। पश्चात् उसे निकाल कर पंच परमेष्ठि का जाप करके बालों पर लेप करें एवं बाद में त्रिफला के काढ़े से धो डालें जिससे चन्द्रमा के समान सफेद बाल भी भ्रमर के समान काले हो जायेंगे ।
भांगरा, लौह चूर्ण तथा त्रिफला इनको सम भाग में लेकर चूर्ण करें और इससे तिगुने त्रिफला के काढ़े में घोलकर घड़े में भरकर धान्य राशि में रखें। इस प्रकार साधिक औषधि का प्रात:काल नस्य लें, पीवें तथा बालों पर मर्दन करें तो सफेद बाल तत्काल
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काले हो जायें।
(45) बालों को काला करना 1. बाल काले करना- एक नींबू का रस, दो चम्मच पानी, चार चम्मच पिसा हुआ
आँवला मिला लें। इसे एक घंटा भीगने दें फिर सिर पर लेप करें। एक घंटे बाद सिर
धोंये, साबुन आदि का प्रयोग हर चौथे दिन करें कुछ माह में बाल काले हो जायेंगे। 2. बालों को काला:- बालों को काला करने एवं रखने हेतु एक प्राचीन प्राकृतिक
प्रयोग है उस प्रयोग में लगभग ५०० मिली लीटर खोपरे के तेल में ५०० ग्राम बेर की पत्तियों को पीसकर उबाल लें। जब पत्तियों का सम्पूर्ण जल सूख जावे तब तेल को छान लें। इस तेल सूरब को नित्य बालों पर लगाने से बाल काले एवं चमकीले बने रहते है। सफेद दागों पर भी यही तेल लाभकारी है।
(46) बालों की सफेदी नष्ट 1. बालों की सफेदी नष्ट - मयूर शिखा (मोरपंखी बूटी) का कल्क मधुकृत अंबु
(अनार दाने का रस) में सिद्ध किया हुआ तेल को सूंघने से और लगाने से
बालों की सफेदी सात दिनों में नष्ट होती है। 2. करंज की गुठली के चूर्ण को काली गाय के दूध की छाछ (मठे) को सूरज
की धूप में तपाकर सूंघने और लगाने से बालों की सफेदी नष्ट हो जाती
है। 3. त्रिफला, आम की गुठली, कमल की पराग, अनार, खारी नमक को पीसकर
लेप करने से पके हुए बाल काले हो जाते है। 4. बालों का कायाकल्प- सीताफल के ४ पत्तों को २०० ग्राम जल में इतना उबालें
की पानी एक चौथाई रह जावें। इस जल को छानकर नित्य कुछ दिनों तक पीने से बाल जड़ से काले निकलने लगते हैं, गंजत्व दूर होता है।
(47) पित्त रोग १. रात्रि में पानी ज्यादा पीने से भी गर्मी शांत होती है, इससे मुँह के छाले भी मिट जाते
(48) तृषा रोग १. धनिया को रात्रि में भिगोकर सुबह मिश्री में मिलाकर घोटकर पीने से सब गर्मी शान्त
हो जाती है। २. लौंग का काढ़ा पीने से कफ की प्यास मिटती है। ३. खट्टे फलों को पीसकर जिह्वा पर लेप करने से तृषा मिटती है।
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४. गेहूँ के आटे का लेप करने से दाह रोग मिटता है। ५. तुलसी के रस का मर्दन करने से दाह रोग शमन होता है। ६. पेट या शरीर की गर्मी शान्त करने के लिए अंजीर को शक्कर के साथ खाना चाहिए। ७. पुनर्नवा को शक्कर के साथ खाने से पित्त गल जाता है। ८. आँवला के पानी में कपड़ा भिंगोकर ओढ़ने से दाह रोग मिट जाता है।
(49) खाँसी रोग १. काकड़ासिंगी को औटाकर पिलाने से खाँसी मिटती है। २. १२.५ ग्राम गुड़ और १२.५ ग्राम सरसों का तेल मिलाकर चाटने से सूखी खाँसी
मिटती है। ३. सोंठ, पीपल, कालीमिर्च का चूर्ण लेने से खाँसी मिटती है।
(50) सूखी खाँसी १. अडूसा, मुनक्का व मिश्री मिलाकर पीने से सूखी खाँसी मिटती है। २. तुलसी के पत्तों से सूखी खाँसी मिटती है। ३. शतावरी, अडूसा का पत्ता तथा मिश्री औटाकर पीने से सूखी खाँसी मिटती है। ४. तिल और मिश्री औटाकर पीने से सूखी खाँसी मिटती है। ५. केर की लकड़ी की भस्म .१ ग्राम (१ रत्ती) खाने से सूखी खाँसी मिटती है। ६. अरीठा की छाल खाने से छाती में जमा हुआ कफ पतला होकर निकल जाता है। ७. छोटी इलायची और पीपलामूल के चूर्ण को घृत के साथ चाटने से कफ निकल जाता है।
(51) श्वास-खाँसी१. काली मिर्च के चूर्ण को मिश्री की चासनी में लेने से श्वास- खाँसी मिटती है। २. पीपल १भाग और बहेड़ा का २ भाग चूर्ण को मिश्री की चासनी में लेने से निःसन्देह
सब तरह की खाँसी मिटती है। ३. गुड़ १०० ग्राम, जवाखार ४.८ ग्राम (६ माशा) काली मिर्च १२.५ग्राम, पीपल
२२.५ ग्राम और अनार का छिलका २५ ग्राम, सोंठ १२.५ ग्राम इन सबका चूर्ण बनाकर फिर उसे गुड़ में मिलाकर छोटे बेर प्रमाण गोलियाँ बनाकर चूसते रहने से सब
प्रकार की खाँसी मिटती है। ४. सत्यानासी की जड़ की छाल का चूर्ण सेवन करने से सूखी या तर खाँसी मिटती है,
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छाती का दर्द भी मिटता है। ५. अडूसा के पत्ते और जड़ को सोंठ के साथ औटाकर पीने से खाँसी मिटती है। ६. काकड़ासिंगी, पीपलामूल, सांभरानमक इनको बराबर कूट छानकर गोलियाँ बनाकर
चूसने से सर्दी की खाँसी मिट जाती है। ७. बहेड़ा को आग पर भूनकर गुठली निकाल कर चूसने से खाँसी मिटती है। ८. एक भाग तिल के तेल में, बीस भाग भांगरे का रस और हरड़ का कल्क डालकर __ सिद्ध किया हुआ तेल सेवन करने से श्वास तथा खाँसी को तत्काल दूर करता है। ९. पित्तज खाँसी में- पीपल, घतृ व गुड़ इन को भैंस के दूध के साथ सेवन करने से
तत्काल फायदा होता है. १०. कफज खाँस में- खस, मोथा, सोंठ इनके चूर्ण को गुड़ के साथ खाने से कफ से
आने वाली खाँसी मिट जाती है। ११. दालचीनी, सोंठ, मिर्च, पीपल, हरड़, बहेड़ा, आँवला , भारंगी व नृत्य कांडक का
फल इन सबका चूर्ण करके घृत और शक्कर के साथ चाटने से अति पुरानी श्वास
खाँसी भी मिटती है। १२. पुरानी खाँसी और कफ के लिए :- सोंठ, धाय के फूल और पोस्ता का डोडा २.४
२.४ ग्राम (३-३ माशा) लेकर २५० ग्राम पानी में पकावें जब आधा पानी रह जावे
तो छानकर २५ ग्राम मिश्री डालकर पीवें। १३. पान में अजवाइन रखकर चबा-चबाकर पीक निगलने से सूखी खाँसी मिटती है। १४. तर खाँसी को मिटाने के लिए:- ४.८ ग्राम (६ माशा) तुलसी के पत्तों के रस में ४
दाने बड़ी इलायची के पीसकर मिश्री मिलाकर चाटने से तत्काल ही सारा कफ
निकल कर खाँसी मिटती है। १५. अडूसा का अवलेह चाटने से पुरानी खाँसी मिट जाती है।
(52) दमा (श्वास) रोग १. आम की गुठली की गिरी खाने से भी श्वास रोग मिटता है। २. मोर पंख की भस्म 0.६ ग्राम (६ रत्ती) मिश्री की चासनी के साथ चाटने से श्वास ___का रोग मिटता है। ३. भुने हुए चने खाकर ऊपर से दूध पीकर सो जाने से श्वास की नली का कफ साफ
होता है। ४. थूहर के दूध में गुड़ मिलाकर खाने से दमा और खांसी मिटती है।
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५. कालीमिर्च और मिश्री का चूर्ण १.६- २.४ ग्राम (२-३ माशा) मिश्री की चासनी के
साथ चाटने से खाँसी और दमा निःसन्देह मिटता है। ६. भुनी हुई फिटकड़ी में बराबर मिश्री मिलाकर ४.८ ग्राम(६माशा) तक फक्की लेने से
खाँसी और दमा रोग मिटता है. ७. धतूरे के बीज १ से लेकर ५ तक १ माह तक खायें तो श्वास रोग मिट जाता है। ८. त्रिकूट के चूर्ण में गुड़ और घृत मिलाकर सेवन करने से श्वास रोग मिटता है। ९. सरसों के तेल में सेंधानमक मिलाकर छाती पर मसलने से श्वास रोग दब जाता है
और कफ भी गाँठे बनकर निकल जाता है। १०. त्रिफला के क्वाथ में घृत डालकर सेवन करने से श्वास रोग मिटता है। ११. पुराना गुड़ २५-५० ग्राम और सरसों का तेल २५ ग्राम मिलाकर सुबह २१ दिन तक
चाटने से दमा रोग मिटता है। 12. दमा- मयूर पंख को जलाकर उसकी भस्म तैयार करें तथा नित्य १० दिन तक एक रत्ती
मात्रा पान में रखकर सेवन करने से दमा ठीक होता है। 13. बड़ का पत्ता छाह में सुखाकर पान के साथ खाने से दमा ठीक हो जाता है। 14. एक चम्मच तेजपत्र का चूर्ण पानी के साथ लेने से दमा में लाभ होता है। 15. दमा या गलना- जौ की राख में मिश्री मिलाकर गर्म पानी से लेने से दमा व जौ की
राख तिल के तेल में मिलाकर लगाने से गलना दूर होगा। 16. चिरचिरा की जड़ को 10-12 टुकडे करके विशाख युक्त बृहस्पतिवार को माला
बनाकर गले में डालने से कण्डमाला (क्षय) रोग ठीक होता है। 17. गुरू पुष्य योग में सहदेवी की जड़ को ताबीज बनाकर गले में डालने से कण्डमाला
(क्षय) रोग दूर हो जाता है। 18. विशाखा युक्त बृहस्पतिवार को हल्दी की गाँठ का पीले धागे में डालने से कण्ठमाला
(क्षय) रोग से आराम होता है। 19. दमा का रोग हो तो उपाय – मार्बल पत्थर के चकले पर रोटी बनाकर खावें। 20. खांसी, नजला, अस्थमा से पीड़ित व्यक्ति को चन्द्रमा का उपाय करना चाहिए। उपाय - शरद् पूर्णिमा के दिन चावल की खीर बनाकर रात को चन्द्रमा की चाँदनी
में रखें । निम्नलिखित मन्त्र की एक माला जपकर खीर खा ले। मन्त्र : ॐ श्रां श्रीं श्रौं चन्द्रमसे नमः । 21, काली हल्दी का एक चम्मच घिसा हुआ पाऊडर पानी के साथ लेने से एक सप्ताह
के भीतर पुराने से पुराना दमा ठीक हो जाता है।
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23. वासा की भस्म पानी में डालकर उस पानी को साफ करके पीने से श्वांस रोग ठीक होता है। हल्दी की भस्म भी श्वास और कफ रोगों का निवारण करती है ।
24. आक की जड़ की भस्म श्वांस और वात रोगों को हरती है।
(53) क्षय (तपेदिक) रोग
१. दूध में चूने का पानी मिलाकर पीने से क्षय रोग शमन हो जाता है।
२. चावल में घृत डालकर प्रतिदिन खाने से मूत्र भी लगे तथा राज रोग (क्षय) मिटे । ३. अडूसा के पत्तों का क्वाथ नित्य सेवन करने से क्षयरोग मिट जाता है ।
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४. अडूसा के फूल व जड़ से पकाये हुए घृत को पीने से क्षय रोग मिटता है। इसे वासा घृत कहते हैं।
५. तिल, गुड़, उड़द, शाली इनके आटे से बनाया हुआ पुआ खाने से क्षय रोग मिटता है । ( 54 ) बालकों के ज्वर तथा अन्य रोग
१. बच्चे को लू लगने पर उसे प्याज की माला गले मे पहनानी चाहिये ।
२. बालक के दृष्टि दोष हो जाय तो अग्नि में हल्दी का चूर्ण व तेल मिलाकर धूप देना चाहिये, जिससे दृष्टि दोष मिटे |
३. बच्चों के लार गिरती हो तो - मस्तंगी, बड़ी इलायची का चूर्ण ० . २ ग्राम ( २ रत्ती ) प्रमाण चासनी में चटावें ।
४. बच्चों की काँच निकलने पर कड़वा तेल लगाकर ऊपर लेसवें का चूर्ण लगा दें। अथवा आम या जामुन की छाल को पानी में औटा कर शौच कराना चाहिये ।
५.
7.
गंज और सिर पर फुन्सियाँ होने परः - पक्की ईंट के टुकड़े को पीसकर सरसों के तेल में मिलाकर लगावें ।
६.
बच्चे के खाँसी और ज्वर होने परः- बादाम की गिरी को पानी में घिसकर चटाना चाहिए ।
बालक की नाभि पक जाए तो दिए का तेल लगावें या हल्दी लौंग और नीम के फूल बारीक पीसकर लेपे करें ।
8. गले का काग बड़ गया हो तो चूल्हे की राख याने चूल्हे की मिट्टी निकालकर कालीमिर्च को पीसकर अपने अँगुली पर लगाकर चतुराई से लगा दें।
9. बालक की आँख गर्मी सर्दी से या दाँत निकलने के समय दुःखने लगते हैं तब सौद को पानी में घिसकर लेप करें।
10. बालक को खाँसी हो तो अनार का छिलका मुँह में दबा कर चूसें ।
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४१. तुलसी के पत्ते बच्चे को खिलावें तो चेचक जाती रहती है। आवश्यकतानुसार (४०/ ५०)।
(55) बिस्तर (शय्या) मूत्र निवारण 1. सोते समय पेशाब निकल जाना- आंवले का गूदा और काला जीरा समभाग चासनी
(शहद) के साथ मिलाकर खायें। 2. बिस्तर पर रात्रि में मूत्र करे- राई के दाने पीसकर बच्चे को खिलाने से बच्चा रात्रि में
बिस्तर पर मूत्र नहीं करता। 3. शय्यामूत्र निवारण- सोने में बिस्तर गीला होने पर, उम्र के अनुसार १/२ ग्राम से
६ ग्राम तक की मात्रा में रात में दूध के साथ गुड़ के साथ शंखपुष्पी चूर्ण देने से लाभ होता है। प्रातः काल मूंगफली के दाने थोड़े से भूनकर गुड़ के साथ लेना
चाहिए। 4. बालक को सोते समय पेशाब हो तो- अजवाइन में नमक मिलाकर गर्म पानी से देना चाहिए।
(56) दन्त-रोग १. अकरकरा और कपूर बराबर पीसकर मंजन करने से सब प्रकार की दंत पीड़ा मिटती है। २. खैर की कोपल मुख में चबाने से दंत पीड़ा मिट जाती है। ३. फिटकरी का मंजन करने से सड़े दंतों की पीड़ा मिट जाती है। ४. हींग का पानी गुन-गुना कर पूरा भरकर दाँतों में दबाने से आराम होता है। ५. गर्म पानी के कुल्ले करने से दाँत और दाढ़ पीड़ा मिटती है। ६. बड़ के दूध के लगाने से दाढ़ की पीड़ा मिटती है। ७. कड़वे तेल में नमक मिलाकर मंजन करने से दन्त मजबूत होते हैं। ८. फुलाये हुए सोहागा में मिश्री मिलाकर मंजन करने से दाँत मजबूत होते हैं। ९. रात को सोते समय यदि दाँत किट-किटाते हो तो १ माशा अजवाइन में थोड़ा नमक
मिलाकर लेने से आराम हो जाता है। 10. यदि दाँतो में कीड़े पड़कर छिद्र हो गये हो तो उस छिद्र में कपूर भरने से आराम हो
जाता है। 11. दाँतों की चमक का उपाय:- गुल रोगन में कपूर और चन्दन मिला कर दाँतों पर
मलने से दाँतों की चमक आ जाती है। 12. यदि दाँतों का रंग पीला पड़ गया हो तो:- हरी मकोय का पानी और सिरका मिलाकर
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कुल्ला करना चाहिये। 13. मसूड़ों के सूजन आने पर:- मसूर, सूखा धनिया, अधिश, लाल चन्दन, सुपारी और
सिमाक को पानी में औटाकर कुल्ला करें फिर सूजन के कम हो जाने पर सूजन का असर रहे तो बादाम का तेल, गुल रोगन, गर्म पानी में मिलाकर उसके कुल्ला करें।
(57) पाइरिया १. नीम की पत्तियाँ जलाकर, वायविडिंग, सेंधानमक, कपूर और समुद्रफल को पीसकर
मंजन करने से पाइरिया रोग मिटता है। २. आँवला जलाकर सेंधानमक मिलाकर सरसों के तेल के साथ मंजन करने से पाइरिया
रोग मिटता है। ३. कोमल नीम की पत्तियाँ ताजी, कालीमिर्च और काला नमक मिलाकर पीसकर
प्रतिदिन सेवन करने से रक्त शुद्ध होकर पाइरिया रोग मिटता है। ४. खस, इलायची और लौंग का तेल मिलाकर लगाने से पायरिया रोग मिटता है तथा मुँह की दुर्गन्ध मिटती है।
(58) दाँतों के मसूड़ों तथा मुँह का रोग १. अडूसा के पत्ते औटाकर कुल्ला करने से मसूड़ों का दर्द मिटता है। २. खैर चूसने से कष्ट साध्य मसूड़ों का दर्द मिट जाता है। ३. जामुन की लकड़ी के कोयले का मंजन करने से मसूड़ों का खून आना बन्द होता है। ४. मेहंदी के पत्तों के क्वाथ से कुल्ला करने से मसूड़ों का असाध्य रोग मिटता है। ५. बड़ की छाल के क्वाथ से कुल्ला करने से दाँत व मसूड़ों का रोग मिट जाता है। ६. अजवाइन को तवे पर जलाकर कपड़े से छान करके मंजन करने से मसूड़ों का रोग
मिटता है व दन्त उज्ज्वल होते हैं। ७. बबूल की छाल के कुल्ले करने से मुख पाक, मसूडों से रक्त बहना और गले की पीड़ा
मिटती है। ८. कपूर और एरण्ड का तेल मिलाकर अंगुली से मसूड़ों पर मलने से पाइरिया रोग भी
मिटता है। ९. १ कच्चा और १जला हुआ मांजूफल तथा १ जली हुई सुपारी को पीसकर मंजन करने
से दाँत और मसूडे मजबूत होते हैं और खून आना बन्द हो जाता है। 10. दांत दर्द- मसूड़ा फूले तो तीन माशा सौंठ एक बार पानी के साथ ४ दिन तक खायें
दर्द दूर होगा।
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11. दंत दर्दः- मोल श्री छाल के काढ़े से कुल्ला करने से हिलते दांत जम जाते हैं। 12. सेहुड़ की जड़ दाँतों के नीचे दबाकर रखने से दन्त पीड़ा शान्त होती है।
___(59 ) मुख के छाले १. मुलेठी को मुँह में रखने से भी मुँह के छाले मिटते हैं २. बेर के पत्ते औटाकर कुल्ला करने से मुंह के छाले मिटते हैं,ऊपर से इलायची तथा
मिश्री लगाना चाहिये। ३. बबूल की पत्तियाँ, अनार की पत्तियाँ आँवला ३.२-३.२ ग्राम (४-४ माशा) तथा
धनिया १.६ ग्राम (२ माशा), इन सबको शाम को भिगोकर पीस छानकर मिश्री
मिलाकर पीने से थूक में रक्त आना बन्द हो जाता है। ४. चमेली के पत्तों को चबाने से मुँह के छाले मिटते हैं। अथवा गुंदी के वृक्ष की छाल
मुख में रखने से छाला मिटता है। ५. आँवलों के पत्ते पानी में औटाकर कुल्ले करने से मुँह के छाले मिटते हैं। ६. २-३ लौंग प्रतिदिन चबाने से वायु के छाले मिटते हैं। ७. जामुन के नरम और ताजे पत्ते पानी में पीसकर कुल्ले करने से भयंकर छाले भी मिटते
13. चंपा की जड़ घिसकर लेप करें तो बालक का छाला मिटे। 14. कत्था, धौलका गोंद, तवाखीर, इलायची, कवाबचीनी बराबर लेकर पीस लेवें मुँह में थोड़ा रखने से छाला कम हो जाता है।
(60) मुख से खून आने के रोग१. मुलतानी मिट्टी (मेट) 0.८ ग्राम (१ माशा) में शक्कर मिलाकर खाने से खून आना
बन्द हो जाता है। २. २.४ ग्राम (३माशा) पतासों का शर्बत बनाकर उसमें 0.८ ग्राम (१ माशा) फिटकरी का फूल्या मिलाकर लेने से मुँह से खून आना बन्द हो जाता है।
(61) मुख की दुर्गन्ध दूर करने का उपाय 1. मुख की दुर्गन्ध दूर करने का उपाय- सौंठ, हरडे, चण्य फल की छाल, मेंनफल (मदन) की
गुठली को मढे के साथ अथवा अकेले भी सेवन करने से मुंह की दुर्गंध दूर हो जाती है। 2. मुंह में बदबू- अनार का छिलका पानी में उबालकर गर्म पानी से कुल्ले करने से मुंह की बदबू
दूर होती है 3. मुंह दुर्गन्ध- लौंग को भूनकर मुख में रखें व ४-५ लौंग चबाने से दुर्गन्ध में राहत मिलेगी। लौंग
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का तेल त्वचा में लगाने से त्वचा रोग समाप्त होगा।
(62) मुहांसे दूर (मुँह पर धब्बे का रोग) 1. मुहांसे दूर-तज, धनिया और लोध को समभाग पीसकर मस्सों तथा मुहांसों पर लेप करने
से वे दूर हो जाते हैं। 2. आंबा हल्दी, सेंधा नमक, कूट को सम भाग में लेकर नींबू के रस में पीसकर लेप
करने से मुँह के धब्बे छूट जाते हैं। 3. सरसों, सेंधानमक, लौंग, वच इन सबको कूटकर लेप करने से मुंह पर होने वाली
छोटी-छोटी कीलें ठीक हो जाती हैं। 4. छुहारे के बीज, फिटकरी, थोड़ी केभार को गाय के दूध में पीसकर लगाने से मुँह के
नीले-काले धब्बे मिट जाते हैं। 5. कंजे की गूदी को गाय के दूध में पीसकर लगाने से मुँह के धब्बे मिट जाते हैं। ऊपर
से चावलों को पीसकर लगाने से चेहरे का रंग अच्छा बन जाता है। 6. आक के दूध में हल्दी पीसकर लगाने से मुँह पर नीले, काले, लाल और सफेद दाग __ हो तो मिट जाते हैं। 7. बड़ के अंकुर और मसूर को पानी में पीसकर लगाने से मुँह के धब्बे मिटते हैं। 8. मस्सा (उडद के समान गाँठे भारीर पर होना)- सज्जी, चूना और साबुन को पानी में पीसकर लगावें अथवा मोर की बीट पीस कर लगावे अथवा लहसुन को उस्तरे से रगड़कर पीछे सरसों, हल्दी, कूट, सज्जी, जवाखार, केशर पानी में पीसकर लेप करने से फायदा होता है।
(63) मुख सुन्दर के लिए 1. मुख सुन्दर के लिए- मसूर की दाल का छिलका उतारकर घी में मिलाकर दूध में
पीसकर लेप करने से चन्द्रमा की कांति को प्राप्त कर लेगा। 2. कपूर बेर के वृक्ष की गोंद, केशर, सेंमल के वृक्ष के कांटे का लेप करने से मुख देवी
जैसा सुन्दर हो जाता है। 3. कांति वर्धक- मसूर की दाल दूध में पीसकर कपूर मिलाकर कुंसियों पर लगाने से
___ मुहाँसे दूर होते हैं। 4. ओठ चिकने- सोयावीन के तेल में पिसा सुहागा मिलाकर ओठों पर लगाने से वे शीघ्र चिकने हो जाते हैं।
(64) गले के रोग १. बड़ के दूध का लेप करने से कंठमाला मिटती है।
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२. मूली के बीजों को बकरी के दूध में पीसकर लेप करने से कंठमाला मिटती है। ३. ढाक की जड़ को घिसकर कानों के नीचे लेप करने से गंडमाला मिटती है। ४. अरीठों का लेप करने से कंठमाला की सूजन मिट जाती है। ५. शहतूत का शर्बत पीने से कंठमाला और जीभ की सूजन मिट जाती है। ६. चूने के पानी को लगाने से भी गले के फोड़े मिटते हैं। ७. आलू-बूखारा चूसने से गले की खुश्की मिट जाती है। ८. अजवाइन और शक्कर औटाकर पीने से गला खुल जाता है। 9. गला खराब- पानी में गेहूँ का चोकर उबालें उसमें शक्कर व दूध डालकर चाय की तरह पीएं या गेहूँ की चाय पीए गला ठीक होगा।
(65) स्वर-भंग१. अजमोद, हल्दी, चित्रक, जवाखार और आंवला इनको समान भाग लेकर महीन छान
करके ४.८ ग्राम (६माशा) घृत या मिश्री की चासनी के साथ चाटने से भयंकर स्वर
भंग रोग मिट जाता है। २. हरड़ की छाल, बच, पीपल इन सबको खरल करके गर्म जल से लेने से स्वर भंग
मिटता है। ३. बेहड़ा की छाल, पीपल, सेंधानमक, आंवला इन सबको महीन कूट छानकर गाय की
छाछ से या गौमूत्र से लेने से स्वर भंग मिटता है। ४. जायफल, खील, बिजोरा की केशर इन सबको खरल करके मिश्री की चासनी से
चाटें तो स्वर भंग रोग मिट जाता है। ५. स्वर भेद वाले रोगी को पान की जड़ (कुलिंजन) मुँह में चबाना और चूसना
चाहिये। ६. वच, कुलंजन, बावची, चौथा नागर पान। इनका जो सेवन करे कण्ठ कोकिला
जान। ७. तज, कालीमिर्च, कुलंजन, बच, अकरकरा इन्हें बराबर लेकर कूट छान लें फिर
प्रतिदिन १.४ ग्राम (१॥माशा) खाने से कण्ठ साफ हो जाता है।। ८. यदि गले में बाल अटक जाय तो- शक्कर, मक्खन, द्राक्षा और शीतल मिर्च का चूर्ण ___बनाकर लेने तुरन्त लाभ हो जाता है।
स्वर भंग के लिए- कुलिंजन, इलायची, मुलैठी, सफेद मिर्च के चूर्ण को पान के रस में १२ घण्टे घोटकर .१-.१ ग्राम (१-१ रत्ती) की गोलियाँ बना लें, मुँह में चूसने से
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फायदा होता है।
१०. घी और गुड़ मिश्रित भात ( चावल ) का भोजन करके गर्म पानी पीने से स्वर भंग मिटता है।
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११. मूलेठी का सत् मुँह में रखकर रस चूसने से स्वर भंग रोग मिटता है।
१२. दाख और फालसा को मुख में दबाने से समस्त कंठ रोग मिटते हैं। १३. अच्छे और पके हुए केले खाने से मुँह से आने वाला खून बन्द हो जाता है ।
14. माधुर्यकारी स्वर- कुलंजन का अर्क, नींबू का अर्क, शहद ( चासनी ) काली मिर्च आदि से सेवन किया जाए तो राक्षस का कर्कश स्वर भी किन्नर की भांति मधुर हो जाता है।
1.
15. स्वर शोधना- निर्गुण्डी मूल को सुखाकर पीसकर गुनगुने पानी से सेवन करने से वाणी दोष समाप्त होकर स्वर मधुर होता है ।
( 66 ) हकलाना दूर होता
साबुत सुपारी को लाल चंदन में सात दिन तक डुबोए रखकर बाद में काट काट कर चूसने से हकलाना दूर होता है।
( 67 ) हिचकी - रोग
१. पीपल की छाल को जला कर उसके कोयले को पानी में बुझाकर पानी को पिलाने से हिचकी मिटती है।
२. नारियल की जटा की भस्म पानी में घोलकर नितारे हुए पानी को पीने से हिचकी मिट जाती है।
३. गर्म दूध में घी पीने से अथवा गर्म घृत पीने से हिचकी मिटती है ।
४. सोंठ के चूर्ण की फक्की लेकर ऊपर से बकरी का गर्म दूध पीने से हिचकी मिटती है। ५. बकरी के दूध में सोंठ पकाकर पीने से हिचकी मिट जाती है।
६.
मोर पंख की राख मिश्री की चासनी में चटाने से हिचकी रोग मिटता है । ७. गवारपाठा के रस में सोंठ मिलाकर खाने से हिचकी रोग मिटता है ।
८. गर्म पानी में नमक मिलाकर पीने से वमन होकर हिचकी मिटती है।
९. कौड़ी को जलाकर नाक में सुंघावें तो हिचकी जाती है।
(68) खट्टी डकारे
1. खट्टी डकारे:- यदि खट्टी डकारे आती हो तो गरम पानी में नींबू निचोड़कर पीए ।
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( 69 ) नेत्र रोग
१ त्रिफला को भिगोकर प्रतिदिन आँखे धोने से आँखों के रोग प्राय: मिटते हैं ।
२ सुबह उठते ही अपनी बासी थूक से अंजन करने से नेत्र रोग मिटता है ।
३ गवारपाठे की गिरी पर हल्दी का चूर्ण बुरका कर गर्म कर आँखों पर बाँधने से नेत्र पीड़ा मिटती है।
४. गर्मी में आँखों की खराबी में गुलाबजल का फोहा बाँधने से आराम मिलता है। नेत्र पीड़ा मिटाने के लिए:- अनार के पत्ते पीसकर टिकिया बनाकर आँखों पर बाँधने से लाभ होता है।
५
६. कालीमिर्च को थूक में घिसकर आँखों में आँजने से नेत्र पीड़ा मिटती है ।
७. सोंठ को पानी में घिसकर उसकी २-३ बूँद आँखों में टपकाने से आराम मिलता है।
|
८. स्त्री के दूध को आँखों पर टपकाने से नेत्र पीड़ा मिट जाती है।
९. केर के पत्तों के रस का लेप करने से रतौंधी मिट जाती है ।
१०. टमाटर ज्यादा खाने से रतौंधी मिटती है ।
११. तुलसी के पत्तों का स्वरस कई बार आँखों में डालने से रतौंधी मिट जाती है।
१२. पुनर्नवा की जड़ को दूध में घिसकर आँजने से आँखों की खुजली मिटती है। नौसादर को महीन खरल करके अंजन करने से मोतियाबिन्द मिटता है।
१३.
१४. सत्यानाशी का दूध आँजने से मोतियाबिन्द मिटता है ।
१५. भीमसेन कपूर को पुत्रवती स्त्री के दूध में घिसकर लगाने से मोतियाबिंद में फायदा होता है।
१६. सेंधा नमक को अल्प उष्ण तेल में सेवन करने से नेत्रों का वात रोग मिटता है।
१७. त्रिफला के क्वाथ में घृत मिलाकर पीने से नेत्र रोग मिटते हैं।
१८. वृद्धों के लिए नेत्र ज्योति - असगन्ध के महीन चूर्ण को आँवला के रस में, मात्रा क्रमवृद्धि से १ तोले तक प्रतिदिन सेवन करना चाहिये ।
19. नेत्र रोग पर पोटली - गवारपाठे के रस को सोते समय कान में टपकाने से बालकों की आँखें अच्छी होती है।
२०. हरी दूब के रस का लेप करने से आँख का दुखना और गीड़ आना मिटता है। 22. आंख दर्द ठीक - बादाम, कपूर को आधी रत्ती महीन पीसकर अंजन करने आंखें ठीक होती हैं ।
दुखी
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23. आँख दुखना :- मिर्च पाउडर में पानी मिलाकर जो आँख दुखे उस तरफ के पैर के
अंगूठे पर लेप करें, आँख दुखना शान्त होगा। 24. आंख फोड़ा- शक्कर, फेन सममात्रा में सूक्ष्म पीसकर आंख में अंजन करने से फोला
जाये। 25. श्वेत पुनर्नवा की जड़ को घी के साथ पीसकर नेत्र में लगाने से नेत्रों का
पानी गिरना बंद हो जाता है। 26. जयंती या हरीत की मूल को स्त्री के दूध का पुट देकर पीसें तथा उसे नेत्रों
में लगाएं तो नेत्र रोग यथा रतौंधी, आँखों में रक्त, ज्वर आना, मांस वृद्धि,
चर्मकोश जैसे रोग समाप्त होते हैं। 27. सफेद सांठी की जड़ को घी में पीसकर आंखों में अंजन करने से बहता पानी
रूक जाता है। 28. असली लाल चंदन लेकर आँखों में डालने से आँख में फूल (ठीक) मिट जाता है।
(70) कान-रोग१. अलसी के तेल को गर्म कर कान में डालने से कान पीड़ा मिटती है। २. आम के पत्तों के रस को गुनगुना करके कान में डालने से कान पीड़ा मिटती है। ३. गवारपाठे का रस गुनगुना कर कान में डालने से कान पीड़ा मिट जाती है। ४. बकरी के दूध को कान में डालने से कान पीड़ा मिटती है। ५. नीम के पत्तों का बफारा देने से कान का मैल निकलकर पीड़ा मिटती है। ६. ऊँट या ऊंटनी का मूत्र कान में डालने से कान पीड़ा मिटती है। ७. कत्था पीसकर कान में बुरकाने से कान बहना मिटता है। ८. कौंडी भस्म कान में डालकर नीम्बू का रस डालने से कान बहना बन्द हो जाता है। ९. फिटकरी और उसका बीसवाँ भाग हल्दी लेकर कान में बुरकाने से कान बहना बन्द
हो जाता है। १०. अर्जुन के पत्तों का स्वरस डालने से कर्ण शूल मिट जाती है। ११. बादाम का तेल डालने से कान में शब्द होना मिट जाता है। १२. मेथी के चूर्ण को स्त्री के दूध में घोलकर टपकाने से कान से पीप आना बन्द हो जाता
१३. कान बहता हो तो- समुद्र फेन को पीसकर कान में डालना ऊपर से छना हुआ नीम्बू ___ का रस डालना चाहिये, जब कान पर झाग आ जावे तो रुई से झाग पौंछना, पीछे
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फिटकरी के पानी से कान साफ करना चाहिये, अन्त में कान को पोंछकर सरसों का तेल डालकर ऊपर रुई लगा देना चाहिये ।
१४. कान में फोड़ा होने पर - फिटकरी सफेद, समुद्र फेन पीसकर कान में डालकर ऊपर से नीम्बू का रस डालें, जब मवाद आना बन्द हो जाय और पीड़ा शान्त हो जाय तो मूली के पत्ते मीठे तेल में जलाकर छान लें और उस तेल को कान में डालने से आराम होता है।
15. कान दर्द निवारण - सुदर्शन वृक्ष के पत्ते का रस कान में कुनकुना कर डालने से बहता हुआ कान दर्द ठीक होता है।
16. कर्ण पीड़ा- अपामार्ग पत्तों के अर्क को कान में डालें तो दर्द दूर होता है।
17. गुंजा की जड़ को कान पर बांधने से भी दाढ़ के कीड़े झड़ जाते हैं ।
18. श्वेत दूब को घी में मिलाकर कान में डालने से बहरापन दूर होता है।
19. कान दर्द - कान के भीतर धतूरे के पत्तों का रस एक दो बूंद कान में डाल दे तो तुरन्त राहत मिलती है।
20.
कान दर्द दूर हो -तुलसी के पत्तों में गुगल की धूप देकर उनका रस निकालें और उसको कान में डालें तो कान का दर्द दूर हो जाएगा ।
(71) नाक- रोग
१. नकसीर बन्द करने के लिए नीम के पत्ते और अजवाइन को बारीक पीसकर कनपटियों पर लेप करना चाहिये ।
२. ऊँट के बालों को जलाकर उस राख को सूंघने से नकसीर मिटती है।
३. ऊँट के बालों को जलाकर उस राख को लगाने से नाक की फोड़ा - फुन्सी मिटती है।
4. नाक तथा मूत्र में रूधिर आवे तो- दूब को मिश्री के साथ पीसकर पिलाना चाहिये। (72) वमन (कै) - रोग
१. अगर को पानी में घिसकर पिलाने से वमन रुकता है ।
२. अजवाइन और लौंग की टोपी को मिश्री की चासनी में चाटने से वमन मिटता है । चनों को भिगोकर उस पानी को पिलाने से वमन रुकता है ।
३.
४. सुपारी और हल्दी के चूर्ण में शक्कर मिलाकर फक्की लेने से वमन मिटता है ।
५. नमक का गर्म पानी पीने से भी वमन मिटता है।
६. धनिया और मिश्री पुराने चावलों के माड़ में लेने से वमन मिट जाता है। ७. सोंफ को पीसकर पानी में भिगोकर उस पानी को लेने से वमन मिटता है ।
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८ ५ लोंग का चूर्ण मिश्री की चासनी के साथ लेने से वमन मिटता है। ९. पका केला खाने से भी वमन मिटती है। १०. पिस्ते खाने से जी मचलना और वमन मिट जाता है। 11. नारियल की जटा को जलाकर उसकी राख में थोड़ा सफेद नमक मिला लें। इसे जल
में घोलकर पिलाने से कै बंद हो जाएगी। 12. रुधिर की वमन रोकने के लिए पेठे का स्वरस पिलाना चाहिये।
(73) वमन कराने के उपाय १. गर्म पानी में नमक अथवा तिल का तेल मिलाकर पीने से वमन होता है।
(74) हैजा-रोग १. लालमिर्च, हींग और वच की गोलियाँ बनाकर देने से हैजा रोग मिटता है। २. जायफल को तेल में घिसकर मर्दन करने से हैजे में आने वाले बांइटे मिटते हैं। ३. नीम के तेल का मर्दन करने से विषूचिका में तथा बुखार में आने वाले बांइटे मिटते हैं। ४. कड़वे तेल को गर्म करके मर्दन करने से हैजा में कुक्षि की पीड़ा मिटती है। ५. कमलगट्टा की गिरी, तगर, मुलैठी, सफेद चन्दन इन सब को सम भाग लेकर काढ़ा करके पिलाने से वमन मिटता है।
(75) पथरी रोग १. कफ की पथरी के लिए- जवाखार ३ माशा, नारियल के फूल ३ माशा इन दोनों को
जलाकर पीसकर सेवन करने से उत्कट पत्थरी रोग मिटता है। २. गोखरू के बीज २ आने भर लेकर पीस लें, फिर बकरी के दूध में मिलाकर पीने से
पथरी रोग मिटता है। ३. कफ की पथरी के लक्षण- कफ की पत्थरी में बस्तिस्थान ठण्डा और भारी होता है,
तथा सुई चुभने जैसी वेदना रहती है। ४. पित्त की पथरी के लक्षण- इसमें बस्तिस्थान में जलन होती है, पेशाब करते समय
मालूम होता है जैसे कोई क्षार से जलता है तथा हाथ लगाने से गर्म मालूम होता है। ५. बादी की पथरी के लक्षण- इसमें अत्यन्त दर्द के कारण रोगी दाँतों को पीसता हुआ
काँपने लग जाता है, दर्द के मारे भारी बेचैनी रहती है, अधोवायु के साथ मूत्र निकल
जाता है और बूंद-बूंद करके टपकता है। ६. अंगूर की लकड़ी की राख ४.८ ग्राम गोखरु के रस या क्वाथ में चाटने से पथरी रोग
मिटता है। अथवा अंगूर के पत्तों का रस पीने से पत्थरी रोग मिटता है।
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7. पथरी निवारणार्थ- पथरी, चर्म रोग, में मेंहदी की छाल का क्वाथ बनाकर पीने से लाभ होता है। यह क्वाथ पथरी को गला कर निकाल देता है ।
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8. पथरी
:- एक गिलास पानी में एक नीबू निचोड़कर सेंधा नमक मिलाकर सुबह-शाम नित्य एक माह तक पीने से पथरी पिघलकर निकल जाती है ।
9. पथरी:- मक्के के भुट्टे की राख पानी में डालकर छानकर पीए ।
10. पथरी या बहुमूत्र - काले चने दूध में भिगाकर सुबह खाएं तथा जौ व चने की रोटी खाएं बहुमूत्रबाधा दूर होगी । चने व गेहूँ पानी में उबालें आधा रह जाए तो वह पानी पीए व इनकी रोटी बनाकर खाने से पथरी नहीं होती ।
११
13.
पत्थरी रोग में कुल्थी, मूँग, जौ, गेहूँ, चावल, दूध, घृत, टिंडसा और सेंधानमक पथ्य है।
१२. गोखरू का चूर्ण १२.५ ग्राम, भेड़ का दूध तथा मिश्री मिलाकर पीने से पत्थरी रोग मिट जाता है।
मक्का के सिर के बाल को पानी में उबालकर कालीमिर्च मिलाकर पिला दें तो पथरी मिट जाती है।
( 76 ) लीवर (यकृत) रोग
१. छाछ में हींग का बघार देकर जीरा, कालीमिर्च और नमक मिलाकर पीने से लीवर रोग में फायदा होता है।
२.
लीवर की कठोरता मिटाने के लिए अमरबेल के तेल का लेप करना चाहिये ।
३. लीवर में ताकत लाने के लिए अमरबेल का क्वाथ पीना चाहिये ।
( 77 ) तिल्ली (लिप ) रोग
१. करेला के फल के रस में राई और नमक मिलाकर पीने से बढ़ी हुई तिल्ली मिटती है।
२. गाजर का आचार लम्बे समय तक खाने से तिल्ली मिट जाती है ।
३. गवार पाठे की गिरी पर सोहागा या चित्रक बुरकाकर खाने से तिल्ली मिटती है।
४. चूना और मिश्री की चासनी का लेप करने से तिल्ली रोग मिटता है ।
५. सीप की भस्म दही के साथ खाने से ताप तिल्ली मिट जाती है।
(78) हृदय रोग
१. पारस पीपली की छाल के मध्य भाग को घिसकर लेप करने से पित्तजन्य हृदय रोग और पीड़ा मिटती है।
२. अनार के पत्ते ताजे लेकर आधापाव, पानी में पीसकर छानकर सुबह-शाम पिलाने से
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दिल की धड़कन मिटती है। ३. अलसी के पत्ते और धनिया का क्वाथ पीने से हृदय की निर्बलता मिट जाती है। ४. नागरबेल के पान का शर्बत पीने से हृदय को बल मिलता है। ५. हृदय रोग वाले को मुँह में स्वर्ण की डाली या दाँतों में स्वर्ण लगवाना चाहिये इससे
फायदा होता है। ६. २-४ अखरोट की गिरी खाने से हृदय रोग वाले को फायदा होता है। ७. आँवले के मुरब्बे के, लगातार सितोपलादि चूर्ण व मुक्तापिष्टि खाने से फायदा होता
८. पुनर्नवा, कुटकी, चिरायता और सोंठ का काढ़ा लेने से समस्त हृदय रोग मिटते हैं। ९. मेथीदाने के क्वाथ में मिश्री मिलाकर पीने से छाती के पुराने रोग भी मिटते हैं। १०. कपूर की डली को शीशी में रखकर सूंघने से भी कभी-कभी हृदय रोग का दौरा
निकल जाता है। ११. लौंग नग ५ व ब्राह्मी वटी गोली १ का घासा देने से दौरा निकल जाता है। १२. हृदय रोग के दौरे में गर्म चाय या दूध देना चाहिये परन्तु ठण्डी वस्तु का प्रयोग नहीं
करना चाहिये। १३. छाती के दर्द में विक्स व आयोडेक्स को अहिस्ता-अहिस्ता मलना चाहिये। १४. छाती के दर्द में गर्म पानी की थैली लगाना चाहिये व पूर्ण विश्राम करना चाहिये। १५. छाती के दर्द में सूंघने की तम्बाकू सूंघना फायदेमंद होती है। १६. अर्जुन की छाल का क्वाथ पीने से हृदय में बल मिलता है। १७. हृदय रोग वाले रोगी को श्रृंग भस्म 0.२ ग्राम घृत में चाटना चाहिये। १८. नागफनी और थूहर के पंचांग का रस देने से हृदय गति सुव्यवस्थित होती है। १९. नागफनी और थूहर के पंचांग की राख देने से पेशाब तथा दस्त होकर हृदय की क्रिया
सुधरती है। 20. हृदय रोग- सूरजमुखी का तेल इस्तेमाल करने से लाभ होता है। 21. अर्जुन की छाल का चूर्ण बनायें। इसको गो के दूध से पकायें। छानकर तथा गुड़ डालकर रोगी को दें। इससे हृदय रोग से मुक्ति होती है।
(79) रक्त चाप (ब्लड प्रेशर)१. दानामेथी और सोवा की फक्की सुबह-शाम कई दिन तक पानी के साथ लेने से
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रक्तचाप मिटता है। २. प्रतिदिन सबेरे सात गुली लहसुन की कच्ची छीलकर खाने से रक्त-चाप मिटता है। ३. रक्तचाप के रोगी को हमेशा ही ताम्बे के बर्तन का पानी पीना चाहिये।
(80) जलोदर-रोग१. अकलकरा की सुबह शाम फक्की लेने से जलन्दर रोग मिटता है। २. जलोदर के रोगी के पेट पर कौंच की जड़ का लेप करना चाहिये या उसका टुकड़ा
रखने तथा हाथ की कलाई पर बांधने से रोग मिटता है। ३. ५० ग्राम चना १ पाव पानी में औटाकर आधा पानी रहने पर उस पानी को गुनगुना कर
पिलाने से जलन्दर रोग मिट जाता है। ४. पुनर्नवा के पंचांग को पीसकर पेट पर लेप करने से जलन्दर रोग मिट जाता है। ५. लालमिर्च को आक के दूध में पीसकर गोलियाँ बनाकर देने से जलन्दर रोग मिटता
६. मूली के पत्तों का रस पिलाने से जलन्दर रोग मिटता है। ७. ऊँटनी का दूध जलन्दर रोग में अमृतमय औषधि होता है। 8. जलोदर- करील (करीर, तीक्ष्ण कंटक, निष्पत्रक, करीला, कैर, टेंटी, करु पेंचू आदि
नामों से जानते हैं।) की जड़ का चूर्ण ५ ग्राम, जल के साथ सुबह-शाम लेने से तथा पथ्य में केवल ऊंटनी का दूध पीने से असाध्य जलोदर भी शीघ्र शान्त हो जाता है।
(81) उदर (पेट) रोग १. अगर को पीसकर गर्म करके पेट पर लेप करने से पेट का शूल मिटता है। २. खुरासानी अजवाइन और गुड़ मिलाकर लेने से पेट की वायु की पीड़ा मिटती है। ३. दो महीने के बछड़े का मूत्र पिलाने से पेट पीड़ा मिट जाती है। ४. बड़ी इलायची के चूर्ण को नमक के साथ देने से पेट शूल मिटे। ५. अनारदाना का रस पीने से पेट शूल मिटती है। ६. पीपल के चूर्ण में काला नमक मिलाकर लेने से पेट दर्द मिटता है। ७. छाछ के साथ समुद्रफल सेवन करने से पेट दर्द मिटता है। ८. तिलों को पीसकर गोला बना लो फिर पेट पर फिराने से भयंकर उदर शूल मिटती है। ९. मेनफल को काँजी में पीसकर नाभि पर लेप करने से पेट शूल जड़ से मिट जाती है। 10. लाल मिर्च को जलाकर उसकी भस्म की दो रत्ती मात्रा खाने से पेट दर्द सग्रहणी आदि
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विकार जाते रहते हैं। 11. हींग को जलाकर फिर उसे लेने से वायु विकार शांत होते हैं। 12. हरड़ मोटी, ठण्डे पानी के साथ लेने से पेट के रोग नष्ट हो जाते हैं। यदि दस्त हो तो
गरम पानी से बन्द होंगे। 13. अपच- गर्म पानी में लौंग डालकर ठंडा करके दो बार लेवें अपच समाप्त होगा।
(82) पेट की धारियां मिटें 1. पेट की धारियां मिटें- गर्भावस्था के दौरान जैतून के तेल से हलके हाथों से प्रतिदिन
पेट पर मालिश करे। इससे पेट पर धारियां नहीं पड़ती, जो अकसर शिशु जन्म के बाद दिखाई देने लगती है।
(83) कफोदर-रोग१. मिश्री, कालीमिर्च और पीपल के चूर्ण को पानी से पीने से पित्तोदर रोग मिटता है। २. सोंठ, कालिमिर्च, पीपल, जवाखार और सेंधानमक इन सबका चूर्ण गर्म पानी से लेने
से सन्निपात का उदर रोग मिटता है। ३. जवाखार, हींग और सोंठयुक्त मन्दोष्ण दूध पीने से उदर महारोग मिटता है। ४. थूहर के दूध से भावित हजार पीपल के सेवन से उदर महारोग का नाश हो जाता है। ५. पेट आदि में शूल चले तो काँसा, पीतल या ताँबे के बर्तन में पानी भरकर फेरने से
फायदा होता है। ६. राई व त्रिफला का चूर्ण घृत तथा मिश्री की चासनी में लेने से सर्व प्रकार की पेट शूल
मिटती है। ७. हिरण के सींग का पुट पाक बनाकर गाय के घृत के साथ खाने से उदर तथा शूल रोग
मिटता है। ८. कूट, वायविडंग को महीन करके ६.४ ग्राम गौमूत्र के साथ लेने से हिया की कृमि और उदर रोग मिटे।
(84) पेट की गैस (वायु) १. तुलसी के पत्तों का साग बनाकर खाने से पेट की वायु शमन होती है। २. नारंगी की छाल का क्वाथ पीने से पेट की वायु की पीड़ा मिटती है। ३. वच के साथ सोनामुखी खाने से वायु का गोला मिट जाता है। ४. सोंठ, हींग तथा सेंधानमक की फक्की गर्म जल से लेने से अजीर्ण मिटती है।
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५. अजमोद को गुड़ में गोली बनाकर देने से पेट का अफारा मिटे। ६. बच को अदरक के साथ लेने से अजीर्ण रोग मिटता है। ७. अरणी के पत्तों को उबाल छानकर पीने से पेट शूल और अफारा मिटता है। ८. दाना मेथी को गुड़ के साथ औटाकर पीने से पेट शूल और अफारा मिटता है। ९. ढाक के पत्ते औटाकर पीने से पेट शूल और अफारा मिटता है। १०. भोजन करते समय बीच-बीच में थोड़ा-थोड़ा खाने वाला सोड़ा लेने से गैस मिटती
११. बेल का मुरब्बा खाने से आँव के दस्त मिटते हैं। १२. अठपहरी सोंठ भिगोकर घोटकर थोड़ा सेंधानमक के साथ लेने से आँव की बीमारी
मिटती है। १३. भोजन के पश्चात् गर्म पानी में नीम्बू का रस डालकर पीने से गैस मिटती है। १४. जामुन के बीजों के चूर्ण में बराबर शक्कर मिलाकर लेने से पेट से खून आना बन्द हो जाता है।
(85) अम्ल पित्त १. कालीमिर्च और सेंधानमक के सेवन से अम्लपित्त मिट जाती है।
(86) धरण (पेचुटी) नाभि रोग १. दही के साथ समुद्रफल खाने से टली हुई धरण अपने ठिकाने आ जाती है २. कच्चे नीम्बू का छिलका खाने से पेट शूल मिट जाता है। ३. ३.२ ग्राम सोंठ का क्वाथ पीने से मन्दाग्नि, उदर के रोग व जल के दोष मिट जाते हैं। ४. बबूल के गोंद का पानी पीने से आमाशय और आँतों की पीड़ा मिट जाती है। ५. भुनी हुई आम की गुठली की गिरी को खाने से आँतों का ढीलापन मिट जाता है। ६. कालीमिर्च २ ग्राम, आँवला १२.५ ग्राम, मिश्री १२.५ ग्राम इनको कपड़े से छान
कर, फिर ७-८ दिन फाकी लेने से चक्कर आना आदि मिट जाता है। ७. सरसों को पीसकर उसमें काला नमक या सेंधानमक छठा भाग मिलाकर मात्रा २.४ ग्राम लेने से पेट की गैस मिटती है।
__(87) कब्ज रोग१. अरण्ड का तेल व अरण्ड की २-३ इण्डोली खाने से दस्त लगता है। २. बड़ी हरड़ १.६ ग्राम, मिश्री ३.२ ग्राम पीसकर सेवन करने से शौच लगता है।
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३. भयंकर कब्ज में १०-१५ मुनक्का दूध में औटकर मुनक्का खाकर दूध में कई दिन
पीने से फायदा होता है। ४. गाय के मढे में अजवाइन और कालानमक मिलाकर खाने से पुरानी कब्ज मिटती है।
(88) मंदाग्नि रोग १. अकरकरा और सोंठ के चूर्ण की फाकी लेने से अजीर्ण और मन्दाग्नि रोग मिटता है। २. शहतूत के शर्बत में पीपल का चूर्ण डालकर पीने से मन्दाग्नि रोग मिटता है। ३. इमली के पंचांग की राख में मिश्री मिलाकर पीने से मन्दाग्नि रोग मिटता है। ४. ३.२ ग्राम सोंठ का क्वाथ पीने से मन्दाग्नि तथा उदर रोग मिटते हैं। ५. नारंगी की फाँक पर सोंठ बुरकाकर खाने से भूख बढ़ती है। ६. पीपल को दूध में औटाकर पीने से भूख बढ़ती है। ७. गुड़ के साथ कालीमिर्च खाने से भूख लगती है। इन्द्रायण की जड़ और पीपल के सेवन करने से भूख बढ़ती है।
(89) अरुचि रोग १. नीम्बू के रस में दूना पानी तथा लौंग व कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर पीने से अरुचि
मिटती है। २. अनार के रस में जीरा और शक्कर मिलाकर पीने से अरुचि मिटती है। ३. इमली के पानी के पीने से भूख बढ़ती है और आँतों के घाव मिट जाते हैं। ४. हरड़ की छाल, सोंठ, ६.४-६.४ ग्राम तथा गुड़ २५ ग्राम मिलाकर जल से लेने
आमाजीर्ण मिटे व भूख लगे। ५. अदरक, सेंधानमक, नीम्बू का रस सेवन करने से अजीर्ण मिटता है तथा पेट साफ
रहता है। ६. सेंधानमक, सोंठ कालीमिर्च का चूर्ण ४.८ ग्राम प्रतिदिन गाय की छाछ में १५ दिन
सेवन करने से अजीर्ण, मन्दाग्नि आदि रोग मिटते हैं इससे पांडु रोग भी मिटता है।
(90) पेट का कृमि रोग १. रोजाना भोजन के पहले १.२-१.६ ग्राम नमक फाकने से पेट में कृमि पैदा नहीं होते हैं।
(91) पित्त का अतिसार १. सफेद चन्दन महीन करके ६.४ ग्राम और मिश्री १२.५ ग्राम मिलाकर ८ दिन चाटें तो
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रक्तातिसार मिटता है। २. पुराने अतिसार में ३.२ ग्राम मोचरस पीसकर उसमें मिश्री मिलाकर खाना चाहिए।
(92) आम अतिसार १. सोंफ को आधी सेंककर पीसकर ठण्डे पानी में लेने से आमातिसार में फायदा होता
२. सोंठ, धाय के फूल, मोचरस, अजमोद इन चारों के चूर्ण को छाछ से लेने से उग्र
अतिसार रोग भी मिट जाता है। ३. अदरक को पीसकर नाभि के चारों ओर बाट बना दें फिर उसमें आंबले का रस भरने से आम के दस्त मिट जाते हैं।
__ (93) भस्मक रोग १. गूलर की छाल १२.५ ग्राम को स्त्री के दूध में पीसकर पीने से भस्मक रोग मिट जाता
२. चनों को पानी में भिगोकर उस पानी को पीने से भस्मक रोग मिट जाता है। ३. पर्याप्त मात्रा में केला खाने से भस्मक रोग मिट जाता है।
(94) शरीर का मोटापा दूर करना १. कुल्थी को पकाकर खाने से मोटापा मिटता है। २. त्रिफला के काढ़े में मिश्री मिलाकर प्रात:काल पीने से शरीर का मोटापा दूर हो जाता है। ३. इन्द्रायण की जड़ तथा अजवाइन का चूर्ण .१-.१ ग्राम खाने से काया-कल्प होता है। ४. प्रातःकाल शीतल जल में मिश्री (मधु) मिलाकर पीने से पे का मोटापा मिट जाता है। ५. १ गिलास पानी में १ नीम्बू का रस प्रतिदिन सुबह पीने से शरीर का मोटापा मिटता है।
___ (95) सदा जवान रह (1) सदा जवान रहें - (अ) सालममिश्री, मरोड़फली और मूसली के कूट पीस कर गोदुग्ध
के साथ जो पीवें वह वृद्ध भी तरूण समान बलिष्ठ होय। (२) जो पुरुष एक तोला मुलहठी के चूर्ण को घी और चासनी (शहद) में मिलाकर चांटे और दूध का अनुपान करे तो वह अति वेगवान हो जाता है।
(96) सर्व वात रोग १. अरण्ड की लकड़ी की २५ ग्राम भस्म खाने से वात रोग मिट जाता है। २. १२.५ ग्राम निगुन्डी १२.५ ग्राम गाय के घृत में खाने से कफ और वायु मिटती है।
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३. यदि बार-बार चक्कर आते हों, आँखों के सामने अँधेरा-सा घिरा रहता हो और खड़े
होते ही गिर पड़ते हों तो भांवरे के २.४ से ४.८ ग्राम रस में मिश्री मिलाकर दिन में
२ बार पीने से आराम होता है। ४. सुबह उठकर शौचादि क्रियाओं से निपटकर १ गिलास ठण्डे पानी में नीम्बू निचोड़कर
कई दिन पीने से घुटने का दर्द, पैरों की सूजन, शरीर का मोटापा तथा वायु विकार
मिटते हैं। ५. समुद्रफल को नीम्बू के रस में घिसकर लगाने से बादी का दर्द मिटता है। ६. अरण्ड की जड़ को पीसकर घी या तेल में मिलाकर गर्म करके लेप करने से वात रोग
मिटता है। ७. असगंध के पंचांग का पाक बनाकर खाने से वायु का समस्त विकार मिटता है। ८. निगुन्डी के पत्ते गर्म करके बाँधने से बादी की गाँठे बिखरती हैं। ९. प्रात:काल लहसुन की २-४ गुलियाँ प्रतिदिन खाने से बुढ़ापे की बादी की शिकायत
मिटती है। १०. आक के नीचे की बबूल को गर्म करके बिछाकर सोने से वायु का दर्द मिटता है। ११. सरसों के तेल में बारीक नमक मिलाकर लगाओ और धूप में सेको तो वायु का दर्द
मिटता है। १२. अजवाइन ४.८ ग्राम को रात्रि में भिगोकर सवेरे उसमें २ काली मिर्च डालकर पीस लो और बिना छाने ही पिओ इससे सरण चलानी मिट जाती है।
(97) जोड़ों का दर्द 1. कैर की जड़ की भस्म घी में मिलाकर प्रात:काल चाटने से जोड़ों का दर्द मिटता है। 2. कैर की जड़ का बाफरा देने से हाथ-पैरों के जोड़ों का दर्द मिटता है। 3. अरणी की जड़ पीसकर लगाकर तपाने से हड्डी तथा जोड़ों का दर्द जाता है। 4. आक की जड़ को 0.१ ग्राम औटाकर पिलाने से जोड़ों की सूजन मिटती है। 5. हल्दी, चूना और गुड़ का लेप कई दिन करने से कलाई की जोड़ों का दर्द मिट जाता है। 6. धतूरे के पत्तों को गर्म करके बाँधने से भी जोड़ों का दर्द मिट जाता है। 7. इमली के पत्तों को उबालकर बफारा देने से जोड़ों का दर्द मिटता है। 8. जोड़ों का दर्द- लौंग के तेल की मालिश करें दर्द दूर होगा। 10. भेड़ के दूध में एरंड तेल मिलाकर कुछ गर्म करके दर्द की जगह मालिश करने से
जोड़ों का दर्द मिटता है।
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(98) घुटनों का दर्द 1. मेहंदी और अरण्ड के पत्ते पीसकर लेप करने से घुटनों का दर्द मिटता है। 2. साबुन और मेहंदी के पत्ते पीसकर लेप करने से घुटनों का दर्द मिटता है। 3. माजुम सुरेजानं, १२.५ ग्राम गर्म पानी से लेवें तो दर्द घुटने का अच्छा होता है। 4. गोरखमुण्डी के ६.४ ग्राम चूर्ण की गर्म जल के साथ फाकी लेने से सन्धि-वात
मिटती है। 5. घुटनों पर तेल लगाकर ऊपर सोंठ बुरक कर , मसलकर पुरानी रुई बाँधने से पीड़ा
मिटती है। 6. अडूसा और अरण्ड के पत्तों को अरण्ड के तेल व पानी में औटाकर बफरा देने से रगों
की पीड़ा मिट जाती है। 7. तिलों की खल को कूट कर थोड़ा पानी मिलाकर पकावें और घुटनों पर बाँधे तो दर्द मिटता है।
(99) गठिया रोग 1. नागकेशर के बीजों के तेल का मर्दन करने से गठिया रोग मिटता है। 2. अखरोट की गिरी खाने से खून शुद्ध होकर गठिया मिटती है। 3. मालकांगनी के बीजों की फाकी लेने से गठिया रोग और वात रोग मिटता है। 4. प्रतिदिन ५० ग्राम से बढ़ाकर पावभर तक बादाम खाने से गठिया रोग मिटता है। 5. गज पीपल को पानी में घिसकर गर्म करके लेप करने से गठिया का दर्द मिट जाता है। 6. पुराना गठिया का तीव्र रोग मिटाने के लिये- कुचेला, सोंठ और सांभर सींग को
पीसकर लेप करने से फायदा होता है। इससे स्नेह सम्बन्धी रोग भी मिटते हैं। 7. गठिया का रोग मिटाने के लिये- मेहंदी के ताजे पत्ते पीसकर रात में सोते समय गाढ़ा
लेप करना चाहिये। जब तक गठिया न मिटे तब तक करते रहें। 8. राई का प्लास्टर करने से गठिया का दर्द मिट जाता है। 9. कच्चे करेले के रस को गर्म करके लेप करने से गठिया मिटती है। 10. गठिया के दर्द पर केरोसिन तेल लगाने से भी फायदा होता है।
(100) शून्य-वात-लकवा रोग 1. तुम्बे के बीजों को पीसकर लेप करने से लकवा (पक्षाघात) रोग मिट जाता है। 2. उड़दों के आटे के बड़ों को तेल में पकाकर मक्खन के साथ खाने से मुँह का लकवा
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मिट जाता है। 3. अखरोट के तेल का मर्दन करने से सम्भालू के पत्तों का बफारा देने से मुँह का लकवा मिट जाता है।
_(101) पुस्तवाय (हाथ पैरों में अधिक पसीना आना) १. बैंगन और पोस्त के डोडों के क्वाथ में हाथ-पैर भिगोने से पुस्तवाय मिट जाती है। २. बबूल के पत्ते और हरड़ को पीसकर मर्दन करके स्नान करने से ज्यादा पसीना आना
बन्द हो जाता है। ३. बबूल के सूखे पत्तों को हाथ-पैर पर मलने से पुस्तवाय मिटती है।
(102) कम्पवाय (हाथ-पैर कॉपना) १. तिल का तेल, अफीम और आक के पत्तों का गर्म लेप करने से कम्पवाय मिटती है। २. असगंध का चूर्ण २.४ ग्राम दिन में २ बार दूध के साथ लेने से कम्पवाय मिटती है।
(103) शून्यवात । १. अगर और सोंठ का क्वाथ पीने से शरीर के हरेक अंग की शून्यता मिटती है। २. अकरकरा और लौंग लेने से शरीर की शून्यता मिटती है।
(104) अर्धागं-वाय १. अरंडी की गूली को बादाम के तेल में भूनकर मिश्री की चासनी के साथ लेने से
अर्धागं-वाय मिटती है। २. उड़दों को सोंठ के साथ औटाकर पीने से अर्धागं-वाय मिटती है।
(105) आम -वात १. सोंठ तथा गिलोय का क्वाथ पीने से पुराना आम वात मिटता है।
(106) लकवा रोग | १. नीम के तेल का मर्दन करने से लकवा मिट जाता है। 2. उड़दों का क्वाथ बनाकर पीने से हड़फूटन मिटती है। 3. लकवा व गठिया- उड़द व सोंठ पीसकर पानी में उबालें, ३ बार पीए इससे लकवा,
व दो बार उड़द की दाल का काढ़ा पीने से गठिया रोग दूर होता है। 4. लकवा होने वाले रोगी के मुँह में जायफल रखना चाहिए तथा उसे दर्पण दिखाना लाभदायक होता है।
(107 ) हाथ-पैरों की ऐंठन (बाईन्टे) तथा चोट पर
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१. अखरोट के तेल का मर्दन करें तो हाथ-पैरों का बायण्टा मिटता है ।
२. अडूसे के पंचांग के क्वाथ या अवलेह के चाटने से आक्षेपक वायु और बाईण्टे मिटते हैं।
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३. अडूसे के फूल तथा पत्तों को तेल में औटाकर उसका मर्दन करने से ऐंठन मिटती है। ४. मूली के पत्तों का रस निकालकर लगाने से सरण चलनी मिटती है। (108) चोट लगकर सूजन आने पर
१. यदि चोट से गाँठ बन जाय तो गेहूँ को जलाकर बराबर गुड़ मिलाकर घृत के साथ २२ तोला तीन दिन खाने से फायदा होता है ।
२. यदि चोट से खून आवे तो ०.८ ग्राम फिटकरी पीसकर ५० ग्राम घृत में भून लें और शक्कर तथा आटा (मेंदा) में मिलाकर हलुआ बनावटखाने से तीन दिन में निश्चय ही आराम होगा।
३. सहेजना की पत्तियों को बराबर के तिल के तेल में पीसकर लगाने से चोट, मोच आदि में लाभदायक होता है।
( 109 ) कमर और पसली पीड़ा
१. आक की जड़ को बालक के मूत्र में पीसकर लेप करके फिर कन्डे की आग से तपाने से पसली की पीड़ा मिटती है।
२. पसली शूल या हर एक अंगों की बादी की शूल मिटाने के लिए अजमोद को गर्म करके जितने भाग में पीड़ा हो उतने भाग पर लगाकर बिस्तरे पर महीन कपड़ा ढँककर सुला देना चाहिये ।
३. पान की जड़ १२.५ - १५ ग्राम प्रतिदिन गुड़ के हलुवे में खाने से १० - १५ दिनों में कमर दर्द मिट जाता है ।
४. अलसी के तेल में सोंठ डालकर गर्म करके मर्दन करने से पीठ की शूल मिट जाती है । ५. कमर और वस्ती की शूल में नमक, अजवाइन और गेहूँ के चोकर की पोटली बनाकर सेंकने से आराम मिलता है।
६. उदर और पसली का शूल मिटाने के लिए आक की छाल को पीस कर लेप करना चाहिए।
७. चिरायता में मधु (मिश्री) मिलाकर गर्म करके लेप करने से कूबड़ापन मिट जाता है। ८. सोंठ के क्वाथ में एरण्ड का तेल मिलाकर पीने से बस्ति, कुष्ठि तथा कमर की शूल मिटती है।
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९. अरण्डी के बीजों को सोंठ मिलाकर पीसकर दूध के साथ सेवन करने से कमर का
दर्द मिटता है। 10. कमरदर्द व जोड़ो का दर्द:- जायफल पानी में घिसकर तिल के तेल में मिलाकर गर्म
करके ठण्डा करें व कमर की मालिश करे। 11. माधवी की मूल को जल में पीसकर पान करने से स्त्रियों की कमर पतली हो जाती है।
(110) सूजन-रोग (शोध रोग) १. अडूसा और अरण्ड के पत्ते तथा अरण्ड के तेल को पानी में औटा कर बफारा देने से
हरेक अंग की सूजन उतर जाती है। २. कैर की लकड़ी घिसकर गर्म करके लेप करने से सूजन उतरती है। ३. सूजन रोग में केवल बकरी का दूध सेवन करना लाभदायक होता है। ४. बुढ़ापे में कमजोरी से सूजन आने पर चिरपोटी का लेप करें अथवा पुनर्नवा की जड़
औटाकर पीवें अथवा धमासा को पानी में उबालकर स्नान करने से सूजन बिल्कुल
उतर जाती है। ५. शरीर के किसी भी भाग की जल युक्त सूजन मिटाने के लिए इन्द्रायण का बफारा व
जुलाब देना चाहिये। ६. पीपल, सोंठ और गुड़ मिलाकर खाने से सूजन, आँव, अजीर्ण और शूल रोग मिट
जाता है। ७. बहेड़ा की मिंगी को पानी में पीसकर लेप करने से सूजन का दाह भी मिट जाता है। ८. नाभि की सूजन पर- बकरी की मिंगनी को दूध में घोलकर गर्म करके लेप करें।
(111) मृगी रोग १. आक की जड़ की छाल को बकरी के दूध में घिसकर नाक में टपकाने से मृगी मिटती है। २. ढाक की जड़ घिसकर रोग के वेग के समय नाक में टपकाने से मृगी रोग मिटता है। ३. २१ जायफलों की माला पहने रहने से मृगी रोग में फायदा होता है। ४. राई को पीसकर सूंघने से मृगी का वेग दूर हो जाता है अथवा प्याज के रस को सूंघने
से मृगी मिटती है। ५. सरसों के तेल को गौमूत्र तथा गोबर और बकरी का मूत्र चौगुना में पकाकर मालिश
करने से मृगी मिटती है। ६. सीताफल के बीजों की मिंगी पीसकर कपड़े की बत्ती में रखकर जलावें और उस धुएँ
को नाक में लेने से मृगी के समय लाभ होता है।
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८. मालकांगनी के तेल में कस्तूरी चटाने से मृगी रोग मिट जाता है। ९. अरोठा को कपड़े से छान करके हमेशा सूंघने से मृगी रोग अवश्य मिट जाता है। १०. अरीठा की थोड़ी सी मिंगी मुँह में रखने से मृगी वाले रोगी को होश आ जाता है। ११. राई और सरसों को गौमूत्र में पीसकर शरीर में लेप करने से मृगी रोग मिट जाता है। १२. भेड़िया के दाँत गले में बाँधने से मृगी नहीं आती है।
(112) उन्माद (पागलपन) रोग १. नीम्बू की गिरी निकालकर धूप में सुखाकर उन्माद रोगी के तकिये के नीचे रखने से ___शांति मिलती है। २. नीम्बू के रस का मस्तक पर मर्दन करने से पागलपन मिट जाता है। ३. ब्राह्मी के साथ गिलोय का क्वाथ पीने से उन्माद रोग मिटता है। ४. उन्माद मिटाने के लिये सरसों के तेल की नस्य व मालिस का प्रतिदिन प्रयोग करना
चाहिये। ५. किसी मनुष्य के सिर के बाल जलाकर तिल के तेल में या रोगनगुल में मिलाकर नाक
में टपकाने से पागलपन मिटता है। ६. मुर्गे के बाल जलाकर नाक में धूनी देने से उन्माद रोग मिटता है। ८. घी और कालीमिर्च पीने से बादी का पागलपन मिटता है। ९. अच्छा जुलाब देने से पित्त का उन्माद मिटता है अथवा वमन कराने से कफ का उन्माद
मिटता है। १०. मेहंदी के बीजों की फाकी लेने से प्रलाप रोग मिटता है। ११. अजवाइन २.४ ग्राम दाख के साथ सेवन करने से चित्तभ्रम रोग मिटता है। १२. जवासा का क्वाथ बनाकर उसमें घृत मिलाकर पीने से उन्माद रोग मिटता है।
(113) डिप्रेशन (अवसाद) दूर करने हेतु 1. डिप्रेशन (अवसाद) दूर करने हेतु :-पीपल की लकड़ी चंदन की भांति घिसकर रात्रि में मस्तक पर लगाने से डिप्रेशन समाप्त होता है।
(114) मूर्छा रोग १. पीपल को पानी में घिसकर अंजन करने से मूर्छा मिटती है अथवा राई पीसकर सूंघने
से मूर्छा मिटती है। २. मूर्छा वाले रोगी के शरीर पर सुई चुभाओ या खाल के बाल उखाड़ो तो मूर्छा मिट
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जायेगी। ३. मुँह पर ठण्डे पानी के छींटे मारने से व पंखे पर पानी डालकर मुँह पर ढुलाने से मूर्छा
मिटती है। ४. साबुन को पानी में घिसकर आँख में आँजने से मूर्छा मिटती है। ५. मेनसिल, वच और लहसुन को गौमूत्र में घिसकर आँजने से मूर्छा मिटती है। ६. चमत्कारी मणि को सिर पर धरने से मूर्छा मिटती है। ७. मीठे अनार के शर्बत में मिश्री मिलाकर या दाख के शर्बत में मिश्री मिलाकर पीने से
मूर्छा मिटती है। ८. मद्यपान की मूर्छा में पीटने से या सो जाने से फायदा होता है। 9. नौसादर, केशरदाना पीसकर सुंघावें तो मूर्छा दूर होती है, कई रोग दूर होते हैं।
(115) चक्कर आना रोग 1. यदि चक्कर आते हों तो अगर की लकड़ी ढूँघनी चाहिए।
(116) पाण्डु रोग १. अडूसा के रस में कलमीशोरा डालकर पीने से मूत्र-वृद्धि होकर पांडु रोग मिटता है
तथा जलोदर भी मिटता है। २. छाछ के साथ ७ कालीमिर्च सेवन से पांडु रोग मिटता है। ३. गौमूत्र के साथ योगराज गुग्गल लेने से पांडु रोग तथा सूजन मिटती है।
(117) पीलिया (कामलारोग) रोग १. नीम के पत्तों के रस में मिश्री मिलाकर पीने से पीलिया (कामलारोग) रोग मिटता है। २. नीम्बू का रस आँख में डालने से कामला मिटता हैं अथवा पित्त- पापड़ा का फांट पीने
से भी कामला मिटता है। ३. करेला के पत्तों के रस में बड़ी हरड़ घिसकर चाटने से पीलिया रोग मिट जाता है। ४. गाय की छाछ में लाल फिटकड़ी का फूल्या पीने से पीलिया रोग मिट जाता है। ५. गाय के दूध में सोंठ मिलाकर पीने से कामला रोग मिटता है। ६. गुड़, हरड़, गौमूत्र, लौहभस्म इनका काढ़ा करके सेवन करने से कामला रोग मिट जाता है। ७. हल्दी, दारूहल्दी, सोंठ मिर्च, पीपल के चूर्ण लौहभस्म के साथ घृत शक्कर मिलाकर
पीने से कामला मिटता है। ८. भांगरे के रस में कालीमिर्च मिलाकर प्रातः काल दही के साथ लेने से कामला रोग
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मिटता है।
9. खाने का सोड़ा .2 ग्राम दही में मिलाकर खावें तो पीलिया रोग (कावील) दूर हो जाता है। गन्ने का रस और दूध लेने से और भी लाभ होगा। घी का परहेज रखना, खाना नहीं ।
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(118) पोलियो रोग
1. पोलियो रोग निवारण- अदरक, चिरायता दोनों को समान भाग लेकर पीसकर मटर समान गोली बना लें। प्रतिदिन सुबह एक सप्ताह तक एक-एक गोली खाएं तो आराम हो जाएगा।
(119) कुष्ठ (कोढ़) रोग
१. नीम के ताजे पत्तों का रस शरीर पर मर्दन करने से कुष्ठ रोग में फायदा होता है। २. नीम के कोमल पत्ते घोटकर लगातार पीने से कोढ़ रोग मिटता है।
३. तुरई के बीजों का लेप करने से कोढ़ मिटता है ।
४. १ वर्ष तक लगातार कालाजीरी की फाकी लेने से कोढ़ रोग सम्बन्धी सभी रोग मिट जाते हैं।
५. बबूल की छाल ३७.५ ग्राम का हिम प्रतिदिन पीने से कुष्ठ रोग मिट जाता है ।
६.
नीम की छाल के साथ योगराज गुग्गल लेने से कष्ठ साध्य कुष्ठ रोग मिट जाता है। ७. आँवला के रस में सनाय सेवन करने से कुष्ठ रोग मिट जाता है।
8. गुड़ के साथ हल्दी की गोली बनाकर गौमूत्र के साथ लेने से कोढ़ रोग मिट जाता है
10. १२ वर्ष तक नीम के नीचे रहने से पित्त का गलित कोढ़ मिट जाता है।
11. चित्रक का लेप या मर्दन करने से मंडल कोढ़ भी मिट जाता है।
12. हड़ताल की भस्म .०५ ग्राम पान में खाने से कुष्ठ रोग मिट जाता है, कम से कम २ महीने तक खावें ।
13. खैर का काढ़ा प्रतिदिन पीने से व स्नान के काम में लेने से नख रोम उत्पन्न होकर शरीर शुद्ध हो जाता है अर्थात् कुष्ठ रोग का उप- शमन हो जाता है 1
14. कुष्ठ रोग :- कनेर की ताजी जड़ को सरसों के तेल में उबालकर ठंडा कर छान लें, फिर उस तेल को प्रभावित भागों पर लगाने से रोग निर्वृत्ति होती है।
15. यदि त्रिफला को लौह भस्म, सोना मुखी, पीपल, वायविडंग, भांगरा के चूर्ण के साथ सेवन की जाय तो यह तीन गुणों को प्रकट करता है तथा इसे घृत और दूध के साथ सेवन करें तो कुष्ठ रोग को भी मिटाती है।
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(120) वभूति रोग
१.
केली का खार, हल्दी, दारूहल्दी, मूली का बीज, हरताल, देवदारू, शंख का महीन चूर्ण, इन सबको बराबर लेकर नागरबेल के पान के रस में महीन पीसकर लेप करने से वभूति रोग मिट जाता है ।
(121) श्वेत कुष्ठ रोग
१. घुंघची और चित्रक को पानी में पीसकर लगाना चाहिये अथवा मेनसिल व चिरचिरा की राख को पानी में पीसकर लेप करने से श्वेत कुष्ठ मिटता है ।
२.
पीली चमेली, गज पीपल, कसीस, विडंग मेनसिल, गौरोचन, संधव को समभाग गौमूत्र में पीसकर लेप करने से श्वेत कुष्ठ मिटता है ।
३. गंधक, आमलासार, चित्रक, कसीस, हरताल और त्रिफला इनके चूर्ण का गौमूत्र में लेप करना चाहिये ।
४. मालकांगनी को २१ दिन गौमूत्र में भिगोकर उसका तेल लगाने से श्वेत कोढ़ मिटता है। ५. हरताल १ भाग, बावची २ भाग, गौरोचन १ भाग को गौमूत्र में पीसकर लेप करने से सफेद कोढ़ मिटता है।
6. नौसादर को तिल के तेल में मिलाकर लेप करने से सफेद कोढ़ मिटता है ।
7. नीम के पत्तों के साथ सोनामुखी लेने से सफेद कोढ़ मिट जाता है।
8. सफेद कोढ़ के आरम्भ में अंजीर के पत्तों का रस लगाने से रोग बढ़ना बन्द हो जाता है I (122) सफेद दाग
1. सफेद दाग :- श्वेत आक के दूध में सेंधा नमक घिसकर छोटे-छोटे सफेद दागों पर लगाने से वह ठीक हो जाते हैं ।
2. श्वेत घुंघची पीसकर, जल लेप करे कोय ।
श्वेत दाग तिनके मिटै, निर्मल काया होय ॥
६. अरण्ड की काकड़ी का दूधिया रस लगाने से सफेद दाग व चर्मरोग मिटते हैं ।
७. चालमोगरे का तेल मलहम की तरह लगाने से सफेद दाग मिटे |
८. आक की जड़, गन्धक, हरताल, कुटकी, हल्दी को बराबर लेकर गौमूत्र में पीसकर ७ दिन तक लगातार लेप करने से सफेद दाग मिट जाते हैं ।
(123) चर्म रोग
1. चर्म रोग - कीकर (बबूल) का लेप बनाकर त्वचा पर लगाने से चर्म रोग दूर होता है। 2. चर्म रोग - नौसादर को कौड़ी के साथ घिसकर रोग पर लगाने से लाभ होगा।
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3. चर्म रोग- चम्पा के फूलों को पीसकर चर्म रोग या कुष्ट रोगी के शरीर पर लगाने से
बहुत लाभ होता है। अथवा चमेली का तेल लगाएं। 4. मूली का बीज नीम्बू के रस में लगावें तो भभूत चर्म रोग नष्ट होता है। 5. नारंगी की कलीपर सेंधा नमक डाल कर चर्म रोग (भभूत) पर रगड़ने से नष्ट हो
जाता है। 6. कपड़ों की भस्म को लगाने वालों के घर प्रायः रोगाक्रमण भी नहीं होते हैं। भस्म के प्रयोग से कामान्धता दूर होती है। अनेक प्रकार की चर्म व्याधि और कुष्ठ रोग भस्म के
प्रयोग से ठीक हो जाते हैं। 7. कर्पूर खोपरा के तेल में मिलाकर मालिश करें तो (पिस्ती) चर्मरोग मिटे। 8. फिटकरी, नमक पानी में बांटकर लेप करें तो पिस्ती चर्मरोग मिटे। 9. लकड़ी की राख छानकर बदन पर मालिश करें, कपड़ा उड़ावें तो चट्टे चर्मरोग
(पिस्ती) मिटे। 10. पुवाड (भुई तरवट) का बीज पीसकर कपड़े से छानकर दही में लगावे तो दाद (गजकर्ण चर्मरोग) नष्ट हो जाता है।
(124) बवासीर (मस्सा) रोग १. गाय की छाछ में सेंधानमक मिलाकर कई दिन सेवन करने से बादी का बवासीर
मिटता है। २. जमीकन्द पर माटी लेपटकर भाड़ में भरोथ्यो (भून) करके पीछे माटी हटाकर फिर
सेंधानमक लगाकर उसके टुकड़े कर लें। घी या तेल लगाकर २५ ग्राम प्रमाण
प्रतिदिन ३१ दिन पर्यन्त खाने से बादी का बवासीर मिटता है। ३. आक के ताजे पत्तों को पाँचों नमक अनुमान माफिक लगाकर तथा तेल व खटाई
लगाकर फिर दग्ध करें, पश्चात् उस भस्म को ३.२-४ ग्राम गर्म पानी से ५ दिन लेने
से बादी का बवासीर मिट जाता है। ४. वन्दाल के पत्तों को औटाकर उससे सिंचा लेवें अथवा वन्दाल के डोंडों की धूनी देवें
तो बादी का बवासीर मिट जाता है। 5. बवासीर की खाज पर कुचेला को पानी में पीसकर लेप करें। 6. बवासीर में कपूर की धूनी देने से मिट जाता है। 7. लालचन्दन, नीम की छाल, धमासा, सोंठ इन सबका काढ़ा ३१ दिन देने से सब तरह
का मस्सा मिटे।
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8. हजार बार मले हुए घृत में मली तथा कपूर मिलाकर मस्सा में लगाने से फायदा होता है। 9. भाँग को उबाल कर गुदा पर बाँधने से मस्सा रोग में आराम मिलता है।
10. नीम और कनेर की जड़ की छाल की बुकनी बना लें, दोनों समान भाग करके और बवासीर पर थोड़ा-थोड़ा लगाने से मस्से सूखकर गिर पड़ेंगे।
11. १ ग्राम जंगाल को मलाई में मिलाकर मस्सों पर मलकर ऊपर सेक करने से ३ दिन में मस्सा दूर हो जायेगा ।
|
12. चित्रक को बारीक पीसकर एक निर्मल घड़े में उसके अन्दर लेप करें, फिर उस घड़े में रखी हुई छाछ को प्रतिदिन सेवन करने से मस्सा रोग मिट जाता है 13. थूहर का दूध मस्सा पर लगाने से बवासीर (मस्सा) नष्ट हो जाता है । 14. नीम और पीपल के पत्तों को पीसकर लेप करने से भी मस्सा रोग मिट जाता है । 15. सहजना के पत्तों को महीन पीसकर लेप करने से मस्सा मिटता है ।
16. बारहसिंगा के सींग को पानी में घिसकर लेप करने से मस्सा रोग मिट जाता है। 17. मस्सा के रोगी को खाने के लिए अन्न कम मात्रा में देकर अम्ल छाछ पीने को देनी चाहिये ।
18. मस्सा के रोगी को अदरक, कूट, चित्रक, पुनर्नवा इनसे सिद्ध पानी व इन्हीं औषधियों से पकाए हुए दूध को पीना चाहिये ।
19. यदि मस्सा ज्यादा परेशान करता हो तो भांगरा और गूलर के पत्ते बराबर पीसकर लेप करें ।
20. आम और जामुन की पुरानी गुठली की गिरी सम भाग लेकर चूर्ण बना लें । मात्रा २.४ ग्राम चावलों के धोवन में खावें ।
21.
अनार के पत्तों को पीसकर टिकिया बना लें, फिर उसे घी में भूनकर बांधने से मस्से नष्ट होते हैं। अनार के छिलकों की राख जल में घोल कर उससे गुदा साफ करने से भी लाभ होता है।
22. अंकोल (ढ़ेरा, अकोसर, अकोड़ा, अकोरा, आदि नाम भी हैं) के चूर्ण को २ ग्राम की मात्रा में काली मिर्च एक ग्राम के साथ मिलाकर चूर्ण बनाकर पिलाने तथा मस्सों पर इसकी जड़ के चूर्ण को मोम या बेसलीन में मिलाकर लगाने से आराम होता है।
23. बवासीर में- पपीते का दूध बवासीर के मस्सों पर लगाने से वे सूख जाते हैं। बबासीर- सत्यानासी (भटकटैया, पीलाघतूरा) के १पाव बीज को ३ पाव सरसों के तेल में उबाल कर छान ले फिर मस्से पर लगाए लाभ होगा।
24.
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25. बबासीर :- बबासीर में आक के दूध में अफीम घोलकर ,मस्सों पर लगाने से
उनका दर्द दूर हो जाता है। 26. बबासीर (पाइल्स):- बबासीर में रक्त आता हो तो नींबू के टुकड़े में सेंधा नमक
भरकर चूसने से रक्तस्राव बंद हो जाता है। 27. बादी बबासीर में - छोटी हरड़ के चूर्ण को तीन ग्राम मात्रा में थोड़ा सैंधा नमक
मिलाकर पानी के साथ दिन में दो बार लेने से लाभ होता है। मस्सों पर पानी में
घिसकर हरण को लगाने से पीड़ा दूर होती है मस्से सिकुड़ते हैं। 28. रक्तार्श बबासीर :- खूनी बबासीर हो तो हरड़ छोटी को १५ ग्राम लेकर जौकुट
करें, इसे एक किलो पानी में डालकर काढ़ा बनावें जब १०० मिली के लगभग
शेष रहे तब इसमें से ५० मिली प्रातः तथा सायं काल पिलाना चाहिए। 29. अनार के फल के छिलको का १ चम्मच चूर्ण दिन में तीन बार लेने से खूनी
बबासीरमें लाभ होता है। 30. बवासीर निवारण हेतु -हरसिंगार के फूल की पंखुड़ी 7 ग्राम, काली मिर्च 3
ग्राम. भांग 2 ग्राम पाऊडर बनाकर खाली पेट एक माह में 1 बार 6 ग्राम की मात्राा में चाटें इस प्रकार 5माह लेने से सम्पूर्ण प्रकार की बवासीर मिटती हैं . सात दिन तक पके केले के अन्दर 5 ग्राम कपूर रखकर खाने से बवासीर में आराम मिलता हैं। अथवा नीम की बिनौली सुखाकर पीसकर पानी के साथ लें। चाय मिर्च का परहेज करे।
दही अथवा छाछ का सेवन करें तो बवासीर ठीक होगी। 32. खूनी बवासीर के लिए- सूखे आँवलों के छिलकों का चूर्ण ३.२ ग्राम और मिश्री
३.२ ग्राम मिलाकर खाना चाहिये। 33. नागकेशर ४.८ ग्राम, मिश्री १२.५ ग्राम मिलाकर नित्य खाने से खूनी बवासीर में
निश्चय ही आराम होगा। 34. ५ खुरमानी को रात में भिगो दें, सुबह उस पानी को पीवें व खुरमानी को खावें, इससे
बवासीर में आने वाले खूनी दस्तें रुकेंगी। 35. १ नारियल के छिलके को जलाकर उसकी राख बना लें फिर उसके बराबर शक्कर
मिला लें और तीन खुराक करके ले लें इससे मस्सा का खून बन्द हो जायेगा और १
साल तक वापिस नहीं होगा। 36. ननौसादर, चौख, नीम्बू के रस में गोली बना लेवें, और गोली को घिसकर मस्से पर लगाने से मस्सा झड़ जाता है। मस्सा नहीं रहता।
(125) मूत्र (पेशाब) रोग
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१. पेडू पर कलमीसोरा लगाने से अथवा हींग के पानी का लेप करने से मूत्र लगे। २. ४ ग्राम जवाखार मिश्री के साथ लेने से मूत्र का बँध छूट जाये। ३. पेठे का बीज व तेबरसी के बीज इन दोनों को पानी में पीसकर १.६ ग्राम जवाखार ___डालकर पीने से मूत्र का बँध छूटे। ४. आँवला को ठण्डे पानी में पीसकर पेडू पर लेप करने से मूत्र बँध छूटता है। ५. चीणिया कपूर की बत्ती बनाकर लिंग या बस्तिस्थान में देने से मूत्र बँध छूटता है। ६. काली भैंस की पाड़ी के दाहिने कान की कीटी को तलवा पर लगाने से तुरन्त मूत्र
लग जाता है। ७. ठण्डे पानी की धार काफी देर गुप्त स्थान पर देने से पेशाब लग जाती है। ८. पेट के पेडू पर तालाब की माटी को गीली करके गोल कुण्डाला बनावें और ठण्डा
पानी भरें तो पेशाब लग जाती है। ८. दूध में पुराना गुड़ या मिश्री मिलाकर पीने से मूत्र रोग मिटता है। इसे पेट भर पीने से
विशेष फायदा होता है। ९. गोखरू के काढ़ा में जवाखार मिलाकर पीने से मूत्र की रुकावट मिटती है। १०. कन्टाली के रस में मिश्री मिलाकर पीने से मूत्र कृच्छ रोग मिटे। 11. शोरा ६.४ ग्राम, जवाखार ६.४ ग्राम इन दोनों की फाकी लेकर ऊपर गौमूत्र पीने से मूत्रावरोध मिटता है। 12. तालमखाने का बीज, पीपल, कौंच के बीज, मूलेठी इन सबका चूर्ण बना लें और ___उसमें घी-शक्कर मिलाकर चाटें। ऊपर से दूध पीवें। इससे सम्पूर्ण मूत्र रोग मिटते हैं। 13. पुनर्नवा (साटी की जड़) के सेवन से मूत्र रोग मिट जाता है। 14. ४.८ ग्राम जवाखार और इतना ही गुड़ मिलाकर लेने से मूत्र रोग मिटता है इसे गाय
की छाछ के साथ लेना चाहिये। 15. नाक तथा मूत्र में रूधिर आवे तो- दूब को मिश्री के साथ पीसकर पिलाना चाहिये। 16. बहुमूत्र, मधुमेह- हल्दी व तिल लेकर उसमें गुड़ मिलाकर सादे पानी से लेवें बहूमूत्र
रोग ठीक होगा। 17. बहुमूत्र- काले चने दूध में भिगाकर सुबह खाएं तथा जौ व चने की रोटी खाएं
बहुमूत्रबाधा दूर होगी। 18. पेशाब में रुकावट :- पेडू पर राई का लेप करे पेशाब में रूकावट दूर होगी। 19. मूत्र के साथ वीर्य जाने पर- छोंकर (छोटे-छोटे कांटों वाली झाड़ी, शमी, तुगा,
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शक्तुफला शमीर, शिवाफली, लक्ष्मी, छेकुर, छिकुरा,खीजड़ी आदि कहते है) के कोमल पत्तों के रस में ५ ग्राम भुना जीरा, शक्कर तथा गाय का घी मिलाकर चाटना
चाहिए। 20. पेशाब की जलन में- बथुआ के पत्तों का रस २०० ग्राम मिश्री के साथ सेवन करने
से मूत्रकृच्छ दूर होता है। 21. पेशाब में जलन :- आधा कप चावल के मांड में चीनी मिलाकर पीने से पेशाब की
जलन ठीक होती है। 22. पेशाब साफ खुलकर आने हेतु - पुनर्नवा के पत्तों का रस १० ग्राम सुबह-शाम
पीकर ऊपर से धारोष्ठा गो दुग्ध लेना चाहिए इससे मूत्र कृच्छ में आराम मिलता है। 23. बार-बार पेशाब आना- अनार का छिलका पीसकर ४ माशा ताजे जल के साथ दो
बार १० दिन तक खाने से राहत मिलती है। 24. कलमीसोरा 2.4 गाम, नील 2.4 ग्राम लेकर दोनों को पानी में पीसकर नाभि के नीचे
लेप करने से मूत्र खुलकर आता है। 25. मूंगों की भस्म एक रत्ती में मिश्री की चासनी मिलाकर लेने से कफ जन्य मूत्र कृच्छ
रोग मिटता है। 26. गोखरू के एक छटांक क्वाथ में 2.3 ग्राम जवाखार पीने से निश्चय ही पेशाब साफ __ आता है। 28. सफेद मूसली, तालवृक्ष की जड़, छुवारा, पक्का केला इनको दूध में सेवन करने से अति मूत्र रोग मिटता है।
(126) निद्रा रोग पित्ति-रोग 1. पीपलामूल के चूर्ण को गुड़ में खाने से नींद आती है। 2. काक लहरी की जड़ को सिर पर बाँधने से नींद आती है। 3. बैंगन का भरोत्या (भड़ीता) बनाकर मिश्री के साथ खाने से नींद आती है। 4.बकरी के दूध से पाँवों की पगथलियों में मालिश करने से नींद आती है और दाह मिटती है। 5. स्त्री के दूध में थोड़ी कस्तूरी घिसकर आँजने से बहुत दिनों से रही हुई नींद आती
6. कमलगट्टा, सहजना का बीज, नागकेशर इन सबको महीन घोटकर आँखों में आँजने से नींद आती है। 7. थोड़ा जायफल घृत में घिसकर पलकों पर लगाने से निद्रा आती है।
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8. औटाया हुआ भैंस का दूध मिश्री मिलाकर पीने से निद्रा आती है। (127) पित्ति (पिस्ती) रोग
1. आरणा छाणा की राख को सिर पर मर्दन करने से पित्ति मिटती है ।
2. नागरबेल के पान के रस में फिटकरी पीसकर लेप करने से पित्ति मिटती है।
3. घृत में कालीमिर्च का चूर्ण पीने से अथवा ताँबा का पैसा मोटा वाला मुँह में रखने से पित्ति मिटती है ।
(128) प्रमेह और मधुमेह रोग
1. नागरमोथा, त्रिफला, हल्दी, देवदारू, मुर्वा, इन्द्राजौ, लोद इन सबका काढ़ा देने से सब तरह का प्रमेह रोग मिटता है।
2. पक्का गूलर का फल, सेंधानमक के साथ खाने से असाध्य प्रमेह रोग मिट जाता है।
3. कच्ची हल्दी को छीलकर बारीक कतर लो, फिर नमक मशाला लगा कर खावें या
साग बनाकर खाने से सुगर (मधुमेह) की सभी प्रकार की बीमारी मिट जाती है। 4. जामुन की गुठली की भस्म मधु प्रमेह को दूर करती है। इसके पत्तों की भस्म भी वही कार्य करती है।
(129) मधुमेह रोग
1. हल्दी का चूर्ण पानी के साथ सुबह शाम लेवें मधुमेह ठीक होगा ।
2. कपास की गिरी 12.5 ग्राम को अधकुटा करके रात को गर्म पानी में भिगो दें और सुबह पानी को नितराकर उस पानी में 50 ग्राम शर्बत बजूरी मिलाकर पीवें । इससे मधुमेह, बहुमूत्र और कमर दर्द मिट जाता है।
3. केले का रस निचोड़कर 25 ग्राम और कलमीसोरा आधा माशा मिला कर पीने से जलन व सुजाक रोग मिट जाता है ।
4. जामुन के हरे पत्ते कोमल देखकर 7.2 ग्राम को बारीक पीसकर छान लें और 62. 5 ग्राम जल में 11 दिन तक पीने से मधुमेह रोग मिटता है ।
5. जामुन की गुठली का चूर्ण 4.5 ग्राम दिन में 3 बार पानी से लेने से मधुमेह रोग मिटता है ।
6. मधूमेह - ऊँटकटारा (ल्हैया, घोढ़ा, चोढ़ा, उत्कंटो, काटेचुम्बक भी कहते हैं) की जड़ का चूर्ण ३ ग्राम गुड़मार चूर्ण ३ ग्राम गोदुग्ध से लेने पर मधुमेह जड़ से चला जाता है। (130) डायरिया
(1) डायरिया - डायरिया में बांस की पत्तियों का काढ़ा पिलायें लाभ होगा ।
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__ (131) मेदरोग 1. चावलों का मांड पीने से अथवा बासा ठण्डा पानी में मिश्री मिलाकर पीने से मेद
रोग मिटता है। 2. धतूरे के पत्तों के रस का मर्दन करने से रोग मिटता है। 3. पीपल का चूर्ण मिश्री की चासनी में चाटने से मेद रोग मिटता है। 4. इस मेद रोग में पुराना चावल, मूंग कुलथ, कोदू आदि का सेवन उत्तम होता है।
(132) शरीर में पसीने की दुर्गन्ध 1. नित्य स्नान करते समय पानी में थोड़ा डिटॉल डालकर स्नान करने से शरीर की सफाई होती है। 2. शरीर पर मसाले का तेल लगाने से गंध मिट जाती है। 3. नागरबेल का पान, हरड़ की छाल, कूट इनको पानी में पीसकर मर्दन करने से शरीर की दुर्गन्ध तत्काल मिटती है। 4. बबूल की छाल को पानी में पीसकर मर्दन करने से या स्नान करने से शरीर की
दुर्गन्ध तत्काल मिटती है। 5 कदंब पुष्प, लोध व अर्जुनवृक्ष की जड़ को पीसकर लेप करने से शरीर की
दुर्गन्ध दूर होती है। 6. शरीर बांध दूर- बिलपत्र, आंवला, हर्र तीनों पीसकर शरीर के किसी भी भाग की
बदबू मिट जाती है। 7. शरीर की दुर्गध नष्ट- लोध जामुन के पत्ते अर्जुन के फूल के लेप से दुर्गंध नष्ट हो जाती है।
( 133) काँख की दुर्गन्ध के लिए 1. नीम्बू के पत्तों के रस का लेप करने से पसीना तथा दुर्गन्ध मिट जाती है। 2. हल्दी को अधजली करके चूर्ण बनाकर पानी में लेप करने से पसीना आदि मिटता
(134) कैंसर ,अल्सर रोग 1. तुलसी के 7-8 पत्ते दही में खाने से कैंसर रोग मिटता है, इसका लम्बे समय तक
प्रयोग करना चाहिये। 2. गेंहूँ के कोमल पौधों को पीसकर उसमें मिश्री मिलाकर लम्बे समय तक पीने से
कैंसर रोग मिटता है। 3. अल्सर, कैंसर इत्यदि उपचार :- अल्सर अथवा मैलिग्जेंट की गांठ को कनेर की
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सहायता से ठीक किया जा सकता है। कनेर पुष्पों का अवलेह बनाकर पानी के साथ संबंधित स्थान पर लगाया जाता है।
4. कैंसर - तुलसी के ताजे २५ पत्ते पीसकर १०० ग्राम मट्ठे के साथ २१ दिन तक लेने
से लाभ होता है। रोग समूल नष्ट होने तक पिलाते रहें।
(135) खुजली दूर
; 1. खुजली दूर - तुलसी के पत्ते, लहसुन व काली मिर्च को पीसकर कुनकुना लेप लगाने से खाज-खुजली निश्चित दूर हो जाती है। (136) व्रण (फोड़ा - फुन्सी) रोग
जौ, गेहूँ और उड़द को महीन पीसकर पानी में गर्म करके
1. व्रण पकने के लिए
लेप करने से व्रण पक जाता है।
2. नीम का पत्ता, नील, दांतुणी, निसोत, सेंधानमक इन सबको महीन पीसकर लेप करने से भयंकर व्रण भी मिट जाता है ।
3. गुग्गल के साथ त्रिफल का क्वाथ पीने से व्रण रोग मिट जाता है ।
4. पाँवों की अँगुलियों के फोड़ा होने पर उपाय गुलाब की पत्तियों को गुलाब जल में पीसकर गर्म करके गाढ़ा - गाढ़ा लेप करें और ऊपर से बंगला पान बाँधने से सब प्रकार के फोड़ों को पकाकर मवाद निकाल देता है ।
-
5. बबूल की गोंद और कबेला 12.5-15 ग्राम इनको पानी में पीसकर लगावें, ऊपर से बंगला पान बाँधे इससे फोड़ा पक्कर मवाद निकलकर फायदा होगा ।
(137) दाद और पाँव तथा खुजली रोग 1. घृत, धतूरा, पारा और गन्धक के चूर्ण का मर्दन करने से खुजली मिटती है।
2. अन्दाजन 1 पाव गुड़ की नरम डली को दाद पर बार-बार रख कर उठाते रहने से पुराने से पुराना भयानक दाद भी मिट जाता है।
3. लोपा हुआ पुराना लेवड़ा पर सुबह उठते ही थूक डालकर रगड़ कर उस मल्हम को लगाने से दाद मिट जाता है।
4. सुबह उठते ही अपने बासी थूक को लगाने से दाद मिटती है।
5. इमली छाल जलायके, अलसी तेल मिलाय ।
दाद होय तहां लेपिये, रोग पुराना जाय ।।
6. सिंघाडा का आटा 4.8 ग्राम और अफीम 0.8 ग्राम इन दोनों को नीम्बू के रस में घोटकर लेप करने से सूखा दाद मिट जाता है।
7. 50 ग्राम सरसों को जल में महीन पीसकर गुनगुना करके उबटन करें फिर गर्म पानी
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से स्नान करे तो सूखी खुजली मिट जाय। 8. सूखे आँवले, सफेद कत्था, पंवाड के बीज इनको बराबर लेकर दही के तोड़ में
पीसकर मेहँदी की तरह लगावें इससे नया दाद मिटे। 9. कपास के बीजों को नीम्बू के रस में पीसकर, दाद को कण्डे से खुजालकर लेप करने
से दाद रोग मिटता है। 10. कनेर की पत्तियों की भस्म सरसों के तेल में मिलाकर लगाने से दाद, खाज, फोड़ा, ___ कुंसियाँ दूर होती है। 11. दाद- मूंग पानी में भिगोए पानी सोखने पर दाद पर मलें दाद ठीक होगी।
(138) घाव ठीक के बाद सफेद दाग का उपाय 1. मेनशिल, मजीठ, लाख तथा दोनों हल्दी सबको बराबर महीन पीस कर घृत और मधु (चाशनी) मिलाकर दाग पर लेप करने से घाव के दाग मिटकर शरीर की त्वचा
सदृश हो जाती है। 2. मूली के बीजों को पानी में पीसकर लगावें और धूप में बैठें। इस तरह 7 दिन तक
करने से घाव का दाग मिट जाता है। 3. चर्म रोग हर मल्हम : पारा, गंधक, कालीमिर्च, नीलाथोथा, सिन्दूर, कालाजीरा,
सफेदजीर, 12.5-12.5 ग्राम लेकर पहले पारा और गंधक की कजली करें। फिर सबका बारीक चूर्ण मिलाकर खूब खरल करें पश्चात् सबके बराबर धोये हुये हुए घृत में मिलाकर मल्हम बना लें। इसके लगाने से पामा, खुजली, दाद आदि रोग मिटते
4. नाड़ी व्रण (नासूर)- थूहर के दूध तथा आक के दूध में दारूहल्दी भिंगोकर घिस लें और बत्ती बनाकर व्रण के मुँह में रखें। इससे नासूर तक मिट जाता है।
(139) अग्रि से जले हुए तथा अन्य उपाय 1. अग्रि से जले हुए रोगी को अग्रि से तपाना लाभदायक होता है। 2. अगर आदि गर्म वस्तुओं का लेप करने से अग्नि से जले हुए में फायदा होता है। 3. पुराना खाने का चूना लेकर दही के तोड़ में मिलाकर लेप करने से जले हुए का फफोला मिट जाता है। 4. जौं को जलाकर राख बनाकर तिल के तिल में मिलाकर लेप करने से जले हुए में फायदा होता है। 5. भुना हुआ जीरा महीन कर उसके बराबर मोम, राल और घृत मिलाकर लेप करने से जले हुए में फायदा होता है।
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6. दही (मट्ठा) में बारीक नमक मिलाकर जले हुए पर लगाने से तत्काल आराम हो जाता
7. चने के पानी में नारियल का तेल खूब मथकर लगाने से जले हुए में फायदा होता
8. सरसों का तेल लगाकर ऊपर पीसी हुई मेहँदी बुरकाने से जले हुए में आराम हो जाता
(140) हड्डी टूटने पर 1. लाख, गंगेरन की छाल, अर्जुन वृक्ष की छाल, असगंध, विजैसार, इन सबको समान
भाग लेकर तथा गूगल एक दवा से तिगुना लेकर सबको पीसकर घृत में अच्छी तरह मिला लें, फिर उसकी 6.4 ग्राम प्रमाण गोलियाँ बनाकर 1 गोली दूध के साथ खाने से अस्थि भंग, तथा टूटी हुई हड्डी जुड़ जाय और दृढ़ हो जाय।
(141) काँच निकालना 1. 50 ग्राम अनार के छिलके को पानी में उबाल लें और छानकर ठण्डा होने पर उससे ___ सिंचा (आबदस्त) लेवें, इससे काँच निकालना रोग मिट जाता है।
2. गुदा (काँच) निकलने पर- कमल के पत्तों की १ तोला चटनी खांड के साथ खाने ___ से काँच निकलना बन्द हो जाता है। 3. गुदा निकलना- (अपराजिता, कोमल, कालीजर, धन्वन्तरि, बिष्णुकान्ता), अपराजिता की जड़ कमर में बांधने से काँच (गुदा) निकलना बन्द हो जाती है।
(42) अधो वायु बंध का उपाय (1) अधो वायु बंध का उपाय- बिजोर के पत्ते के चूर्ण को सायंकाल के समय घृत में ___ मिलाकर चाटने से तथा फल के समान मुख में रखने से अधोवायु नहीं निकलतौ।
(143) हाथ पॉवों की व्याऊ फटने पर 1. मोम, सेंधानमक, गूगल, गेरूं, घृत, मिश्री और खस की मल्हम (मरहम) बनाकर लगाने ___ से ब्याऊ रोग मिटता है। 2. धतूरे के बीज और जवाखार को सरसों के तेल में पकाकर मर्दन करने से ब्याऊ
रोग मिट जाता है। 3. पुराने गुड़ को गर्म करके लगाने से ब्याऊ रोग मिटता है। 4. मोम को दीपक की लौ से गर्म करके ब्याऊ में भरने से ब्याऊ मिटता है। 5. मोम, घृत और नमक इन तीनों को किसी पात्र में गर्म करके ब्याऊ में लगाने से आराम
मिलता है।
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(144) त्वचा
1. सूखी त्वचा - सूखी त्वचा पर हल्दी और नींबू का रस मिलाकर पेस्ट बना लें तथा त्वचा पर लेप करके आधे घंटे बाद धोए, त्वचा का सूखापन दूर हो जाएगा ।
2. त्वचा सड़ने पर- उंगलियों के बीच में सड़न होने पर बरगद का दूध लगाएं। (145) पाँव की एड़ी का दर्द
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1. आमाहल्दी और इमली की पत्ती पीसकर गर्म करके लेप करने से चोट का व ऐड़ी का दर्द मिट जाता है । अथवा पुरानी मिट्टी के दीपक को कन्डे की आग पर औंध रखकर उस पर एड़ी रखना चाहिये, अथवा ईंट या पत्थर को गर्म करके सेक करने से एड़ी की पुरानी पीड़ा भी मिट जाती है। (146) नख टूटने पर
1. लोहे के बर्तन में हर ताल को खरल करके उसके बराबर सरेस लेकर भैंस के मक्खन में आग पर मल्हम (मरहम ) बनाकर लगाने से फटा हुआ नख ठीक हो जाता है। 2. अनार की पत्ती और आमाहल्दी पीसकर बाँधने से टूटा नख ठीक हो जाता है। (147) हाथी पांव
1. हाथी पांव :- पलाश की जड़ का चूर्ण अरण्डी के तेल में मिलाकर लगाने से लाभ होता है 2. हाथी पांव
आक के जड़ की छाल तथा अडूसे की छाल को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से हाथी पांव या श्लीपद रोग दूर होता है । श्वेतार्क की जड़ शुभ मुहुर्त में लाकर पांव में बांधने से रोग नही बढ़ता ।
--
1.
3. पैर फटने पर - थूह, गजपीपल, आक का दूध, मोम तेल, सैंधा नमक के लेप से हजार प्रकार से फटा हुआ पांव उसी क्षण ठीक हो जाता है ।
4. पैर के कोढ़ - कटुका (कुड़ा) की छाल व पत्ते नमक सहित सज्जी और भैंस के मट्ठे का लेप करके आग से सेंकने से पैरों का कोढ़ ठीक हो जाता है।
(148) घावों पर लगाने
पीपलछाल की भस्म घावों पर लगाने से वे शीघ्र सूख जाते हैं । यही कार्य चने की भस्म को तेल में मिलाकर लगाने से होता है ।
(149 ) गाँठ के लिए लेप
१. कालीमिर्च, पोहकरमूल, कूट, हल्दी और सेंधानमक इन्हें पीसकर लेप करने से सर्व प्रकार की गाँठ मिटती है ।
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(150) नहरुआ (बाला) रोग १. गाय का घृत २५० ग्राम ३ दिन प्रतिदिन पीने से नहरुआ रोग मिटता है। २. एरंड की जड़ का रस १२.५ ग्राम, गाय का घृत २५ ग्राम ७ दिन तक लगातार पीने
से भी बाला रोग मिट जाता है। 3. नाहरू रोग शान्त-रविवार के दिन सर्प की कंचुली लाकर थोड़े से गुड़ में एक रत्ती
भर मिलाकर दे देने से नाहरू रोग शान्त हो जाता है। 4. शातावरी पिलावें तो बाला (नारूरोग) जाय। 5. हींग १२.५ ग्राम रात दिन सोवे नहीं जन्म भर वाला नहीं निकले, (२४ घंटे जागता
रहे)। 6. हिंगोटा की जड़ ३१ ग्राम, पीपल २५ ग्राम, घोट पीवें जन्म भर बाला न हो।
(151) सर्प के काटने पर 1. सर्प औषधि- वासा (अडूसा) के पत्तों का रस पीने से और हींग के साथ सूघने से आठ __ प्रकार के सों से काटा हुआ पुरुष भी उठ जाता है। 2. सम्पूर्ण सर्प औषधि- पुनर्नव(साठी) की जड़ को पीने, सूंघने, अंजन करने, और लेप __ करने से सर्पो के सम्पूर्ण विषों को क्षण मात्र में नष्ट करने के लिये समर्थ है। 3. सर्पदंश पर- कनेर की पत्तियों को पीसकर लगाने से तुरन्त लाभ होता है। 4. सर्प जहर निवारण- सेंधा नमक, काली मिरच, नीम के बीज, ये सम मात्रा में मिलाकर
पानी से घिसकर पिलाएं तो सर्प का विष नाश होता है। 5. सर्प जहर पर तंत्र- गोभी का रस घृत में पिलाए सर्प का विष मिटे। 6. सहजना के बीजों के सिरस के फूलों के रस की ७ पुट देवें, फिर उसका अंजन करें तो
सर्प का जहर उतर जाता है। 7. सर्प विष नाशक- आक की तीन कोपलें गुड़ में लपेटकर खिलावें और उसके ऊपर
घृत पिलावें। 8. जामुन का २॥ पत्ता पानी में पीसकर पीने से सर्प का विष उतरता है। 9. समुद्र फल को महीन पीसकर आँखों में आँजने से सर्प का विष उतरता है।
(152) बिच्छुके काटने पर 1. बिच्छु औषधि- मंदार (आक) के पत्तों के रस को नाक और कान में डालने से
द्वीरसना सर्प, कनछला, बिच्छु का विष नष्ट होता है।
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2. बिच्छु जहर नष्ट- कवोष्ण (गुनगुना कम गरम) धृत के साथ सैंधा नमक मिलाकरके
पीने से बिच्छु के विष से उत्पन्न अत्यन्त दुस्सह वेदना भी नष्ट हो जाती है। 3. बिच्छु की औशधि- नींबू के पत्ते के रस में हींग रगड़कर बिच्छु के काटे हुए
स्थान पर लगायें तो तुरन्त आराम होता है। 4. गुड़ खायें और प्याज मलें तो फौरन आराम होता है। 5. चिड़चिड़े के पत्ते को पीसकर मलें तो फौरन आराम होता है। 6. कोंच के बीज को पीसकर हथेली पर रगड़े तो फौरन आराम हो जायेगा। 7. बिच्छु जहर नष्ट होय- कविट्ठ (कैथा, कबीठ) की जड़ नमक और तेल,
इनको पिलाने से बिच्छु का जहर उतर जाता है। 8. तिल की जड़, अनार की छाल समभाग लेकर ठंडे जल से पीसकर गुटिका
बनाकर पीलावें तो बिच्छु का जहर नष्ट होता है। 9. बिच्छू के काटे हुए स्थान पर आक का दूध मलने से जहर उतर जाता है।
(153) कुत्ते द्वारा काटा निष्प्रभावी होय 1. पागल कुत्ते के काटने पर धृतकुमारी का पत्ता सेंधा नमक पीसकर आंच पर
__गरम कर तीन दिन तक बांधने से विश प्रभाव दूर होता है। 2. एंरड के तेल का लेप करने से भी सभी प्रकार के विश प्रभाव दूर होते हैं। 3. कुत्ते द्वारा काटा निष्प्रभावी होय- गुड़, तेल, आक के दूध को मिलाकर कुत्ते के
काटे स्थान पर लेप करने से विष प्रभाव दूर होता है। 4. धतूरे के फूल तथा बीजों को चौलाई के रस में पीसकर लेप करने से श्वान जहर
उतरता है। 5. गवारपाठा की गिरी और सेंधानमक को बाँधने से बावला कुत्ता का काटा हुआ अच्छा
होता है। 6. गवार पाठा के रस और सेंधानमक को ३ दिन तक गर्म जल से पीने से बावले कुत्ते का जहर उतर जाता है।
(154) बर्र-ततैया के जहर पर १. गेंदे के पत्ते १२.५ ग्राम और कालीमिर्च नग ५ को पानी में पीसकर लेप करने से
ततैया का जहर उतर जाता है। 2. बर्र-ततैया के काटने पर- इन्द्रायण की जड़ को जल में पीसकर लगा दीजिए तुरन्त
कष्ट शान्त होगा।
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(155) सिर की नँ या लीक १. धतूरे के पत्तों का रस या नागर बेल के पत्तों के रस में पारा मिलाकर बालों पर लेप ___ करने से जूं और लीक रहे भी नहीं और न उत्पन्न होती है।
(156) जानवरों के काटने पर जहर चढ़ने पर उपाय १. धतूरा का विष उतारने के लिए- कपास के पंचांग को पीसकर पीने से फायदा होता
२. मकड़ी फिरने पर- नीम्बू के रस में चूना पीसकर लगावें। अथवा अमचूर पीसकर
लगावें। 3. मकड़ी के विष की चिकित्सा- सफेद दूध और हल्दी पीसकर लेप करें। 4. बन्दर के काटने पर- प्याज पीसकर लेप करने से फायदा होता है। 5. बिल्ली के काटने पर- काले तिल और कलोंजी को पीसकर लेप करने से लाभ
होता है। ६. मूषक विष- सिरस के बीज, नीम के पत्ते, करंज की मिंगी, गौमूत्र में पीसकर लेप करें। ७. जोंक के घाव पर- प्याज और लहसुन पीसकर लगावें। ८. छिपकली का विष नाश करने के लिए- घी या तेल में राख मिला कर मलने से
फायदा होता है। 9. कान खजूरे का विष दूर- कपित्थ वटिका पानी में घिसकर डंक पर लेप करने से कानखजूरे का विष तत्क्षण उतर जाता है।
स्त्री गुप्त रोग चिकित्सा
(157) स्त्री गुप्त रोग 1.स्त्री गुप्त रोग-केला और घी भोजन के पूर्व खाने से स्त्री गुप्त रोग ठीक हो जाता है। 2.माधवी की मूल को जल में पीसकर पान करने से स्त्रियों की कमर पतली हो जाती है।
(158) प्रदर-रोग १. दही, संचर नमक, जीरा,मुलेठी, कमलगट्टा इनके काढ़े में मिश्री डालकर पीने से
वात का प्रदर रोग मिटता है। २. मुलेठी, कमलगट्टा और मिश्री इनको पीसकर चावलों के पानी से लेने से पित्त का
प्रदर रोग मिटता है। ३. डाब की जड़ को पीसकर चावलों के पानी से ३ दिन लेने से प्रदर रोग मिट जाता है।
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4. आंवले के बीज जल में पीसकर मिश्री मिलाकर पीने से प्रदर रोग नष्ट हो जाता है। 5. धाय (धायटी) के फूल और आंवला दोनों पानी में पीसकर पी जावें तो प्रदर रोग दूर
होगा। 6. प्रदर रोग-चावल के घोलाई का पानी पिलाने से प्रदर रोग दूर हो जाता है। 7 चौलाई की जड को चावलों के धोवन के साथ लेने से सर्व प्रकार का प्रदर रोग
मिटता है। 8. चिकनी सुपरी का चूर्ण 25 ग्राम घृत व मिश्री के साथ लेने से भी सर्व प्रकार का प्रदर
रोग मिटता है। 9. मूस (चूहा) की मिंगनी ६.४ ग्राम और मिश्री ६.४ ग्राम कूट छानकर दूध के साथ ३
दिन पीने से स्त्रियों के सर्व प्रकार का रक्त-सफेद प्रदर मिट जाता है। 10. केले को मिश्री लगाकर खाने से सोम रोग (हर समय योनि से स्राव होना) मिट जाता है।
(159 ) श्वेत प्रदर रोग 1. श्वेत प्रदर- हल्दी को दस गुना पानी में उबाल कर ठंडा करके २-३ बार जननांग
धोएं श्वेत प्रदर नहीं होगा। 2. श्वेत प्रदर- कपड़े में ५ ग्राम सुपारी का चूर्ण बांधकर पोटली बनाकर शयन पूर्व योनि
के अन्दर रखने से कुछ दिनों में योनि के दूषित स्राव बन्द हो जाते हैं। 3. १२.५ ग्राम नागरकेशर को पीसकर गाय की छाछ में ७ दिन पीने से श्वेत प्रदर मिट
जाता है। 4. एक गिलास गाय के दूध में मिश्री मिलाकर 21 बार फेटें (उछालें) फिर पियें तो
श्वेत रक्त स्राव निश्चित ठीक हो जाएगा। 5. श्वेत प्रदर : नागकेशर 4.8 ग्राम को छाछ के साथ पीने से फायदा होता है। 6. चावलों को भिगोकर फिर मथकर उस पानी को पीने से प्रदर रोग मिटता है। इस रोग में बकरी का दूध गुणकारी होता है।
(160) रक्तार्श ( रक्त प्रदर) 1.रक्तार्श ( रक्त प्रदर):- ६ मासा कमलकेशर प्रति दिन सुबह मक्खन के साथ लेने से
शीघ्र ही रक्तार्श (रक्त प्रदर) नष्ट होता है। 2. रक्तप्रदर :- कमलकेशर, मुलतानी मिट्टी तथा मिश्री के चूर्ण को फांककर ऊपर जल
पीने से रक्तप्रदर मिट जाता है। 3. गर्भाशय से रक्तस्त्राव- गर्भिणी के गर्भाशय से रक्तस्राव होने पर कमल पुष्पों का
फाण्ट देने से रक्तस्राव शीघ्र ही बन्द हो जाता है।
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4. रक्तार्श पर- चावल के धोवन के साथ अपामार्ग (चिरचिटा, लटजीरा, ओंगा,
शिखरी, अघेड़ों, पुठकंडा चिचड़ा भी कहते हैं) के पाँच बीजों को कुछ दिनों तक लेने से रक्तार्श जड़ मूल से समाप्त हो जाता है। रक्त प्रदर के लिए - आम की गुठली को आग में भूनकर खाने से फायदा हो जाता है। रोत और लाख का चूर्ण 4.8 ग्राम की मात्रा में दूध से पीने से रक्त प्रदर मिट जाता है।
(161 ) रुका हुआ मासिक धर्म खुलने के लिए १. माला कांगनी, राई, विजयसार और वच इनको महीन पीसकर ५ दिन तक ठन्डे पानी
से लेने से स्त्री-धर्म होय तथा बान्झपन मिटे। २. तिल खाने से अथवा उड़द खाने से, तथा दही खाने से स्त्री धर्म हो जाता है।
(162) मासिक धर्म पुनः होय 1. मासिक धर्म पुनः होय-तिल की जड़, ब्रह्मदण्डी की जड़, मुलहठी, कालीमिर्च
और पीपल इन सबको जौ कुट का काढ़ा बनाकर पीने से बन्द मासिक धर्म फिर से
होने लगता है। 2. इंद्रायण की जड़ का धुआं देने से रुका मासिक धर्म शुरू हो जाता है। 3. मासिक रक्तस्त्राव- दिन में ३ बार दारु हल्दी लेने से मासिक रक्त स्त्राव ठीक होगा। 4. मासिक धर्म बिगड़ने पर- अश्वगंधा चूर्ण ६ ग्राम, शक्कर ६ ग्राम जल के साथ लेने
से मासिक धर्म के समय अधिक खून का जाना बंद होता है। 5. कलिहारी की जड़ को जल में पीसकर महिलाओं का बार दिन में लेप करने से
महिलाओं का मासिक धर्म संबंधी रोग में आराम मिलता है। .6. मुलहठी की छाल के चूर्ण को 3 ग्राम चावल के धोवन में मिलाकर प्रतिदिन 3 बार दें। इससे मासिक धर्म में आराम रहेगा।
(163) रजोधर्म तुरन्त ही होने लगता 1. रज उत्पन्न के लिये- यदि कोई स्त्री शहद या गधे के मूत्र के साथ पलाश (ढाक) के
बीज पलास पापड़ा को पी ले तो उसके गर्भ उत्पन्न करने वाला रज उत्पन्न होता है। 2. यदि बिना रजवाली स्त्री बील और आक की मूल को गरम जल के साथ पिए तो
निश्चित रूप से ऋतुमति हो जाती है। 3. इमली की जड़ को पीसकर दूध के साथ पीने से स्त्रियों का रजनष्ट होकर रजोधर्म
तुरन्त ही होने लगता है।
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नीम, लिसोड़ा, केला और सर्प की कांचली की बनाई धूप को योनि में देने से कन्या भी रजोवती हो जाती है।
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कबूतर की बीट को शहद के साथ पीने से स्त्री रजस्वला हो जाती है । (164) ऋतु धर्म नष्ट के लिए
ऋतु धर्म नष्ट के लिए- अंजन और आंवले के पुष्प के कल्क को ठण्डे पानी के साथ ऋतुकाल में पीने से मृगाक्षी (स्त्रियों) का गर्भ व ऋतु दोनों ही नष्ट हो जाते हैं । सफेद काली मिरचों के चूर्ण को गुड़ में मिलाकर ऋतुकाल के समय जल के साथ पीने से स्त्रियों के ऋतुधर्म नहीं होता और गर्भ भी नहीं रहता है।
ऋतुकाल के समय जपा पृनून (कुड़हल के फूल) कांजी के साथ पीसकर पीने से गर्भ नहीं रहता और न ऋतुधर्म भी होता है।
गेरू, वायविडंग, काली मिर्च को बराबर लेकर ऋतु के समय पीने से अथवा इंदवल्ली (इंद्रायण) काली मिरच को पीने से गर्भ एवं ऋतु धर्म नहीं रहता।
सफेद सरसों का चूर्ण और तेल को ऋतु काल के दिनों में पीने से स्त्री का ऋतुधर्म बंद हो जाता है।
यदि ऋतु काल में पुरुष से न मिलती हुई स्त्री चार तोले गुड़ को प्रतिदिन खावे तो उसे जन्मभर सन्तान नहीं होवे ।
जो नमक के टुकड़े को तेल के साथ चुपड़कर रात के अन्त में गर्भाशय के मुख में रखती है तो उसके कभी भी गर्भ नहीं रहता है ।
साथ खाती है वह निश्चय
जो रजस्वला स्त्री कनेर के बीजों को पीसकर मक्खन से ही वंध्या हो जाती है।
मासिक धर्म दूर हेतु :- जिन स्त्रियों को मासिक धर्म की समस्या है, उन्हें बेला पुष्प की कलियाँ चबाने से राहत मिलती है।
सरसों, चावल, समान भाग और सबकी बराबर खांड मिला दूध चावल के साथ सेवन करने से रजोधर्म नष्ट हो जाता है।
जो स्त्री कांचिका (सौ वीर) के साथ जवे के फूल कोमल कर ऋतु में पीती हैं तो वह मासिक से नहीं होती है, यदि हो भी जावे तो गर्भ धारण तो कभी भी नहीं करती है।
(165) गर्भ धारण करना
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१. ऋतु के समय में असगन्ध का काढ़ा बनाकर गाय का घृत मिलाकर और दूध से दिन तक लेवें तो स्त्री गर्भ धारण करें ।
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२. ऋतु समय में पुष्य नक्षत्र में उखाड़ी हुई सफेद कंटाली की जड़ को पीसकर ८ माशा मात्रा में दूध के साथ ३ दिन पीवें तो निश्चय स्त्री गर्भ धारे।
३. सफेद कटहली की जड़ को पुष्य नक्षत्र के दिन उखाड़ लावें, फिर कन्या के हाथ से पिलवायें, तथा बछड़ा वाली गाय १ रंग की उस के दूध के साथ ऋतु समय में चौथे दिन सेवन करने से अवश्य बँध्या स्त्री के भी गर्भ रहे।
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5. गर्भ धारण हेतु - नीली अपराजिता की जड़ को कन्या द्वारा बकरी के दूध में पिसवाकर मासिक के बाद तीन दिन तक पीने से गर्भ रहता है।
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निर्गुंडी के रस में गोखरु के बीज डालकर पांच दिन तक पीने से स्त्री गर्भ धारण करती है।
10. जो स्त्री बिजोरे के बीजों को दूध में अथवा घी के साथ धीरे-धीरे पीती हैं वह तुरन्त ही गर्भ धारण कर लेती हैं।
15.
श्वेत पुनर्नवा की जड़ को दूध के साथ घिसकर पिलाने से स्त्रियों में गर्भ रहता है। निर्गुण्डि के रस में गोखरू के बीज डालकर सात दिन तक पीने से स्त्री गर्भ धारण करती है।
गर्भ स्तंभन - आंवला और मुलहठी को गाय के दूध के साथ पीने से गर्भ स्तंभन होता है।
गर्भधारण - ब्राह्मी, अरडूसा, गिलोय, नीम, कदम्ब के पत्तों की दलू को तेल के साथ पीने से बंध्या को भी पुत्र प्राप्त हो जाता है।
यदि तिल आक कुटकी अथवा पित पापड़ ब्राह्मी अरडूसा गिलोय को आक के स्वरस में मिलाकर बराबर नमक डालकर सेवन करने दिया जाए तो ऋतुकाल में अवश्य ही गर्भ रह जाता है।
शिवलिंगी के बीज को गुड़ के साथ गोली बनाकर ऋतुस्नान के बाद तीन दिन खा कर संभीग (मैथुन क्रिया) करने से गर्भ ठहर जाता है।
पीपल, सोंठ, कालीमिर्च और केशर इनके चूर्ण को घृत के साथ सेवन करने से बँध्या स्त्री भी गर्भ धारण करती है।
गाय के दूध में कल्क बनाते हुए मयूर शिखा तथा गाजर ऋतु के दिनों में सेवन किये जाने से बंध्यों को भी गर्भधारण करा देती है।
मसूली, लक्ष्मण, जीवा पोता और लाल बड़ के भी अंकुर को पीसकर ऋतुकाल में दूध के साथ पीने से गर्भवती हो जाती है।
16. गर्भ रहे- काक जंगा की जड़ को एक वर्ण की गाय के दूध में पीवे तो
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निश्चित ही गर्भ रहे। 17. गर्भ रहे- मातुलिंग (बिजोरा) के बीज की दूध के साथ खीर बनाकर घी
के साथ पीवें तो स्त्री को निश्चित ही गर्भ रहे। किन्तु खीर ऋतु समय तीन
दिन खाना चाहिए। 18. गर्भ रहे- श्वेत पुनर्नवा मूल को दूध के साथ घिसकर पिलाने से स्त्री को
गर्भ रहता है। 19. कड़वी तूंबी में सिद्ध किये हुए तेल को मलने से योनि दोष दूर होकर गर्भ रह जाता
20. पुष्य नक्षत्र में लक्ष्मण की जड़ को पीसकर घृत के साथ प्रतिदिन एक महीना तक
पीने से निश्चय ही गर्भ रहता है। असगंध का काढ़ा-मंदी-मदी आँच पर पकाकर ऋतुमती स्त्री पीवे तो जिसके आज तक सन्तान न हुई हो उसके भी हो जावे। नागकेशर का चूर्ण 1.6–3.2 ग्राम बछड़े वाली गाय के दूध के साथ लेने से सन्तान होती है। बिजोरे नीम्बू के बीज बछड़े वाली गाय के दूध के साथ चौथे दिन पीने से
सन्तान होती है। 24. कांगणी १ पाव को पीसकर उतना ही आटा मिलावें सेर भर लड्डु बनावे, घृत डाले,
बूरा डाले फिर खाबें तो प्रदर रोग दूर होवे, गर्भ भी धारण कर एक का परेज रखें।
रात्रि में एक बजे के बाद जावें तो अवश्य ही पुत्र होगा। 25. संतान प्रदाता:- स्त्री को ऋतु स्नान के तीसरे दिन शिवलिंगी के दस बीजो को
निगलना पड़ता है। हाँ पहले वह बीजों को जल की सहायता से गीले वस्त्र पहने हुए ही निगले, वाद में वस्त्रों को “चेंज" करे। एक बार इस प्रयोग को सम्पन्न करके वह नौ माह तक इंतजार करे। नौ माह में गर्म न रहने की स्थिति में वह दुबारा
प्रयोग करे। नोट-शिवलिगीं के बीचों को घर में २-३ दिन से अधिक नहीं रखना चाहिए अन्यथा
बेवजह की अशांति उत्पन्न होती है। अतः उक्त प्रयोग हेतु बीजों को केवल एक-दो दिन पूर्व ही लाकर रखें तथा केवल आवश्यक बीजों को ही घर में रखें।
(166) पुत्र प्राप्ति हेतु 1. पुत्र प्राप्ति- लौकी का गूदा बीज सहित मिश्री से खावें तो पुत्र हो (गर्भ ठहरा है
तब से तीन माह तक) स्त्री के सहवास में ४-६-८ व १२ वें दिन जावें तो पुत्र
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हो ।
पुत्र प्राप्ति हेतु - कबूतर की बीट व सुहागा पीसकर शिश्न पर लेप करके सहवास करें तो पुत्र होता है।
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पुत्र प्राप्ति हेतु - पलाश के कोमल पत्ते दूध के साथ लेने से पुत्र उत्पन्न होता है । पुत्र प्राप्ति हेतु - पुत्रजीवा वृक्ष की जड़ और देवदारु इन दोनों को दूध में पीसकर पीने से पुत्र अवश्य होता है ।
पुत्र प्राप्ति हेतु - पुत्र प्राप्ति हेतु सदैसर के पत्ते, तुलसी के पत्ते, नागकेशर ४८ ग्राम, पारस पीपल फल ४८ ग्राम, आसंधि ४८ ग्राम, खांड ४८ ग्राम, वृद्धदारु ४८ ग्राम, सूंठ ४८ ग्राम, दारु हल्दी ४८ ग्राम, एक वर्णी गाय के घी से अवलेह करें। खुराक १२ ग्राम प्रमाण से पुत्र की प्राप्ति होगी। ऋतु स्नान के बाद यह औषध लेना प्रारम्भ करें ।
पुत्र प्राप्त तन्त्र - गुरुपुष्य अथवा रविपुष्य के दिन सफेद फूल वाली कटेरी की जड़ उखाड़ लावें, ऋतु स्नान के चौथे-पाँचवे दिन एक तोला जड़ बछड़े वाली गाय के दूध में पीसकर लें और छठे दिन पति से संबंध बनाये तो पुत्र होय । ऋतुस्नान के दिन पानी में अश्वगंधा को मिलाकर घी व दूध से सेवन करें तो निश्चय ही पुत्र होता है।
पुष्य नक्षत्र के दिन देवरानी की चार माशे जड़ को दूध में पीसकर सेवन करने से भी जन्मबंध्या स्त्री पुत्र उत्पन्न करती है ।
मयुर शिखा की जड़ को ३ दिन दूध के साथ पीने से स्त्री पुत्रवान होती है । लक्ष्मणा भाग ३, उभयलिंगी भाग ४, विरहाली भाग ६ सब एकत्र करके गाय के दूध में पीस कर ऋतु समय में स्त्री को पिलाने से पुत्र होता है।
12. सुवर्ण, चांदी या लोहे की उत्तम भस्म लेकर अग्नि बलानुसार सूक्ष्म मात्रा से दही अथवा दूध या एक अंजली जल के साथ पुष्प नक्षत्र में पीने से अवश्य ही पुत्र पैदा होता है।
ऋतुस्नान के बाद बकरी के दूध में काली अपराजिता की जड़ को पीसकर सेवन करने से जन्मबंध्या गर्भ धारण करती हैं। इसके अलावा पिप्पली, नागकेसर, सौठ, काली मिर्च को गाय के घी में पीसकर सेवन करने से भी जन्मबंध्या स्त्री पुत्र लाभ प्राप्त करती है।
13. नींबू के पुराने वृक्ष की जड़ को दूध में पीसकर घी में मिलाकर पीने से दीर्घ जीवी पुत्र की प्राप्ति होती है ।
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14. जिस स्त्री के मात्र कन्या ही कन्या होती है वह यदि ऋतु समय में ढाक के १ पत्ते को
दूध में पीसकर पीवें तो उसके नियम से पराक्रम वाला पुत्र उत्पन्न होगा। 15. पीपल, नागकेशर, सोंठ, कालीमिर्च इन सबको घृत में पीसकर गाय के दूध में पीने
से बन्ध्या स्त्री के भी गर्भ धारण करने की स्थिति होकर पुत्र उत्पन्न होता है। 16. बंध्या के भी पुत्र होना- शिरस के फूल को इसके रस घी तथा दूध के साथ
पीयें तो अथवा चिरचिता के पुष्पों को भैंस के दूध के साथ पीये तो बंध्या के भी
पुत्र होता है। 17. मयूर शिखा अथवा चिरचिता कुनिंब (बकायण) को दूध में मिलाकर शीघ्र पुत्र की
उत्पत्ति की इच्छुक स्त्री ऋतुस्नान की हुई यह पीवे । 18. पुत्र उत्पत्ति की इच्छुक स्त्री ऋतुकाल में असगंध की जड़ को पुष्य नक्षत्र में लाकर दूध के साथ पीवें।
(167) पुत्री (कन्या ) प्राप्ति 1. कन्या ( पुत्री) प्राप्ति- चावल के धोवन में नींबू की जड़ को बारीक पीसकर नारी
को पिला देने के बाद रति करने से कन्या पैदा होती है। 2.पुत्री प्राप्ति- नींबू के वृक्ष की मूल चावल के पानी में एक माह तक पिलावें तो पुत्री हो।
(168) गिरता गर्भ रोकना 1. गिरता गर्भ रोकना- गूलर की डाढ़ी के क्वाथ में बराबर शक्कर और साठी धान
की पिट्ठी डालकर पिलाने से गिरता हुआ गर्भ रूक जाता है। 2. कपूर, दाख गोरीसर और पठानी लोध को गाय के दूध और शक्कर के साथ पीने
से गिरता गर्भ रूक जाता हैं। 3. यदि स्त्री के मृत बालक हो तो उसे बाँस व ताँबे के पैसे औटाकर पिलावे, अन्न न दें।
__ (169) गर्भ गिराने के लिए 1. एरड नारियल के पुष्प गूलर के फूल और अण्ढ़ (नागरमोथा) का कल्क बनाकर
क्वाथ करके पीने से गर्भ ध्वंस (नष्ट) हो जाता है। 2. लोधी नीलोफर साठी चावल मूलहठी, कपूर गोरीसर (शारिब) के कल्क को पीने से
स्त्रीयों का गर्भ ध्वंस हो तुरन्त ही शांत हो जाता है। 3. तिल, काला धतूरा, गिलोय निलोफर मूलहटी के कल्क को पीने से स्त्रियों को गर्भपात
का भय जाता रहता है।
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(170) गर्भधारण नहीं होगा 1. गर्भधारण नहीं होगा :- कमल के बीज का अर्क मासिक धर्म के बाद १५ दिन तक
पीया जाए तो गर्भधारण नहीं होगा व वक्ष स्थल पुष्ट होगा। कमल के अंदर हरे रंग के
कच्चे दाने छीलकर खाने से ओज व बल में वृद्धि होती है। 2. गर्भ न ठहरने के लिए- २ माशा हल्दी महावरी के पाँच दिन बाद ताजा पानी से खायें,गर्भ नहीं ठहरेगा।
(171) सुख से प्रसव होय 1. सुख से प्रसव होय-सफेद सोंठ की जड़ को गर्भिणी स्त्री की योनी में रखने से
सुखपूर्वक प्रसव होता है या गर्भिणी स्त्री हाथ में चुम्बक पत्थर रख ले तो सुख से प्रसव होता है अथवा स्त्री की कमर में बांस की जड़ बांधे तो प्रसव सुख से होता है
या स्त्री नीम की जड़ कमर में बांधे तो सुखपूर्वक प्रसव होय। 2. प्रसव दुख निवारण -इन्द्रायन तथा इमली के पत्ते को पीस कर नाभी पर लेप करें तो
प्रसव शीघ्र हो। 3. गर्भ का दर्द नष्ट- इंद्रायण के स्वरस को योनि के अन्दर डालने से गर्भ का
कष्ट तुरन्त दूर हो जाता है। 4. जवा खार को थोड़े गरम घी या गरम पानी के साथ पीने से गर्भ का कष्ट
फौरन दूर हो जाता है। 5. केले की जड़ को कमर में बांधने से प्रसव सुख पूर्वक होता है परन्तु बच्चे की
नाल निकलने के बाद जड़ को खोलकर फेंक देना चाहिए। 6. स्त्रियों के प्रसव में विलम्ब हो तो - अमलतास के छिलके 19 ग्राम को पाव भर पानी में औटाकर पीने को दें।
(172) दूध बढ़ाने के लिए 1. दूध बढ़ाने के लिए- दूध बढ़ाने के वास्ते बच्चे की माँ को घी, दूध और शक्कर
से मिली हुई खिचड़ी का भोजन दें। 2. शक्कर मिले हुए दूध में भालि चावलों के आटे को अथवा विदारी कंद के
चूर्ण को पीने से दूध बढ़ जाता है। 3. शिखंडिका (गुंजा चिरमी) की जड़ के कल्क को तांबूल (पान) के साथ सेवन
करने से स्तन का दूध क्षणमात्र में बढ़ जाता है। 4. स्त्रियों के स्तनों में दूध बढाने के लिए : गाय के दूध में शतावरी का चूर्ण 4.8
ग्राम व मिश्री मिलाकर पिलावें। 5. गेहूँ का दलिया दूध में बनाकर खिलाने से स्तनों में दूध बढ़ जाता है।
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6. भोजन के बाद 8 ग्राम जीरे का चूर्ण खाने से स्त्री के स्तनों में दूध बढ़ जाता है।
(173) स्तन पीड़ा व अन्य रोगों का उपाय 1. चमेली के फूलों को गाय के दूध के साथ पीसकर दोनों स्तनों पर चालीस दिन
तक रोज लेप करने से स्तनों के सारे रोग दूर हो जाते हैं। 2 स्त्रियों के स्तनों पर पीड़ा या सूजन होने पर - हल्दी को पीसकर गंवार पाठा
को चीरकर उस पर हल्दी लगा दें और गर्म करके स्तनों पर सेक करें तथा ऊपर बाँधने से स्तन पीड़ा तथा थानेला रोग मिटता है। 3. इन्द्रायण की जड़ को पीसकर लेप करने से, अथवा हल्दी व धतूरा के पत्तों को
पीसकर लेप करने से स्त्रियों की स्तन पीड़ा मिट जाती है। 4. स्तनों का फोड़ा होने पर - नागरमोथा और दानामेथी दूध में पीस कर लगावें। 5. स्तनों की पीड़ा हेतु- रूपीमस्तंगी और फिटकरी पानी में पीसकर स्तनों पर लगाने ___ से फायदा होता है। 6. स्तन कष्ट नष्ट- हल्दी और धृत कुमारी (गंवारपाठा) के कंद से अथवा __इंद्रायण की जड़ के लेप से स्तन की बीमारियां दूर होकर कष्ट मिट जाता है। 7. स्तन रोग- संखाहुली की जड़ और गाय श्रृंग (सींग) को बांधने से स्तन रोग का नाश होता है।
(174) स्तनों की शिथिलता दूर हेतु नारी की सुन्दरता में स्तनों का सबसे अधिक योगदान है, इसलिए आचार्यों ने कुछ
स्थूल स्तन प्रयोग लिखे हैं। 1. एरेंड का तेल, रेडी का तेल, मूसली का तेल कच्चे बेल का रस, इन सब को
बराबर मात्रा में अच्छी तरह से मिलाकर थोड़ा-थोड़ा हाथ में लेकर स्तनों पर
मालिश करें तो कुछ ही दिनों में स्तन सख्त हो जाएंगे। 2. श्रीपणी (खभाभ) का रस किमभ्यिाँ तैल जो चालीस दिन तक लेप करती है
उसके ढीले और लटके हुए स्तन सख्त हो ऊपर की ओर उठ जाते हैं। 3. गंभीरा के पत्तों का रस और उस रस के बराबर ही तिल का तेल तथा दोनों के
बराबर पानी मिला कर उबालें। जब तेल बाकी रह जाय तो नीचे उतार कर एक शीशी में भर लें, फिर सुबह-सायं दोनों स्तनों पर मालिश करें तो स्तन ढीले,
छोटे और लटके हुए हो तो शीघ्र लाभ होय। 4. वच, अश्वगंधा के पत्ते व गज (बज्ज) पीपल मिलाकर जल में पीसकर विधि
वत् स्तन पर लेप करें तो स्तन आम फल के समान उन्नत हो जाते हैं।
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5. स्तनों की कठोरता - असगन्ध, कूट, शतावर, बालछड़ और कटेरी के पुष्प का कल्क बनाकर उसे तिल के तेल में पका लें, फिर उस तेल की मालिश से स्तनों में कठोरता आती है व वृद्धि होती है । और यही तेल पुरुषेन्द्रिय को दृढ़ता एवं स्थूलता प्रदान करता है।
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6. स्तनों की शिथिलता दूर हेतु :- छोटी कटेरी (भटकटैया, कंटकारी) की जड़ किंटुरी की छाल तथा अनार की छाल को एक साथ पानी में पीसकर लेप करने से स्त्रियों के लटकते (ढीले) स्तन चुस्त हो जाते हैं ।
7. स्तन शैथिल्य - ढीले होकर लटके हों तो चुस्त स्तन करने के लिए धतूरे के पत्तों को सुहाते गरम (थोड़े गरम ) करके स्तनोंपर बांधना चाहिए।
सरसों के तेल में सफेद सरसों और असगंध मिला तेल सिद्ध करें। इस तेल के मलने से स्तन, कान आदि की वृद्धि होती है।
मूलहटी, महुआ का चूर्ण, इनको दूध में मिलाकर शुष्क करें । पश्चात् कटेरी के फल के स्वरस में लेप करने से स्तन वृद्धि होती है।
10. कमलगट्टा की मींगी का चूर्ण 4.8 ग्राम शक्कर सहित दूध में स्त्रियाँ सेवन करें तो गर्भस्थापक, श्वेत प्रदर नाशक होता है, इससे स्तनों की दृढ़ता भी होती है । (175) योनि दोष दूर हो जाता
8.
9.
1. नीम, हल्दी, घी, काला अगर, गुग्गल की धूप योनि में देने से योनि शुद्ध होती है जिससे पति खुश होता है।
2. बबूल (कीकर) वृक्ष की चिकनी बक्कल तोड़ लाएँ फिर उसे नींबू के रस में डुबो दें, एक दिन डूबी रहने दें फिर दूसरे दिन उसी में एक शुद्ध वस्त्र डाल दें, जब वस्त्र उस रस में भींग जाए तो निकाल लें इसका रंग धुआँ सा होगा। फिर गीले वस्त्र को एक गिलास दूध में डाल कर धो डालें और उसी में उसे निचोड़ दें। अब यह दूध पी जाएँ इससे कुछ दिनों में वीर्य गाढ़ा हो जाएगा और शीघ्र स्खलन होना रूक जाएगा, देह भी पुष्ट हो जाएगी। यदि स्त्री इस गीले वस्त्र को अपने भग में रखेगी तो कुछ ही दिन में भग संकुचित हो जाएगी। यदि इसी गीले वस्त्र को पुरुष अपनी इन्द्री पर लपेटा करे तो कुछ दिनों में उसकी इन्द्री सीधी तथा मोटी हो जाएगी।
3. गुड़, तेल, छुवारे के क्वाथ में नमक मिलाकर पीने से अशुद्ध योनि वाली स्त्री के योनिदोष दूर हो जाते हैं।
4. योनि संकोच - माजूफल, फिटकरी और कपूर को पीसकर चूर्ण को एक चुटकी
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5.
6.
9.
स्वास्थ्य अधिकार
योनि की शिथिलता - भांग ५ ग्राम की मात्रा में लेकर उसकी पोटली (साफ कपड़े) झिरझिरे कपड़े की बनाकर योनि में रखने से शिथिलता दूर होती है। गिलोय, हरड़ आँवला, जमालगोटा के क्वाथ
7. स्त्रियों की योनि में खुजली हो तो से धोने से फायदा होता है।
8. स्त्रियों की योनि में दुर्गन्ध होने पर क्वाथ से धोवें तो लाभदायक है ।
11.
गुप्तांग के भीतर लगा दें।
जननांग संकुचन- डंडी सहित कमल को दूध या पानी के साथ पीसकर लगायें । आँवले के वृक्ष की छाल पानी में चौबीस घंटे तक भिगोकर रखें फिर उस पानी से प्रतिदिन प्रजननांग धोंए । अनार की छाल का तेल लगाने से योनि संकुचित हो जाती है।
—
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-
नीम के पत्ते, अडूसा के पत्ते, पटोल पत्र इनके
कमल ताड़ और छोटी इलायची को पीसकर स्त्री की योनि में तीन बार लेप करने से योनि दोष दूर हो जाता है तथा गर्भ स्थित हो जाता है। हड़, बहेड़ा, आंवला, अंजन (सुरमा), गुड़, पठानी लोध, मुनक्का, पीपल को समान भाग में लेकर लेप करने से योनि के दोष दूर होकर गर्भ स्थित हो जाता है।
10. योनि भाश्क - केशर के फूल, अशोक मोल श्री का बार-बार लेप करने से योनि तंग होती है, शुष्क हो जाती है । भोमल की गोंद धात (धाय के फूल) के काठे से धोने और उसी की धूप देने से योनि गांठ और तंग हो जाती है ।
बेगाफल के पत्तों के लेप से योनि का पसीना निकलकर तंग हो जाती है तथा बांझ ककड़ी की जड़ का लेप भी संकोचन के योग एवं (गुदा के फट जाने) के भी प्रयोग हैं ।
पुरुष गुप्त रोग अधिकार
(176) गुप्तेन्द्रिय रोग
१. यदि इन्द्रिय पर फुन्सियाँ होकर पक जाएँ तो - ठन्डे पानी से धोया घृत लेप करने से रोग तथा दाह मिटती है ।
(177) अण्डकोष वृद्धि रोग
1.
दूध में अरण्ड का तेल डालकर पीने से बादी की अण्ड वृद्धि मिटती है।
2. गुग्गल, अरण्ड के तेल को गौमुत्र में मिलाकर पीने से बादी की अण्ड वृद्धिमिटती
है।
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3. तुलसी के पत्तों को सिजाकर पीस लें और लेप करने से अण्ड वृद्धि मिटती है।
सोंठ, मिर्च, पीपल और त्रिफला के काढ़ा में जवाखार, सेंधानमक डालकर पीने से कफ की अण्ड वृद्धि मिटती है। पानी में मिश्री मिलाकर या शीतल पदार्थों का सेवन करने से रक्त की तथा
पित्त की अण्ड वृद्धि मिटती है। . दूध में अरण्ड का तेल डालकर १माह तक पीने से वायु की आंत्रवृद्धि दूर होती है। ___ गुग्गुल व अरण्ड के तेल को गौमूत्र में मिलाकर पीने से पित्त की आंत्रवृद्धि दूर होती
जुलाब लेने से भी रक्तकोप की आंत्रवृद्धि दूर हो जाती है। अण्डकोश बढ़ने पर :-सफेद आक की जड़ कांजी (करंजी) में घिसकर लेप करने
से अण्डकोश सामान्य अवस्था में आ जाते हैं। 8. अण्डकोष की सूजन पर धतूरे के पत्तों में तेल चुपड़कर अंडकोषों से चिपकाना लंगोट कस लेना चाहिए तीन से पांच दिन में सूजन चली जाती है।
(178) शुक्राणुओं की वृद्धि हेतु 1. शुक्राणुओं की वृद्धि- अश्वगंधा चूर्ण ६ ग्राम, शुद्ध घी के साथ कुछ दिनों तक
नित्य सेवन करने से शरीर में वीर्य वृद्धि, वीर्य गाढ़ा, शुक्राणुओं की संख्या में वृद्धि
होती है तथा शीघ्रपतन नहीं होता है। 2. शुक्राणु वर्द्धन हेतु- मीठी नीम की छाल के चूर्ण की १ ग्राम मात्रा शहद (चासनी)
के साथ सुबह लेने से पुरुष में शुक्राणुओं की संख्या में वृद्धि होती है। अथवा आधा चम्मच आंवला का चूर्ण गर्म पानी से लेने पर वीर्य में शुक्राणुओं की मात्रा
बढ़ती। 3. शुक्राणु की वृद्धि हेतु- बतासे पर बड़ के पत्ते का दूध डालकर खाने से वीर्य गाड़ा होता है व शुक्राणु की वृद्धि होती है।
(179) स्वप्न दोष निवारण 1. स्वप्न दोष- कंधारी अनार के छिलके का चूर्ण ३-३ माशा सुबह शाम जल से लें। 2. स्वप्न दोष निवारण- पियावांसा (बज्रदंती) की तीन पत्तियां सुबह-शाम खाकर
ऊपर से एक गिलास जल पीवें ७ दिन में रोग जाता रहेगा। 3. बिना बीज की बबूल की कच्ची फली, बबूल की कोंपल और बबूल की गोंद इनको
बराबर कूट करके से छान कर लें। मात्रा 3.2 से 4.8 ग्राम लेकर ऊपर मिश्री मिलाकर दूध पीना चाहिये, इससे स्वप्नदोष, वीर्य का पतलापन शुक्रमेह, मूत्र के
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साथ वीर्य का जाना आदि धातु दोषों को मिटाकर वीर्य को शुद्ध व पुष्ट करता
(180) वीर्य स्तम्भन 1. वीर्य स्तंभन. श्वेतसार पंखा की जड़ को नाभि पर लेप करने से वीर्य स्तंभन होता
2.कमल गट्टे को शहद के साथ पीस कर नाभि पर लेप करने से वीर्य स्खलित नहीं
होता है। 3. वीर्य स्तंभन- धतूरा का बीज पीसकर नाभि पर लेप करने के बाद संबंध बनाने पर
वीर्य स्तम्भन रहता है। 4. वीर्य स्तम्भन- सफेद तालमखाने के बीज बरगद के दूध में पीसकर करंज के बीजों
के बीच में रखकर रति समय मुख में रख लेने से वीर्य स्तम्भन होता है। 5. वीर्य स्तम्भन- रविवार के दिन सतौना का बीज निकाले फिर उस बीज को मुख
में रखकर रति करें तो वीर्य स्तम्भन होता है। 6. शीघ्रपतन- तुलसी की जड़ का चूर्ण पान में रखकर खाने से स्तंभन शक्ति बढ़ती है। 7. वीर्य सम्बन्धी रोग- तुलसी की जड़ को पीसकर (चूर्ण )पान में रखकर खाने से
वीर्य पुष्ट हो जाता है, तथा स्तम्भन शक्ति बढ़ती है। 8. जो पुरुष कोंच की जड़ को साथ मिलाकर पीसकर पीवे तो उसका वीर्य अक्षय
होकर वह हजार स्त्रियों की इच्छा करे। 10. आंवले के चूर्ण को गन्ने के रस में भावित करके उसमें शक्कर मिलाकर पिलावें। 11. बिदारीकंद और गोखरू को चूर्ण कर दूध के साथ खाने से जीर्णकाय वाला पुरुष भी
मंदाग्नि को नष्ट कर कामोद्दीपन को प्राप्त होता है। 12. पीपल की जड़, फल, पत्ते और छाल को मिश्री और दूध के साथ पीने से वीर्य
बढ़ता है। 13. धुली हुई उड़द की दाल की पिट्ठी को दूध और घी के साथ पकाकर खाने से कामी
पुरुष सौ स्त्रियों से भी तृप्त नहीं होता। 14. बबूल (कीकर) वृक्ष की चिकनी बक्कल तोड़ लाएँ फिर उसे नींबू के रस में डुबो
दें, एक दिन डूबी रहने दें फिर दूसरे दिन उसी में एक शुद्ध वस्त्र डाल दें, जब वस्त्र उस रस में भीग जाए तो निकाल लें इसका रंग धुआँ सा होगा। फिर गीले वस्त्र
को एक गिलास दूध में डाल कर धो डालें और उसी में उसे निचोड़ दें। अब यह दूध पी जाएँ इससे कुछ दिनों में वीर्य गाढ़ा हो जाएगा और शीघ्र स्खलन होना रूक जाएगा, देह भी पुष्ट हो जाएगी। यदि स्त्री इस गीले वस्त्र को अपने भग में रखेगी
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तो कुछ ही दिन में भग संकुचित हो जाएगी। यदि इसी गीले वस्त्र को पुरुष अपनी इन्द्री पर लपेटा करे तो कुछ दिनों में उसकी इन्द्री सीधी तथा मोटी हो जाएगी। 15. शीघ्र पतन, शारीरिक कमजोरी- नाश्ते में उड़द की खीर खाकर दूध पीएं व उड़द की दाल का उपयोग करें। इससे नपुंसकता शीघ्रपतन, कमजोरी दूर होगी। अथवा लौंग का तेल इन्द्रिय पर मले शीघ्रपतन दूर होगा ।
16. शीघ्रपतन - चार-पांच साल रखा पुराना गुड़ तथा इमली का गूदा, सोंठ, मिर्च, पीपल बराबर मात्रा में पीसकर चासनी में मिलाकर कामेन्द्रिय पर लेप करके काम करने पर पत्नी शीघ्र स्खलित हो जाती है।
17.
23.
5.
6.
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7.
1.
दूध के साथ असगन्ध की फक्की लेने से बल बढ़ता है।
2.
बादाम की गिरी और भुने हुए चने छीलकर प्रतिदिन खाने से बल बढ़ता है। 3. बबूल का गोंद घृत में तलकर उसका पाक बनाकर खाने से पुरुषार्थ बढ़ता है।
4.
8.
9.
स्त्री स्खलन- तांत्रिकों के मतानुसार बिजौरा नींबू के रस को कामेन्द्रिय पर लेप करके कार्य करने पर स्त्री तत्काल स्खलित हो जाती है ।
नागकेशर नई का चूरन कर घी में डालकर रति समय चाटें तो रात्रि में गर्मी मालूम हो ।
(181) बल पुरुषार्थ ( शक्ति वर्धक )
पौरुष प्राप्त- बरगद के वृक्ष के दूध को प्रातः काल निकालकर एक बताशे में भरकर खाने पर अपार पौरुष प्राप्त होता है । यदि उस बताशे को दूध के साथ पीएं तो पेशाब में जलन व नपुंसकता दूर होती है।
कामशक्ति - घी के साथ गुंजा की जड़ रगड़कर इन्द्रिय पर मलने से कामशक्ति बढ़ती है।
पौरुष शैथिल्य- श्वेत आक का दूध और मधु (चासनी) मिलाकर लेप बनायें, उस लेप में श्वेताक फल से प्राप्त रूई की बत्ती बनाकर तर कर लें। संबंध के समय दीपक जला लें जब तक दीपक जलता रहेगा पुरुष को शिथिलता का अनुभव नहीं होगा ।
धातु पुष्ट- रात्रि में मिट्टी के बर्तन में आम के पेड़ की छाल को रखकर उसमें पानी भर दें और उसे वस्त्र से ढंक कर रख दें। प्रातः काल उस जल को छानकर उसमें दूध मिलाकर पी जाएं, इससे बल और धातु पुष्ट होता है।
शक्ति वर्धक- मीठा आमरस दूध में चीनी डालकर पीने से मर्दानगी बढ़ती है । तालमखाने, गोखरू, कोंच के बीज, तिल, उड़द इनके चूर्ण को दूध के साथ वह
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पुरुष सेवन करे, जो घर में १०० स्त्रियों को रख सके। 10. असगन्ध की जड़ का चूर्ण गौ के दूध के साथ नित्य सेवन करने से वृद्ध पुरुष भी
युवा पुरुष के समान वेगवान् हो जाता है। 11. घातु क्षीणता पर पीपल, जायफल, पीपलामूल, जायपत्ती, कालीमिर्च, सोंठ, इलायची,
अकरकरा, दालचीनी, लौंग सब बराबर लेकर चने के बराबर लेना (गोली बलाकर) दूध के
साथ लेना तो आदमी में महान शक्ति आती है। 12. केला दूध के साथ खाने से शक्ति बढ़ती है। (मांस का काम करता है) इतनी शक्ति
बढ़ती है कि मांसाहारी जिस उद्देश्य से मांस खाते हैं उससे कई गुना अहिंसक
का आहार केला और दूध है। इसका सेवन सभी करें। 13. काम शक्तिवर्द्धक योग- प्रथम बार ब्याई गायों के दूध में पकाई गई उड़द की दाल
की खीर कामशक्ति को वृद्धिगत करने में सर्वश्रेष्ठ है। (नीति वाक्य श्री सोमदेव सूरि)
(182) दुर्बलता निवारण 1. दुर्बलता निवारण- दो केला खाकर दूध पीने से दुर्बलता दूर होती है। 2. सूखे हुए शहतूत पीसकर उनकी रोटी बनाकर खाने से शरीर पुष्ट और मोटा बनता है। 3. असगन्ध के चूर्ण का प्रयोग- असगन्ध को १५ दिन तक दूध या घृत या केवल
उष्ण जल के साथ सेवन किया जाय तो जिस प्रकार जल वृष्टि से छोटे धान्यों की पुष्टि
होती है, उसी प्रकार शहीर की पुष्टि होती है। 4. असगंध के चूर्ण में बंग मिलाकर दूध के साथ फक्की लेने से वृद्धावस्था की कमजोरी
मिटती है। 5. पीपल, सोंठ, कालीमिर्च के चूर्ण की फक्की लेने से हाथ-पैरों का ठण्डापन और निर्बलता मिटती है।
(183) नपुंसकता,वीर्य धातु रोग 1. नपुंसकता- १.भटकटैया की जड़ तथा फल, पीपल और काली मिर्च और गोरोचन
का चूर्ण बनायें तथा एक साथ मिलाकर कामन्द्रिय पर लेप करें नपुंसकता ठीक होगी। नपुंसकता, बांझपन, वीर्य धातु रोग- रात को गेंहूं भिगोकर सुबह पीसकर मिश्री
या गुड़ के साथ खाने से नपुंसकता, बांझपन या वीर्य रोग दूर होते हैं। 3. नपुंसकता- बकरी के दूध के साथ तिल और गोखरू के चूर्ण को शक्कर मिलाकर
खाने से नपुंसकता नष्ट हो जाती है। 4. बिना बीज की बबूल की कच्ची फली, बबूल की कोंपल और बबूल की गोंद इनको
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बराबर कूट कर कपडे से छान कर लें। मात्रा 3.2 से 4.8 ग्राम लेकर ऊपर मिश्री मिलाकर दूध पीना चाहिये, इससे स्वप्नदोष, वीर्य का पतलापन, शुक्रमेह, मूत्र के साथ वीर्य का जाना आदि धातु दोषों को मिटाकर वीर्य को शुद्ध व पुष्ट करता है।
(184) कामेन्द्रिय (लिंग) में दृढता 1. लिंग में कमजोरी- एक तौला लौंग तीन माशा चमेली के तेल को जलाकर कपड़े
से छानकर रात को कामन्द्रिय पर मालिश करें व पान का पत्ता बाँधे, नसे सख्त हो
जाएगी। 2. कामेन्द्रिय में दृढता :- बेल के पत्तों के रस में शहद (चासनी) मिलाकर लिंग पर
लगाने से कामेन्द्रिय में दृढता और मजबूती आती है। अथवा जायफल को भैस के दूध में पीसकर लिंग पर लेप करें और ऊपर से पान बांध दे। रात का बंधा हुआ सुबह खोलकर गुनगुने जल से धो दें चालीस दिन तक करे। बकरी का घी भी
कामेन्द्रिय पर लगाने से इन्द्रिय बढ़ती है। 3. चमेली का तेल लिंग पर मलने से उसमें कड़ापन आ जाता है। अथवा चमेली के
तेल में अश्वगंधा पीसकर लिंग पर लगाने से दृढ़ता आती है। 4. असगंध, ओंगा (अपामार्ग), केटरी, सफेद सरसों, कूट, सगर, पीपल, मिर्च काली
समान भाग लें, चूर्ण कर बकरी के दूध में पीस कर उपयोग करने से स्तन और इंद्री दोनों की वृद्धि होती है। पुरुषेन्द्रिय दृढ़ता- असगन्ध, कूट, शतावर, बालछड़ और कटेरी के पुष्प का कल्क बनाकर उसे तिल के तेल में पका लें, फिर उस तेल की इन्द्रिय पर मालिश करने से इन्द्रिय में कठोरता आती है व वृद्धि होती है। यह तेल पुरुषेन्द्रिय को दृढ़ता एवं स्थूलता प्रदान
करता है। 6. चमेली के तेल में कौड़ी या असंगध डालकर लिंग पर मालिश करने पर कमजोरी दूर होती
7. पुरुषेन्द्रिय दृढ़ता- भैंस के घी में कपूर मिलाकर इन्द्रिय पर मालिश करने से
दृढ़ता आती है। 8. लिंग टेडा :- छोटी या बड़ी कटेरी (भटकटैया) के बीजों का सूक्ष्म पाउडर बनाकर
सरसों के तेल में मिलाकर जड़ से ऊपर की ओर सुपारी को छोड़कर शिश्न पर मालिश करें, बाद में अंडी का पत्ता लपेट दिया करें, कुछ दिनों में शिथिलता दूर होकर सुदृढ़ता आ जायेगी
यादि पत्नी नवनीतं मध्ये, लत्ता बलाभाग रसमश्रेय।
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लेपेन लिंग सहसैव पुंसा, लागोपम स्पाटिति इष्टमेतत्।। अर्थ- भैंस के मक्खन में बख, चरेटी और पारा मिलाकर लेप करने से मनुष्य का लिंग
लोह दण्ड के समान हो जाता है। 10. भिलावे की लकड़ी सेवार, कमल पत्र को जलाय सेंधा नमक मिलाकर बड़ी
कटहरी के साथ पानी में पीसकर लेप करें तो लिंग घोड़े के समान दृढ़ और मोटा
हो जाता है। 11.
अश्वागंधा बारी कुण्ठ, लांसी सिंहों भलाविन्तः। चतुवूने दुग्धेन तिल तैल गिचयेन्, स्तर दीर्ग करणपाणो बन्धन भक्षणदित।। अर्थ- शताबरी अश्वगंधा, कूट, जटा मांसी करेली भल के चौगुने दूध, तिल के तेल
में पकाकर लेप करने से लिंग में वृद्धि होती है तथा इसके भक्षण से गुण आता
12. जटाधारी (काशी) त्रिफला, कूट असगंध और शतावरी इन सबको तेल में
पकाकर लेप करने से लिंग अवश्य मोटा हो जाता है। 13. भांग के बीज के तेल में अफीम जायफल और धतूरे का चूर्ण समान भाग में चारों
मिलाकर मक्खन या तेल में पीस लें। इस तेल की एक बूंद भी लिंग पर लेप करें तो सर्वदा भोग की इच्छा बनी रहें तथा लिंग मोटा और लम्बा हो जाए।
(185) विशेष नुस्खे 1. दाँत मन्जन- लौंग, सोंठ, दालचीनी, हरड़ बड़ी, कत्था, सुपारी चिकनी, नागरमोथा
१२.५-१२.५ ग्राम और कालीमिर्च २५ ग्राम गेरू लाल १२५ ग्राम इन सबको बारीक कूट छान लों। और कपूर १२.५ ग्राम, पिपरमेन्ट का फूल २.४ ग्राम, अजवाइन का फूल २.४ ग्राम मिलाकर मन्जन बना लो। इस मन्जन से दातों की अनेक प्रकार
की बीमारियाँ मिट जाती है तथा इससे मुँह साफ रहता है। 2. हींग्वष्टक चूर्णः- सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, सेंधानमक, सफेद जीरा, स्याहजीरा,
अजमोद, हींग भूनकर सबको समभाग लेकर कूट छानलो। यह पूर्ण हाजमा शक्ति
प्रदान करता है तथा अजीर्ण नाशक एवं स्वादिस्ट होता है। 3. लवण भास्कर चूर्ण- पित्तपापड़ा, पीपलामूल, पीपल, धनिया, स्याहजीरा, काला
जीरा, सेंधानमक, वायविडंग, तालीसपत्र, नागकेशर, अमलबेल, बिड़नमक, जीरा सफेद, कालीमिर्च, सोंठ २५-२५ ग्राम, नमक संचर ६२.५ ग्राम, तज आधा तोला, इलायची छोटी १२.५ ग्राम, समुद्रनमक ६२.५ ग्राम, अनारदाना ६२.५ ग्राम, अमलबेल
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२५ ग्राम इन सबको कूट छानलो और चूर्ण बना लो। इससे गैस, अजीर्ण, आफरा
आदि रोग मिटते हैं। 4. संजीवनी बूटी:- वायविडंग, सोंठ, पीपल, हरड़, बहेड़ा, आँवला, वच, गिलोय,
भिलावा, शुद्धबछनाग (मीठा तैलिया)। इन दस वस्तुओं को समभाग लेकर गौमूत्र में १२ घण्टे खरल करें और .१-.१ ग्राम की गोलियाँ बना लें। मात्रा १ से ३ गोली अदरक के रस या पानी के साथ लें, इससे ज्वर, अजीर्ण, वमन, हैजा, कृमि,
उदरशूल, सर्पदंश व सन्निपात मिटती है। 5. अमर सुन्दर बटी- शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, लोहभस्म, शुद्ध बच्छनाग, संभालू के
बीज, सोंठ, मिर्च, पीपल, हरड़, बहेड़ा, आँवला, पीपलामूल, चित्रक, दालचीनी, तेजपात, इलायची, नागकेशर, वायविडंग, अकरकरा, नागरमोथा १२.५-१२.५ ग्राम पीसकर ५०० ग्राम गुड़ में मिलाकर चना प्रमाण गोलियाँ बना लें। मात्रा १ से ३ गोली दिन में दो बार पानी के साथ लें, इससे सन्निपात, अपस्मार, श्वास कास और
वात रोग मिटते हैं। 6. चन्द्र-प्रभा बटी- कपूर, बच, नागरमोथा, चिरायता, गिलोय, दारू, अतीस,
दारूहल्दी, पीपलामूल, चित्रक, धनिया, हरड़, बहेड़ा, आँवला, चव्य, वायविडंग, गजपीपल, सोंठ, मिर्च, पीपल, स्वर माक्षिक भस्म, जवाखार, सजीखार, सेंधानमक, कलानमक, कच्छनमक सब २.४-२.४ ग्राम, निसोत, दन्तीमूल, तेजपात, दालचीनी, बंसलोचन १२.५-१२.५ ग्राम, लोहभस्म २५ ग्राम, मिश्री ५० ग्राम शिलाजीत १०० ग्राम, शुद्ध गुग्गल १०० ग्राम, सबको बारीक कूट छानकर गुग्गल को पानी में मिलाकर उबालकर एक रस बनालें। उस रस में समस्त दवाइयाँ डालकर चने प्रमाण गोलियाँ बना लें। मात्रा २ से ४ गोली दिन में २ बार गिलोय के स्वरस, गोखरू का क्वाथ या दूध के साथ लेवें। यह प्रमेह, मूत्रकृच्छ, मूत्राघात, पत्थरी, भगन्दर, पाण्डु, कामला, बवासीर, कमर दर्द, नेत्र रोग तथा गर्भाशय के विकारों
को मिटाता है। 7. बाम- वेसलीन ३०० ग्राम, मोम १०० ग्राम अमृतधारा (पीपरमेंट, कपूर, अजवाइन
के फूल) ३७.५ ग्राम, नीलगिरी का तेल ३७.५ ग्राम और दालचीनी का तेल १२.५ ग्राम लेकर, पहले वेसलीन और मोम को गर्म कर लें, फिर तेल मिलालें फिर अमृतधारा मिलाकर अच्छी तरह हिलाकर मिलालें। इसकी मालिश करने से सिरदर्द, जोड़ों की पीड़ा, सूजन, अग्नि से जल जाने पर, शूल, वायु का दर्द, स्तन फटना,
जहरीले जानवरों के काटने पर काम आती है। 8. पंचसम चूर्ण- सोंठ, छोटी हरड़, पीपल, निसोत और कालानमक समभाग लेकर चूर्ण
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करलें। मात्रा २.४ से ४.८ ग्राम गुनगुने पानी से लें। इससे शूल, आफरा, आमवात
आदि दोष मिटते हैं। 9. कस्तूरी भैरव रस- शुद्ध हिंगुल, शुद्ध वच्छनाग, सुहागे का फूल, जावित्री, जायफल,
कालीमिर्च, पीपल कस्तूरी समभाग लेकर ब्राह्मी के क्वाथ में ३ दिन व नागरवेल के पान में ३ दिन घोटकर कालीमिर्च प्रमाण गोलियां बना लें। मात्रा २-३ गोलियां दिन में दो बार जल या रोगानुसार अनुपान के साथ दें। इससे ज्वर की तरुणता में, आमपाचन का ज्वरशमन के लिए मुद्दतीलाभ, मोतीझरा आदि में लाभ दायक होता
है। 10. नवजीवन- तुलसी के ताजे पत्ते १२५ ग्राम, सूखे पत्ते ६२.५ ग्राम, कालीमिर्च ३१
ग्राम, पीपल१२.५ ग्राम, बड़ी इलायची के दाने ४.८ ग्राम, दालचीनी, लौंग, जायफल, जावित्री २.४-२.४ ग्राम इन सबका चूर्ण बनाकर रखें। मात्रा २.४ ग्राम पानी में या २५० ग्राम दूध और १२५ ग्राम पानी में ओटाकर शक्कर मिलाकर पीवें। इसके सेवन से अग्नि प्रदिप्त होती है, सिर दर्द, ज्वर, प्रतिश्याय आदि रोग मिट जाते हैं। मोतीझरा
में भी इसका प्रयोग होता है। 1. आरोग्य वर्द्धनी- पारा और गंधक की कज्जली १२.५ ग्राम, लोहभस्म ४.८ ग्राम,
अभ्रक भस्म ४.८ ग्राम, ताम्र भस्म, हरड़ १२.५ ग्राम, बहेड़ा १२.५ ग्राम, आँवला १२.५ ग्राम, शुद्ध शिलाजीत १९ ग्राम, शुद्ध गुग्गल १९ ग्राम, चित्रकमूल २५ ग्राम, कुटकी १३२ ग्राम, निर्माण विधि- काष्टादि औषधियों को कपड़े से छान लें, फिर भस्में मिला लें, बाद में शिलाजीत और गुग्गल मिलाकर नीम के पत्तों के रस की भावना देकर घुटाई करें, सूखने पर प्रयोग में लावें। मात्रा- 0.४ ग्राम, प्रवालपिष्ठि के साथ दूध में या पानी से लें, इससे आंतरिक पित्त की गर्मी को शांति मिलती है, हाथ
पाँवों की दाह मिटती है तथा उदर रोग मिटते हैं। 12. वज्र लेप तैयार करने की विधि-अर्थ- कच्चे तेंदुफल, कच्च कैथ फल, सेमल के
पुष्प, शाल वृक्ष के बीज, धामन वृक्ष की छाल और बच इन औषधियों को बराबर लेकर एक द्रौन भर पानी में तोला १०२४ यानी १२॥। पौने तेरह किलो पानी डालकर क्वाथ (काढ़ा) बनावें, जब पानी का आठवां भाग रह जाये तब नीचे उतार कर उसमें श्री नालक (सरी) वृक्ष का गोंद, हीरा वोल गुग्गल भिलावा, देवदारू का गोंद, (कुंदरू) राल अलसी और बेलफल इन बराबर औषधियों का चूर्ण डाल देने से वज्रलेप तैयार हो जाता है।
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| चैत्रादि मासों में समस्त वस्तओं की तेजी-मन्दी अवगत करने के लिए धवांक मास १२ चैत्रावैशा। ज्येष्ठाआषा.श्रावण भा.प.आश्वि,कार्तिमा.शीपौषमाघफाल्ग। यव-जौ चना
चावल तिल चीनी
गुड़
घी
नमक
उड़द अरहर
कम्बल
पाट
सुपारी
तीसी तेल । फिटकरी हींग । हल्दी लौंग जीरा
अजवाइन कर्पूर ककुनी धनिया
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188 ) उक्त चक्र द्वारा तेजी-मन्दी निकालने की विधि
शाक: खगाब्धिभूपोन: १६४९ शालिवाहनभूपतेः । अनेन युक्तो द्रव्याङ्कचैत्रादिप्रतिमासके ॥ रूद्रनेत्रैः हते शेषे फलं चन्द्रेण मध्यम् । नेत्रेण रसाहानिश्च शून्येनार्घे स्मृतं बुधैः ॥
अर्थात् शक वर्ष की संख्या में १६४९ घटाकर, मास में जिस पदार्थ का भाव जानना हो उसके ध्रुवा जोड़कर योगफल में ३ का भाग देने से एक शेष समता, दो शेष मन्दी और शून्य शेष में तेजी कहना चाहिए । विक्रम संवत् में से १३५ घटाने पर शक संवत् हो जाता है। उदाहरण- विक्रम संवत् २०१३ के ज्येष्टमास में चावल की तेजी - मन्दी जाननी है। अत: सर्वप्रथमविक्रम संवत् का शक् संवत् बनाया - २०१३-१३५=१८७८ शक् संवत् । सूत्र- नियम के अनुसार १८७८ - १६४९=२२९ और ज्येष्ट मास में चावल का ध्रुवांङ्क १ है, इसे जोड़ा तो २२९ + १ = २३०; इसमें ३ से भाग दिया = २३० भाग ३ =२ शेष रहा अत: चावल का भाव मन्दा आया । इसी प्रकार समझ लेना चाहिए ।
दैनिक तेजी - मन्दी जानने का नियम- जिस देश में, जिस वस्तु की, जिस दिन तेजी - मन्दी जाननी हो उस देश, वस्तु, वार, नक्षत्र, मास, राशि, इन सबके ध्रुवाओं को जोड़कर ९ का भाग देने से शेष के अनुसार तेजी - मन्दी का ज्ञान "तेजीमन्दी देखने के चक्र" के अनुसार करना चाहिए ।
देश तथा नगरों की ध्रुवा - बिहार १६६, बंगाल २४७, आसम ७११, मध्यप्रदेश १०८, उत्तरप्रदेश ८९०, मुम्बई ११८, पंजाब ४१९, रंगून १६७, नेपाल १५४, चीन ६४२, अजमेर १६७, हरिद्वार २७२, बीकानेर २१३, सूरत १२८, अमेरिका ३२२, यूरोप ७९६ । मास ध्रुवा - चैत्र ६१, वैशाख ६३, ज्येष्ठ ६५, आषाढ़ ६७, श्रावण ६९, भाद्रपद ७१, अश्विन ७३, कात्तिक ५१, मार्गशीर्ष ५३, पौष ५५, माघ ५७, फाल्गुन ६५ । सूर्यराशि ध्रुवा - मेष ५२०, वृष ७६२, मिथुन ५१०, कर्क २१८, सिंह ८३०, कन्या२६०, तुला ५०३, वृश्चिक ७११, धनु ५२४, मकर ५५४, कुम्भ २७०, मीन ५८६ । तिथि ध्रुवा - प्रतिपदा ६१०, द्वितीया ७१०, तृतीया ४८१, चतुर्थी ३५७, पंचमी ६३४, षष्ठी ३०४, सप्तमी ८१२, अष्टमी १११, नवमी ५६५, दशमी ३०५, एकादशी २३३, द्वादशी २६१, त्रयोदशी ५२४, चतुर्दशी ५५२, पूर्णिमा ६३०, अमावस्या १६६ ।
वार ध्रुवा - रविवार १३७, सोमवार ९४, मंगल ८०९, बुध ७०२, गुरु ७१३, शुक्र ८०८, शनि ८५ ।
संसार का कुल ध्रुवा - २०८५ ।
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नक्षत्र धुवा- अश्विनी १७६, भरणी ६८३, कृत्तिका ३७०, रोहिणी ७७५, मृगशिरा ६८२, आर्द्रा १४६, पुनर्वसु ५४०, पुष्य ६३४, आश्लेषा १७०, मघा ७३, पूर्वाफाल्गुनी ८५, उत्तराफाल्गुनी १४८, हस्त ८१०, चित्रा ३०५, स्वाति ८६१, विशाखा ७३४, अनुराधा ७१२, ज्येष्ठा ७१६, मूल ७४३, पूर्वाषाढ़ा ६१४, उत्तराषाढ़ ६२३, अभिजित् ६८३, श्रवण ६५७, धनिष्ठा ५००, शतभिषा ५६४, पूर्वाभाद्रपद ३३६, उत्तराभाद्रपद १८३, रेवती ७२० ।
पदार्थों के ध्रुव- सोना २५३, चाँदी ७६०, ताँबा ५६३, पीतल २५८, लोहा ९१५, काँसा २४९, पत्थर १६३, मोती १४२, रुई ७१७, कपड़ा १२७, पाट ४७६, हैसियत ७३८, सूर्ती १०३, तम्बाकू २४०, सुपाड़ी २५२, लाख ८८, मिर्च २६८, घी ४६४, इत्र ७५, गुड़ २५६, चीनी ३२८, ऊन ११२, शाल ८११, धान ७१२, गेहूँ २३२, तेल ८०१, चावल ७७४, मूंग ८०१, तीसी ३८६, सरसों ८५८, अरहर ३३, नमक ३१७, जीरा १५६, अफीम २६३, सोडा १५६, गाय १३२, बैल १६२, भैंस ६१२, भेड़ ६१८, हाथी ८३०, घोड़ा ८३५।
तेजी मन्दी जानने का चक्र- सूर्य १ तेज, चन्द्र २ अतिमन्द, भौम ३ तेज, राहु ४ अतितेज, बृहस्पति ५ मन्द, शनि ६ तेज, राहु ७ सम, केतु ८ तेज, शुक्र ९ तेज। उदाहरण- मुम्बई में चैत्र सुदि सप्तमी रविवार को गेहूँ का भाव जानना है। अत: सभी ध्रुवाओं का जोड़ किया। मुम्बई की ध्रुवा १९८, सूर्य मेष राशि का होने से ५८६, मासधुवा ६१, वार ध्रुवा १३७, तिथि ध्रुवा ८१२, इस दिन कृत्तिका नक्षत्र ध्रुवा ३७०, गेहूँ ध्रुवा २३२ इन सबका योग किया। १९८+५८६+१३७+८१२+३७०+२३२+६१=२०९६। इसमें ९ का भाग दिया= २०९६ में भाग ९ का=२३२ लब्धि, ८ शेष। तेजी-मन्दी जानने के चक्र में देखने से ८ शेष में केतु तेज करने वाला हुआ अर्थात् तेजी होगी। (२) दैनिक तेजी-मन्दी निकालने की अन्य रीति
वस्तु विंशोपक धातु- सोना ९३, चाँदी ७१, पीतल ५९, मूंगा ५१, लोहा ५४, सीसा ९०, काँसा १२७, मोती ९५, राँगा ६७, ताँबा १०, कुंकुम २५।
अनाज और किराना- कपूर १०२, हरॆ ७३, जीरा ७०, चीनी १०२, मिश्री १०३, ज्वार १००, घी ५०, तेल १०, नमक ५९, हींग ६२, सुपाड़ी २०४, अरहर ७२, मिर्च ८३, सूत ९४, सरसों ८०८, कपड़ा १००, चपड़ा ८७, मूंग १५, सोंठ १००, गुड़ ४०, बिनोला ८८, मंजीठ १४४, नारियल ७८, छुहारा १४४, चावल १७, जौ ५७, साठी १६५, गेहूँ १४, उड़द ८०, तिल ५३, चना ५६, कपास १२७, अफीम १९२, रूई ७७।।
पशु- घोड़ा ७७०, हाथी ६४, भैंस ९२, गाय ७७, बैल ८७, बकरी ६०, साँड
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९४, भेड़ ८५ ।
नक्षत्र विंशाोपक - अश्विनी १०, भरणी १०, कृत्तिका ९६, रोहिणी २०, मृगशिरा ५६, आर्द्रा ८६, पुनर्वसु २१, पुष्य ९४, आश्लेषा १३५, मघा १५०, पूर्वाफाल्गुनी २२०, उत्तराफाल्गुनी ७२, हस्त ३३४, चित्रा २१, स्वाति २१०, विशाखा ३२०, अनुराधा ४९३, ज्येष्ठा ५५९,मूल ५५२, पूर्वाफाल्गुनी १९४२, उत्तराफाल्गनी ४२०, श्रवण ४५०, धनिष्ठा ७३६, शतभिषा ५७६, पूर्वाभाद्रपद ७७५, उत्तराभाद्रपद १२६, रेवती २५६ ।
संक्रान्तिराशि विंशाोपक- मेष ३७, वृष ८६, मिथुन ८४, कर्क १०९, सिंह १२५, कन्या १०२, तुला १०४, वृश्चिक१४४, धनु १४४, मकर १९८, कुम्भ १९०, मीन
१८० ।
मुनि प्रार्थना सागर
तिथि विंशाोपक प्रतिपदा १८, द्वितीया २०, तृतीया २२, चतुर्थी २४, पंचमी २६, षष्ठी २४, सप्तमी २३, अष्टमी २१, नवमी १९, दशमी १७, एकादशी १५, द्वादशी ११, त्रयोदशी १३, चतुर्दशी ९, अमावस्या ९, पूर्णिमा १६ । वार- रविवार ४०, सोम ५०, मंगल ५०, बुध ६२, गुरु ६५, शुक्र २८, शनि १४
तेजी - मन्दी निकालने की विधि- जिस मास की या जिस दिन की तेज - मन्दी निकालनी हो, उस महीने की संक्रान्ति विंशोपक ध्रुव, तिथि, वार और नक्षत्र के विंशोपक ध्रुवाओं को जोड़कर ३ का भाग देने से एक शेष रहने से मन्दी, दो शेष में समान और शून्य शेष में तेजी होती है।
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३. तेजी - मन्दी निकालने का अन्य नियम- गेहूँ की अधिकारिणी राशि कुम्भ, सोना की मेष, मोती की मीन, चीनी की कुम्भ, चावल की मेष, ज्वार की वृश्चिक, रुई की मिथुन और चांदी की कर्क है । जिस वस्तु की अधिकारिणी शि से चन्द्रमा चौथा, आठवां तथा बारहवां हो तो वह वस्तु तेज होती है, अन्य राशि पड़ने से सस्ती होती है। सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु, ये क्रूर ग्रह हैं, ये क्रूर ग्रह जिस वस्तु की अधिकारिणी राशि से पहले, दूसरे, चौथे, पांचवे, सातवें, आठवें, नौवें और बारहवें जा रहे हों, वह वस्तु तेज होती है। जितने क्रूर ग्रह उपर्युक्त स्थान में जाते हैं, उतनी ही वस्तु अधिक तेज होती है।
(189) मकर संक्रान्ति फल
पौष महीने में मकर संक्रान्ति रविवार को प्रविष्ट हो तो धान्य का मुल्य दुगूना होता है। शनिवार को हो तो तिगुना, मंगल के दिन प्रविष्ट हो तो चौगुना धान्य का मूल्य होता है । बुध और शुक्रवार को प्रविष्ट होने से समान भाव और गुरु तथा सोमवार को हो तो
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आधा भाव होता है । शनि, रवि और मंगल के दिन मकर संक्रान्ति का प्रवेश हो तो अनाज का भाव तेज होता है । यदि मेष और कर्क संक्रान्ति का रवि, मंगल और शनिवार को प्रवेश हो तो अनाज महँगा, ईति-भीति आदि का आतंक रहता है । कार्तिक तथा मार्गषीर्श की संक्रान्ति के दिन जल वृष्टि हो तो पौष में अनाज सस्ता होता है तथा फसल मध्यम होती है। कर्क अथवा मकर संक्रान्ति शनि, रवि और मंगलवार की हो तो भूकम्प का योग होता है। प्रथम संक्रान्ति प्रवेश के नक्षत्र में दूसरी संक्रान्ति प्रवेश का नक्षत्र दूसरा या तीसरा हो तो अनाज सस्ता होता है। चौथे या पाँचवे पर प्रवेश हो तो धान्य तेज एवं छठवे नक्षत्र में हो तो दुष्काल होता है ।
_(190) संक्रान्ति से गणित द्वारा तेजी-मंदी का परिज्ञान
संक्रान्ति जिस दिन प्रवेश हो उस दिन जो नक्षत्र हो उसकी संख्या में नीधि और वार की संख्या जो उस दिन का हो, उसे मिला देना। जो योग्य फल हो उसमें तीन का भाग देने से एक शेष बचे तो वह अनाज उस संक्रान्ति के मास में मन्दा बिकेगा, दो शेष बचे तो समान भाव रहेगा और शून्य शेष बचे तो वह अनाज महँगा होगा ।
(191) तेजी-मंदी के उपयोगी के पंच वार का फल
जिस महीने में पांच रविवार हों उस महीने में राज्यभय, महामारी, अलसी, सोना आदि पदार्थ तेज होते हैं। किसी भी महीने में पांच सोमवार होने से सम्पूर्ण पदार्थ मंदे घृत, तेल, धान्य के भाव मंदे रहते हैं। पांच मंगलवार होने से अग्नि भय, वर्ष का विरोध, अफीम मन्दा तथा धान्य भाव घटता बढ़ता रहता है। पांच बुधवार होने से घी, गुड़, खांड आदि रस तेज होते हैं। रूई चांदी घट बढ़कर अंत में तेज होती है। पांच गुरूवार होने से सोना, पीतल सूत कपड़ा चावल चीनी आदि पदार्थ मंदे होते हैं। पांच शुक्रवार होने से प्रजा की वृद्धि, धान्य मंदा, लोग सुखी तथा अन्य भोग पदार्थ सस्ते होते हैं। पांच शनिवार होने से उपद्रव, अग्नि, भय, अफीम, की मन्दी धान्य भाव अस्थिर, और तेल महंगा होता है । लोहे का भाव पांच शनिवार होने से महंगा तथा अस्त्र-शस्त्र मशीन के कल पुर्जो का भाव पांच मंगल और पांच गुरू होने से महंगा होता है ।
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(192) संक्रांति के वारो का फल रविवार को सक्रान्ति का प्रवेश हो तो राजविग्रह, अनाज महंगा, तेल घी आदि पदार्थो का संग्रह करने से लाभ होता है। सोमवार को संक्रान्ति प्रवेश हो तो अनाज महंगा, प्रजा को सुख, घृत, तेल गुड चीनी आदि पदार्थो के संग्रह में तीसरे महीने लाभ होता है। मंगलवार को सक्रान्ति प्रवेश करे तो घी, तेल, धान्य आदि पदार्थ तेज होते है। लाल वस्तुओं में अधिक तेजी आदि आती है तथा सभी वस्तुओं के संग्रह में दूसरे महीने में लाभ होता हैं। बुधवार को सक्रान्ति का प्रवेश होने पर श्वेत रंग के अन्य पदार्थ महंगे तथा नीले, लाल और श्याम रंग के पदार्थ दूसरे महीन में लाभप्रद होते हैं। गुरूवार को सक्रान्ति का प्रवेश हो तो प्रजा सुखी, धान्य सस्ते, गुड, खंड आदि मधुर पदार्थो में दो महीने के उपरान्त लाभ होता है। शुक्रवार को सक्रान्ति प्रविष्ट हो तो सभी वस्तुएं सस्ती, लोग सुखी, सम्पन्न, अन्न की अत्यधिक, उत्पत्ति, पीले वस्तुए, श्वेत वस्त्र तेज होते हैं। और तेल गुड़ के संग्रह में चौथे मास में लाभ होता है। शनिवार को सक्रान्ति के प्रविष्ट होने से धान्य तेज, प्रजा दुःखी, राजविरोध, पशुओं को पीड़ा अन्न नाश, तथा अन्न का भाव भी तेज होता है। जिस वार के दिन संक्रान्ति का प्रवेश हो उसी वार को उसी मास में अमावस्या हो तो खर्पर प्रयोग होता है। यह जीवों का और धान्य का नाश करने वाला होता है। इस योग में अनाज में घट बढ़ चलती है जिससे व्यापारियो को भी लाभ नहीं हो पाता।
पहले सक्रान्ति शनिवार को प्रविष्ट हुई हो, इससे आगे वाली दूसरी सक्रान्ति रविवार को प्रविष्ट हुई हो और तीसरे आने वाली मंगलवार को प्रविष्ट हो तो खर्पर प्रयोग होता है। यह योग अत्यन्त कष्ट देने वाला है। चोर लोग व म्लेच्छ लोग यात्री को व साधुओं को, नायकों को मारते हैं गणों का विरोध व राजा को राजदूत रोक लेते हैं।
(193) रवि नक्षत्र फल 1. अश्विनी में सूर्य के रहने से सभी अनाज, सभी रस, वस्त्र, अलसी, अरंड, तिल, मैथी, लाल चन्दन, इलायची, लौंग, सुपारी, नारियल कपूर, हींग, हिग्लू आदि तेज होते हैं। 2. भरणी में सूर्य के रहने से चावल, जौ, चना, मोठ, अरहर, अलसी, गुड़, घी, अफीम मूंगा आदि पदार्थ तेज होते हैं। 3. कृतिका में श्वेत पुष्प, जौ चावल, गेहूं, मौठ, राई और सरसों तेज होती है। 4. रोहिणी में चावल आदि सभी धान्य अलसी, सरसों, राई, तेल, दाल, गुड़, खाण्ड सुपारी, रूई, सूत, जूट आदि पदामें तेज होते हैं। 5. मृग शिरा में सूर्य के रहने से जलोत्पन्न पदार्थ नारियल सर्व फल, रूई, सूत, रेशम, वस्त्र कपूर, चन्दन, चना आदि पदार्थ तेज होते हैं। 6. आर्द्रा में रविवार के रहने से मैथी, गुड़, चीनी चावल, चन्दन, लाल नमक, कपास,
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मन्त्र,यन्त्र और तन्त्र
मुनि प्रार्थना सागर
रूई, हल्दी, सौंठ लोहा, चादी आदि पदार्थ तेज होते हैं। 7. पुनर्वास नक्षत्र में रहने से उड़द, मूंग, सौंठ चावल, मसूर, नमक, सज्जी, लाख, नील सिल, एरंड, माजुफल, केशर, कपूर, देवदारू, लौंग, नारियल श्वेत वस्तु आदि पदार्थ महंगे होते हैं। 8. पुष्य नक्षत्र में रवि रहने से तिल, तेल मद्य, (शराब) गुड़, ज्वार, गुग्गुल, सुपाड़ी, सौंठ, मोम, हींग, हल्दी, जूठ, ऊनी वस्त्र शीश चांदी आदि वस्तुए तेज होती हैं। 9. अश्लेषा में रहने से अलसी, तिल, तेज, गुड़, रेमर, नील और अफीम महंगे होते हैं। 10. अश्लेषा में रवि के रहने से ज्वार, अरंड बीज, दाख, मिर्च, तेल और अफीम महंगे होते हैं। 11. पूर्व फाल्गुनी में रहने से सोना, चांदी, लोहा, घृत तेल, सरसों, अरंड, सुपाड़ी, नील, बांस, अफीम, जूट आदि तेज होते हैं। 12. उत्तरा फाल्गुनी में रवि के रहने से ज्वार, जो, गुड़, चीनी, जूट, कपास, हल्दी, हरड़, हींग, क्षार, और कत्था आदि तेज होते हैं। 13. चित्रा में रहने से गेहूँ, चना, कपास, अरहर सूत, केशर, लाख चपड़ा आदि तेज होता है। 14. स्वाति में रहने से धातु, गुड़, खाण्ड, तेल, हिंगुर, कपूर, लाख, हल्दी, रूई, जूट, आदि तेज होते हैं। 15. अनुराधा और विशाखा में रहने से चांदी, चावल, सूत, अफीम आदि महंगे होते हैं। 16. ज्येष्ठ और मूल में रहने से चावल, सरसों, वस्त्र, अफीम, आदि पदार्थ तेज होते हैं। 17. पूर्वाषाढ़ में रहने से तिल, तेल, गुड़, गुग्गुल, हल्दी कपूर, ऊनी वस्त्र, जूट चांदी आदि पदार्थ तेज होते हैं। 18. उत्तराषाढ़ और श्रवण में रवि के होने से उड़द मूंग, जूट, सूत, गुड़, कपास, चावल, चांदी, बांस, सरसों आदि पदार्थ तेज होते हैं। 19. घनिष्ठा में रहने से मूंग, मसूर और नील तेज होते हैं। शतभिषा में रवि के रहने से सरसो, चना, जूट कपड़ा, तेल, नील, हींग, जायफल, दाख, छुआरा, सोंठ आदि तेज होते हैं। 20. पूर्वाभाद्रपद में सूर्य के रहने से सोना, चांदी, गेहूँ, चना, उडद, घी, रूई रेशम, गुग्गुल, पीपरा गुडा, आदि पदार्थ तेज होते हैं। 21. उत्तराभाद्र पद में रवि के होने से सभी रस, धान्य, तेल एवं खेती में रहने से मोती रत्न, फल, फूल, नमक, सुगन्धित पदार्थ, अरहर, मूंग उड़द, चावल, लहसून, लाख, रूई और सब्जी आदि पदार्थ तेज होते हैं।
।। ॐ शन्ति।।
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स्वास्थ्य अधिकार
मंन्त्र,यन्त्र और तन्त्र
मुनि प्रार्थना सागर
कालसर्प दोष निवारण एवं मांगलिक दोष निवारण अनुष्ठान कालसर्प दोष क्या है ? जब राहु केतु के बीच सभी ग्रह आ जाते हैं, तो कालसर्प योग बनता है।
वैसे राहु का जन्म नक्षत्र भरणी में हुआ, जिसका देवता काल है व केतु का जन्म नक्षत्र आश्लेषा में हुआ, जिसका देवता सर्प है, अत: इन दोनों देवताओं के मिलने से कालसर्प योग बनता है।
कालसर्प योग जिसकी कुण्डली में होता है उसे अपने जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ता है, इच्छित और प्राप्त होने वाली प्रगति में रुकावटें आती हैं, बहुत ही विलम्ब से यश प्राप्त होता है मानसिक, शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक और व्यापारिक दृष्टि से व्यक्ति परेशान रहता है, क्योंकि जातक के भाग्य को राहु-केतु अवरुद्ध करते हैं, जिसके कारण जातक की उन्नति नहीं होती। उसे कामकाज नहीं मिलता अथवा काम-काज मिल भी जाए तो उसमें अनेक अड़चने उपस्थित होती हैं। परिणामस्वरूप उसे अपनी जीवनचर्या चलाना भी मुश्किल हो जाती है। उसका विवाह नहीं होता अथवा विवाह के बाद संतान सुख नहीं मिलता। वैवाहिक जीवन में कटुता आकर अलगाव रहता है। कर्ज का बोझ उसके कंधों पर बना रहता है व अनेक प्रकार के दुःख भोगने पड़ते हैं। अतिशीघ्र मृत्यु भी प्राप्त हो सकती है। प्रायः समस्त परेशानियों से मुक्त होने के लिये हमसे सम्पर्क करें।
हम प्रत्येक बुधवार को कालसर्प दोष निवारण व प्रत्येक मंगलवार को मंगली दोष निवारण अनुष्ठान करते हैं, जिस जातक की कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव (स्थान) में मंगल ग्रह होता है उसे मंगली की संज्ञा दी जाती है। इन स्थानों में शनि होने से भी मंगल योग माना जाता है। वर की कुण्डली में मंगली योग कन्या के लिये तथा कन्या की कुण्डली में मंगली योग वर के लिये अनिष्ठ माना जाता है। मंगली दोष के कारण पुत्र/पुत्री का विवाह न होना (विवाह में विलम्ब होना) विवाह के बाद संतान उत्पत्ति का न होना अथवा विवाह होने के पश्चात् पति पत्नी के संबंधों का मधुर न होना। इस प्रकार के समस्त दोषों के निवारण के लिये आप इस अनुष्ठान में बैठकर समस्त विघ्न बाधाओं से मुक्त होकर पूर्ण सुखशांति एवं समृद्धि के साथ आनन्दमय जीवन जी सकते हैं। अनुष्ठान हेतु निर्देश१. पुरुष वर्ग अपने आन्तरिक वस्त्र एवं धोती दुपट्टा कोरे (नये) स्वयं लेकर आयें। २. महिला वर्ग लाल, गुलाबी कोरी साड़ी एवं अन्य वस्त्र स्वयं लेकर आवें। ३. पुरुष-महिला वर्ग अनुष्ठान में बैठने के पूर्व अपने शरीर के आभूषण आदि उतारकर आये
अनुष्ठान के पश्चात शरीर पर धारित समस्त वस्तुओं एवं वस्त्रों का त्याग करना अनिवार्य है। ४. तांत्रिक उतारे की सामग्री भी यहीं पर उपलब्ध है। तान्त्रिक स्नान भी यहीं होगा। ५. अनुष्ठान के बाद आपको जो यन्त्र, मन्त्र व माला दी जाएगी। आपको उसी माला से उस मंत्र को उसी यंत्र के सामने बैठकर घर पर जाप करना होगा।
सम्पर्क करें : अनुष्ठाचार्य- कपिल पाटनी मोबाइल : 09893821707, 09893119091, 09827505637,
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मंन्त्र, यन्त्र और तन्त्र
पेज नं. लाईन नं. अशुद्ध शब्द
55
12,21
ओंठ
89
24,28
आश्लेशा
91
107
127
144
147
149
8
184
20
195
8
199
25
246
5
256 21
256
24
436
10
437 11
441
443
451
222 22
5
661
25
23
5
2 2 4 ∞ 2
25
445
448
451 14
29
14
8
20
10
22
452
454
461 2
464
483
485 3
485 10
486 4
486 6
498
28
17,29
13
13
मूद्रा
मंत्रित
क्षेत्रकाल
दुष्मन
श्मसान
बैर
उड़ा
फला
निचे
दुर्गन्ध
बड़ति
शीघ
पेचिश
बबूला
डालने
जनावर
दोष
भगं
त
गादिया
भायन
अवय
ऋण
भाक
आश्लेशा
भरीर
आश्लेशा
भांखपुश्पी
धतूर पूवोक्त
स्वास्थ्य अधिकार
शुद्धि पत्र)
शुद्ध शब्द |पेज नं. लाईन नं.
होंठ
500 29
अश्लेषा
505
21
मुद्रा
मंत्रित
क्षेत्रपाल
दुश्मन
श्मशान
बेर
ओढ़ा
फल
नीचे
दुर्गन्धा
बढ़ती
का
शीघ्र
पेचिश मिटे
बबूल
पहनाने
जानवर
दोष नहीं
भांग
हेतु
गाड, दिया
शयन
अवश्य
ऋण
शाक
अश्लेषा
शरीर
अश्लेषा
शंखपुष्पी
धतूरे पूर्वोक्त
507
508
516
517
517
517
519
519
520
529
530
537
538
550
550
551
552
554
563
573
578
581
585
610
611
611
611
612
613
615
614
212133
24
7
17
7
287 27 2
24
25
16
18
3
19
18
32 26
13
27
15,16
2
2,9
3
27
3
30
4
मुनि प्रार्थना सागर
अशुद्ध शब्द
लौंगी
दूकान
चित्र
आश्लेशा
निवरण
गुरू
निवरण
शक्र
सुखी
दुगने
नित
सबाक
अत्तयन्त
दूर
भाछु
भारीर
ओंठ
गंडमाला
नितारे
फोला
पे
लेपटकर
सुगर
तिल
विश
आश्लेशा
विंशाोपक
आश्लेशा
दुगूना
मार्गषीर्श
पदामें
आश्लेशा
शुद्ध शब्द
लौंग
दुकान
चित्रा
अश्लेषा
निवारण
गुरू
निवारण
शुक्र
सूखी
दुगुने
निथरा
सबका
अत्यन्त
दूर करने
शुद्ध
शरीर
होंठ
कंठमाला
निथारें
फोड़ा
पेट
लपेटकर
शुगर
तेल
विष
अश्लेषा
विंशोपक
अश्लेषा
दुगुना
मार्गशीर्ष
पदार्थ
अश्लेषा
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स्वास्थ्य अधिकार
मन्त्र,यन्त्र और तन्त्र
मुनि प्रार्थना सागर
मूद्रा
(शुद्धि पत्र शुद्ध शब्द | पेज नं. लाईन नं. होंठ
500 29 अश्लेषा
505 21
507 24 मंत्रित
508 क्षेत्रपाल दुश्मन 517 1 श्मशान
5177
पेज नं. लाईन नं. अशुद्ध शब्द 55 12,21 ओंठ 89 24,28 आश्लेशा 915 107
मंत्रित 127
क्षेत्रकाल 144 147
श्मसान 149
उड़ा
मुद्रा
अशुद्ध शब्द शुद्ध शब्द लौंगी लौंग दूकान दुकान चित्र चित्रा आश्लेशा अश्लेषा निवरण निवारण गूरू
516
23
दुष्मन
निवरण
निवारण
र
17
शक्र
शुक्र
184
13
सुखी
सूखी
195
फला
निचे दुर्गन्ध बड़ति
ओढ़ा फल नीचे दुर्गन्धा बढ़ती
519 519 520 529
दुगने नितरा सबाक अत्तयन्त
19925 246 256 21 256 436 437 11 441 443
निथरा सबका अत्यन्त दूर करने
530
शीघ
शीघ्र
537 538
पेचिश
550
16
550
पेचिश मिटे बबूल पहनाने जानवर दोष नहीं भांग
भाद्ध भारीर ओंठ गंडमाला नितारे फोला
बबूला डालने जनावर दोष भगं
551
445
552
18
554
___19
563
573
गाड दिया
लेपटकर सुगर तिल
578
शरीर होंठ
कंठमाला निथारें फोड़ा पेट लपेटकर शुगर तेल विष अश्लेषा विंशोपक अश्लेषा दुगुना
शयन
581
अवश्य
585
27 15,16
विश
ऋण
448 451 14 451 20 452 454 4612 464 17,29 483 13 4853 485 10 486 486 498 499 13
610
शाक
गादिया भायन अवय ऋण भाक आश्लेशा भरीर आश्लेशा भांखपुश्पी धतूर पूवोक्त
611
611
आश्लेशा विंशोपक आश्लेशा दुगूना मार्गषीर्श
| 611
शाक अश्लेषा शरीर अश्लेषा शंखपुष्पी धतूरे पूर्वोक्त
27
612
मार्गशीर्ष
613
पदामें
पदार्थ अश्लेषा
6154
आश्लेशा
616
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________________ स्वास्थ्य अधिकार मन्त्र,यन्त्र और तन्त्र मुनि प्रार्थना सागर 616